कोरिया@क्या सिर्फ अस्पताल की बड़ी-बड़ी इमारतें स्वास्थ्य सुविधा बेहतर कर पाएंगी या इमारत के भीतर लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा भी मिलेगी?

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  • क्या जनप्रतिनिधि बड़ी इमारतों को ही अपनी उपलब्धियों में गिनेंगे या फिर इमारत के अंदर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं भी दिलाएगे।
  • इस समय जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था सिर्फ बड़ी-बड़ी इमारत के चकाचौंध में मौजूद  है,असलियत सिर्फ इमारत के अंदर घुसने के बाद समझ आती है।
  • बड़ी-बड़ी इमारतों के भीतर संचालित शासकीय अस्पतालों में स्वास्थ्य व्यवस्था दम तोड़ती नजर आ रही है।
  • इमारत को देखकर बेहतर इलाज की कल्पना कैसे करें?…बाकी सब तो खरीदी व भ्रष्टाचार में स्वास्थ्य सुविधाएं दम तोड़ रही हैं।
  • बड़ी इमारत के अंदर ना तो मरीज के लिए बेहतर डॉक्टर हैं और ना ही बेहतर उपकरण और यदि उपकरण हैं भी तो सिर्फ फीते काटने तक सीमित।
  • जब मरीज की जान जाति है तब आरोप प्रत्यारोप का भी दौर आता है बाद में धीरे धीरे उसे भी भूल जाते हैं लोग

-रवि सिंह-
कोरिया 30 नवम्बर 2022 (घटती-घटना)। जनप्रतिनिधियों व सरकार से जनता कुछ चाहती है तो वह केवल मूलभूत सुविधाएं जो महत्वपूर्ण होती है, जिसमें शिक्षा,स्वास्थ्य,सड़क,पानी व बिजली अहम है, इन सब की बेहतर व्यवस्था पर चुनाव लड़ना पहले प्रथम प्राथमिकता हुआ करती थी पर अब यह प्राथमिकता खत्म होकर मुक्तखोरी में तब्दील हो गई है, अब इन सुविधाओं पर किसी का भी ध्यान नहीं है सिर्फ ध्यान है तो इन सुविधाओं के बीच भ्रष्टाचार करके आय अर्जित करने पर, इस समय इन सब मूलभूत सुविधाओं से ही लोग वंचित हो रहे हैं उसकी सिर्फ वजह है सोच का बदलना, जहां पर इन सब सुविधाओं को इतना बेहतर हो जाना चाहिए था की पीछे पलट के देखने की स्थिति निर्मित ना हो पर ऐसी स्थिति आज भी निर्मित है, आज लोग शिक्षा स्वास्थ्य को लेकर प्रदेश जिलों में जद्दोजहद करते नजर आ जाएंगे, सरकार भी दावे करती है कि हम बेहतर शिक्षा स्वास्थ्य बिजली पानी सब कुछ मुहैया करा रहे हैं स्थिति यह है की बेहतर कुछ भी नहीं है ना तो बेहतर शिक्षा है ना ही बेहतर स्वास्थ्य सुविधा ही है और ना ही बेहतर बिजली पानी व सड़क की व्यवस्था है, इसी मामले पर यदि आगे बढ़कर हम सिर्फ स्वास्थ्य की बात करें तो जिले में स्वास्थ्य के नाम पर जिला अस्पताल की बड़ी-बड़ी इमारतें हैं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतें हैं देखकर लोगों को लगता है कि इस इमारत के पीछे बेहतर इलाज जरूर मिलेगा पर इसकी स्थिति तब उजागर हो जाती है जब लोग इस बड़े इमारत के अंदर जाते हैं और जिंदा होने के बजाय मुर्दा वापस आते हैं तब इनकी बेहतर सुविधाओं की पोल खुलती है। जिले में स्वास्थ्य के बड़े-बड़े दवा किए जाते हैं और कहा जाता है कि इस विधायक की यह उपलब्धि है उस विधायक की वह उपलब्धि है,स्वास्थ्य सुविधा को लेकर  बहुत बड़ा जिला अस्पताल तैयार हो रहा है यह अस्पताल इमारत के नाम पर काफी बड़ी है पर बात की जाए सुविधाओं की तो पुराने जिला अस्पताल में ही बेहतर सुविधा नहीं मिल पा रही है तो फिर नए अस्पताल में बेहतर सुविधा कैसे मिलेगी? यह बड़ा सवाल है क्या बड़े अस्पताल में भी सिर्फ लोग स्वास्थ्य के नाम पर कमरा गिनने  जाएंगे या फिर वहां पर जिंदा होने की उम्मीद से जाएंगे पर वहां से आएंगे मुर्दा यह सोचने वाली बात है।

पटना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में घटी घटना ने खोली जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल
जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था का कैसा हाल है यह पटना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में घटी एक घटना ने अच्छी तरह साबित कर दिया। पटना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पटना के ही एक युवक को दिनांक 26 नवबंर को गंभीर हालत में ले जाया गया, युवक को हृदयाघात की आशंका खुद से ही थी और वह अस्पताल पहुंचकर सबसे पहले खुद को ऑक्सीजन देने की मांग करने लगा लेकिन उपस्थित डॉक्टर ने युवक को 7 मिनट के विलंब से ऑक्सीजन दिया,युवक पुलिस विभाग में कार्यरत था वह ऑक्सीजन के महत्व से भिग्य था और वह इसीलिए ऑक्सीजन की मांग करता रहा ,युवक को 7 मिनट विलंब से ऑक्सीजन दिया गया, वहीं न ही उसे सीपीआर दी गई न ऑक्सीजन ही दिया गया उसे युवक को सीधे रेफर करने में ही डॉक्टर ने ध्यान दिया, जिसके कारण युवक की जिला अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो गई। मरीज को लेकर पहुंचे परिजनों की माने तो डॉक्टर ने कोई एक प्रयास अपनी तरफ से नहीं किया जिससे मरीज बच सके। आजकल हृदयाघात के मामले बढ़ते जा रहे हैं और ऐसे में यदि शासकीय अस्पताल की ऐसी दशा है की वह केवल रेफरल सेंटर बने हुए हैं तो यह चिंता की स्थिति है। युवक की जान तो चली गई लेकिन यह सवाल जरूर खड़ा कर गई की क्या डॉक्टर ने एक युवक को रेफर करने के चक्कर में मौत के मुंह में डाल दिया जबकि वह उसकी जान बचा सकती थीं।
इमारत को देखकर बेहतर इलाज की उम्मीद करना बेमानी
कोरिया जिले में शासकीय अस्पतालों की स्थिति यदि अच्छी है तो इमारतों के नाम पर अच्छी है,यहां इमारतें बनती जा रही हैं और स्वास्थ्य सुविधा का स्तर गिरता जा रहा है। इलाज के नाम पर सर्दी जुकाम और अन्य छोटी बीमारी के अलावा बड़ी किसी समस्या के आने पर उसका इलाज संभव नजर नहीं आता। जिले में जिला चिकित्सालय हो या समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कहीं पर भी मरीज विश्वास के साथ ले जाया जा रहा है नजर नहीं आ रहा है। अत्यंत मजबूरी में जाने पर भी शासकीय अस्पताल रेफरल सेंटर बने हुए हैं अस्पताल से गंभीर बीमार कितनी जल्दी कहीं और चला जाए यही प्रयास ज्यादा नजर आता है। कुल मिलाकर बड़ी इमारतों के अलावा जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था भगवान भरोसे है।
जिला अस्पताल से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र डॉक्टर की कमी से क्यों जूझ रहा?
जिला चिकित्सालय कहें या सामूदायिक स्वास्थ्य केंद्र सभी अस्पताल अनुभवी डाक्टरों की कमी झेल रहे हैं। अधिकांश डॉक्टर जो पदस्थ हैं वह किसी तरह समय काट रहे हैं जिन्हे बॉन्ड अवधि पूरी करनी है वहीं अस्पताल तो जगह जगह उपकृत हो रहे हैं लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सक कहीं भी उपलब्ध नहीं हैं। जिला चिकित्सालय में ही सर्जन हैं भी तो एनेस्थेसिया के डॉक्टर का अभाव बना ही रहता है कुल मिलाकर स्वास्थ्य व्यवस्था केवल सर्दी जुकाम तक ही अपना जिम्मा निभा पा रहा है, जरा कोई गंभीर हुआ उसे रेफर करने में अस्पताल देरी नहीं कर रहे।
जो डॉक्टर मौजूद हैं वह भी अपना दायित्व ईमानदारी से क्यों नहीं निभा रहे?
शासकीय अस्पतालों में जो डॉक्टर पदस्थ हैं वह भी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से नहीं निभा रहे हैं। डॉक्टर कुल मिलाकर अपना समय काट रहे हैं। समय पर आकर ओपीडी तक उन्हे अपनी जिम्मेदारी का एहसास है उसके बाद अधिकांश विशेषज्ञ डॉक्टर घरों पर इलाज करते हैं और वहां अस्पताल से ज्यादा समर्पित भाव से वह काम करते नजर आ रहे हैं। कुल मिलाकर अपने पेशे से उनकी ईमानदारी समाप्त नजर आती है जब वह शासकीय अस्पताल में होते हैं।
क्या डॉक्टर के अंदर सेवा भावना खत्म हो रही?
आज शासकीय अस्पतालों के डॉक्टरों के अंदर सेवा भावना का भी अभाव देखा जा रहा है। मरीज डॉक्टरों से जब घरों पर जाकर इलाज कराता है तब डॉक्टर मरीज को बेहतर सुविधा और समर्पण उसके स्वास्थ्य के प्रति जाहिर करते हैं लेकिन वही मरीज यदि शासकीय अस्पताल में जाकर यदि डॉक्टर से इलाज की उम्मीद रखता है तो वह नाउम्मीद हो जाता है। कुल मिलाकर सेवा भाव की भावना का कहीं न कहीं ह्रास होता देखा जा रहा है।
स्वास्थ्य सुविधा बेहतर करना सिर्फ खरीदी तक सीमित,खरीदी के उपकरण का लाभ कब?
स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर शासकीय अस्पतालों में केवल खरीदी का ही खेल चल रहा है।उप करण खरीदने के दौरान डॉक्टरों को जनप्रतिनिधियों को काफी सक्रिय देखा जाता है लेकिन उन उपकरणों का लाभ जनता को कितना मिल रहा है इससे प्रति किसी का ध्यान नहीं जाता है। माना जाता है उपकरण खरीदी में कमीशन के कारण खरीदी में सभी का ध्यान रहता है लेकिन उसका लाभ मरीज को मिले यह जिम्मेदारी कोई नहीं निभा रहा है।
ऑन कॉल डॉक्टर का सिस्टम कब होगा खत्म,तीनों शिफ्ट में कब मिलेंगे स्पेशलिस्ट डॉक्टर?
ज्यादातर मामले जो सामने आ रहे हैं जिसमे मरीजों की कई बार जान चली जा रही है जिसमे  यह भी पाया गया की जब गंभीर स्थिति में मरीज अस्पताल पहुंचता है तब विशेषज्ञ चिकित्सक उपलब्ध नहीं होते अस्पताल में उन्हे कॉल करके बुलाए जाने पर वह आते हैं और कई बार ऐसे में मरीज की मौत हो जाती है, जिसका उदाहरण एमसीबी जिले में भी देखने को मिला था, सवाल यह उठता है की शासकीय अस्पताल में हर समय विशेषज्ञ चिकित्सक की मौजूदगी क्यों संभव नहीं हो पा रही है? यदि हर समय हर शिफ्ट में विशेषज्ञ चिकित्सक अस्पताल में मौजूद होंगे मरीजों को सुविधा होगी ऐसी व्यवस्था कब लागू हो पाएगी?
एन एच एम में भी बड़ा फर्जीवाड़ा जारी,होनी चाहिए जांच
शासकीय स्वास्थ्य व्यवस्था मामले में एन एच एम में भी बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा हो रहा है। इसके अंतर्गत केवल बिल प्रस्तुत कर शासकीय राशि का बंदरबांट किया जा रहा है।


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