गजब ढिठाई सरकार ने दिखाई
नई दिल्ली,३० नवम्बर २०२१(घटती-घटना)। सबको साथ लेकर चलने की यह कौनसी अदा है?आप सारी लोकतांत्रिक दुनिया को भारतीय किसानों के अभूतपूर्व आंदोलन के समर्थन में खड़ा कर देने वाले
काले कानूनों को तो अपनी विशाल हृदयता (!)दिखाते हुए वापस ले सकते है मगर उन दर्जनभर सांसदों का निलंबन आदेश वापस नहीं ले सकते जिन्होंने संसद के गत पावस स्तर में अपनी आवाज नही सुने जाने की हठ धर्मिता से आहत होकर अपना क्षोभ खुलकर व्यक्त किया था जिसे राज्यसभा में सभापति की आसंदी का घोर अपमान मान लिया गया मगर सम्बंधित सांसदों के निलंबन की घोषणा इसबार के शीत कालीन सत्र के पहले ही दिन करते हुए सभापति वेंकैया नायडू जी ने इतने सख्त तेवर दिखाए मानो प्रधानमंत्री को बैकफुट पर धकेल दिए जाने का बदला विपक्षी सांसदों से भंजा लेने के लिए कमर कसकर और नीम चबाकर आमादा हो गए हों।
जिन सांसदों को पिछले सत्र में किए गए तथाकथित अशोभनीय आचरण पर निलंबित किया गया वे कोई अपने अपने वेतन भत्ते बढ़ाने के लिए या कोई कोटा परमिट पाने के लिए राज्यसभा में गुहार नही लगा रहे थे।वे तो अलग अलग दल के होकर भी देश की ज्वलंत समस्याओं के सामने मोदी सरकार की असहायता से हर स्तर पर परेशान आम लोगों के सवाल,देश की सबसे बड़ी पंचायत में उठाना चाहते थे मगर उनकी बात सुनी ही नही गई। ऐसे में वे सांसद करते तो क्या करते !
जबसे मोदीजी ने प्रधानमंत्री की कुर्सी पाई है तबसे वह किसी एकभी सवाल का सामना करने के लिए तैयार ही नही हो सके।जनता से सीधे सरोकार रखने वाले सवाल
उन्हें नही सुहाते।स्वतंत्र मीडिया उन्हें नही भाता।ठीक ऐसा ही हाल संसद का हो गया है जहां विपक्ष को सरकार का ही नहीं समूचे लोकतंत्र का ही दुश्मन समझकर चला जा रहा है और यह जताने में कोई कसर नही छोड़ी जा रही है कि देखो बहुमत का बाहुबल कैसे मजे चखा सकता है!
भले ही किसान आंदोलन से आंखे और चेहरा छिपाते भागते थक हार कर मोदीजी अपने घुटने टेक देने के लिए बाध्य हो गए मगर वो 12 सांसदों के निलंबन को वापस नही लेंगे क्योंकि ऐसा होते ही महंगाई की विभीषिका बेरोजगारों की निराशा संवैधानिक संस्थानों के घोर दुरुपयोग विरोधियों के दमन उत्पीड़न और अधम र्कोटि की धर्मांधता को
प्रश्रय दिए जाने जैसे वे सारे सवाल चीखने लगेंगे जिन्हें न सुनना पसंद है न सुलझाने का कोई रास्ता सोचना पसन्द है।
अब सरकार किसान आंदोलन का क्या करेगी? काले कृषि कानूनों की वापसी करके भी सरकार के हाथ कुछ नही लगा।उल्टे नीयत पर सवाल और भी गहरे हो गए,आंदोलन और भी शहीदाना मोड़ में आ गया।आगे आगे देखे जाइये कि देश क्या कुछ पाता या भुगतता है।
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