- क्या नगर पंचायत बनने की खुशी नहीं है अधिकांश पटना वासियों में?
- नगर पंचायत बनने की अधिसूचना जारी हुई 20 सितम्बर को पर जानकारी मिली 1 अक्टूबर को, क्या जानकारी छुपाने के उद्देश्य से आदेश छुपाया गया?
- जहां नगर पंचायत की अधिसूचना देखने के बाद पूरे सोशल मीडिया को बधाई संदेशों से भर जाना था पर ऐसी क्या वजह है कि सोशल मीडिया में बधाई देने वालों की संख्या भी कम है?
-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 08 अक्टूबर 2023 (घटती-घटना)। पटना नगर पंचायत बनाने की मांग हो तो रही थी और घोषणा के बाद विरोध भी हो रहा था एक छोटा सा वर्ग चाहता है कि नगर पंचायत बन जाए पर पटना ग्राम के ही वासियों का बहुत बड़ा वर्ग यह चाहता है कि नगर पंचायत ना बने, ऐसा क्यों हो रहा है यह नगर पंचायत के नुकसान व लाभ को लेकर है, जो जागरूक लोग हैं वह नगर पंचायत बनने को नुकसान मान रहे हैं तो वही जो राजनीतिक से प्रेरित है वह अपना फायदा समझ रहे हैं, कहा जाता है कि यह मांग बीजेपी के शासनकाल से हो रही थी पर इस मांग को समय-समय पर टाला भी जा रहा था, क्योंकि इसके पीछे बोर्ड बैंक की राजनीति भी हो रही थी, अब ऐसे में कांग्रेस सरकार में 20 सितंबर को पटना पंचायत को नगर पंचायत बनाने की अधिसूचना जारी हो गई पर यह अधिसूचना लोगों को 10 दिन बाद यानी की 1 अक्टूबर को पता चल सकी, ऐसा कहा जा रहा है कि इस अधिसूचना को लोगों से छुपा कर व दबा कर रखा जा रहा था ताकि आपत्ति के लिए समय न मिल सके पर अचानक अब यह जानकारी सामने आ गई है, जिसके बाद यह कहा जा रहा था कि यह उपलब्धि बहुत बड़ी है और यदि यह उपलब्धि इतनी बड़ी थी तो फिर जानकारी आने के बाद पूरा सोशल मीडिया बधाई संदेशों से पट जाना था? पर ऐसा देखने को नहीं मिल रहा यहां तक की स्थानीय विधायक का भी आभार व्यक्त करना था पर आभार व्यक्त करने वालों की संख्या भी काफी कम है, इसकी वजह क्या है? यह तो पता नहीं पर यह बात साफ हो गई है की नगर पंचायत की अधिसूचना को लेकर पटना वासियों में ज्यादा उत्साह नहीं है कम ही उत्साह देखने को मिल रहा है उत्साह है भी तो जो राजनीति से जुड़े लोग हैं उन्हें में ही उत्साह देखा जा रहा है।
नगर पंचायत की मांग वैसे तो वर्षों पुरानी मांग थी
पटना ग्राम पंचायत की आबादी कई हिस्सों में बंटी हुई है जिसमे से अधिकांश आबादी ग्राम की गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालो की है जो शासकीय उचित मूल्य दुकान की पंजी से भी पुष्टि करने योग्य है जहां से राशन का उठाव लोग करते हैं। ग्राम पटना में आदिवासी समाज सहित अनुसूचित जाति आबादी भी भी बड़ी संख्या में निवासरत है इस तरह यदि समग्र आंकलन किया जाए तो नगर पंचायत का समर्थन करने वालों की संख्या ग्राम पंचायत का समर्थन करने वालो से कम है। नगर पंचायत की मांग वैसे तो वर्षों पुरानी मांग थी और भाजपा शासन काल में भी स्थानीय भाजपा नेताओं ने इसके लिए काफी जोर आजमाइश किया था लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री ने इसको लेकर सहमति नहीं दी थी जिसकी वजह से यह ग्राम पंचायत ही बना चला आ रहा था वहीं बताया यह भी जा रहा है की पटना को नगर पंचायत नहीं बनाए जाने के पीछे भाजपा का यह विचार आड़े आ रहा था की नगर पंचायत बनाते ही आधी आबादी इसके विरोध में आ जायेगी और चुनाव में जिसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ेगा इसलिए भाजपा ने नगर पंचायत बनाए जाने को लेकर कभी उत्सुकता नहीं दिखाई वहीं सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी की सरकार आते ही पुनः यह मांग जोर पकड़ती नजर आई और इसको लेकर पूर्व उप सरपंच की भूमिका सबसे ज्यादा अहम रही, जिन्होंने इसे एक अभियान के तौर पर लिया और इसके लिए मुहिम तक उन्होंने छेड़ा खासकर उनकी मेहनत तब रंग लाई जब उन्होंने मुख्यमंत्री के ग्राम आगमन पर एक प्रदर्शन किया जिसमे उन्होंने नगर पंचायत के समर्थन में एक टोली बनाकर मुख्यमंत्री से मुलाकात की और यह संभव हो सका।
नगर पंचायत बनाए जाने को लेकर क्षेत्रीय विधायक ने भी उसी मंच से मांग की जहां मुख्यमंत्री पहुंचे हुए थे
नगर पंचायत बनाए जाने को लेकर क्षेत्रीय विधायक ने भी उसी मंच से मांग की जहां मुख्यमंत्री पहुंचे हुए थे और इस तरह पूर्व उप सरपंच सहित विधायक की मंशा को मुख्यमंत्री ना नहीं कर सके और नगर पंचायत की उन्होंने घोषणा कर दी। नगर पंचायत की घोषणा हुई और अब इसकी स्थापना को लेकर अधिसूचना भी जारी हो चुकी है लेकिन ग्राम वासियों में वह उत्साह नजर नहीं आ रहा है जो होना चाहिए। नगर पंचायत का कुल समर्थन व्यापारी वर्ग सहित राजनीति से जुड़े लोगों तक ही देखा जा रहा है उन्ही के द्वारा किया जा रहा है शेष आबादी फिलहाल मौन ही नजर आ रही है।
नहीं दिख रही ग्रामवासियों में एकतरफा खुशी ,अलग अलग मत में बंटे हैं लोग
नगर पंचायत की घोषणा के बाद ग्रामवासियों में एकतरफा खुसी देखी जा रही है ऐसा कहना गलत होगा,अलग अलग मतों में लोग बंटे नजर आ रहे हैं। कोई खुश है कोई यह सोचकर परेशान है की क्या यह सही मायने में विकास से जुड़ा मसला है। वैसे रोजमर्रा की आवश्यकताओं के लिए परेशान रहने वालों को यह निर्णय यह घोषणा रास नहीं आ रही है उनका मानना है की ग्राम स्तर पर मिलने वाली सुविधाओं का नुकसान उन्हे झेलना पड़ेगा शहर में कई सुविधा ग्राम स्तर की समाप्त हो जाती है जो तकलीफदेह होगी आने वाले समय में उनके लिए।
आदिवासी समाज भी निर्णय से नहीं है प्रसन्न,नेतृत्व का उनका मौका उनसे दूर चला जायेगा उनका है मानना
इस निर्णय से आदिवासी समुदाय भी प्रसन्न नहीं है यह देखा जा रहा है,आबादी में अच्छी हिस्सेदारी रखने वाला समाज या समाज से ही किसी को इस ग्राम में नेतृत्व का मौका मिलता आया है, नगर पंचायत बनने से उनका मौका अवसर उनसे दूर चला जायेगा यह उनका मानना है।