शिक्षा विभाग में ही हावी भ्रष्टाचार तो,शिक्षा के मंदिरों का उद्धार कैसे हो पाएगा
-ओंकार पांडेय-
सूरजपुर,13 अगस्त 2023 (घटती घटना) एक तरफ प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि भ्रष्टाचार में लिप्त कोई भी हो कितना भी प्रभावशाली क्यों ना हो उसे बख्शा नहीं जाएगा,लेकिन दूसरी तरफ छाीसगढ़ का शिक्षा विभाग पूरे प्रदेश में घोटालों के लिए चर्चित है। शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार किस हद तक फैला हुआ है,इसका अंदाजा हाल ही में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेश स्तर पर पदोन्नति संशोधन मामलों में की गई कार्यवाही से लगाया जा सकता है। भ्रष्टाचार के मामलों में सूरजपुर जिले का शिक्षा विभाग भी अछूता नहीं है, यहाँ तो शिक्षकों के हर कार्य के लिए जमकर वसूली किये जाने की खबर आये दिन आते रहती है। सूरजपुर शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें काफी गहरी हैं। यहां शिक्षकों से अवकाश स्वीकृति करने से लेकर अन्य सभी छोटे – बड़े कामों को बिना चढ़ावा के कराना संभव नहीं है । इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि पूर्व में सूरजपुर जिले के शिक्षा विभाग के कई भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारी भ्रष्टाचार की शिकायत के बाद एनटी करप्शन की पकड़ में आकर जेल की हवा तक खा चुके हैं, इसके बावजूद भी यहां के अधिकारियों और कर्मचारियों की कार्यप्रणाली में थोड़ा भी सुधार नहीं आ रहा है । आलम यह है कि सूरजपुर शिक्षा विभाग के अफसर छाीसगढ़ शासन के आदेशों और नियमों तक को दरकिनार कर अपनी मनमानी चला रहे हैं। प्राप्त जानकारी अनुसार जिले के दूरस्थ ग्रामीण अंचलों में हाल ही में शिक्षकों की पदोन्नति पश्चात् एकल शिक्षकीय और शिक्षक विहीन माध्यमिक शालाओं में कई वर्षों के बाद शिक्षकों की पदस्थापना हुई थी, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी और विकासखंड शिक्षा अधिकारियों ने उन्हें फिर से शहर के नजदीक और उनकी मनचाही जगहों में संलग्न कर दिया है,जिससे दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी ज्यों की त्यों बनी हुई है ।
शिक्षा अधिकारी का कारनामा चर्चा में
इस कार्य में रामानुजनगर विकासखंड के शिक्षा अधिकारी का कारनामा चर्चा में हैं, इन्होंने विकासखंड स्तरीय समिति से परीक्षण उपरांत स्थायी शिक्षा समिति और जिला शिक्षा अधिकारी सूरजपुर को अंधेरे में रखकर उनसे अनुमोदन लेकर कई ऐसे स्कूलों को एकल शिक्षकीय और शिक्षक विहीन विद्यालय बताकर जिनमें पर्याप्त संख्या में शिक्षक कार्यरत हैं, वहां पदस्थ शिक्षकों को लाभ पहुंचाने के लिए उन्हें उनके मनचाहे स्थान पर संलग्न कर,यहां अन्यत्र विद्यालय के शिक्षकों को संलग्न कर दिया है। यही स्थिति सभी विकासखंडों में हैं। जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय द्वारा बहुतायत संख्या में शिक्षकों को उच्च परीक्षा उाीर्ण करने पश्चात् कार्योार अनुमति आदेश जारी किये गये हैं,जबकि शासन के नियमानुसार किसी भी शासकीय सेवकों को अपनी शैक्षणिक योग्यता बढ़ाने के लिए और उच्च परीक्षाओं में सम्मिलित होने के लिए विभाग से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक है, इसके बावजूद भी जिले के बहुत सारे शिक्षकों ने बिना विभाग की पूर्व अनुमति के शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश लेकर उच्च उपाधि प्राप्त कर कार्योार अनुमति हेतु आवेदन प्रस्तुत कर शिक्षा विभाग के सक्षम अधिकारियों से अनुमति प्राप्त कर लिया है, जबकि ऐसा करने पर कड़ी कार्यवाही का स्पष्ट प्रावधान है। कार्योार अनुमति सिर्फ ऐसे शासकीय सेवकों को ही दिया जा सकता है, जिन्होंने समय – सीमा में उच्च परीक्षा में सम्मिलित होने हेतु कार्यालय में अनुमति हेतु आवेदन प्रस्तुत किया हैं, और किसी कारणवश अनुमति आदेश जारी नहीं किया गया हो, तो उन आवेदनों पर पावती के आधार पर विचारोंपरांत कार्योार आदेश जारी किया जा सकता है। लेकिन सूरजपुर जिले के शिक्षा विभाग द्वारा बहुतायत संख्या में अनुमति हेतु पूर्व में आवेदन प्रस्तुत किये बिना ही नियमविरूद्ध तरीके से कार्योार अनुमति प्रदान किया गया है। इससे किसी शासकीय सेवक ने फर्जी अंकसूची लाकर भी कार्योार अनुमति लेकर बड़ी आसानी से उस डिग्री का लाभ पदोन्नति हेतु ले लिया होगा,इसमें भी कोई संशय नहीं होगा ।
मान्यता हेतु सभी मापंदड आवश्यक
इसके अलावा निजी विद्यालयों को मान्यता हेतु निर्धारित प्रपत्र में पेयजल की व्यवस्था, कक्ष और शिक्षकों की बुनियादी सुविधाओं के साथ विषयवार अध्ययन के लिए प्रशिक्षित शिक्षक, प्रयोगशाला, बच्चों के लिए पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था, शौचालय, खेल मैदान, खुद का भवन आदि मापदंडों को पूर्ण करना आवश्यक होता है । इन बिन्दुओं को पूरा किये बिना मान्यता नहीं देने का प्रावधान हैं,लेकिन पता चला हैं कि जिले के अधिकांश निजी विद्यालयों में न तो खेल मैदान की सुविधा है और न ही प्रशिक्षित शिक्षकों की और न ही सुरक्षा व्यवस्था ही है, इसके बाद भी इन स्कूलों को मान्यता दे दी गई हैं और प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष इन सुविधाहीन विद्यालयों की मान्यता का नवीनीकरण भी कर दिया जाता है । यह एक गंभीर जांच का विषय हैं। कुछ महीने पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय सूरजपुर के एक बाबू निजी विद्यालय को मान्यता देने के लिए लेनदेन करते हुए रंगे हाथ एनटी करप्शन की पकड़ में आकर जेल जा चुके हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत निजी विद्यालयों में गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए केन्द्र व राज्य सरकार के द्वारा निजी विद्यालयों को शिक्षण शुल्क दिया जाता है, जिसे प्रतिपूर्ति राशि भी कहा जाता है। इसमें भी व्यापक स्तर पर गड़बडि़यों की शिकायतें मिलती रहती है। यदि जिले के शिक्षा विभाग के शिक्षकों का संलग्नीकरण,एरियर्स राशि भुगतान,कार्योार अनुमति, संतान पालन अवकाश, चिकित्सा अवकाश, नियम विरूद्ध स्थानांतरण और निजी स्कूलों को बिना मापदंड पूरा किये दी गई मान्यताओं की गंभीरता से जांच हो जाये तो इस बात का पता चल जाएगा कि सूरजपुर शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं। भ्रष्टाचार की बीमारी इतनी पुरानी है कि इसे जड़ से उखाड़ना तो संभव नहीं है, लेकिन ऐसे भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारियों को दोषी पाये जाने पर कड़ी कार्यवाही हो जाये तो,इस पर थोड़ा अंकुश जरूर लगाया जा सकता है।