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अनूपपुर@जनजातीय विरोधी बन गया है विश्वविद्यालय

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सालों से जनजातीयों के लिए आरक्षित सीटें खाली
-अरविन्द द्विवेदी-
अनूपपुर,29 जुलाई 2023 (घटती-घटना)।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में भ्रष्टाचार, घोटाला, ड्रग-नशा सप्लाई, जनजातियों को हर संभव नुकसान पहुँचाने, जनजातीय लड़कियों के साथ छेड़छाड़, बलात्कार चरम पर है। अपने हाल ही के फेसबुक पोस्ट पर प्रो. नवीन शर्मा ने लिखा है कि – जनजातीय समाज के एक युवा जनप्रतिनिधि हीरा सिंह श्याम को खीरा सिंह श्याम के रूप में उल्लेख किया है। हीरा सिंह श्याम अपने समाज के अन्य राजनेताओं की तरह परिस्कृत नहीं था जो मोहक बातों में फंस सके इसलिए विरोध करने के कारण उसे ‘खीरा’ कर दिया। बहुतों को ये जिज्ञासा रहती है की यह किस प्रकार से आदिवासी विश्वविद्यालय है.? दर्शन शास्त्र विभाग को बंद करते हुए डा. सोनी को पैदल कर दिया गया, स्थानीय होने का दंश झेल रहे हैं।
लगातार प्रताçड़ड़त
हो रहे शिक्षक
जिन शिक्षकों ने शुरुआती दौर में विश्वविद्यालय को स्थापित करवाया है उन शिक्षकों को अनुभव का लाभ ना देकर उन्हें प्रताडç¸त कर उनके पदों को विकलांग एवं अन्य श्रेणी में आरक्षित कर परेशान किया गया है। उनका प्रमोशन अगस्त में ड्यू हो जाएगा और उन्हें अब ब्लैकमेल किया जा रहा है कि तुम हाईकोर्ट से केस वापस लो तभी तुम्हारा केस में प्रमोशन करेंगे और अभी भर्ती में किसी प्रकार का विवाद करोगे तो तुम्हारा प्रमोशन रोक देंगे। संस्थापक शिक्षकों को डराया-धमकाया जाता है, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के राष्ट्रवादी विचार के एसोसिएट प्रोफेसर को प्रोफेसर पोस्ट पर आने से रोक लगाने के लिए बैकलॉग पोस्ट की भर्तियों में गड़बड़झाला किया गया है।
जनजातियों का पद
रिक्त रखा गया
प्रो नवीन शर्मा ने अपने फेसबुक पोस्ट पर भर्ती में किए जा रहे घोटाला तथा भ्रष्टाचार के साथ आरक्षण का जमकर मजाक उड़ाने का जिक्र किया है। “नो वन फाउंड सूटेबल” के नाम पर कुलपति साजिश रच रहे हैं तथा जनजातीय विश्वविद्यालय में पिछले 9 वर्षों से जनजातियों के लिए आरक्षित अनेक पद को जानबूझकर खाली छोड़ा गया है। ज्ञात हो कि सितंबर 2020 क्रमशः दिसंबर 2020 में राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय में प्रकाशित हुए विज्ञापन में जनजातियों के लिए आरक्षित शैक्षणिक पद साइकोलॉजी, फिजिकल एजुकेशन, फिजिकल एजुकेशन (आरसीएम), नर्सिंग, कंप्यूटर साइंस (आरसीएम), बायोटेक्नोलॉजी विभागों में प्रकाशित पद खाली रह गए हैं जिसे पुनः जुलाई 2023 के विज्ञापन में प्रकाशित किया गया है। इसप्रकार से जनजातियों के लिए यह सभी पद पिछले 9 साल से खाली रह रहे हैं।
आवाज उठाने वाला कोई नहीं
सोशलॉजी के एसोसिएट पद पर भर्ती भी किया गया है उसमें भी बड़ी विडंबना तथा धांधली के तहत प्रक्रिया अपनाया गया है, जबकि नर्सिंग, फिजिकल एजुकेशन, साइकोलॉजी में योग्य उम्मीदवार होने के बावजूद केवल 3 दिन का प्रोविजनल से फाइनल लिस्ट का समय देकर विश्वविद्यालय के भर्ती विभाग द्वारा जमकर धांधली किया गया है और आदिवासी समाज से आवाज उठाने वाला कोई नहीं है। ऐसा लगता है कि जनजातियों की के लिए आरक्षित सीटें कभी नहीं पड़ेगी। इतना ही नहीं स्थानीय जनजाति छात्रों को विश्वविद्यालय में प्रवेश ना हो सके इस कारण विश्वविद्यालय में सीयूईटी का परीक्षा केंद्र 2022-23 में नहीं बनाया गया है इससे बड़े पैमाने पर जनजाति छात्र परीक्षा ना देने से प्रवेश लेने से वंचित हो गए हैं।
अंग्रेजों की भांति लूटा जा रहा
प्रो. नवीन शर्मा मुख्य छात्रावास अधीक्षक के महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के साथ विश्वविद्यालय में कार्य कर रहे हैं। नवीन शर्मा की फेसबुक पोस्ट पर सार्वजनिक लिखा है कि विकास की बड़ी बात करने वाले कुलपति कट्टीमनी के कार्यकाल में छात्रावास नहीं बना, बल्कि छात्राओं के छात्रावास को परिवर्तित कर दिया गया तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय भारत सरकार के छात्रावास को बनाने में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ है। छात्र बहुत परेशानी का सामना कर रहे है इस कारण वे मुख्य छात्रावास अधीक्षक के जिम्मेदारी से इस्तीफा दे दिए है। इस बात की पुष्टि करते हुए वरिष्ठ प्रो. राकेश सिंह ने फेसबुक पर लिखा है कि ओबीसी हॉस्टल बना ही नहीं है बल्कि खानापूर्ति के लिए ट्राइबल मॉडल स्कूल के हॉस्टल पर ओबीसी हॉस्टल का बोर्ड लगा दिया गया है तथा भारत सरकार के करोड़ों रुपए की हेराफेरी जांच का विषय है। ऐसे में स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर विश्वविद्यालय चर्चा में आ गया है कि किस प्रकार से अंग्रेजों की भांति विश्वविद्यालय को लूटा जा रहा है।
भर्ती के लिए लगी
लाखों की बोली
प्रो नवीन तथा प्रो राकेश द्वारा भ्रष्टाचार के करोड़ों के घोटाले का सार्वजनिक उद्घोषणा किया गया है। क्या इसके बावजूद भी मोदी सरकार का कान खुलेगा या बंद रहेगा.? यह अब जनजातियों में चर्चा होने लगा है। हाल ही में रोस्टर की धज्जियां उड़ाते हुए बैकलॉग भर्ती के गलत पैमाने तथा अपने लोगों को अलग-अलग पद पर सेट करने के लिए भ्रष्टाचार के नमूना के रूप में शैक्षणिक पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन प्रकाशित किया गया है। दबी जुबान विश्वविद्यालय का ओबीसी ग्रुप, दलित ग्रुप के शिक्षकों एवं छात्रों में यह चर्चा हो रही है कि प्रकाशमणि त्रिपाठी का कार्यकाल एक साल बचा है और 81 शैक्षणिक पदों को बेचकर फिक्सिंग करके विज्ञापन निकाला गया है। प्रोफेसर के लिए 50 लाख, एसोसिएट प्रोफेसर के लिए 40 लाख तथा असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए 30 लाख की बोली लगाई गई थी तथा जिस कैटेगरी का व्यक्ति जितना रुपए दिया उस हिसाब से रोस्टर को बदलकर विज्ञापन निकाला गया तथा बैकलॉग के पद को सामान्य कैटेगरी में बदल दिया गया। प्रकाशमणि त्रिपाठी खुलेआम नियम कानून की धज्जियां उड़ाकर लूट मचाए हैं तथा ब्रिटिश कंपनी के सीईओ की भाँती विश्वविद्यालय को लूट रहे हैं।
राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू तथा शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान से जांच का निवेदन
प्रो. नवीन शर्मा ने अपने फेसबुक पोस्ट पर राष्ट्रपति तथा शिक्षा मंत्री से जांच का निवेदन किया है तथा तत्कालीन कुलपति प्रो टीवी कटीमनी पर कैंपस से गायब रहने का आरोप लगाया है तथा बिस्कुट/ स्नेक्स बाँटकर जनजातीय जागरण, गार्ड/सफाई कर्मचारी बनाकर जनजातियों को बेवकूफ बनाने का जिक्र किया है। साथ में कुलपति को एनजीओ का सीईओ के रूप में कार्य करना बताया गया। कुलपति कट्टीमनी ने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे स्थानीय जनजातीय समाज का भला होता। कुछ शिक्षक नाम ना छापने की शर्त पर यह बताते हैं कि अभी प्रो. प्रकाशमणि त्रिपाठी इस विश्वविद्यालय को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह चला रहे हैं तथा अराजकता फैला दिए हैं। ठेकेदारी, कंस्ट्रक्शन, साइंस लेब के करोड़ों के सामान, नियुक्ति तथा गार्ड-सफाई कर्मचारियों के टेंडर पर जबरदस्त कमीशनखोरी कर रहे हैं। नवीन शर्मा द्वारा भ्रष्टाचार उजागर करने के बाद अब यह सार्वजनिक चर्चा होने लगी है कि क्या शिक्षा मंत्री और राष्ट्रपति इस मामले की जांच करवाएंगे तथा प्रकाशमणि त्रिपाठी को तत्काल बर्खास्त करेंगे।
भाईसाहब लोग और संगठन मंत्री विश्वविद्यालय
को कर रहे हैं बर्बाद
प्रो. नवीन शर्मा ने अपने फेसबुक पोस्ट पर लिखा है कि हमारे निवर्तमान कुलसचिव जिन्होंने प्रो कट्टीमनी को अपने स्तर से हीं कुलपति के रूप में सेवा विस्तार दे दिया था। इस देश के अकादमिक व्यवस्था में दुर्लभ ही होगा जहाँ एक कुलसचिव ने अपने कुलपति को अप्रत्यक्ष रूप से सेवा विस्तार दे दिया था। हालाँकि इसमें मैं उनकी कोई गलती नहीं मानता, क्योंकि देश के शिक्षा मंत्रालय ने इसे गलत मानने का अपने तरफ से कोई प्रयास नहीं किया। यह घटना इस ओर ईशारा कर रही है कि कुलसचिव ने खुद राष्ट्रपति के पावर का उपयोग कर लिया, लेकिन शिक्षा मंत्रालय ने कुछ नहीं किया क्योंकि दिल्ली और भोपाल बैठे भाईसाहब लोग मामला दबा दिए है।
साक्ष्य के बाद भी
कार्यवाही नहीं
हाल ही में विद्यार्थियों के संगठन के एक संगठन मंत्री अपने कुनबे के कुछ पदाधिकारियों के साथ विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में राजशाही व्यवस्था के साथ कई दिनों तक गुलछर्रे उड़ाये और विश्वविद्यालय के असिस्टेंट और एसोसिएट प्रोफेसर को बुलाकर किसी से एक लाख, किसी से दो लाख की वसूली किया। कुलपति सहित कई प्रोफेसर हाथ जोड़े अपनी दशा बता रहे थे कि मेरे पास गाड़ी का लोन है, हाउस लोन लिया हूं मैं एक लाख नहीं दे सकता। लेकिन भाईसाहब जबरदस्त वसूली कर रहे थे, इतना ही नहीं भाईसाहब कुलपति से 10 पोस्ट पर अपने भर्ती के लिए फिक्सिंग भी कर लिया है। विश्वविद्यालय में भाईसाहब लोंगो द्वारा गेस्ट हाउस में आकर सुरा और सुंदरी का उपयोग किया जाता रहा है। स्थानीय स्तर पर चर्चाएं जोरों पर है कि भोपाल और दिल्ली के भाईसाहब लोग के हस्तक्षेप के कारण शिक्षा मंत्रालय साक्ष्य होने के बावजूद भी कुलपति के भ्रष्टाचार पर कार्यवाही नहीं कर पा रहे है।


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