- सत्ता के करीबियों ने नहर की जमीन पर कर लिया अतिक्रमण,प्रशासन कागजबाजी में उलझा,एनजीटी के नियम ताक पर
- क्या सत्ता दल के नेताओं को कुछ भी करने का अधिकार मिला हुआ है?
- क्या नियम विरुद्ध तरीके से रातों-रात चौक स्थापित करने में स्थानीय विधायक की भी भूमिका अहम है?
- आम लोगों के लिए कड़े नियम कानून पर क्या सत्ता के करीबियों के लिए कड़े नियम कानून नहीं है?
–रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 27 जुलाई 2023 (घटती-घटना)। कोरिया जिले के मुख्यालय बैकुंठपुर से करीब 3 किलोमीटर दूर भाड़ी में सत्ता के करीबियों ने नियम विरुद्ध तरीके से बिना जल संसाधन विभाग के अनुमति उनकी जमीन पर कर लिया अतिक्रमण और रातों-रात बना दिया चौक जैसे ही यह मामला लोगों को पता चला इसमें आपत्ति दर्ज कराई गई, अब सवाल यह उठता है क्या चौक स्थापित करने के लिए कोई नियम कानून नहीं है, कहीं भी स्थापित किया जा सकता है? जैसा की भाड़ी चौक पर देखने को मिला, वहां पर सत्ता पक्ष के लोग रातों-रात चौकी स्थापित कर दिया आखिर किस के इशारे पर यह हुआ इसका तो पता नहीं पर स्थानीय विधायक का संरक्षण मिला है ऐसा जन चर्चाओं का विषय है, यदि ऐसा हुआ है तो सवाल उठाना लाजमी है यदि ही विधायक नियम विरुद्ध तरीके से चौक का निर्माण कराएंगे तो फिर बाकियों से क्या उम्मीद की जा सकती है? चौक बनाने के लिए काफी प्रक्रियाएं हैं जिस से गुजरना पड़ता है पर क्या उन प्रक्रियाओं से गुजरा गया या फिर रात में पहुंचे और चौक तैयार क्या ऐसे ही तैयार किया जाता है शासन के द्वारा चौक?
कोरिया जिले में राजस्व विभाग की मैदानी सक्रियता किसी से छुपी नहीं है। यहां सिर्फ रसूखदारों की या फिर सत्ता के करीबियों की मनमानी चलती है। चाहे पुराने बांध में मुआवजा बांटना हो या फिर सरकारी जमीन को निजी हाथों में सौंपने की बात हो, विभाग के मैदानी अधिकारी बिना किसी देर के यह काम पूरी लगन के साथ कर रहे हैं। जिला मुख्यालय बैकुण्ठपुर का हाल इस मामले में सबसे ज्यादा खराब है। एैसा ही एक मामला सामने आया है जिसमें सिल्फोड़ा जलाशय की मुख्य नहर पर ही रसूखदारों ने रातों रात अतिक्रमण कर लिया और राजस्व विभाग के नुमांइदे अपने नंबर बनाने के चक्कर में आज तक कार्यवाही नहीं कर सके। सूत्रों ने बताया कि यह बात जब प्रशासनिक प्रमुख के संज्ञान में आई तो उन्होने तुरंत कार्यवाही के निर्देष दिए परंतु स्थानीय नेता के दबाव में मैदानी अधिकारियों ने पूरे मामले को कागजबाजी में उलझा कर रख दिया है। यह पूरा मामला ग्राम पंचायत भांड़ी का है जहां एक चैक का निर्माण स्वीकृत हुआ था और इस कार्य के लिए ग्राम पंचायत भंाड़ी को एजेंसी बनाया गया है। जब ग्राम पंचायत ने प्रस्तावित स्थल पर विवाद की स्थिति का अंदाजा लगाया तो काम करने से मना कर दिया। इस बात के लिए एक स्थानीय नागरिक ने अपनी लिखित आपत्ति भी दर्ज कराई परंतु वह आवेदन लालफीताषाही की भेंट चढ़ गया। पांच जून को सत्ता से जुड़े कुछ नेताओं ने सत्ता की हनक में आधी रात को ही चैक का निर्माण कर दिया। इस दौरान नायब तहसीलदार, नगर निरीक्षण सहित कई जिम्मेदार अधिकारी तमाषबीन बनकर मौके पर अतिक्रमण होते देखते रहे और अपने आप को सर्वोपरि मान चुके सत्ता के संरक्षण में पोषित कुछ रसूखदारों ने आधी रात को नहर की भूमि पर ही चौक का निर्माण कर दिया गया। जब एक स्थानीय व्यक्ति ने इस पर कलेक्टर कोरिया के समक्ष आपत्ति दर्ज कराई तो फिर राजस्व विभाग के मैदानी अमले ने पहले तो स्थगन आदेश दे दिया। फिर सत्ता से जुड़े एक नेता के दबाव में पूरे मामले को लंबा करने के लिए कागजबाजी का रास्ता निकाल लिया गया।
पहले नामजद स्थगन आदेश जारी करने वाले तहसीलदार जल संसाधन से पूछते हैं कि अतिक्रमण किसने किया
राजस्व विभाग बैकुंठपुर के बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम है। इस मामले में जब एक स्थानीय व्यक्ति ने कलेक्टर कोरिया को बताया कि यह गलत निर्माण है तो कलेक्टर कोरिया ने तहसीलदार को जमकर फटकार लगाई। परंतु जैसा हर मामले में होता आया है मैदानी अधिकारियों ने तुरंत इसका तोड़ निकाला और जल संसाधन विभाग को फिर से एक चिटठी जारी कर पूछा है कि कौन अतिक्रमण किया है और विभाग ने क्या कार्यवाही की है। जबकि जल संसाधन विभाग के साथ ही राजस्व अमले के एक निरीक्षक ने दो सप्ताह पूर्व ही अपने प्रतिवेदन में लिख कर बाकायदा नक्षे व नाप सहित बता दिया था कि यह अतिक्रमण का मामला है और सिल्फोड़ा की माइनर नहर की भूमि पर किया गया है। अब तहसीलदार साहब को कौन बताए कि भू राजस्व संहिता में प्रदत्त अधिकारों के अनुसार हर तरह के अतिक्रमण पर कार्यवाही का अधिकार क्षेत्र उनका स्वयं का है। इसके बाद जल संसाधन विभाग के कार्यपालन अभियंता ने बाकायदा जुलाई के पहले सप्ताह में फिर से लिखकर दिया कि यह नहर की भूमि है और उस पर पूरा निर्माण अतिक्रमण की श्रेणी में आता है। लेकिन पत्र पाने के तीन सप्ताह बाद भी सभी मामलों में योग्य व कुषल तहसीलदार इस मामले पर अतिक्रमण हटाने का आदेष जारी नहीं कर सके हैं।
एनजीटी के नियम ताक पर
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यह कहता है कि जल से जुड़े हर स्रोत चाहे वह प्राकृतिक नदी, नाले, तालाब झील हों या फिर बनाए हुए तालाब, नहर, नाले या फिर सप्लाई चेनल, किसी पर भी कोई भी निर्माण की ना तो अनुज्ञा जारी की जा सकती है और ना ही किसी भी तरह का निर्माण कार्य किया जा सकता है एैसा किया जाता है तो संबंधितों पर दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत कार्यवाही होनी चाहिए और यह अजमानतीय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इस संबंध में कार्यपालन अभियंता ने पत्र लिखकर पहले ही एसडीएम बैकुण्ठपुर को अवगत करा दिया था, साथ ही यह भी स्पष्ट तौर पर लिखा था कि यह सारा निर्माण नहर की भूमि पर अतिक्रमण है। लेकिन कोरिया जिले में एनजीटी का निर्देष, कानून और वैधानिक कार्यवाही यह सब कुछ केवल सत्ता के विरोधियों के लिए ही है। इसमें सत्ता पक्ष से जुड़े व्यक्तियेां को कोई नुकसान नहीं होने दिया जाएगा।
एैसे ही मामले में विपक्षी नेता हो चुके है गिरफ्तार
पूरे मामले को जानने वाले लोग बतलाते है कि कोरिया जिला मुख्यालय के समीप झुमका जलाशय है जो कि रामानुज प्रताप सागर के नाम से जाना जाता है। इसकी एक नहर नगरपालिका क्षेत्र बैकुण्ठपुर के महलपारा से गुजरती थी। उस पर प्रमुख विपक्षी दल से जुड़े बिल्डर संजय अग्रवाल ने समतल करके उसे किसी अन्य को बेच दिया था। जब मामला राजनैतिक प्रतिद्वंदी का हुआ तो सत्ता पक्ष ने आनन-फानन में सिंचाई अधिनियम के प्रावधानों के तहत कार्यवाही करवाते हुए उस मामले के मुख्य अभियुक्त बनाकर संजय अग्रवाल के खिलाफ एफआइआर करवाई और बाकायदा जेल में डाल दिया गया। अब यही काम सत्ता पक्ष से जुड़े एक नेता व उसके समर्थकों ने कर दिया है तो जिम्मेदार विभाग आंख मूंदकर बैठा हुआ है। इस मामले में प्रशासन किसकी सह पर क्या कर रहा है यह देखने लायक बात होगी। फिलहाल नहर की भूमि पर लंबा चौड़ा अतिक्रमण हो चुका है, उस पर स्थगन आदेष जारी किया गया है और तहसीलदार कागज में पूछ रहे है कि किसने बनाया, जल संसाधन विभाग ने क्या किया। जल संसाधन विभाग ने बाकायदा दुबारा लिख कर दे दिया है कि अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही करें। अब देखने वाली बात होगी कि क्या तहसीलदार बैकुण्ठपुर बिल्डर संजय अग्रवाल की तर्ज पर नहर की जमीन पर अतिक्रमण करने वालों पर थाने में जल अधिनियम की धारा के तहत अपराध दर्ज कराएंगे और सत्ता से जुड़े लोग क्या गैर जमानती अपराध में जेल दाखिल किए जाएंगे या फिर सत्ता के प्रभाव में नतमस्तक होकर एनजीटी के प्रावधानो को सिर्फ कागज तक ही सीमित रखने का कार्य होगा।