बैकुण्ठपुर@कांग्रेस प्रत्याशी को पहली जीत स्व. कोरिया कुमार के निधन से उत्पन्न सहानुभूति से मिली थी…क्या दूसरी जीत प्रदेश के काका के कामों व घोषण से मिलेगी?

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  • बैकुंठपुर विधानसभा के कांग्रेस प्रत्याशी को किस्मत का सबसे धनी प्रत्याशी माना जाता है।
  • कांग्रेस प्रत्याशी अचानक बनी थी भईयालाल राजवाड़े की राजनीतिक विरोधी…उनके कार्यकालों को अच्छे से जानी भी नहीं थी फिर भी दी थी राजनीतिक मात।
  • इस बार भी कांग्रेस प्रत्याशी अपने काका के सहानुभूति पर ही जीतने का प्रयत्न कर रही हैं…क्या इस बार भी सहानुभूति जीत दिला पाएगी?
  • जब जब राजनीति मैं नुकसान होता दिखता है तब तब यह काका के निधन की सहानुभूति को निधन को भुनाने का प्रयास करती नजर आती हैं।
  • इस बार भी काका के समाधि स्थल से अपने चुनावी प्रचार अभियान का आगाज किया है।

-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 08 नवम्बर 2023 (घटती-घटना)। कोरिया जिले के बैकुंठपुर विधानसभा में कांग्रेस प्रत्याशी किसी अनसुलझी पहेली से कम नहीं हैं, यदि कांग्रेस प्रत्याशी की बात की जाए तो पहले चुनाव उन्होंने सत्ता पक्ष के पूर्व कैबिनेट मंत्री भईयालाल राजवाड़े के सामने चुनाव लड़ा था और उन्हें जानती भी ढंग से नहीं थीं फिर भी उन्होंने पूर्व वित्त मंत्री स्वर्गीय कोरिया कुमार के निधन के पश्चात पार्टी से टिकट पाया और उन्हीं के सहानुभूति पर सत्ता पक्ष के कैबिनेट मंत्री को हराकर विधायक बनी, इसे किस्मत ही कहा जा सकता है जिन्हें राजनीति का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था अपने सामने खड़े विरोधी की जानकारी नहीं थी सिर्फ उनके पास कुछ था तो अपने काका के किए गए कार्यों से प्रभावित लोगों की सहानुभूति जो उनके निधन के बाद उनके काम आई, स्वर्गीय डॉ रामचंद्र सिंह सहदेव की ख्याति इतनी थी बैकुंठपुर विधानसभा में ही नहीं व प्रदेश के क्या सत्ता क्या विपक्ष सभी उन्हें मानते थे, स्वर्गीय रामचंद्र सिंहदेव ने कभी भी चुनाव नहीं हारा राजनीति में प्रत्याशी बनने से संन्यास लिया था, और अपनी जगह कांग्रेस से किसी और को प्रत्याशी चुना था, 2018 का चुनाव ही एक ऐसा चुनाव था जिससे पहले उनका निधन हो गया और वह बैकुंठपुर विधानसभा को अपनी मर्जी से प्रत्याशी नहीं दे पाए उनकी सहानुभूति ने कांग्रेस का प्रत्याशी चुना। स्वर्गीय कोरिया कुमार के कार्य उन्हें महान बनाती थी और उनके महानता ही पूरे देश व प्रदेश में उनकी पहचान थी, उन्होंने अपने कार्यों से व दूरदर्शिता से अपनी पहचान बनाई थी पर वही आज कि कांग्रेस प्रत्याशी जिन्हें स्वर्गीय कोरिया कुमार की उत्तराधिकारी माना जाता है उनका कार्य बिल्कुल भी अपने काका के समान नहीं देखा गया, 5 साल के कार्यकाल में उन्होंने अपने काका के समान छवि तो नहीं बना पाई पर अपने काका की छवि को धूमिल जरूर किया। आज जनता के मन में एक ही सवाल है की वर्तमान विधायक जिन्हे उन्होंने स्वर्गीय कोरिया कुमार का उत्तराधिकारी मानकर चुनाव जिताया था वह उनकी मंशा और उनकी अपेक्षा पर क्यों खरी नहीं उतर पाईं। वर्तमान विधायक और कांग्रेस प्रत्याशी का वर्तमान कार्यकाल विधानसभा की जनता के लिए अनसुलझी पहेली से कम नहीं रही, उनका अधिकांश समय विधानसभा जिले से बाहर बीता एल,उनके कार्यकाल में स्वर्गीय कोरिया कुमार के सपनो का कोरिया विभाजित हो गया और वह नए जिले के विधायकों को मिठाई खिलाती रहीं।
अपने काका की उपलब्धियों के भरोसे अपनी जीत सुनिश्चित करने की चेष्टा कर रही कांग्रेस प्रत्याशी क्या उनके  पद चिन्हों पर चल पाईं पुरे पांच साल?
कोरिया की राजनीति में जिला मुद्दा कोई पहला मुद्दा नहीं है जिससे किसी तत्कालीन विधायक को नुकसान उठाना न पड़ा हो जब जिले का गठन हुआ हो और उसका आक्रोश उत्पन्न हुआ हो, इतिहास गवाह है की जब कोरिया जिला बना तब मनेंद्रगढ़ को जिला मुख्यालय बनाने की मांग उठी थी तब विधायक मनेंद्रगढ़ को विरोध का सामना करना पड़ा था जिसका असर उनके राजनीतिक भविष्य पर पड़ा था, इस बार की स्थिति ऐसी है की जिला विभाजित हुआ, कोरिया के हिस्से में कम से कम क्षेत्रफल दिया गया और सत्ता पक्ष के विधायक को इस मामले में नवीन जिले की खुशियों में शामिल देखा गया लड्डू खिलाते देखा गया। कुल मिलाकर क्षेत्र से लगातार दूरी बनाना और अधिकांश समय विधानसभा से बाहर रहना वहीं जिला विभाजन ऐसे मुद्दे हैं जो कहीं न कहीं लोग मानते हैं की स्वर्गीय कोरिया कुमार की उपस्थिति में ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नहीं होती, वह क्षेत्र में घूमकर लोगों से मिलकर नाराज को मनाकर राजनीति करने में माहिर थे जबकि वर्तमान विधायक जो उनकी उत्तराधिकारी हैं वह सत्ता और संगठन का दबाव बनाकर बड़े नेताओं पर अपने पक्ष में उन्हे काम करने मजबूर करने में विश्वास रखती हैं। यह पहला चुनाव कांग्रेस पार्टी का देखा जा रहा है जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह नहीं देखा जा रहा है, जबकि पहले हार और जीत की परवाह किए बिना ही कार्यकर्ता उत्साह से काम करते थे और पार्टी की मजबूत स्थिति साबित करते थे। कुल मिलाकर कहा जा सकता है अपने काका की उपलब्धियों के भरोसे अपनी जीत सुनिश्चित करने की चेष्टा कर रही कांग्रेस प्रत्याशी उनके पद चिन्हों पर चल नहीं पाईं पांच साल यह कहा जा सकता है।
पहली जीत अपने स्वर्गीय काका के कारण मिली,क्या अब प्रदेश के काका कहे जाने वाले काका के नाम पर जितना चाहती हैं दूसरा चुनाव बैकुंठपुर कांग्रेस प्रत्याशी
बैकुंठपुर विधायक वर्तमान कांग्रेस प्रत्याशी अपना पहला चुनाव अपने स्वर्गीय काका के कार्यों के बल पर जीत सकीं थीं उनकी उपलब्धियों के कारण उन्हे जीत मिल सकी थी, इस बार ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा है, इस बार उन्हे क्या प्रदेश के काका कहे जाने वाले काका के कार्यों के कारण व किसान हितैषी घोषणा से जीत मिलने की उम्मीद है जो उनकी योजनाएं हैं घोषणा हैं वह उनकी जीत का माध्यम बनेंगी यह बड़ा सवाल है, क्योंकि उनकी खुद की उपलब्धि जो भी हो जिला विभाजन, क्षेत्र से अधिकतम पलायन उनका कमजोर पहलू बना हुआ है जो जनता कहती सुनी जा रही है।
किस्मत की धनी मानी जाती हैं बैकुंठपुर की कांग्रेस प्रत्याशी,क्या इस बार भी किस्मत देगी साथ?
बैकुंठपुर से कांग्रेस प्रत्याशी किस्मत की धनी मानी जाती हैं,पैराशूट मानकर जिसे पिछले चुनाव में भाजपा ने आसान लक्ष्य माना वह किस्मत के भरोसे भाजपा को पटखनी दे गईं,इस बार भी क्या वह किस्मत के सहारे ऐसा कर पाने में सफल होंगी देखने वाली बात होगी।
भाजपा के राजनीतिक रूप से अनुभवी प्रत्याशी को पिछले चुनाव में दे दी थी कांग्रेस प्रत्याशी ने पटखनी,इस बार क्या इतिहास खुद को दुहरायेगा या फिर इतिहास बदल जायेगा?
कांग्रेस की वर्तमान प्रत्याशी ने बिना किसी राजनीतिक अनुभव के पिछले चुनाव में भाजपा के राजनीतिक रूप से सबसे अनुभवी प्रत्याशी को मात दे दी थी,इस बार क्या इतिहास खुद को दोहराता है या इतिहास बदल जाता है यह देखने वाली बात होगी,वैसे पिछले चुनाव में सत्ता विरोधी लहर भी एक कारण थी भाजपा प्रत्याशी के हार की,इस चुनाव में सत्ता में कांग्रेस प्रत्याशी हैं और विपक्ष में भाजपा प्रत्याशी,परिणाम का इंतजार सभी को है।
स्वर्गीय कोरिया कुमार के नाम पर सहानुभिति लेने के प्रयास में भी लगी हुईं हैं कांग्रेस प्रत्याशी,क्या मिलेगी उन्हे फिर सहानुभूति?
स्वस्थ स्वक्ष राजनीति के परिचायक स्वर्गीय कोरिया कुमार कोरिया जिले के शिल्पकार थे इसमें कोई दो राय नहीं,उनकी उत्तराधिकारी बनकर उनकी जगह आज कोरिया का नेतृत्व कर रही विधायक का कार्यकाल जनता देख चुकी जिला विभाजन हुआ कई महत्वपूर्ण योजनाएं नवीन जिले के खाते में चली गईं जिसमे मेडिकल कॉलेज प्रमुख है,इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी स्वर्गीय कोरिया कुमार के नाम से सहानुभूति जुटाने से भी पीछे नहीं हट रही हैं,अब देखना है उन्हे स्वर्गीय कोरिया कुमार के नाम की सहानुभूति मिल पाती है की नहीं,वैसे वह उनके नाम के सहारे ही जीत तय करने की जुगत में लगी हुई हैं। उन्हे राजनीति में जब जब नुकसान का आभास होता है वह स्वर्गीय कोरिया के नाम को आगे करना नहीं भूलतीं,जो इस बार भी देखा जा रहा है।स्वर्गीय कोरिया कुमार की समाधि स्थल से ही निकाली गई नामांकन रैली, चुनाव प्रचार के आगाज में भी स्वर्गीय कोरिया कुमार के स्मृति को आगे रखना नहीं भूली कांग्रेस प्रत्याशी
कांग्रेस प्रत्याशी वर्तमान विधायक कभी भी अपनी राजनीतिक कार्यक्रमों में स्वर्गीय कोरिया कुमार की स्मृतियों को आगे करना नहीं भूलतीं,उन्होंने अपने प्रचार का आगाज भी स्वर्गीय कोरिया कुमार की समाधि स्थल से किया है,नामांकन रैली के दिन समाधि स्थल पर लोगों की भीड़ जुटाई गई और उन्हे स्वर्गीय कोरिया कुमार की याद दिलाई गई,रैली में भी स्वर्गीय कोरिया कुमार चौक में स्थित स्वर्गीय कोरिया कुमार की प्रतिमा में माल्यार्पण का कार्यक्रम आयोजित किया गया,देखा जाए तो यह चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी स्वर्गीय कोरिया कुमार की ही स्मृति आगे कर लड़ रही हैं जो देखा जा रहा है।


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