सूरजपुर/अंबिकापुर@क्या निजी पंजीकृत वाहनों में दौरा कर रहे सूरजपुर कलेक्टर, एसपी व जिपं सीईओ…क्योकि सभी के नंबर प्लेट सफेद?

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  • जिस वाहन में सूरजपुर कलेक्टर,एसपी व जिपं सीईओ चल रहे क्या वह अधिग्रहित की वाहन व्यवसायिक में पंजीकृत है?
  • वाहन अधिग्रहण में चल रहा बड़ा खेल…डीजल के नाम पर होता है जमकर भ्रष्टाचार…जांच हो जाए तो खुल जाएगी पूरी पोल
  • तत्कालीन जिपं सीईओ ने वाहन अधिग्रहण करवाया डीजल डलवाया…गाड़ी भाड़ा देने के लिए बिल भी बनाया…हो गया तबादला…वर्तमान ने कहा नहीं है कोई कार्यादेश भुगतान करना संभब नहीं
  • सूरजपुर शासकीय विभाग के दफ्तर में वाहन अधिग्रहण मामले में चल रहे खेल कि कब होगी जांच?
  • अपराधों पर अंकुश लगाने वाले विभाग के टेबल के नीचे ही वाहन अधिग्रहण में चल रहा बड़ा खेल
  • क्या प्रशानिक विभाग में वाहन अधिग्रहण करने के लिए निविदा नियम नहीं?
  • क्या निजी उपयोग की वाहन को किया जा सकता है अधिग्रहित या व्यवसायिक रूप से पंजीकृत वाहनों का ही होना चाहिए अधिग्रहण?
  • वाहन अधिग्रहण मामले के भुगतान में हुआ है जमकर फर्जीवाड़ा,सूचना के अधिकार में जानकारी देने से भी कतराते हैं विभाग के कर्मचारी
  • शासकीय विभाग में जो वाहन अधिग्रहण की गई है उसमें से कुछ वाहन टैक्सी परमिट में नहीं प्राइवेट में है
  • बिल का भुगतान किसी और के नाम पर वाहन का पंजीयन किसी और के नाम पर, इस तरह होता है गोरख धंधा
  • आधा तोर आधा मोर में होता है अधिग्रहित वाहन का भुगतान, वाहन अधिग्रहण मामले का मास्टरमाइंड कौन?


-विशेष संवाददाता-
सूरजपुर/अंबिकापुर 03 अगस्त 2023 (घटती-घटना)। जिस वाहन में सूरजपुर कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक सूरजपुर व जिला पंचायत सीईओ के लिए अधिग्रहित की गई है उन वाहनों को व्यवसायिक याने की टैक्सी में पंजीकृत वाहन होनी चाहिए, पर क्या ऐसा है यह बड़ा सवाल है? क्योकि जिले के पुलिस अधिकारी, जिला प्रशासनिकी अधिकारी व जिला पंचायत सीईओ को सफेद नम्बर प्लेट वाली वाहने लेकर सड़कों पर दौड़ रही है। जानकारी में जो बातें आ रही हैं उसमें यह पता चल रहा है की कलेक्टर एसपी व जिला पंचायत सीईओ निजी पंजीकृत वाहनों पर चल रहे हैं जैसा की वाहन के नम्बर प्लेट को देख कर लगता है, और बिल भी धड़ाधड़ फर्जी तरीके से निकल रहा है। यदि वाहन टैक्सी परमिट होती तो पिला नम्बर प्लेट होता।
जिला सूरजपुर में शासकीय विभागों में लगी वाहन बिना निविदा के जुगाड़ व सेटिंग से चल रही हैं, इन वाहनों में चलने वाले भी कोई आम व्यक्ति नहीं यह जिले के पुलिस कप्तान, कलेक्टर व जिला पंचायत सीईओ भी हैं जो सफेद नम्बर प्लेट वाले वाहनों में चल रहे, जबकि पुलिस ही एक ऐसा विभाग है जिस पर जांच का जिम्मा होता है और जांच का जिम्मा वाला ही विभाग यदि नियम को नजराअंदाज करता है तो सावल उठाना लाजमी है, पुलिस का मूल कर्तव्य कानून व्यवस्था व लोक शांति व्यवस्था को स्थापित रखना तथा अपराध नियंत्रण व निवारण तथा जनता से प्राप्त शिकायतों का निस्तारण करना है। समाज के समस्त वर्गों में सद्भाव कायम रखने हेतु आवश्यक प्रबंध करना, महत्वपूर्ण व्यक्तियों व संस्थानों की सुरक्षा करना तथा समस्त व्यक्तियों के जान व माल की सुरक्षा करना है पर क्या पुलिस अपने कर्तव्यों का निर्वहन निष्पक्ष तरीके से कर पा रही है? सूरजपुर जिले में कानून व्यवस्था के लिए काम करने वाली पुलिस विभाग के टेबल के नीचे एक बड़ा फर्जीवाड़ा का खेल चल रहा है, वह फर्जीवाड़ा है वाहन अधिग्रहण का, वाहन अधिग्रहण को लेकर कई लोगों ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारियां निकाली है किसी को जानकारी मिली है तो किसी को नहीं मिली।
नियमो की अनदेखी क्यों?
सूत्रों का मानना है कि सबसे बड़ा अनियमितता हो रही है वह भी वाहन अधिग्रहण में, बिना निविदा के वाहनों का अधिग्रहण करना नियम की अनदेखी है, विभाग में सब कुछ सेटिंग से चल रहा है, जिसकी सेटिंग तगड़ी है उसकी वाहन अधिग्रहित हो जाएगी और बिल निकालने में जो पुलिस का सहयोग करेगा और बात बाहर नहीं जाएगी, उसकी वाहन अधिग्रहित हो जाएगी पर अधिग्रहण करने के दौरान पुलिस कुछ ऐसी गलती भी कर रही है जो कहीं ना कहीं अपराध की श्रेणी में आता है, वह गलती है वाहन दस्तावेजों की अनदेखी, पुलिस वाहन अधिग्रहण करने से पहले वाहनों का बिना दस्तावेज जांचे उसे किराए पर अधिग्रहित कर रही है, जबकि यह भूल गए कि किराए पर वाहन अधिग्रहित करने के लिए व्यवसायिक में पंजीकृत वाहनों का ही अधिग्रहण होना चाहिए, निजी में पंजीकृत वाहनों का अधिग्रहण कर पुलिस की बत्ती, तो कई पद का बोर्ड लगा उसी वाहन में घूम रहे हैं, पुलिस के कई अधिकारी ना जाने उन्हें इस बात की जानकारी है या नहीं, जिले के पुलिस विभाग, जिला प्रशासन व जिला पंचायत में सफेद नम्बर प्लेट की वाहने विभागीय अधिकारियों को लेकर सड़कों पर दौड़ रही है।
खुद वह नियम विरूद्ध तरीके से वाहन में चल रहे हैं और वाहन भाडा मांग ने पर नियम का हवाला दे रहे
एक मजेदार पहलू यह भी है कि 3 व्यक्तियों का वाहन जिला पंचायत में लगाया गया 10 महीने चलाया गया, 10 महीने चलाने के साथ-साथ 10 महीने उन्हें डीजल भी दिया गया पर नहीं दिया गया तो उनका प्रतिदिन का भाड़ा, जो करीबन 5 लाख बताया जा रहा है, जब गाड़ी मालिक ने इस भाड़े को मांगने के लिए उच्च अधिकारियों तक शिकायत की तो जिला पंचायत सीईओ का जवाब था की वाहन का कार्यदेश कार्यालय में उपलब्ध नहीं है जब कार्यदेश उपलब्ध नहीं था तो फिर डीजल शासकीय पैसे से क्यों डलवाया जा रहा था? और इसका बिल पुराने तत्कालीन सीओ क्यों बना दिए थे? और उनके जाते ही नए सीईओ इस बिल को क्यों हटा दिए? जब खुद वह नियम विरूद्ध तरीके से वाहन में चल रहे हैं और जिनकी वाहन अधिग्रहण की वह जब अपना भाडा मांग रहे हैं तो उन्हें नियम का हवाला दिया जा रहा है।
2 साल से पैसे के लिए भटक रहा गाड़ी मालिक
शिकायत के अनुसार जिला पंचायत सूरजपुर में 3 व्यक्तियों का वाहन लगाया गया था जिसमें जन चौपाल में अधिकारी बैठकर जाया करते थे हर महीने अधिग्रहण किए हुए वाहन में डीजल भी डलाया करता था, सिर्फ गाड़ी मालिक का भाड़ा रुकता था, जिसका भुगतान 2 महीने 4 महीने में किया जाता था पर तीन गाड़ी मालिकों को इसका भुगतान पिछले 2 साल से नहीं किया गया, जब की गाड़ी भी हटा दिया गया है, भुगतान करने के लिए उस समय के तत्कालीन सीओ ने बिल भी बनाया आदेश भी जारी हुई जिसका दस्तावेज भी उपलब्ध है, पर उनके जाते ही वह पैसा लटक गया, अब जब नए सीईओ हैं और उनसे बिल की मांग की जा रही है तो वह नियम विरुद्ध बता रहे हैं, अब सवाल यह उठता है कि जब नियम विरूद्ध तरीके से गाड़ी चली रही थी कार्यादेश नहीं था तो फिर डीजल भी नियम विरुद्ध तरीके से डाला होगा? और डीजल भी यह नहीं की थोड़ा मोड़ा इन तीन गाडç¸यों में लगभग तीन से चार लाख का डीजल डलवाया गया, क्या इस के लिए कार्या देश था? जिस का बिल भी लगाया गया जब डीजल डलवाया जा सकता है तो फिर क्या उन गाड़ी मालिकों को उसका भाड़ा नहीं दिया जा सकता? जो गाड़ी मालिक अपने भाड़ा के लिए भटक रहे उसमे एक गाड़ी मालिक का 270000 है तो एक गाड़ी मालिक का 70000 तो किसी का एक लाख। ऐसे में बिल का भुगतान ना करके जिला पंचायत सीईओ खुद ही फंसे हुए दिख रहे हैं।
सफेद नंबर प्लेट वाली वाहन शासकीय विभाग में दौड़ रही किराए पर
जिले के पुलिस विभाग, जिला प्रशासन व जिला पंचायत में सफेद नम्बर प्लेट की वाहने विभागीय अधिकारियों को लेकर सड़कों पर दौड़ रही है, जबकि वाहने पीले नम्बर प्लेट की होनी चाहिए जो अधिग्रहण नियम के अनुसार होना चाहिए, पूरे मामले में कौन इस पूरे मामले में नियमो की अनदेखी कर रहा है यह तो सपष्ट नहीं है लेकिन जानकारों की माने तो यह बड़ी गलती है और यह नियमो के विरुद्ध है। सूत्रों की माने तो कई जिलों में निविदा के तहत वाहने अधिग्रहित की गई हैं, सरगुजा संभाग के कई जिलों में बिना निविदा के ही वाहनों को किराए पर लगाया जा रहा है, उसमें भी सबसे बड़ा सवाल यह है कि वाहन भी जो विभाग को लगानी है उसका पंजीयन व्यवसायिक में होना चाहिए पर बिना व्यवसायिक पंजीयन वाली वाहने भी धड़ल्ले से विभाग में पुलिस की बत्ती लगाकर दौड़ रही है, कुछ ऐसे ही वाहनों की तस्वीर भी सामने आई है जिसमें रजिस्ट्रेशन बता रहे हैं कि वाहने व्यवसायिक पंजीयन कि नहीं है क्या इस वजह से सफेद नंबर प्लेट वाहन में लगी हैं, जिसमें पुलिस की बत्ती भी ऊपर लगी हुई है अब यह वाहन किसने लगाया कैसे लगी यह जांच का विषय है।
क्या शासकीय विभागों में वाहन अधिग्रहण करने की एक नई पॉलिसी आ गई है?
इस समय शासकीय विभागों में वाहन अधिग्रहण करने की एक नई पॉलिसी आ गई है शासकीय वाहन होने के बावजूद भी कई वाहने अलग-अलग विभागों में बाहर से अधिग्रहण किए जाते हैं, जिसके लिए निविदा भी निकलती है पर कई विभागों में बिना निविदा के सेटिंग से ही वाहन लग जाती हैं, कुछ ऐसा ही सूरजपुर जिले में भी हो रहा है जहां पुलिस विभाग स्वास्थ्य विभाग सहित कई विभागों में वाहनों का अधिग्रहण किया गया है, जिससे लेकर इस समय सूरजपुर जिला सुर्खियों में है वाहन को यदि किसी भी विभाग को किराए पर दिया भी जाता है तो उसका नियम है की निजी उपयोग की वाहने नहीं कमर्शियल में पंजीकृत वाहन ही दी जाती है पर शहर के सेटिंग इतनी अच्छी है कि वह निजी वाहन भी अपने नाम पर लगाकर विभाग से पैसे उठा रहे हैं, इस तरह की बातें इस समय जन चर्चा का विषय है वहीं सूत्रों की मानें तो यदि विभाग में लगे वाहनों के दस्तावेज खंगाला जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा पर दस्तावेज खंगालने का अधिकार ना तो पत्रकार के पास है और ना अन्य के पास, इसकी जांच यदि उच्च स्तर पर हो तो सारे फर्जीवाड़ा सामने खड़े हो जाएंगे, सूचना के अधिकार में भी जानकारी नहीं दे पाते है कर्मचारी, कई लोगों ने सूचना का अधिकार भी लगाया और कहीं ना कहीं दबाव पूर्वक होने की वजह से यह जानकारी भी ठंडे बस्ते में रह गई।
जिला पंचायत सीईओ सफेद नंबर प्लेट वाली वाहन में
सूरजपुर जिला पंचायत सीईओ जो बहुत नियम का हवाला दे रहे हैं वह खुद व्यवसायिक पंजीकृत यानी के टैक्सी परमिट की वाहन में नहीं निजी वाहन में चल रहे हैं जो नियम के तहत नहीं है। अधिग्रहण करने के लिए हमेशा व्यवसायिक पंजीयन वाले वाहनों का उपयोग होता है पर यहां पर निजी पंजीयन वाले वाहनों का उपयोग धड़ल्ले से हो रहा है जो नहीं होना चाहिए। अधिग्रहण की हुई सभी वाहने पीले नंबर प्लेट वाली होनी चाहिए पर यहां तो सफेद नंबर प्लेट वाली वाहनों को ही दौड़ाया जा रहा है। अधिकारियों को गाड़ी तो बीआईपी चाहिए यहां तक कि साफ-सुथरी चाहिए हर दिन गाड़ी का टॉवल बदलना चाहिए और गाड़ी में इस्माइल नहीं आना चाहिए रिमयरमेंट तो ऐसी करते हैं पर नियम की बात आती है तो नियम ना जाने इनके दिमाग के बाहर कहां चला जाता है। बढ़ाया जा रहा है।
वाहन मालिक कोई और भुगतान किसी और को
विभाग में जो वाहने अधिग्रहित कर चलाई जा रहीं हैं इसमे भी बड़ा खेल है, गाçड़या किसी और कि चल रहीं हैं और भुगतान किसी और के नाम पर हो रहा है। बताया जाता है कि सबुकछ सेटिंग से चल रहा है और विभाग में वाहन केवल कुछ लोगों की ही मर्जी से अधिग्रहित हो रहीं हैं और वही लोग अपने अपने पसंद से जिसके नाम से भुगतान लेना होता है ले रहें हैं, कुलमिलाकर सिंडिकेट की तरह वाहन अधिग्रहण का एक गैंग सक्रिय है जो किसी और को वाहन लगाने देने में अड़ंगा लगाता है।
कई जिलों में वाहन अधिग्रहण के लिए निविदा निकाली गई, प्रथम भाग के लगभग जिलों में बिना निविदा के ही दौड़ रही हैं वाहने कैसे?
प्रदेश के अन्य जिलों की बात की जाए तो सभी जगह निविदा के माध्यम से सार्वजनिक निविदा के माध्यम से वाहन अधिग्रहण की गईं हैं जबकि प्रदेश के ही कोरिया जिले में जो प्रदेश के प्रथम जिले होने का गौरव भी रखता है में वाहन अधिग्रहण मामले में निविदा निकली ही नहीं जो बहोत बड़े बंदरबांट को साबित करता है।
शासकीय विभाग में भी वाहन अधिग्रहण में यदि ईडी छापामारे तो बहुत बड़ा घोटाला आ सकता है सामने
छत्तीसगढ़ के शासकीय विभाग में भी वाहन अधिग्रहण मामले में यदि ईडी की छापेमारी हो तो बड़े घोटाले के सामने आने का अनुमान है। विभाग में लगातार वाहन अधिग्रहण किया जाता रहता है वीआईपी मूवमेंट के दौरान भी और सामान्य परिस्थितियों में भी विभाग वाहनों का अधिग्रहण करता रहता है और इसमे जमकर फर्जीवाड़ा होता रहा है, अब यदि उच्च स्तर की जांच हो तो जरूर सच्चाई सामने आएगी और जो बड़े घोटाले के रूप में सामने आएगी। वाहन अधिग्रहण में विभाग के यदि पुराना रिकार्ड खंगाला जाए तो बहोत बड़ा पोल खुलेगा यह तय है, किस तरह बिना टेक्सी परमिट गाçड़यों का अधिग्रहण किया गया है नियम विरुद्ध और किस तरह अनाप शनाप भुगतान कर शासकीय खजाने को खाली किया गया है सब सामने आ जायेगा।
डीजल में भी बड़ा खेल
गाड़ी जितनी चलती नहीं उससे ज्यादा डीजल खर्च होता है और डीजल खर्च होने के बीच जो सबसे बड़ी बात है वह है भ्रष्टाचार की डीजल लगना है कम पर बिल बनता है ज्यादा का पेट्रोल टंकी वाले से सांठगांठ कर अधिकारी पैसे को कर लेते हैं बंदरबांट। डीजल के नाम पर शासन को चमका चुना लगाया जाता है अधिकारियों का दौरा एकदम कम होता है पर डीजल की मात्रा बहुत ज्यादा होती है ऐसा लगता है कि अधिकारी जिले में लगातार दौरा कर रहे हैं और लोगों के बीच पहुंच रहे हैं पर जब समस्याओं की बात आती है तो लोगों का कहना है कि अधिकारी तो आते ही नहीं जब अधिकारी आते ही नहीं तो फिर डीजल इतना ज्यादा कहां। यदि डीजल की भी बारीकी से जांच की जाए तो डीजल का भी बहुत बड़ा घोटाला सामने आएगा।


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