बैकुण्ठपुर@जब पूरी प्रक्रिया ही शिक्षक पदोन्नति पोस्टिंग की नियम विरुद्ध थी…तो फिर सिर्फ संशोधन लिस्ट को ही निरस्त क्यों किया गया?

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  • आखिर पूरी पदोन्नति प्रक्रिया को निरस्त क्यों नहीं किया गया?…कही कुछ शिक्षकों को बचाने का प्रयास तो नहीं?
  • शिक्षक प्रमोशन में पैसों का खेल,राज्य शासन ने आदेश जारी कर संशोधन किए निरस्त।
  • राज्य शासन की मंशा के परे सरगुजा संभाग में अभी भी जारी है शिक्षक पदोन्नति मामले में भ्रष्टाचार।
  • संशोधन निरस्तीकरण के लिए जारी आदेश में कई शिक्षकों के नाम गायब।
  • लगभग 500 से अधिक शिक्षक जिनका पदस्थापना आदेश हुआ था संशोधित, निरस्तीकरण सूची से कैसे हुआ गयाब?
  • उच्चाधिकारियों और उच्च कार्यालय को अंधेरे में रखकर नाम किया गया गायब:सूत्र
  • निरस्तीकरण से नाम गायब कर लेनदेन के रूपयों को पचाने की मंशा से तो नही किया गया यह कृत्य?
  • रुपयों के लेनदेन से भ्रष्टाचार कर मनमाना पदस्थापना प्राप्त शिक्षक,आदेश निरस्तीकरण उपरांत तगादे के लिए लगा रहे चक्कर।
  • सूत्रों से प्राप्त जानकारी अनुसार संयुक्त संचालक कार्यालय के कई बाबू कार्यालय आने से कतरा रहे।
  • जिन शिक्षकों के संशोधन आदेशों का नहीं हुआ निरस्तीकरण, इस खेल में अधीनस्थ कर्मचारी जिम्मेदार या उच्च अधिकारी के संज्ञान में सब कुछ, यह जांच का विषय।

-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 08 सितम्बर 2023 (घटती-घटना)। शिक्षक प्रमोशन घोटाला, अपने आप में एक अनोखा तरह का घोटाला था, शिक्षक प्रमोशन घोटाला में पूरी पदोन्नति प्रक्रिया ही नियम विरुद्ध तरीके से देखी जा रही थी, जो नियम विरुद्ध तरीके से हुआ था फिर इसके बावजूद पूरी प्रक्रिया को निरस्त करने के बजाय  सिर्फ प्रमोशन संशोधित सूची को ही निरस्त क्यों किया गया? उसमें भी कुछ लोगों का नाम लिस्ट से गायब हो गया, अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब पूरी प्रक्रिया ही दोषपूर्ण थी तो फिर संशोधन लिस्ट ही क्यों निरस्त किया गया? जबकि पूरी पदोन्नति पोस्टिंग प्रक्रिया को ही को ही निरस्त किया जाना था।
ज्ञात हो की जिसके चक्कर में राज्य के तत्कालीन शिक्षा मंत्री समेत चार संभागों के संयुक्त संचालक, कई जिलाशिक्षा अधिकारी एवं संयुक्त संचालक कार्यालय में पदस्थ कई बाबू वर्तमान में निलंबित हैं। संभवत इसी घोटाले के कारण तत्कालीन शिक्षा मंत्री डॉ प्रेमसाय सिंह से मंत्रालय भी ले लिया गया। इसके बाद वर्तमान शिक्षा मंत्री श्री रविंद्र चौबे द्वारा चार संभाग में हुए शिक्षक प्रमोशन उपरांत पदस्थापना में घोटाले के लिए कमिश्नर स्तर के जांच टीम बनाई गई, जिसमें स्थानीय जिलों के कलेक्टरों को भी शामिल किया गया। सूक्ष्मता से जांच में बड़े पैमाने पर पदस्थापना में घोटाला पाया गया, जिसमें पैसों का लेनदेन कर वरिष्ठ शिक्षकों की अपेक्षा कनिष्ठ शिक्षकों को मनमानी पदोन्नति पर स्थापना दी गई। इसके अलावा पदोन्नति उपरांत पदस्थापना के लिए राज्य शासन के गाइडलाइन का पालन न होना पाया गया। जिसका परिणाम यह हुआ की करोड़ों के लेनदेन के चक्कर में राज्य के कई विद्यालय या तो शिक्षक विहीन हो गए या तो एकल शिक्षकिए हो गए। घोटाले की जांच उपरांत राज्य सरकार ने बड़ी कार्यवाही करते हुए शिक्षक प्रमोशन के बाद वे सभी पदस्थापना आदेश जो संशोधित किए गए थे, उन्हें एक मुश्त निरस्त करते हुए आदेश जारी किया कि पूर्व पद स्थापना में 10 दिवस के भीतर यदि उपस्थित दर्ज कर कार्यभार ग्रहण नहीं किया जाता है तो पदोन्नति स्वयमेव निरस्त हो जावेगी। इस संदर्भ में विगत 29 अगस्त को राज्य शासन ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में कैवियेट भी दाखिल कर दिया है। उसके बाद 4 सितंबर को शिक्षक दिवस के पूर्व चारों संभागों में संशोधन निरस्तीकरण के लिए स्पष्ट आदेश जारी कर दिया। राज्य शासन द्वारा जारी पांच पन्नों के इस आदेश में मामले का पूरा विवरण देते हुए समस्त संशोधनों को निरस्त करने का निर्णय लिया गया है। जिसके परिपालन में विगत 5 सितंबर को सरगुजा संयुक्त संभागीय कार्यालय से संशोधित किए गए शिक्षकों के नाम सहित आदेश जारी किया गया एवं समस्त जिला शिक्षा अधिकारियों तथा विकासखंड शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि व्यक्तिगत रूप से इस आदेश की तामिल कराकर संबंधित शिक्षकों को पूर्व के पदस्थापना स्थल पर भेजने की कार्यवाही की जाए। संयुक्त संचालक सरगुजा द्वारा जारी इस सूची में 385 शिक्षकों का नाम उल्लेखित है, जिनके वर्तमान पदस्थापना आदेश को निरस्त किया गया है।
मामले में दो बड़े सवाल
परंतु इस मामले में दो बड़े सवाल हैं, पहला तो यह कि सरगुजा संभाग में संशोधन आदेश लगभग 450 से अधिक शिक्षकों के लिए जारी हुआ था, तो निरस्तीकरण आदेश केवल 385 शिक्षकों के लिए ही क्यों?? दूसरा बड़ा सवाल यह है कि भ्रष्टाचार और घोटाले की इस पूरे मामले में यह केवल संशोधन के निरस्तीकरण के संबंधित आदेश हैं, परंतु जिन्होंने पैसों का लेनदेन कर फर्जी मेडिकल प्रमाण पत्र एवं अन्य सहायता से मनमाना पदस्थापना स्थल प्राप्त किया उन पर कार्यवाही कब और कैसे?
प्रमोशन पोस्टिंग के प्रमाण भी पुख्ता नजर आने लगे
दैनिक घटती घटना के पास इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि सरगुजा संभाग में संभागीय कार्यालय द्वारा सहायक शिक्षक से शिक्षक पद पर एवं शिक्षक से प्रधान पाठक माध्यमिक शाला के पद पर हुए प्रमोशन में मनचाही पदस्थापना के चक्कर में पैसों का लेनदेन कर भारी भ्रष्टाचार किया गया एवं जब कार्यालय में व्याप्त भ्रष्टाचार की शिकायत होने लगी एवं दैनिक घटती-घटना समाचार पत्र में लगातार इस मामले को उठाया तो संभागीय कार्यालय द्वारा भ्रष्टाचार, घोटाले को अंतिम रूप देने के लिए नए तरीकों की खोज कर डाली गई। जहां बहुतायत में चिकित्सा प्रमाण पत्र के माध्यम से कनिष्ठों को मनचाही पदस्थापना दी गई, वहीं मनचाही पदस्थापना के लिए जिन शिक्षकों से पैसों की उगाही की गई थी, उन्हें दिखावे के लिए एक दूसरे के चयनित स्थलों में पदस्थापना देकर एक माह के भीतर ही संशोधन के माध्यम से उन्हें इच्छित स्थान पर पदस्थापना दे दी गई। मामले के उजागर होने के उपरांत जब सभी संशोधन निरस्त किए जा रहे हैं, वहीं राज्य शासन की मंशा के परे कई सारे शिक्षक जिनके आदेश को संशोधित किया गया था, उनका निरस्तीकरण सूची में नाम ही नहीं है। 
उदाहरण से समझते है
उदाहरण के लिए प्राथमिक शाला छिंदिया में पदस्थ सहायक शिक्षक उमेश कुमार कुशवाहा को शिक्षक पद पर पदोन्नति देने उपरांत उनकी प्रथम पदस्थापना आदेश एमसीबी जिले के केल्हारी के लिए की गई थी, जिसे बाद में संशोधित कर कोरिया जिले के पटना में पदस्थ किया गया। परंतु वर्तमान निरस्तीकरण सूची के 385 शिक्षकों में उक्त शिक्षक के संशोधन आदेश के निरस्तीकरण का कोई वर्णन नहीं है। यह तो केवल एक बानगी और उदाहरण मात्र है, ऐसे कई शिक्षक हैं जिनके संशोधन आदेश को निरस्तीकरण से अलग रखा गया है। मामले में बड़ा सवाल यह है कि क्या पुनः संभागीय कार्यालय में पदस्थ अधिकारियों कर्मचारियों द्वारा नए तरीके से सेटिंग कर भ्रष्टाचार के माध्यम से पदस्थापना का खेल खेला जा रहा है। ज्ञातव्य हो कि उमेश कुशवाहा वही शिक्षक हैं जिन्होंने काउंसलिंग प्रक्रिया के दौरान ही प्रक्रिया समाप्त होने के पूर्व सोशल मीडिया के माध्यम से पदस्थापना के लिए बधाई संदेश प्रसारित किया था, इसके बाद मामले की शिकायत संयुक्त संचालक कार्यालय में हुई, वीडियो भी वायरल हुआ, अधिकारी ने चैलेंज भी किया कि ऐसी कोई भ्रष्टाचार की बात नहीं हुई है। प्रथम पदस्थापना आदेश में इस बात की पुष्टि भी हुई, परंतु जैसे ही एक माह बाद संशोधन आदेश जारी हुआ, काउंसलिंग प्रक्रिया के दौरान उमेश कुशवाहा द्वारा प्रसारित बधाई संदेशों की पुष्टि हो गई, जो यह प्रमाणित करता है कि बड़े पैमाने पर सेटिंग का खेल हुआ है।
अब मेडिकल लेकर सभी संशोधन निरस्तीकरण वाले शिक्षक निकले न्यायालय की शरण ढूंढने
अब जिनका संशोधन दोषपूर्ण मानकर स्कूल शिक्षा विभाग ने उनका संशोधन निरस्त किया है वह अब मेडिकल लेकर न्यायालय की शरण ढूंढने निकले हैं, कुल मिलाकर अब उन्हे भी मालूम हो गया है की उनका मामला अब विभाग से मुश्किल है निपट पाए क्योंकि पूरा लेनदेन का पोल खुल चुका है,अब यदि जरा सी कोई गुंजाइश है तो वह न्यायालय से ही है जिस तरफ वह कुच कर चुके हैं।वैसे शासन ने कैविएट दाखिल कर रखा है समय भी दस दिवस का शिक्षकों के पास लगता नहीं वह अल्प समय में कोई स्थगन पा सकेंगे वैसे कुछ यदि राहत मिलेगी तो भी उन्हे पैसा खर्च करना होगा दोहरी मार झेलनी पड़ेगी यह तय है।
बिचौलिए शिक्षक नेता पर भी क्या होगी कार्यवाही,जिसने संयुक्त संचालक का किया था जिसने महिमा मंडन
पूरे मामले में सरगुजा संभाग के एक जिले सूरजपुर के एक शिक्षक संघ नेता के ऊपर भी क्या कोई आरोप तय हो पाएगा क्या उसका नाम भी मामले में संलिप्त पाया जाएगा यह सवाल उठ रहा है,बताया जा रहा है संयुक्त संचालक जो दोषी साबित हुए हैं उसके  खास थे शिक्षक नेता और वह शिक्षक संघों का मूल कर्तव्य छोड़कर बिचौलिया का काम कर रहे थे और जगह जगह फोन कर भाव क्या है संयुक्त संचालक कार्यालय में पदस्थापना का वह बता रहे थे वहीं जब संयुक्त संचालक की पोल खुलने लगी यही बिचौलिया शिक्षक नेता ऐसा था जिसने अपने जिले के बाहर निकलकर समाचार पत्रों में संयुक्त संचालक की महिमा मंडन का प्रयास किया था और उनकी चालीसा पढ़ी थी,वैसे अब शिक्षक जो प्रभावित हुए हैं वह भी दलाली करने वाले शिक्षक नेताओं पर कार्यवाही की अंदरखाने मांग कर रहें हैं और उनका कहना है यही दलाल प्रवृत्ति उन्हे उलझा ले गई और आज वह न तो घर के हैं न घाट के।


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