- कोरिया कलेक्टर रहते नरेंद्र दुग्गा 2018 चुनाव संपन्न कराया तीनों सीटों पर हार मिली,एमसीबी कलेक्टर रहते 2023 में चुनाव संपन्न कराया दोनों विधानसभा में हार मिली यह संयोग है या फिर दुर्भाग्य?
- दो बार दो अलग-अलग जिलों में चुनाव संपन्न कराया और सुपड़ा साफ हो गया विधानसभा में सत्ता पक्ष का।
- 2018 में भाजपा का सुपड़ा साफ और 2023 में कांग्रेस का सुपड़ा साफ… संयोग है या फिर दुर्भाग्य?
- नरेंद्र दुग्गा के कार्यकाल में एक बार भाजपा निपटी अबकी बार कांग्रेस निपटा।
- क्या पिछले बार तीन सीटों को निपटाने का मौका मिला था इस बार दो विधानसभा को निपटाने में निभाई भूमिका या फिर इनका था यह दुर्भाग्य?
- भाजपा घोषणा पत्र का पिटारा खोला और महतारी वंदन योजना तुरुप के एक्का सामने निकला।
- मंझी खिलाड़ी केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह के सामने कांग्रेस जीत मानकर चल रही थी और प्रत्याशी चारो खाने चित्त हो गया।
-रवि सिंह-
बैकुंठपुर/एमसीबी 07 दिसम्बर 2023 (घटती-घटना)। छत्तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव संपन्न हो गया है पर इस चुनाव संपन्न होने के बाद एक ऐसा ससंयोग सामने आया है जो सबको आश्चर्यचकित कर देने वाला है, इसे संयोग कहें या फिर पनौती यह तो समझने वाले के ऊपर है, यदि हम बात करें कलेक्टर नरेंद्र कुमार दुग्गा की तो उनके कार्यकाल में विभाजित कोरिया जिले के कलेक्टर रहते हुए चुनाव 2018 में संपन्न हुआ था उसे समय भाजपा की सरकार थी पर तीनों के तीनों सीट पर बीजेपी का सुपड़ा साफ हो गया था, फिर 2021 में कोरिया का विभाजन के बाद एमसीबी नवीन जिला बना और 2023 में इस नवीन जिले के दूसरे कलेक्टर के रूप में नरेंद्र कुमार दुग्गा की पदस्थापना हुई जिनके कार्यकाल में 2023 का विधानसभा चुनाव संपन्न हुआ, इस नवीन जिले में भी सत्ता पक्ष के विधायक थे और उन्हें हारना पड़ा ऐसे में चर्चा का विषय यह है कि दो बार कलेक्टर नरेंद्र कुमार दुग्गा को चुनाव संपन्न करने का मौका मिला पर दुर्भग्य है की जहां-जहां यह रहे वह पर सत्ता पक्ष के विधायक को हार का सामना करना पड़ा, कलेक्टर नरेंद्र कुमार दुग्गा के साथ एक खराब चीज जुड़ गई है जो आगे का कार्यकाल को नुकसान भी पहुंच सकती है।
ज्ञात होकी छत्तीसगढ़ में इस बार के विधानसभा चुनावों में फिर बड़ा उलट फेर देखने को मिला जो वैसा ही देखने को मिला जैसा वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद देखने को मिला था सत्ताधारी दल प्रदेश में फिर सत्ता से बेदखल हो गई वहीं इस बार भाजपा को प्रदेश की जनता ने प्रदेश की सत्ता की कमान सौंप दी। इस बार के विधानसभा चुनाव में सरगुजा संभाग का भी परिणाम बिल्कुल पूर्व के विधानसभा चुनावों जैसा रहा जहां पूरे संभाग में सत्ताधारी दल को एक भी सीट मिल पाने में कठिनाई हुई और शून्य सीटों के साथ सत्ताधारी दल संभाग से भी निपट गई और सत्ता से भी दूर हो गई। सबसे चौकाने वाले परिणाम अविभाजित कोरिया जिले की तीन विधानसभा कहें या विभाजित कोरिया जिले की तीन विधानसभा कहें यहां का देखने को मिला जहां सत्ताधारी दल कोरिया जिले का विभाजन कर यह मानकर चल रही थी की उसे कम से कम दो विधानसभा में तो जीत मिल ही जायेगी जिन दो विधानसभाओं को लेकर कांग्रेस ने नए जिले की घोषणा की थी लेकिन ऐसा नहीं हो सका कोरिया एमसीबी जिले की तीनो विधानसभाओं में भाजपा ने परचम लहराया और तीनों सीटों से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। नवीन जिले के गठन का जो फायदा सत्ताधारी दल उठाना चाहती थी वह उठा नहीं सकी और इसके पीछे की वजह जो मानी जा रही है वह यह की कांग्रेस को पंद्रह साल बाद सत्ता बड़े बहुमत के साथ मिली जरूर लेकिन उसे बरकरार रख पाने में सत्ताधारी दल के मंत्री विधायक और जिम्मेदार पदाधिकारी ही सक्षम साबित नहीं हो सके और उनका जमकर क्षेत्र में विरोध दर्ज हुआ और बड़ी पराजय के रूप में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई।
कलेक्टर ने दो बार चुनाव संपन कराया और दोनों बार सत्ता के विधयक मिली हार
एमसीबी जिले की बात करें तो यहां की दो विधानसभाओं में कांग्रेस हार का मुंह देखेगी ऐसा उसने नहीं सोचा था उसे नए जिले की घोषणा के बाद उम्मीद थी की वह यह दो विधानसभा किसी भी चेहरे पर जरूर जीत ले जायेगी लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ वैसे इस बार एमसीबी जिले में पूरे निर्वाचन कार्य की जिला स्तरीय जिम्मेदारी प्रशासनिक तौर पर जो अधिकारी देख रहे थे वह वही हैं जो पिछले विधानसभा चुनाव वर्ष 2018 के समय अविभाजित कोरिया जिले में यह जिम्मेदारी निभा चुके थे। उस समय की सत्ताधारी दल ने कोरिया कलेक्टर को चुनाव के दौरान जिले में ही बनाए रखा था जबकि उनका एक मामले में उस समय काफी विरोध हुआ था और उनकी माफी के बाद मामला शांत हुआ था सत्ताधारी दल उस समय उनके साथ खड़ा था और उन्हे जिले से हटाने बिल्कुल तैयार नहीं था हुआ भी ऐसा ही वह जिले में बने रहे और उनके नेतृत्व में हुए चुनाव में जिले की तीनों सीटों पर भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा। इस बार वही जिलाधिकारी नवीन जिले में सत्ताधारी दल के द्वारा चुनाव के कुछ समय पूर्व पदस्थ किए गए थे उनके नेतृत्व में ही जिले की दो विधानसभाओं का चुनाव संपन्न हुआ और संयोग ही इसे कहें इस बार भी सत्ताधारी दल का दोनो विधानसभाओं से सफाया हो गया। यह मात्र एक संयोग ही है वैसे लेकिन चर्चा इस बात की हो रही है और लोगों के बीच यह बात सुनी भी जा रही है की सत्ताधारी दल के लिए जिलाधिकारी फिट नहीं बैठे। वैसे उन्होंने दोनो ही बार निष्पक्ष चुनाव कराया और यह इस बात से स्पष्ट भी होता है की सत्ता धारी दल को उनके कार्यकाल में हानि ही हुई दोनो बार।
महतारी वंदन योजना निकला तुरुप का एक्का
कांग्रेस अपनी समीक्षाओं में भले ही ईवीएम को दोष देती रहे नए नए तथ्य सामने रखती रहे लेकिन प्रदेश में जो हवा चुनाव पूर्व बहती देखी जा रही थी वह सत्ता विरोधी ही थी यह कहना गलत नहीं होगा वहीं इसी बीच भाजपा ने भी अपनी घोषणा पत्र का पिटारा खोला और महतारी वंदन योजना का एक ऐसा तुरुप का एक्का सामने लाकर रख दिया जिसका काट कांग्रेस निकालने में जुटी जरूर लेकिन वह काट मुख्यमंत्री के बयानों के अलावा कहीं सुनने देखने को नहीं मिला इधर भाजपा की तैयारी ऐसी थी की उसके कार्यकर्ता कांग्रेस के काट ढूढने से पहले महतारी वंदन योजना का फॉर्म लेकर घर घर दस्तक दे चुके थे और लगभग एक माहौल इसका वह बना चुके थे। सत्ताधारी दल कांग्रेस को माना जाता है की प्रथम चरण की २० सीटों पर हुए मतदान जो ७ नवंबर को हुआ था उसी समय यह आभास हो गया था की बस्तर सहित 20 सीटों पर महतारी वंदन योजना भाजपा की घोषणा का असर हुआ है और लगभग २० सीटों पर कांग्रेस का प्रदर्शन खराब है और इसलिए दीपावली के दिन मुख्यमंत्री ने १५ हजार प्रति महिला देने की एक नई घोषणा की जो उनके 20 सीटों पर आए नुकसान वाले अनुमान के बाद का निर्णय था। खैर हवा इस बार अपनी तरफ भाजपा ने कैसे मोड़ लिया यह सत्ता धारी दल समझ पाने में नाकाम रही बुरी तरह उसे हार का सामना करना पड़ा गुटबाजी भी इसका प्रमुख कारण रही जो कांग्रेस में आम हो चली परंपरा बन गई है और यह भी एक कारण था की कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई। खैर अब सत्ताधारी दल में हार की समीक्षा का दौर चालू है और वह अभी सतत जारी रहने वाली है। वैसे सत्ताधारी दल के मंत्री विधायकों का परफॉर्मेंस और उसके बाद भाजपा का महतारी वंदन योजना दो प्रमुख कारण इस चुनाव में कांग्रेस के लिए सत्ता से दुर जाने का कारण बना जो आज जन चर्चा का विषय भी है। नवीन जिले की बात की जाए वहां की दो विधानसभाओं की बात की जाए तो वहां एक विधानसभा से वर्तमान विधायक का टिकट काटना भी कहीं न कहीं सत्ताधारी दल के लिए हार का कारण बना।
जीतने लायक प्रत्याशी पार्टी ने नहीं दिया टिकट
सत्ताधारी दल से मनेंद्रगढ़ विधानसभा के लिए एकमात्र जीतने लायक प्रत्याशी वर्तमान विधायक ही थे जिन्हे टिकट पार्टी ने नहीं दिया जिसके बाद उनके समर्थक भी मन से काम करने में रुचि नहीं दिखा सके वहीं कुछ पार्टी ही छोड़ दिए वहीं एक सीट जिसे सबसे सुरक्षित माना जा रहा था जहां सत्ताधारी दल से दूसरा कोई दावेदार ही सामने नहीं आया चुनाव पूर्व ही जिसे पार्टी ने जीती हुई सीट मान ली थी वहां भाजपा ने केंद्रीय राज्यमंत्री को प्रत्याशी बनाकर ऐसा घेरा की वह पूरे प्रचार अभियान के दौरान भाजपा प्रत्याशी के बयानों में ही उलझे रह गए और इस बीच भाजपा प्रत्याशी ने अपनी जीत उनसे चुरा ली।
केंद्रीय राज्यमंत्री को उनके विधानसभा से दूर अन्य विधानसभा में भेजकर भाजपा ने किया प्रयोग मिली सफलता
केंद्रीय राज्यमंत्री को उनके विधानसभा से दूर अन्य विधानसभा में भेजकर भाजपा ने जो प्रयोग किया वह बिल्कुल सफल रहा राजनीति की मंझी खिलाड़ी केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह के सामने कांग्रेस के जीत मानकर चल रहे प्रत्याशी चारो खाने चित्त हो गए। इस दौरान केंद्रीय राज्यमंत्री को एक और फायदा मिला प्रचार अभियान के दौरान वह की कांग्रेस प्रत्याशी के सबसे करीबियों की वह वह करनी उजागर करती रहीं जिससे जनता भी त्रस्त थी सोनहत क्षेत्र के उनके खास समर्थक रहे हों या भरतपुर क्षेत्र के समर्थक वहीं कुछ जिला मुख्यालय के समर्थक सभी की करनी वह जनता के सामने रखती चली गईं और उनकी जीत सुनिश्चित हो गई। अब जिलाधिकारी की चर्चा भी है की जहां जहां वह चुनाव के दौरान जिम्मेदारी सम्हाले वहां सत्ताधारी दल का सफाया हुआ यह एक नया विषय भी है समीक्षा के लिए।