- एसईसीएल की संपत्ति को नुकसान पहुंचा…चिरमिरी व मनेंद्रगढ़ के कबाडि़यों ने अपनी संपत्ति में किया कई गुना इजाफा
- कबाडि़यों को मिला पुलिस का बड़ा संरक्षण,संरक्षण देने वाले की भी हुई खूब कमाई
- एक बिना नंबर प्लेट वाली वाहन एक पुलिसकर्मी की बताई जाती है वह भी किसी कबाड़ी के द्वारा मिला है:सूत्र
- क्या पुलिसकर्मी की बिना नंबर वाली गाड़ी की होगी जांच?
–रवि सिंह-
एमसीबी,10 जून 2023 (घटती-घटना)। केंद्र सरकार की कोल इंडिया की सहायक कंपनी एसईसीएल है जहां कोयले का उत्पादन हुआ करता है अपने कर्मचारियों के लिए एसईसीएल ने कई तरह के सुविधाएं दी हुई थी, वही कोयले निकालने के लिए भी कई उपकरण खरीदे गए थे, स्वास्थ सुविधा के लिए भी वाहन खरीदे गए थे और यदि देखें तो एसईसीएल के द्वारा शुरुआती दौर में खुद का वर्कशॉप खुद का ही वाहन हुआ करते थे, किराए पर लेने की प्रक्रिया उस समय नहीं थी, एसईसीएल अपने अधिकारी व कर्मचारी की सुविधा के लिए वाहन से लेकर कई तरह के उपकरण की खरीदी किया करती थी फिर बाद में एसईसीएल की पॉलिसी बदली और यह भी किराए पर वाहन अधिकृत करने लगे पर जो एसईसीएल के वाहन पहले खरीदे हुए थे वह काफी पुरानी होने की वजह से वर्कशॉप में खड़े हो गए, वर्कशॉप ही इनका बंद हो गया धीरे-धीरे कर्मचारियों की भी कमी होने लगी थी पर एसईसीएल के पास लोहे के तौर पर काफी कबाड़ एकत्रित हो गया था जो एसईसीएल की संपत्ति थी, पर इस संपत्ति पर कबाडि़यों की गिद्ध दवाली नजर पड़ गई और फिर क्या एसईसीएल की संपत्ति को चोरी कर बेचते गए, आज भी एसईसीएल की संपत्ति कबाड़ के रूप में ही मौजूद है पर अब उस मात्रा में नहीं है जितनी मात्रा में पहले थी, क्योंकि सारे कबाड़ को तो कबाड़ी लोग बेच डाले और कबाड़ी भी पहले तो छोटे कबाड़ी थे फिर इस काम को करते करते बड़े कबाड़ी हो गए और आज एसईसीएल की संपत्ति को बेच कर खुद अपनी करोड़ों की संपत्ति बना ली और इन्हें संरक्षण देने वाले पुलिसकर्मियों को भी कबाड़ की चोरी से मुनाफा होने लगा या कहे तो जिस प्रकार शेर के दांत में खून लग जाए तो वह मांस नहीं छोड़ता कुछ इसी प्रकार इन क्षेत्रों में आने वाले पुलिसकर्मियों के भी दांत में कबाड़ से आने वाले पैसे की लत लग गई और जमकर कबाड़ चोरी हुआ बिका और कबाड़ीयों की संपत्ति बढ़ती चली गई, वही पुलिस कर्मियों को भी लाभ हुआ। पुलिसकर्मी भी अपने लाभ के लिए सारी सीमाएं पार कर दिए।
पुलिस पर कैसे करें भरोसा?
यह सवाल एक तत्कालिक मामले से उठता है यह मामला है 3 दिन पहले का जहां एक सज्जन व्यक्ति जो नए एसपी के आने पर एक नागरिक होने का फर्ज निभाता हुआ गलत गतिविधियों की जानकारी देता है वह जानकारी यह है की कबाड़ की गाड़ी लोड हो रही थी और यह बात उस व्यक्ति को पता चल गई और वह व्यक्ति यह जानकारी पुलिस महानिरीक्षक से लेकर पुलिस अधीक्षक तक उनके व्हाट्सएप पर संदेश भेज दिया, जिसके बाद जानकारी देने वाले सज्जन का नाम गोपनीय रखते हुए पुलिस को उस पर कार्यवाही करनी चाहिए थी, पर पुलिस कार्यवाही करने के लिए भी उसी को भेज दिया जो खुद उस थाने के इंचार्ज है और वह वहां पहुंचते हैं और वहां पर लोड हो रही गाडि़यों को हटवा देते हैं और सूचना देने वाले को को फोन लगाते हैं और बताते हैं कि वह स्क्रैप वाली गाडि़यां थी, जिसमें एसईसीएल का माल लोड हो रहा था पर सवाल यह है कि जब यदि माल स्क्रैप का था तो फिर वह ट्रक को वहां से हटाने की क्या जरूरत थी? जब नियम से कबाड़ का माल जा रहा था तो उसे लोड होकर जाने दिया होता, उसके बाद उस थाने के इंचार्ज महोदय ने उस व्यक्ति को कहा कि तुम एसपी साहब को फोन लगा कर कहो कि वह माल कबाड़ी का नहीं था, बल्कि स्क्रैप था जो एसईसीएल भेज रही है, अब इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है की पुलिस की मुखबिरी करे तो करे कौन? जिसने सूचना दिया उसके पास कबाड़ीयो को फोन आने लगा की हमसे क्या दिक्कत है? पर कबाड़ीयो के सवाल में उनके लिए भी एक सवाल है कि आखिर आपको चोरी का कबाड़ बेचने की क्या जरूरत है? दैनिक घटती-घटना इस खबर के माध्यम से अधिकारियों को यह बताना चाहता है की पुलिस पर लोगों का भरोसा बना रहे ना कि पुलिस से भरोसा लोगों का खत्म हो जाए।
एमसीबी में ऐसे ऐसे थानेदार हैं जो अपने अधिकारियों को ही ब्लैकमेल करते हैं
विशेष सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार घटना भले ही मार्च 2023 की है पर इस घटना से अधिकारियों को भी सचेत होने की जरूरत है जानकारी के अनुसार थानेदार साहब अपने घरेलू कार्यक्रम में गए हुए थे इस बीच कुछ ईमानदार अधिकारियों को कबाड़ के संबंधित जानकारी मिली जिस पर उन्होंने छापा मारने का प्रयास किया पर कबाड़ी के गोदाम का गेट इतना बड़ा था कि वह ना तो खुला और ना ही वह तोड़ पाए, जैसे ही यह बात उस थानेदार को पता चली जो खुद कबाड़ी को संरक्षण दे रहा था, उसने उस दिन का कबाड़ी के गोदाम के सीसीटीवी का डीवीआर अपने एक प्रधान आरक्षक को भेजकर मंगा लिया, और फिर अपने ही अधिकारियों को उस डीवीआर से उनकी वीडियो निकालकर ब्लैकमेल करने लगा, बस अधिकारियों की एक छोटी सी भूल थी कि उन्हें दरवाजा तोड़कर कार्यवाही कर देनी थी पर उन्होंने दरवाजा तोड़ने का जोखिम नहीं लिया और वह वहां से खाली हाथ वापस लौट आए, दरवाजा तो खुलवाने का प्रयास किया अथवा खुलवाने के प्रयास में गाली गलौज भी थोड़ी करते दिखे, अब यह कमी को थाना प्रभारी भुनाने लगे और अधिकारी को ही ब्लैकमेल करने लगे, इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो पता नहीं पर यदि यह बात सच्ची है तो आप सोच सकते हैं कि थाना प्रभारी किस स्तर के होंगे। दैनिक घटती घटना इस जानकारी को अपने सूत्रों के हवाले से प्राप्त की है पर हम इसकी पुष्टि नहीं करते।
अवैध कारोबार को बंद कराने नव पदस्थ पुलिस अधीक्षक को मानना होगा आईजी सरगुजा का निर्देश
क्षेत्र में अवैध कारोबार बंद हो और पूरी तरह से बंद हो इसके लिए पुलिस अधिक्षक महोदय को आईजी सरगुजा का निर्देश मानना होगा। आईजी सरगुजा फिलहाल अवैध कारोबार के मामले में सख्त बने हुए हैं और वह अवैध कारोबार पूरी तरह बंद हो इसके लिए सभी जिले के पुलिस अधीक्षकों को निर्देशित भी कर चुके हैं। नवीन जिले में एसईसीएल से कोयला और कबाड़ का बड़े स्तर पर अवैध कारोबार होता है और यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है और आज तक जो देखने को मिला है उसके अनुसार पुलिस भी पूरी तरह अवैध कारोबार रोक पाने में असफल ही रही है या यह कहें की अवैध कारोबार पर असर ही नहीं डाल पाई है पुलिस तो यह भी कहना गलत नहीं होगा। अब देखना यह है की कैसे नए पुलिस अधीक्षक अवैध कारोबार पर अंकुश लगा पाते हैं और किस तरह वह अवैध कारोबारियों पर नकेल कसते हैं।
क्या नए पुलिस अधीक्षक अपने पुलिसकर्मी की बिना नम्बर वाले वाहन की जांच कराएंगे?
एमसीबी जिले ने मनेन्द्रगढ़ शहर में एक पदस्थ पुलिसकर्मी जिनके पास बिना नंबर वाली लाल कर है जिसका पेपर तक नहीं है ऐसी जानकारी मिल रही है, यह वाहन लंबे समय से बिना नंबर प्लेट व बिना नंबर के शहर में दौड़ रही है पर इस वाहन में एक बहुत खास बात है कि नंबर प्लेट तो नहीं है पर सामने पुलिस की टोपी रखी रहती है, क्या इस वजह से वहां के पुलिसकर्मी उस वाहन की जांच नहीं करते या फिर जिसकी वाहन है उसे नंबर प्लेट लगाने के लिए अनिवार्यता नहीं है? और क्या इसीलिए कार्यवाही नहीं की जाती? आखिर वजह क्या है कि यह वाहन बिना नंबर के शहर में दौड़ रही है? सूत्र यह बता रहे हैं कि यह वाहन एक पुलिस वाले की है जिसमें पुलिस की टोपी सामने रखी रहती है यही वजह है कि कोई भी इस वाहन को नहीं रोकता पर जानते सभी हैं कि यह वाहन किसकी है, इस वाहन में पुलिस वाले के परिवार सहित पुलिस वाले स्वयं इस वाहन का उपयोग करते है पर वाहन में ना तो नंबर प्लेट होता है और ना ही उसमें नंबर लिखा होता है, अब ऐसे में सवाल यह उठता है क्या पुलिस वाले के लिए संविधान अलग बना हुआ है? उनके लिए नियम अलग बने हुए हैं कि उन्हें बिना नंबर वाली गाड़ी ही चलानी है? या फिर उस गाड़ी में चलने के लिए नंबर की जरूरत नहीं है? इसके लिए क्या कोई ऊपर से ही आदेश आया हुआ है? अब ऐसे में इस वाहन की जांच होनी चाहिए कि यह वाहन में नंबर क्यों नहीं है? यह बिना नंबर प्लेट के क्यों शहर में दौड़ रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि यह वाहन बिना रजिस्ट्रेशन वाली है और इसके पीछे कोई बड़ी वजह है? दैनिक घटती-घटना पुलिस अधीक्षक से इस खबर के माध्यम से एक पर फिर अपील करता है कि इस बिना नंबर प्लेट वाली वाहन की जांच करें ताकि इसकी सत्यता सबके सामने आ सके कि आखिर यह वाहन बिना नंबर प्लेट के शहर में क्यों दौड़ती है? या वाहन चोरी की तो नहीं है या फिर कोई कबाड़ी वाहन दिया है?