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26 घंटे के ब्रेक के बाद दोबारा शुरू हुआ रेस्क्यू
पांच मोर्चों से अभियान जारी
उत्तरकाशी,18 नवम्बर २०२३(ए)।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी में चारधाम आलेवदर परियोजना की सिलक्यारा-पोलगांव सुरंग में फंसे श्रमिकों को बाहर निकालने के रेस्क्यू अभियान दिनों-दिन चुनौतीपूर्ण बन रहा है। 26 घंटे तक रेस्क्यू कार्य पर ब्रेक लगा रहा।
शनिवार को पीएमओ के सचिव मंगेश घिल्डियाल और पीएम के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्बे अपनी टीम के साथ उत्तरकाशी पहुंचे और सिलक्यारा सुरंग में रेस्क्यू की कमान अपने हाथ में ली। तब जाकर पांच अलग-अलग मोर्चे से खोज बचाव अभियान शुरू हुआ। जिसमें वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल बोरिंग शामिल की है।
वर्टिकल बोरिंग का कार्य सिलक्यारा के निकट सुरंग के ठीक ऊपर की पहाड़ी से शुरू किया गया है जबकि हॉरिजॉन्टल बोरिंग का कार्य पोलगांव बडकोट की ओर इसी निर्माणाधीन सुरंग के हिस्से से की जा रही है। इसके अलावा सिलक्यारा सुरंग के पास दो स्थानों को भी हॉरिजॉन्टल बोरिंग के लिए चिह्नित कर दिया गया है। जबकि सिलक्यारा की ओर से सुरंग के अंदर ह्यूम पाइप बिछाए गए हैं। जिससे सुरंग के अदंर फंसे 40 श्रमिकों को ऑक्सीजन, रसद व दवा की आपूर्ति की जा सके।


सुरंग में फंसे आठ राज्यों के 41 मजदूर


सिलक्यारा पोलगांव सुरंग में 12 नवंबर से फंसे आठ राज्यों के 41 श्रमिक जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। इन श्रमिकों के रेस्क्यू अभियान को तब बड़ा झटका लगा जब शुक्रवार की दोपहर को रेस्क्यू अभियान के दौरान सिलक्यारा सुरंग के अंदर उस क्षेत्र में सुरंग में दरारे आई जहां मशीनें और रेस्क्यू टीम मौजूद थी। सुरंग के अंदर चटकने की आवाज गूंजी तो आननफानन में रेस्क्यू अभियान को रोकना पड़ा।


बनाई गई ह्यूम पाइप की स्केप टनल


सुरंग के 150 मीटर से लेकर 203 मीटर तक सुरंग के ढह जाने की भी आशंका व्यक्त की गई। ऐसे में सुरंग के अंदर फंसे श्रमिकों से संवाद बनाए रखने और उन तक रसद, ऑक्सीजन पहुंचाने वाले पाइप तक पहुंचने के लिए ह्यूम पाइप की स्केप टनल बनाई गई है।
रेस्क्यू अभियान में शनिवार को तब कुछ तेजी दिखी जब पीएमओ से टीम पहुंची। इस टीम ने भूविज्ञानियों के साथ सिलक्यारा सुरंग के आसपास की पहाड़ी का भी निरीक्षण। उन सभी स्थानों को देखा जहां से बोरिंग करके सुरंग के अदंर पहुंचा जा सकता है। शनिवार की शाम को वर्टिकल और हॉरिजॉन्टल बोरिंग की तैयारियों को लेकर काम भी शुरू किया गया।


सड़क बनाने का काम शुरू


वर्टिकल बोरिंग के लिए सुरंग के निकट से ही एक किलोमीटर की सड़क बनाने का काम शुरू हुआ। जिसमें लोनिवि के इंजीनियर के साथ वन विभाग की टीम की तैनाती भी की गई है। रविवार की सुबह तक करीब एक किलोमीटर सड़क बनाने का लक्ष्य रखा गया है। जिससे बोरिंग करने की मशीन चिह्नित किए गए स्थान पर पहुंचाई जा सके। इसके साथ ही पोलगांव बडकोट की ओर से भी श्रमिकों को सकुशल बाहर निकालने की कामना को लेकर सुरंग के गेट के पास बौखनाग देवता का मंदिर भी स्थापित किया गया है।
हॉरिजॉन्टल बोरिंग शुरू की गई है। फंसे श्रमिकों तक पहुंचने के लिए पांच सौ मीटर लंबी बोरिंग करनी होगी। लेकिन इसमें एक सप्ताह के समय लगना तय है।


धीमी प्रगति से पीएमओ चिंतित


प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार भाष्कर खुल्बे ने कहा कि सुरंग में फंसे श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकालने में चार से पांच दिन का समय लगेगा। एक साथ सभी पांच विकल्पों पर काम शुरू कर दिया गया है। इस समय केवल लक्ष्य 41 श्रमिकों की जिंदगी बचाने का है। बताया जा रहा है कि श्रमिकों के खोज बचाव में अभी तक की धीमी प्रगति से पीएमओ चिंतित है।


बड़ी चूक? उत्तराखंड में सुरंग से इमरजेंसी निकासी का रास्ता प्लान में था, लेकिन बनाया नहीं गया


उत्तराखंड में 41 मजदूरों को एक सुरंग में फंसे हुए 160 घंटे से अधिक वक्त बीत चुका है. इस बीच एक नक्शा सामने आया है जो सुरंग का निर्माण करने वाली कंपनी की कथित गंभीर चूक की ओर इशारा कर रहा है. मानक संचालन प्रक्रिया के अनुसार, तीन किलोमीटर से अधिक लंबी सभी सुरंगों में आपदा के हालात में लोगों को बचने के लिए भागने का रास्ता होना चाहिए. नक्शा से ज्ञात हुआ है कि 4.5 किलोमीटर लंबी सिल्कयारा सुरंग के प्लान में भी बचकर निकलने के लिए एक मार्ग बनाया जाना था, लेकिन यह रास्ता बनाया नहीं गया.
बचाव टीमें अब रविवार की सुबह से सुरंग के अंदर फंसे हुए मजदूरों को बचाने के लिए वैकल्पिक योजनाएं भी लेकर आ रही हैं.
सुरंग में फंसे 41 निर्माण मजदूरों के परिवारों के सदस्य, जिनमें से अधिकांश प्रवासी हैं, को अब चिंता होने लगी है क्योंकि कल शाम को सुरंग में जोर से “टूटने की आवाज” सुनाई देने के बाद अमेरिकी ड्रिल मशीन ने भी काम करना बंद कर दिया. मजदूरों के परिवारों के कुछ सदस्यों और निर्माण में शामिल अन्य श्रमिकों ने कहा कि अगर भागने का रास्ता बनाया गया होता तो अब तक मजदूरों को बचाया जा सकता था.
इस तरह के बचाव मार्गों का उपयोग सुरंगों के निर्माण के बाद भी किया जाता है. सुरंग के किसी हिस्से के ढहने, भूस्खलन या किसी अन्य आपदा के हालात में फंसे वाहनों में सवार लोगों को इस तरह के रास्ते से निकाला जा सकता है.
सुरंग का यह नक्शा तब सामने आया जब केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने गुरुवार को सुरंग ढहने वाले स्थान का दौरा किया. उन्होंने कहा था कि मजदूरों को दो-तीन दिनों में बचा लिया जाएगा. सड़क परिवहन और राजमार्ग राज्यमंत्री ने कहा था कि बचाव कार्य जल्द पूरा किया जा सकता है, यहां तक कि शुक्रवार तक भी, लेकिन सरकार अप्रत्याशित कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए लंबी समयसीमा तय कर रही है.


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