अनूपपुर@महिलाओं को टिकट देने में दोनो दलों ने बनाई दूरी

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सिर्फ नाम का महिला सशक्तिकरण,30 सालों में एक भी महिला विधायक
नहीतो क्या.! महिला प्रधान समाज की बातें महज़ भाषणों तक सीमित.?


यूं तो घर से लेकर बाहर तक महिलाएं हर किरदार में सफल नज़र आती हैं लेकिन अमूमन ऐसा होता है कि महिला सशक्तिकरण का जि़क्र छिड़ते ही हमारे ज़ेहन में उन सफल महिलाओं की तस्वीरें उभरने लगती हैं जो या तो किसी मल्टीनेशनल कंपनी की सीईओ जैसे महत्वपूर्ण पदों पर शोभायमान है।ं या कोई बड़ी सामाजिक कार्यकर्ता या फिर कोई सेलिब्रेटी
जबकि समाज के सर्वांगीण विकास के लिए महिला सशक्तिकरण बहुत जरूरी है…महिलाओं को सशक्त बनाने का अर्थ है आधी आबादी को सशक्त बनाना,जिससे बेहतर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं… सशक्त महिलाएं अपने परिवारों, समुदायों और अर्थव्यवस्था में योगदान करने की अधिक संभावना रखती हैं…


-अरविन्द द्विवेदी-
अनूपपुर,23 जुलाई 2023 (घटती-घटना)।
हर क्षेत्र में महिलाओं को आगे लाने व उनके सशक्तिकरण की भले ही बड़ी-बड़ी बातें राजनैतिक दलों द्वारा की जाती हों, लेकिन जब महिलाओं को आगे लाने की बात होती है तो सभी राजनैतिक दलों के हाथ तंग हो जाते हैं। चाहे वह चुनाव में टिकट देने का मामला हो या फिर संगठन में पद देने का। इस मामले में सबसे कंजूस राजनैतिक दल भाजपा है। पिछले चुनाव में राजनैतिक दलों द्वारा जिले में महिलाओं को टिकट देने की बात की जाए तो यहां की तीन विधानसभा सीटों में दोनो दलों ने महिला उम्मीदवारों को चुनावी समर में नही उतारा था।


महिला उम्मीदवार को कब मिलेगा मौका?


2003 से लेकर 2018 तक के विधानसभा चुनाव में यदि जिले में भाजपा, कांग्रेस जैसे प्रमुख राजनैतिक दलों द्वारा चुनावी मैदान में उतारी गई महिलाओं की बात करें तो जिले में तीन विधानसभा सीटें हैं जिनमें महिलाओं को भाजपा व कांग्रेस ने टिकट देने से महरूम कर दिया। जबकि इन जगहों पर महिला नेत्रियों के द्वारा लगातार अपनी दावेदारी, अपने-अपने दल में पेश की जा रही थी। किंतु संगठन ने सिरे से नकारा जिसके फलतः विधायक बनने का मौका उन नेत्रियों को नही मिला है।


महिला प्रत्याशी मांग रही हैं अपना हक


2018 के विधानसभा चुनाव में वैसे तो सभी की निगाहें भाजपा, कांग्रेस के उम्मीदवारों पर थी। लेकिन जब प्रत्याशी के नामों की घोषणा हुई तो एक बार फिर दोनो दलों ने महिला दावेदारों को दरकिनार करते हुए पुरुषो पर ही दांव लगाया था। लेकिन अब एक बार फिर चुनावी बेला आ रही है और गुजरे कल को पीछे छोड़ते हुए इस बार महिलाओं ने दलों में अपनी-अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए नेतृत्व महिलाओं को देने की बात की है।


नज़रअंदाज करना पड़ सकता है मंहगा


आगामी विधानसभा चुनावों में युवाओं को रिझाने के लिए राजनीतिक दलों की कोशिश बड़े पैमाने पर जारी है। लेकिन यह दुःख की बात है कि वे महिला मतदाताओं का समर्थन पाने के लिए बहुत कुछ नहीं कर रहे हैं। अगर युवा मतदाताओं की संख्या इन चुनावों में राजनीतिक दलों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है तो उनके पास महिला मतों को अपनी ओर मोड़ने और इसके लिए कोशिश करने की कई वजहें हैं। ज्¸यादातर सीटों में महिला मतदाताओं की संख्या लगभग आधी या इससे थोड़ी ही कम है। अगर मसला भागीदारी के स्तर का है तो वोट देने के मामले में महिलाएं युवाओं से आगे रहती हैं। इस तरह किसी राजनीतिक दल की चुनावी सफलता में युवाओं के बजाए महिला मतदाता अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। ऐसे में राजनीतिक दलों को महिला वोट पाने के लिए गंभीर प्रयास करने चाहिए, लेकिन वे टिकट बांटते समय महिला उम्मीदवारों को नज़रअंदाज करते हैं।


कोतमा व अनुपपुर में दमदार मौजूदगी


भाजपा कोतमा में ज्योति सोनी ने हमसे बात करते हुए कहा कि वह वर्तमान में जिला महामंत्री है और पार्टी उन्हे मौका देती है तो वह निश्चित हीं जनता के आशीर्वाद से सेवा के लिए तत्पर रहेगी। आपको बताते चले कि ज्योति सोनी पूर्व में जनपद सदस्य भी रह चुकी हैं साथ ही भाजपा में लंबे समय से जुड़ी हुई है और वह कोतमा विधानसभा से दावेदारी कर रही हैं। वही पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष उमा राजेश सोनी ने भी कोतमा सीट पर अपना दावा किया है। उनके पास अनुभव के नाम पर कोतमा नपा में किया गया कार्य है, साथ ही पूरे विधानसभा में इनकी अपनी टीम भी है जो उन्हें मजबूत बनाती है। वही कांग्रेस की बात करे तो अभी तक कोतमा से वैशाली ताम्रकार के अलावा कोई बड़ा नाम सामने नही आ रहा है। यदि भाजपा ने कोतमा से महिला प्रत्याशी को मौका दिया तो फिर कांग्रेस भी वैशाली ताम्रकार को आगे करके इस चुनाव को दिलचस्प कर सकती है। वहीं अनुपपुर विधानसभा की बात करे तो कांग्रेस से ममता सिंह (पूर्व जनपद अध्यक्ष) लगातार टिकट की मांग कर रही हैं। उन्होंने पिछले उपचुनाव में भी संगठन में अपनी बात प्रमुखता से रखी थी। कांग्रेस ने यदि महिला प्रत्याशी पर भरोसा किया तो ममता सिंह अनुपपुर के लिए कांग्रेस का चेहरा बन सकती हैं। बात अगर भाजपा की करे तो अनुपपुर विधानसभा से गुडि़या रोतेल ने अपनी दावेदारी संगठन में की है। वह लगातार पार्टी के तमाम पदों में रहते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराती आई हैं। ऐसे में भाजपा सरकार विरोधी माहौल में नए चेहरे पर दांव लगाकर अपनी नैया पार लगाने का प्रयास भी कर सकती है। बहरहाल देखना होगा कि महिला सशक्तिकरण की पैरवी करने वाले दल आने वाले विधानसभा चुनाव में महिलाओं को कितना सशक्त बनाते हैं।


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