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बैकुण्ठपुर/सूरजपुर@जमीन का रकबा घटा बढ़ाकर धान बेचने मामले में जिस नायब तहसीलदार की भूमिका थी संदिग्ध..जांच होने के बजाय प्रमोशन देकर बनाया गया तहसीलदार

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नायब तहसीलदार रहते हुए खूब की मनमानी,जिसका मिला बड़ा ईनाम,अब क्या तहसीलदार बनकर कोरिया की तरह सूरजपुर में भी करेंगे मनमानी?
सूरजपुर कलेक्टर को उनके यहां गए तहसीलदार पर देना होगा विशेष ध्यान,नहीं तो उनके क्षेत्र की जनता भी होगी परेशान
पटना नायब तहसीलदार को पद से पृथक कर इन पर जहां विभागीय जांच बैठानी थी वहां पर सिर्फ कारण बताओ नोटिस जारी हुआ था
कारण बताओ नोटिश देकर उन्हें कार्यवाही से बचाया जा गया था
पटना तत्कालीन नायब तहसीलदार की कार्यप्रणाली सबसे निम्न स्तर की थी जो आज भी चर्चा का विषय है
तत्कालीन नायब तहसीलदार के आईडी से घटता व बढ़ता रहा रकबा फिर भी तहसीलदार अनजान थे कैसे?
किसान से धोखाधड़ी करने वाले तीन आरोपियों पर केस दर्ज,जिस आईडी से हुआ हेरफेर वह आईडी थी तहसीलदार की:सूत्र
तहसील कार्यालय में तहसीलदार अनाधिकृत व्यक्ति को निजी तनख्वाह पर रख करते हैं इतना भरोसा कि अपनी आईडी तक दे देते
क्या अपनी आईडी किसी अनाधिकृत व्यक्ति को देना उचित,कहीं तत्कालीन नायब तहसीलदार भी तो इसमें नहीं थे शामिल?
किसान ने तहसील कार्यालय के कर्मचारियों से मिलकर रकबा परिवर्तन कर लाखों का लाभ लिया,तत्कालीन नायब तहसीलदार की भूमिका संदिग्ध
राजस्व विभाग का सारा दारोमदार होता है तहसीलदार पर,व्यक्तिगत आईडी का गैर जिम्मेदार व्यक्ति के पास पाया जाना बनाता था मामले को संदिग्ध

रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर/सूरजपुर 29 अप्रैल 2023 (घटती-घटना)।
राजस्व मामले में लोगों को परेशान करने वाले को आखिर कैसे मिल जाता है प्रमोशन एवं मनचाहे जगह पोस्टिंग? यह सवाल इस समय इसलिए उत्पन्न हो रही है, क्योंकि हाल ही में राज्य सरकार द्वारा राजस्व विभाग के तहसीलदारों का प्रमोशन लिस्ट व ट्रांसफर लिस्ट निकाला गया है। अब उसमें सूची में एक ऐसे नायब तहसीलदार का नाम है, जो पटना नायब तहसील कार्यालय में पदस्थ अपने कार्यकाल के दौरान उनके आईडी से रकबा घटा बढ़ाकर धान बेचा गया, जिसमें अपराध भी पंजीबद्ध हुआ, पर वही नायब तहसीलदार ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया की आईडी तो कर्मचारी के पास थी और उसने मुझे बिना जानकारी दिए यह सब किया है और वह इस मामले से बचकर निकलने का पूरा प्रयास किये। पर सवाल वही है कि जब आईडी इनकी थी तो जांच की आंच इन तक क्यों नहीं पहुंची? आखिर उस मामले के बाद 27 अप्रैल को आदेश जारी हुआ जिसमें अब यह नायाब तहसीलदार, तहसीलदार हो गए हैं, और अब अपनी सेवाएं सूरजपुर में देंगे। ऐसे में सवाल यह उठता है जहां पर उस मामले में इन पर विभागीय जांच होनी थी, वहां पर सारी चीजों को नजरअंदाज करते हुए इन्हें उस मामले के बदले में इनाम स्वरूप प्रमोशन देकर नायब तहसीलदार से तहसीलदार बना दिया गया। अब क्या तहसीलदार साहब सूरजपुर में भी जाकर वैसे ही मनमानी चलाएंगे जैसा वह पटना उप तहसील कार्यालय में चला रहे थे।
होनी थी विभागीय जांच परंतु पदोन्नति देकर किया गया उपकृत
विगत वर्ष धान खरीदी के समय उप तहसील पटना के नायब तहसीलदार की आईडी से किसानों के रकबा को अवैध तरीके से बढ़ाकर धान बिक्री का मामला सामने आया था। जिसमें अपराध पंजीबद्ध हुआ था। क्योंकि यह कृत्य नायब तहसीलदार की आईडी से हुआ था, अतः पूरी जवाबदारी और जवाबदेही भी नायाब तहसीलदार की थी, और यह कोई पहला कृत्य नहीं अपितु दुहराव का मामला था। मामले में एफ आई आर दर्ज हुई और जिन कृषकों के रकबे में बढ़ोतरी की गई थी, उन्हें उच्च न्यायालय से जमानत लेनी पड़ी। परंतु रकबे में परिवर्तन के जो मूल कारण थे, उन पर न तो कोई आंच आई, ना ही कोई विभागीय जांच हुई। नायब तहसीलदार महोदय यह कह कर बच निकले की उनकी आईडी उनके अधीनस्थ कार्य कर रहे ऐसे कर्मचारी के पास थी, जो शासकीय भी नहीं है। जिसे तहसीलदार साहब ने व्यवस्था के तहत अपने अधीनस्थ रखे काम पर रखा था। मामले में बड़ा सवाल यह भी है कि यदि आईडी अधीनस्थ कर्मचारी के पास थी और उसने नायब तहसीलदार की जानकारी के बगैर अगर रखने में हेरफेर की गड़बड़ी की तो उसके विरुद्ध भी एफआईआर क्यों नहीं दर्ज हुई? और सबसे बड़ा बात यह है कि अवैधानिक तरीके से अपनी आईडी गैर शासकीय कर्मचारी को देना कहां तक उचित है? क्योंकि नायब तहसीलदार की आईडी से हजारों किसानों के राजस्व का मामला जुड़ा रहता है, इतने बड़े मामले में जहां एफ आई आर दर्ज होनी चाहिए थी, विभागीय जांच होनी चाहिए थी, वहीं पदोन्नति देकर उपकृत करना कहां तक जायज है।
अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए सिर्फ नोटिस जारी
ज्ञात हो की कोरिया जिले के कलेक्टर ने आज राजस्व मामलों में लापरवाही करने पर दो तहसीलदारों को अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए नोटिस जारी कर दिया है वहीं, एक पटवारी को निलंबित कर दिया है। कलेक्टर विनय कुमार लंगेह की अध्यक्षता में आज राजस्व अधिकारियों की बैठक हुई बैठक में कलेक्टर ने राजस्व से संबंधित विभिन्न प्रकरणों, अविवादित व विवादित नामांतरण, बंटवारा, सीमांकन, व्यपवर्तन के प्रकरणों की समीक्षा करते हुए प्रगति की जानकारी ली इस दौरान तहसील बैकुंठपुर और पटना में संतोषजनक प्रगति ना पाए जाने पर कलेक्टर द्वारा तहसीलदार बैकुंठपुर और प्रभारी तहसीलदार पटना को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है एक पटवारी को सस्पेंड करने के साथ ही विभागीय जांच के आदेश दिए। मौजूदा कार्यवाही को देखते हुए एक सवाल भी उत्पन्न हो रहा है कि आखिर पटना तहसीलदार पर मेहरबानी क्यों? जहां पर इनके खिलाफ कई गंभीर शिकायतें हैं वहीं इन्हीं के कार्यकाल में इनकी आईडी से जमीन की हेराफेरी का मामला भी सामने आया था उसके बावजूद इन्हें जिसके खिलाफ पर शिकायत कर एफआईआर पंजीबद्ध करा बचना चाह उसी को तहसील कार्यलय में बुलाकर काम भी कराते हैं फिर भी इनके ऊपर कार्यवाही नहीं की जाती क्यों? कार्यवाही हुई भी तो सिर्फ दिखावा, जबकि इनका भी वेतन रोक कर इन पर विभागीय जांच बैठाना था वह भी जमीन रकबा घटाने बढ़ाने वाले मामले में पर ऐसा करना उच्च अधिकारियों ने उचित नहीं समझा आखिर इसकी वजह क्या है या फिर इन्हें बचाने का पूरा प्रयास हो रहा है? इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता।
नायब तत्कालीन तहसीलदार के कार्यकाल में आम जनता थी परेशान, अब तहसीलदार बनने पर क्या होगा जनता का?
पटना उप तहसील में तत्कालीन नायब तहसीलदार के कार्यकाल में आम जनता थी परेशान नकल लेने तक के लिए लगाने पड़ते थे तहसील कार्यालय के चक्कर और महीनों तक नहीं मिल पाता था नकल, ऐसे तमाम तरीके के मामलों में आम जनता तत्कालीन नायब तहसीलदार से इस कदर परेशान थे कि उनके जाने की विनती किया करती थी, पटना उप तहसील में अभी तक कई तहसीलदार आए व गए पर इतनी परेशानी किसी से नहीं थी जितने की तत्कालीन नायब तहसीलदार से लोगों को हुई, उनके जाने के बाद लोगों में हर्ष व्याप्त था पर अब सवाल यह है कि जिस कदर उप तहसील कार्यालय में लोग परेशान थे क्या इसी प्रकार सूरजपुर में पदोन्नत होकर तहसीलदार बनने के बाद गए तहसीलदार वहां के लोगों को भी उसी कदर परेशान करेंगे? क्या वहां पर भी उन्हें मनचाहा तहसील कार्यालय मिलेगा? क्योंकि उनकी पत्नी उनसे ऊंचे पद पर कोरिया में पदस्थ है उन्हीं के मेहरबानी से अभी तक तत्कालीन नायब तहसीलदार कई मामलों में बचते भी आए।
पटना के पूर्व नायब तहसीलदार आरोपी से ही ले रहें हैं तहसील कार्यालय में कार्य
पटना में पदस्थ तहसीलदार तहसील कार्यालय में ही गड़बड़ी करने वाले आरोपी को तहसील में बुलाकर काम ले रहें हैं जिसके ऊपर यह आरोप है की उसने तहसीलदार की आईडी से रकबा बढ़ाकर किसी को फायदा पहुंचाने की कोशिश की थी, मामला संज्ञान में लाने के बाद तहसीलदार ने ही उक्त युवक के विरुद्ध एफ आई आर दर्ज कराई थी और जिसमे कोई कार्यवाही होने से पहले ही उसे तहसील में बुलाकर पुनः उससे काम लेना उन्होंने शुरू कर दिया जबकि मामले में उसकी गिरफ्तारी की जानी चाहिए थी और स्वयं तहसीलदार को पुलिस की इसमें मदद करनी थी।
तहसील कार्यालय दलालों का बना हुआ है अड्डा
पटना उप तहसील वर्तमान में दलालों का अड्डा बना हुआ है यह कहना भी गलत नहीं होगा। तहसील कार्यालय में हर काम का मूल्य तय है और किसी भी मामले में दलालों के माध्यम से ही काम होना संभव हो पा रहा है जिससे तहसील आने वालों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और बिना दलालों के उनका काम नहीं होता। दलाल भी अपनी पैनी नजर तहसील आने वालो पर बनाए रहते हैं और हर तहसील आने वाले को मूल्य बताते है।
यह था मामला
कोरिया जिले में एक गजब का मामला सामने आया है। यह मामला पटना तहसील व पटना धान खरीदी केंद्र से जुड़ा हुआ है। जहां पर एक किसान धान बेचने के लिए तहसील कार्यालय से जमीन का रकबा बढ़वाता था और फिर धान बेचने के बाद राशि आहरण कर उस रकबा को कम करवा देता था। यह खेल कब से चल रहा है, यह तो जांच का विषय है। परंतु ऐसा करके किसान ने काफी राशि का लाभ अर्जन किया। संदेह होने पर जब मामले की जांच की गई तो जांच में यह पाया गया कि उक्त किसान अन्य व्यक्तियों के रकबे को अपने खाते में शामिल करा कर समिति में धान बेचता था, एवं राशि आहरण पश्चात अपने रकबे को मूल रूप से परिवर्तित करा लेता था। चूंकि समिति में पंजीकृत किसानों के रकबे में परिवर्तन तत्संबंधित तहसीलदार की आईडी से ही संभव होता है, अतः कहीं ना कहीं पूरे मामले में संबंधित तहसीलदार एवं वहां कार्यरत कर्मचारियों की भूमिका भी संदेहास्पद है। बगैर मिलीभगत के रकबा में परिवर्तन का यह खेल संभव नहीं है। इस पूरे मामले में सहकारी समिति के कर्मचारियों की भूमिका भी संदिग्ध है, क्योंकि रकबे के पंजीयन की कार्यवाही वहीं से प्रारंभ होती है।


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