अंबिकापुर/बैकुण्ठपुर@जब पदोन्नति मामले के पदस्थापन में हो रही थी गड़बड़ी तब जान के भी अंजान क्यों बैठे थे शिक्षक नेता?

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  • सिर्फ एक संघ के शिक्षक नेता को संशोधन सूची के निरस्त होने से क्यों हो रही दिक्कत?
  • कहीं पदोन्नति पदस्थापना मामले की गड़बड़ी में शिक्षक नेता भी तो नहीं थे शामिल?
  • शिक्षक संघ आए अब सामने,न्याय की गुहार का कर रहे नाटक,जब हो रहा था खुलेआम अन्याय तब क्यों थे मौन?
  • क्या शिक्षक नेता अपना दिखा रहे दोहरा चरित्र,जुगाड़ से संशोधन करने वालों के साथ दिख रहे खड़े पर जिन्होंने गड़बड़ी को देख अपनी पदोन्नति छोड़ दी उसके लिए शिक्षक नेता क्यों नहीं अडे?
  • कई शिक्षकों से पदोन्नति लेने से अनियमितता की वजह से किया है इंकार,कई ने दूरस्थ पदोन्नति लेकर किया उसे स्वीकार।
  • पैसे देकर पात्र सहित वरिष्ठ को किया गया था पदोन्नति से वंचित तब शिक्षक संघ थे मौन।
  • सरगुजा संभाग में एक कथित शिक्षक नेता के नेतृत्व में जुटे खाद्य मंत्री से निवास पर दोषपूर्ण पदोन्नति लेने वाले शिक्षक।
  • शिक्षकों ने खाद्य मंत्री को गिनाई अपनी समस्या किसी ने दिव्यांग बताया किसी ने परिवारिक कारण बताया।
  • वहीं कई दिव्यांग सहित पारिवारिक समस्या से ग्रसित शिक्षकों ने दोषपूर्ण पदोन्नति पदस्थापना आदेश को किया था स्वीकार,स्वीकार की दूरस्थ पदस्थापना।
  • दोषपूर्ण पदस्थापना मामले में शिकायत की पुष्टि होने पर स्कूल शिक्षा विभाग ने रद्द की है पदस्थापना सूची,उसी का कर रहे दोषपूर्ण पदोन्नति पाने वाले शिक्षक विरोध।
  • क्या शासन स्कूल शिक्षा विभाग आएगा चुनाव में मद्देनजर शिक्षकों के दबाव में,क्या होगी दोषपूर्ण पदोन्नति मान्य?

-रवि सिंह-
अंबिकापुर/बैकुण्ठपुर 24 सितम्बर 2023 (घटती-घटना)। क्या शिक्षक संघों ने शिक्षक से प्रधानपाठक पूर्व माध्यमिक शाला वहीं सहायक शिक्षक से शिक्षक पदोनत्ती पदस्थापना काउंसलिंग के समय अपनी वह जिम्मेदारी निभाई थी जो उन्हे शिक्षक हितैसी होने के नाते निभानी चाहिए थी, यह सवाल आज उठ खड़ा हुआ है और सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि आज जब पूरी पदोन्नति प्रकिया सवालों के घेरे में हैं प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का खेल खेला गया जो प्रथम दृष्टया जांच में सही भी पाया गया प्रक्रिया में से आधी कार्यवाही आधी पदस्थापना जो संशोधन के नाम पर बाद में की गई थी निरस्त कर दी गई है, तब कुछ शिक्षक संघ सामने आए हैं और अब वह शिक्षकों को खासकर उन शिक्षकों को जिनकी पदस्थापना पदोन्नति उपरांत संशोधन आदेश के माध्यम से हुई थी जो शासन द्वारा विभाग द्वारा यह मानकर और जानकर निरस्त की गई है की मामले में भ्रष्टाचार हुआ है को लेकर विधायक मंत्रियों नेताओं के दरवाजे पहुंच रहें हैं और कार्यवाही जो पदस्थापना निरस्तीकरण की है उसे शून्य घोषित करने की मांग कर रहें हैं, इस मांग को लेकर पहुंच रहे शिक्षक नेता नेताओं मंत्रियों विधायकों को चुनाव के मद्देनजर यह भी समझा रहें हैं की सामने चुनाव है और यदि मामले में कार्यवाही शून्य नहीं की गई तो इसका नुकसान भी हो सकता है।
शिक्षक संघ के नेताओं द्वारा इस दौरान जिन शिक्षकों का पदस्थापना आदेश निरस्त हुआ है जिन्हे पूर्व जारी आदेश अनुसार कार्यभार ग्रहण करने का आदेश जारी हुआ है उनसे अभिनय भी करा रहें हैं नेताओं मंत्रियों सहित विधायकों के सामने जहां वह अपनी अलग अलग मजबूरी समस्या बता रहें हैं और सहानुभूति कैसे मिल सके इसको लेकर पूरी तैयारी से जा रहें हैं। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है वह यह की आज जो शिक्षक नेता दोषपूर्ण पदस्थापना मामले में दोषपूर्ण पदस्थापना पाने वाले शिक्षकों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं वह तब कहां थे जब प्रकिया में धांधली हो रही थी और जिसका कुछ शिक्षक ही बिना नेतृत्व विरोध कर रहे थे जबकि विरोध करने वाले शिक्षक साक्ष्य के साथ विरोध दर्ज कर रहे थे और उनमें से कुछ के विरुद्ध निलंबन की भी कार्यवाही हुई थी जो कहीं न कहीं शिक्षकों को विरोध करने वाले शिक्षकों को भयभीत करने वाली कार्यवाही थी। तब शिक्षक नेता क्यों सामने नहीं आए थे ऐसे शिक्षकों के पक्ष में क्या यह उनकी जिम्मेदारी नहीं थी? जबकि दोषपूर्ण पदोन्नति पदस्थापना काउंसलिंग प्रक्रिया से दुखी होकर कई ऐसे शिक्षकों ने उस समय या तो पदोन्नति का ही त्याग कर दिया था या उन्होंने यह जानकर भी की उन्हे जो पदस्थापना मिल रही है वह गलत है उनके हिस्से के उनके हक के विरुद्ध है उन्होंने स्वीकार की और आज वह दूरस्थ जाकर कार्य कर भी रहें हैं।
काउंसलिंग सहित पदस्थापना मामले में कुछ शिक्षक नेता बैचौलिए का काम कर रहे थे क्या इसलिए उन्होंने अपनी आंख बंद कर रखी थी?
वहीं दिव्यांग शिक्षकों के मामले में भी जब नियम में शिथिलता नहीं थी और क्रम और वरिष्ठता ही आधार था पदस्थापना मामले में तब अब क्यों अलग अलग कारण बताकर सहानुभूति लेने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे शिक्षक जो पूरी प्रक्रिया से नाराज थे दोषपूर्ण प्रक्रिया है यह मानकर भी वह काउंसलिंग में भाग लेकर आज उन उन जगहों पर पदस्थ हैं जहां उनकी वरिष्ठता और काउंसलिंग का नियम नहीं कहता की वहां वह जाते या वैसी पदस्थापना वह पाते उनके साथ शिक्षक नेता क्यों खड़े नजर नहीं आए यह भी बड़ा सवाल है। काउंसलिंग सहित पदस्थापना मामले में कुछ शिक्षक नेता बैचौलिए का काम कर रहे थे इसलिए उन्होंने उस समय अपनी आंख बंद कर रखी थी अपना मूल कर्तव्य जो शिक्षक हित का मामला था उससे वह किनारा कर चल रहे थे क्योंकि उन्हें भी बैचौलिये बतौर एक हिस्सा मिल रहा था यह बात भी शिक्षकों ने स्वीकार की थी जब भ्रष्टाचार हो रहा था। आज जब वह शिक्षक जो दोषपूर्ण पदस्थापना मामले में कार्यवाही को लेकर इसलिए प्रसन्न हैं क्योंकि उनके हिस्से की पदोन्नति साथ ही पदस्थापना उन्होंने ले ली थी, जो बाद में क्रमशः उनके वरिष्ठता सूची में अपना नाम दर्ज पाते थे और कहीं न कहीं उन्होंने वरिष्ठ का हक मारकर भ्रष्टाचार के सहारे इस पदस्थापना को प्राप्त किया था जो अब निरस्त हुआ है की भी संख्या कम नहीं है और अब जिन नेताओं मंत्रियों और विधायकों के दरवाजे कार्यवाही शून्य कराने शिक्षकों की भीड़ पहुंच रही है शिक्षक नेताओं के नेतृत्व में उन्हे भी सोचना होगा की वह न्याय का साथ देते हुए संख्या बल अपने साथ जोड़ने की सोच रखें या अन्याय का साथ देकर संख्या बल का साथ ढूंढे, संख्या दोनो तरफ बराबर है निर्णय नेताओं मंत्रियों और विधायकों का अपने विवेक से ही सामने आएगा। वैसे शासन सरकार विभाग ने पूरे मामले में यह स्वीकार किया की भ्रष्टाचार हुआ है प्रथम दृष्टया जांच में भी यह साबित हुआ,सरकार ने भी इसे छवि धूमिल करने वाला विषय मानकर ही इसके निरस्तीकरण का फैसला लिया है वहीं शिक्षा मंत्री की छुट्टी कई संयुक्त संचालकों पर कार्यवाही भी इसी का परिणाम है और लगता नहीं अब सरकार खुद का कदम पीछे लेगी क्योंकि यदि सरकार कदम पीछे लेती है फिर से किरकिरी होगी यह तय है वहीं यह भी साबित होने में देर नहीं लगने वाला की भ्रष्टाचार को भी शिष्टाचार बनाया जा सकता है यदि संख्या बल साथ है तो।
शिक्षक संघ के नेता तब थे मौन जब खुलेआम हो रहा था भ्रष्टाचार का खेल,अब कार्यवाही हुई तो शिक्षक नेता सामने,क्या यही है शिक्षक नेता होने का धर्म?
जब शिक्षक पदोनत्ती साथ ही पदस्थापना मामले में संयुक्त संचालक कार्यालयों में खुलेआम भ्रष्टाचार का खेल खेला जा रहा था जब शिक्षकों से वसूली हो रही थी वहीं जो वसूली और भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे थे उन पर कार्यवाही हो रही थी तब शिक्षक संघों के नेता कहां छिपे हुए थे यह भी सवाल अब उठ रहा है जब शिक्षक नेता दोषपूर्ण पदस्थापना मामले में हुई कार्यवाही शून्य कराने अपनी दौड़ नेताओं मंत्रियों विधायकों के पास लगा रहे हैं। पात्र को जब अपात्र किया गया पदस्थापना काउंसलिंग में जब नियमो को ताक पर रखकर प्रथम पात्र को दूरस्थ वहीं वरिष्ठता में कनिष्ठ को पास के स्कूलों में जब पदस्थ किया जा रहा था तब भी शिक्षक नेता मौन थे। अब उनका जागना क्या उनकी संलिप्तता मानने जैसा नहीं है यह भी सवाल उठ रहा है वहीं शिक्षक संघों वहीं नेताओं का कर्तव्य क्या है यह भी सवाल उठ रहा है क्योंकि यदि उनका आज का फर्ज उनका असली फर्ज है सही कर्तव्य है तो उस समय वह कहां थे या उनके साथ वह क्यों खड़े नजर नहीं आए जिनका नियमों में छेड़ छाड़ कर दूरस्थ पदस्थापना किया गया जिन्होंने या तो दोषपूर्ण पदोन्नति प्रक्रिया कहकर पदोन्नति का ही त्याग कर दिया था वहीं जब विरोध करने पर कुछ शिक्षकों को निलंबित कर दिया गया था।
शिक्षक संघों के नेताओं को भी कहीं भय तो नहीं सता रहा बैचौलिए की भूमिका निभाने को लेकर उन्हे किसी कार्यवाही का अंदेशा तो नहीं?
शिक्षक संघ के नेता फिलहाल शिक्षा विभाग की कार्यवाही को गलत बता रहें हैं और वह मांग कर रहें हैं की जो संशोधन आदेश पदस्थापना सूची है जिसे निरस्त किया गया है उसकी कार्यवाही को शून्य किया जाए,नेताओं मंत्रियों विधायकों के दरवाजे पर डेरा डाले हुए हैं उन शिक्षकों के साथ शिक्षक नेता जिनका की पदस्थापना आदेश दोषपूर्ण मानकर निरस्त किया गया है। वहीं शिक्षक नेताओं की सक्रियता देखकर यह भी सुनने को मिल रहा है की सरकार ने वहीं विभाग ने मामले में जांच वहीं जांच के बाद अपराध पंजीबद्ध करने का भी निर्णय लिया हुआ है और वह भी कार्यवाही हो सकती है और यही वजह है की कुछ शिक्षक नेता परेशान हैं मानसिक रूप से दबाव में हैं क्योंकि उन्हें यह भय सता रहा है की यदि जांच हुई कार्यवाही की बात सामने आई तो यदि उन्होंने सही मायने में बिचौलिए का काम किया है तो उन तक भी जांच की आंच पहुंचेगी और वह निश्चित रूप से कार्यवाही की जद में आयेंगे इसलिए वह परेशान हैं और अब नेताओं मंत्रियों विधायकों के यहां वह उन शिक्षकों का झुंड लेकर पहुंच रहें हैं जिन्होंने दोषपूर्ण तरीके से पदस्थापना प्राप्त की थी और जो निरस्त हो चुकी है और उन्ही शिक्षकों से वह नेताओं मंत्रियों सहित विधायकों पर दबाव बनाना चाहते हैं जिससे उनकी करनी सामने आने से बच सके यह भी अंदेशा जताया जा रहा है शिक्षक नेताओं की सक्रियता को देखकर। वहीं बताया यह भी जा रहा है की यदि जिन शिक्षकों का आदेश निरस्त हुआ है पदस्थापना संशोधन वाल यदि वह अपना मुंह खोल दिए और निरस्त रहने की स्थिति में आदेश यदि उन्होंने राशि की मांग अपनी कर दी कुछ शिक्षक नेता भी उनके हाशिए पर होंगे जिन्होंने उनके लिए बिचौलिए का काम किया था।
शिक्षक नेता हैं यदि शिक्षक हितों को लेकर हैं खबरदार हैं, वह ईमानदार तो क्यों नहीं वह उनके साथ खड़े नजर आए जिन शिक्षकों के साथ सही मायने में हुआ था अन्याय?
आज शिक्षक नेता लगातार नेताओं मंत्रियों सहित विधायकों का दरवाजा खटखटा रहे हैं वह दोषपूर्ण पदोन्नति पदस्थापना मामले की उस कार्यवाही को शून्य करने की मांग कर रहें हैं जिसके अनुसार दोषपूर्ण पदस्थापना निरस्त की गई है। वहीं शिक्षक नेताओं की आज की सक्रियता देखकर यह सवाल खड़ा हो रहा है की शिक्षक नेता जो आज शिक्षक हितों को लेकर खुद को खबरदार और ईमानदार साबित करने का प्रयास कर रहें हैं वह उस समय कहां थे जब वाजिब और असली हक रखने वाले किसी पदस्थापना विद्यालय का के साथ अन्याय हो रहा था उनका हक छीना जा रहा था। तब वह मौन थे और तब उनका कर्तव्य उन्हे क्यों नहीं याद आया था,सवाल शिक्षक नेताओं पर कई हैं क्योंकि यह वही शिक्षक नेता हैं जो जब एक तरफ अधिकांश शिक्षक पदोन्नति काउंसलिंग प्रक्रिया को दोषपूर्ण बता रहे थे अपने साथ अन्याय की बात साबित कर रहे थे अधिकारियों की कार्यवाहियां झेल रहे थे निलंबित हो रहे थे वहीं यह अधिकारियों का माला पहनाकर स्वागत कर रहे थे उनका सम्मान कर रहे थे वह भी जो अधिकारी आज उसी दोषपूर्ण पदस्थापना मामले में निलंबित हैं उनके स्वागत सम्मान में उनका महिमा मंडन करते हुए।क्या यही है शिक्षक नेताओं का धर्म और उनका कर्तव्य यह बड़ा सवाल आज खड़ा है जो कहीं न कहीं शिक्षक नेताओं लिए भी विचारणीय होना चाहिए क्योंकि आज जब वह सामने हैं तब उस समय क्यों वह मुंह छिपाए बैठे थे जब सही मायने में गलत हो रहा था।
क्या मंत्री विधायकों सहित नेताओं पर दबाव बना शिक्षक संघ सरकार और विभाग को कार्यवाही से पीछे हटने राजी करा लेगा?
अब देखने वाली यह बात है की पदोन्नति पदस्थपना संशोधन आदेश जिसे शासन के निर्देश पर विभाग ने निरस्त कर दिया है और मामले में पूरी गंभीरता से वह कार्यवाही के लिए तत्तपर है वहीं जांच कर पूरे मामले में अपराध पंजीबद्ध करने की भी तैयारी में है वह मामले में खुद को पीछे की ओर खींचती है वह भी शिक्षक नेताओं के उस दबाव की वजह से जो वह अपने स्थानीय मंत्रियों विधायकों सहित नेताओं पर बना रहें हैं और जिसके बाद यही दबाव मंत्री नेता विधायक सरकार और विभाग पर बनाने वाले हैं।वैसे यह विषय अब सरकार की छवि से जुड़ा विषय और पूरे मामले में सरकार की काफी किरकिरी होने के बाद सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है और वह इससे पीछे हटेगी लगता नहीं है क्योंकि सरकार ने इसे कितना गंभीर विषय और मामला माना है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया का सकता है की मामले में एक मंत्री का मंत्री पद छीन लिया गया है वहीं कई बड़े अधिकारी मामले में निलंबित किए जा चुके हैं वहीं सरकार भी यह जान चुकी है की आज जो खुद को मजबूर दिव्यांग या पारिवारिक कारणों से दुखी या परेशान बताकर राहत मांग रहें हैं यह वही लोग हैं जिन्होंने जब लेनदेन से पदस्थापना लेने की बात सामने आई तब लेनदेन को तव्वजो देकर असली हकदार का पद पदस्थापना छीनने का काम किया था।


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