- प्रधान पाठक पदोन्नति मामले में संयुक्त संचालक सरगुजा कार्यालय की भूमिका संदिग्ध
- प्रधान पाठक पदोन्नति मामले में संयुक्त संचालक सरगुजा द्वारा सूची स्वयं जारी ना कर लॉकों को भेजी गई सूची
- प्रधानपाठक पदोन्नति पदांकन में भ्रष्टाचार का खेल अभी बाकी है
- काउंसलिंग और पदांकन के पश्चात आपसी सामंजस्य से संशोधन के बहाने खेला जा सकता है बड़ा खेल
- मनचाहे स्थान पर पद लेने की कवायद से सेटिंग वाले शिक्षकों से ही छनकर आ रही खबर
- क्या संभाग स्तर पर सूची जारी करने से खुल सकती थी सयुक्त संचालक कार्यालय की पोल?
- खबरों में पदोन्नति की अनियमितता छपने पर संयुक्त संचालक कार्यालय ने नहीं जारी की पदोन्नति सूची,लॉक स्तर पर भेज सूची
- शिक्षक संघों की भूमिका ताली पीटने वाली,साथियों पर हुई गलत कार्यवाही का विरोध करने की बजाए शिक्षक संघ संयुक्त संचालक को पहना रहे फूलमाला
–रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर 27 अप्रैल 2023 (घटती-घटना)। एक मशहूर फिल्म का विख्यात डायलॉग है कि जब तक अंत खुशी-खुशी ना हो अर्थात हैप्पी एंडिंग ना हो तो पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। कुछ ऐसा ही हाल सरगुजा संभाग में माध्यमिक शाला प्रधान पाठक एवं शिक्षकों की पदोन्नति से जुड़े मामले में हुआ है, जिस पर प्रक्रिया के पूर्व ही दैनिक घटती-घटना ने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की आशंका जाहिर की थी और शिक्षकों से लाखों की वसूली संबंधित खबर प्रकाशित की थी। बाद में मंत्रालय से काउंसलिंग प्रक्रिया के बाद शिक्षक और प्रधान पाठक पदोन्नति प्रक्रिया को संचालित करने का निर्देश आया, तब यह माना जा रहा था कि सब कुछ पारदर्शी होगा,परंतु खिलाडि़यों के खेल निराले हैं और इतने इनोवेशन और नए नए इजाद तरीकों की खोज तो वैज्ञानिक भी नहीं कर पाते जितने तरीकों से भ्रष्टाचार का खेल कार्यालयों में खेला जाता है पूरी काउंसलिंग प्रक्रिया के दौरान शिक्षकों से मनचाहे स्थान पर पदस्थापना के लिए लाखों की वसूली की गई। जिन शिक्षकों ने लाखों रुपए खर्च किए, उनके लिए पदों को आरक्षित रखा गया तथा काउंसलिंग प्रक्रिया के दौरान वरिष्ठ शिक्षक जो इन स्थानों के हकदार थे, उन्हें इन स्थानों को या तो भरा हुआ दिखाया गया या तो प्रदर्शित ही नहीं किया गया। जिसके कारण वरिष्ठ शिक्षकों को या तो पदोन्नति छोड़नी पड़ी अन्यथा दूरस्थ स्थानों में विकल्प पत्र भरना पड़ा।
ज्ञात हो की सेटिंग वाले लेनदेन करने वाले शिक्षकों को विलोपित किए गए स्थानों को देने की तैयारी थी परंतु अतिउत्साह ने सोशल मीडिया में बधाई संदेश के फलस्वरुप सारे मामले का पर्दाफाश कर दिया जिसकी शिकायत शिक्षकों द्वारा संयुक्त संचालक कार्यालय में की गई। मामले में काफी हंगामा भी हुआ, संयुक्त संचालक महोदय का मामले से संबंधित अभद्रता से पेश आने वाला वीडियो भी सोशल मीडिया की सुर्खियां बना। एक बार पुनः शिक्षकों को उम्मीद जगी कि शायद मामले की इतनी गहमागहमी के बाद विधिवत जांच होगी और जिन्होंने भ्रष्टाचार का यह खेल खेला उनके विरुद्ध कार्यवाही होगी परंतु विगत दिवस पदोन्नति संबंधी आदेश जारी होने के बाद एक नए तरीके का खेल सामने आ रहा है जिसकी जानकारी और पुष्टि उन शिक्षकों के द्वारा ही की जा रही है जो इस खेल में पैसा देने के बाद मनचाहा पदस्थापना स्थल पाने को आतुर हैं चुंकि शिकायत होने के बाद जिन शिक्षकों से पैसे की उगाही की गई थी या जिन शिक्षकों ने लाखों रुपए वारे न्यारे किए थे, उन्हें पदोन्नति आदेश में सीधे तौर पर तो मनचाहा स्थल नहीं प्रदान किया गया, परंतु आपसी सामंजस्य के जरिए संशोधन का बड़ा खेल खेले जाने की संभावना है जिसकी सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है, मामले को समझने और संशोधन के खेल की प्रक्रिया को जानने के लिए आप इन दो उदाहरण को समझिए।
उदाहरण न.1
सुरेश कुमार कुशवाहा जिनकी पदोन्नति प्रधान पाठक पद पर माध्यमिक शाला तरका विकासखंड भैयाथान में की गई है काउंसलिंग के दिन इनका नाम पुकारे जाने पर यह काउंसलिंग प्रक्रिया से अनुपस्थित थे शाम होते होते सोशल मीडिया में इनके नाम के आगे प्रधान पाठक माध्यमिक शाला बरदिया बनने पर हार्दिक बधाई का पोस्ट प्रसारित होने लगा अब पदोन्नति आदेश में इन्हें माध्यमिक शाला तरका विकासखंड भैयाथान जिला सूरजपुर प्रदान किया गया है वहीं रामकुमार सिंह जिन्होंने माध्यमिक शाला तरका के लिए अपनी सहमति दिया था, उन्हें माध्यमिक शाला बरदिया विकासखंड बैकुंठपुर जिला कोरिया का प्रधान पाठक बनाया गया है चुंकि राम कुमार सिंह माध्यमिक शाला तरका के एवं सुरेश कुशवाहा माध्यमिक शाला बरदिया के आसपास के निवासी हैं अतः सेटिंग के जरिए इन्हें अपने आसपास पदोन्नति ना देकर इनके सेटिंग वाले विकल्पों को आपस में प्रदान किया गया है, ताकि आपसी सामंजस्य के जरिए इन्हें आसानी से एक दूसरे के विद्यालयों में संशोधित किया जा सके ज्ञातव्य हो कि इनकी नामजद शिकायत की गई थी। अब यदि इन दोनो का आपसी संशोधन होता है तो यह तय है की संयुक्त संचालक कार्यालय की भूमिका संदिग्ध है और लेनदेन हुआ है।
उदाहरण न.2
दूसरे केस में शिवकुमार कुशवाहा जो भैयाथान विकासखंड क्षेत्र से हैं, और काउंसलिंग प्रक्रिया के दरमियान इनकी सहमति माध्यमिक शाला झिलमिली विकासखंड भैयाथान के लिए बनी थी तथा हरवंश साहू जो बैकुंठपुर विकासखंड से है, और सोशल मीडिया के बधाई संदेशों के अनुसार इनकी सेटिंग माध्यमिक शाला खोंड विकासखंड बैकुंठपुर के लिए बनी थी क्योंकि हंगामे के बाद नामजद शिकायत हुआ था कि कनिष्ठ होते हुए भी इन्हें निकटतम विद्यालय कैसे प्रदान किया जा रहा है, अतः इन्हें सीधे तौर पर इनके सेटिंग वाले विद्यालयों के लिए तो पदोन्नति आदेश नहीं जारी किया गया, परंतु तरीका कुछ ऐसा बैठाया गया ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे की तर्ज पर शिवकुमार कुशवाहा को माध्यमिक शाला खोङ विकासखंड बैकुंठपुर तथा हरवंश साहू को माध्यमिक शाला झिलमिली विकासखंड भैयाथान में पदस्थापना दी गई है सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार और इन्हीं शिक्षकों के बीच से छनकर आ रही खबरों के मुताबिक इन्हें आशान्वित किया गया है कि दो चार दिनों के भीतर आपसी सामंजस्य के जरिए इनकी पदस्थापना स्थल एक दूसरे से बदलकर संशोधित की जाएगी।
संशोधन हुआ तो हो जाएगी पुष्टि
यदि एक-दो दिनों में पदस्थापना स्थल का संशोधन होता है और जैसा कि सूत्रों से जानकारी प्राप्त हुई है, यदि उपरोक्त दो प्रकरणों के अनुसार कार्यवाही होती है, तो यकीन मानिए सीधे तौर पर भ्रष्टाचार ना कर पाने के एवज में वसूली किए गए शिक्षकों को संतुष्ट करने का यह एक नायाब तरीका है। जिसकी भनक आम शिक्षक और शिकायतकर्ता तक कभी लग ही नहीं पाएगी, क्योंकि पृथक पृथक आदेश प्रसारित होने की दशा में शिक्षकों को एक दूसरे की जानकारी लग पाना टेढ़ी खीर है। जिन जिन शिक्षकों ने रुपयों के लेन-देन के जरिए पदस्थापना स्थल के लिए अपनी सेटिंग की थी, उन सारे शिक्षकों के साथ इसी प्रकार का पदोन्नति आदेश जारी किया गया है वर्तमान पदोन्नति आदेश से जिन शिक्षकों को सैकड़ों किलोमीटर दूर पदस्थापना स्थल मिला भी है, उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं है और वे यह कहते सुने जा रहे हैं कि बस दो-चार दिनों की बात है और संशोधन आदेश पारित होते ही वे अपने मनचाहे विद्यालयों में पदस्थ हो जाएंगे। गौरतलब है कि पदोन्नति प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद समस्त प्रक्रिया से संबंधित दस्तावेज उच्च कार्यालयों को तो प्रेषित किए जाते हैं, परंतु संशोधन जैसे दस्तावेजों की जानकारी उच्च कार्यालयों में प्रेषित नहीं की जाती, जिससे उच्च अधिकारियों को इस प्रकार के कृत्यों की जानकारी नहीं हो पाती है और भ्रष्टाचार का यह खेल बड़ी आसानी से चलता रहता है। संज्ञान में आने के बाद जिन भ्रष्टाचार कृत्यों को सीधे तौर पर आदेश प्रसारित कर नहीं किया जा सका, उन्हें संशोधन आदेश के जरिए पूर्ण करने की अपुष्ट खबर सूत्रों द्वारा प्राप्त हो रही है। उपरोक्त दोनों केस पदोन्नति प्रक्रिया में की गई धांधली के बानगी मात्र है यदि आदेशों और वरिष्ठता सूची का अवलोकन किया जाए तो सैकड़ों मामले सामने आ सकते हैं।
क्या पदोनत्त में भ्रष्टाचार करने न्यायालय से अपने तबादले पर स्थगन ले रखे थे संयुक्त संचालक?
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरगुजा शिक्षा विभाग के संयुक्त संचालक का स्थानांतरण हो चुका था पर उन्हें उन्हें पता था कि पदोन्नति होनी है क्या इस वजह से वह न्यायालय जाकर अपने स्थानतरण पर रोक ले आए थे? जिसके बाद अब जब पदोन्नति में भ्रष्टाचार का आरोप लगने लगा है तो उनके स्थानांतरण से भी पूरे बातों को जोड़कर देखा जा रहा है वहीं सूत्रों का यह भी कहना है अब पदोन्नति हो गई है पूरा खेल हो चुका है अब यह सरगुजा संभाग से चले जाएंगे क्योंकि रोक 30 अप्रैल तक के लिए ही लगी थी, क्या यह रोक ही पदोन्नति में भ्रष्टाचार करने के लिए लिया गया था? यह एक बड़ा सवाल है, सरगुजा शिक्षा विभाग के संयुक्त संचालक अपने ही तबादला आदेश पर न्यायालय से स्थगन ले रखे थे, पूरे पदोन्नति प्रक्रिया में संयुक्त संचालक की भूमिका पूरी तरह संदिग्ध रही और यह स्पष्ट रूप से देखने को मिला की उन्होंने पूरी प्रक्रिया में जमकर भ्रष्टाचार किया जो संशोधन प्रक्रिया के बाद स्पष्ट रूप से खुलकर सामने आएगा। संशोधन करके करोड़ों का लेनदेन पूरा होगा और भ्रष्टाचार को अमली जामा पहनाया जायेगा यह तय ही नजर आ रहा है। संयुक्त संचालक के बारे में यह बताया जा रहा है की अपने ही तबादला आदेश को वह केवल इसलिए न्यायालय जाकर रुकवाने में सफलता हासिल किए क्योंकि उन्हें पदोन्नति में करोड़ों का लाभ हो सके, अब जैसा माना जा रहा है की संशोधन का खेल पूरा कर वह स्वयं अन्यत्र चले जाएंगे जिससे आने वाले समय पर उनपर आंच न आए।
पदोन्नति में पूरा खेल रचकर अब क्या अपने आप को पाक साफ बताना चाहते हैं संयुक्त संचालक?
पदोन्नति मामले में संयुक्त संचालक ने बड़ी ही चालाकी से खेल रचा और उन्होंने कुछ चुनिंदा सीटों पर जिनपर पोस्टिंग की चाह रखने वालों की संख्या ज्यादा थी पर सेटिंग की गई और लेनदेन तय किया गया। कुछ सीटों पर तो बिना किसी विवाद पोस्टिंग हो भी गई और विरोध को डरा धमकाकर कुचल भी दिया गया लेकिन बैकुंठपुर मामले में विरोध जब खुलकर सामने आ गया और कार्यालय सहित अधिकारियों की चोरी पकड़ी जानी तय हो गई तब संयुक्त संचालक ने बड़ी चालाकी दिखाई और जिन्हे भी पैसों के बल पर मनचाही पोस्टिंग दी जाने वाली थी उनमें में से कुछ की पोस्टिंग बदल दी गई और उन्हे अलग अलग ब्लॉक में भेजा गया साथ ही उन ब्लॉकों के लोगों को बैकुंठपुर ब्लॉक में पोस्टिंग दी गई जिससे बाद आपसी संशोधन दिखाकर मनचाही पोस्टिंग में बदला जा सके और लेनदेन पूरा किया जा सके। वैसे कुछ को जिनकी पोस्टिंग कनिष्ठ होकर भी ब्लॉक में ही हुई है की पोस्टिंग नहीं बदली गई है और वह अपनी मनचाही पोस्टिंग पैसों में दम पर पा चुके हैं ने कार्यभार भी ग्रहण कर लिया है। अब आपसी सहमति के आधार पर कुछ का संशोधन होगा और भ्रष्टाचार का पूरा खेल पूरा किया जाएगा। कई विद्यालयों में जहां कनिष्ठ की पोस्टिंग हुई है और वही विद्यालय वरिष्ठ को नहीं मिल सके हैं मामले में शिक्षक न्यायालय की शरण में जाने की तैयारी में हैं और ऐसे विद्यालय और शिक्षकों की संख्या कम नहीं है वहीं भ्रष्टाचार का खेल खेलकर भी गलत होकर भी गलत होने का आरोप लगाने वाले दो शिक्षकों को निलंबित कर संयुक्त संचालक खुद को पाक साफ बताने की कोशिश कर रहें हैं और खुद से ही प्रेस विज्ञप्ति जारी कर खुद की वाहवाही प्रकाशित करा रहें हैं,जबकि पोस्टिंग में हुआ खेल जगजाहिर हो चुका है।
जिन स्थानों को काउंसलिंग प्रक्रिया में रखा गया था विलोपित,वहां भी हुआ पदोन्नति आदेश जारी
पूरी काउंसलिंग प्रक्रिया पर सवालिया निशान इसलिए भी उठता है कि जब पदोन्नति की प्रक्रिया चल रही थी, तो कई सारे विद्यालयों को प्रक्रिया के दरमियान रिक्त पदों की सूची में नहीं रखा गया था, अथवा शिक्षकों के समक्ष विकल्प पत्र भरने के दौरान इन विद्यालयों को प्रदर्शित नहीं किया गया था। आज आदेश जारी होने के पश्चात इन विद्यालयों में भी प्रधान पाठकों की पदोन्नति की गई है। जब इन विद्यालयों को पदोन्नति प्रक्रिया में नियमानुसार शामिल ही नहीं किया गया तो इन स्थानों पर पदोन्नति आदेश जारी करना किसी बड़े खेल की ओर इशारा करता है। जब इन विद्यालयों में पद रिक्त था तो इन्हें प्रदर्शित क्यों नहीं किया गया और जब इनमें पद रिक्त नहीं था तो इन विद्यालयों में पदस्थापना कैसे की गई, इन विद्यालयों में बैकुंठपुर लॉक के ही खांडा,भांडी,जैसे विद्यालय भी शामिल हैं,यह एक बड़ा सवाल है। जो भ्रष्टाचार की खबरों की पुष्टि करता है।
कैसे काउंसलिंग प्रक्रिया में अनुपस्थित शिक्षकों को मिली पदोन्नति आदेश?
काउंसलिंग की प्रक्रिया के दौरान सैकड़ों ऐसे शिक्षक जिन्होंने लाखों रुपए के लेन-देन के जरिए मनमाने विकल्प का चयन कर लिया था, उन्हें स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि वे काउंसलिंग प्रक्रिया के दरमियान अनुपस्थित रहें और उनसे विकल्प पत्र गोपनीयता के साथ भरवा लिया जाएगा। जब पूरी प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे और शिकायतें दर्ज हुई, हंगामे के बाद जारी आदेश में उन शिक्षकों के लिए भी पदोन्नति आदेश जारी किया गया, जो काउंसलिंग प्रक्रिया के दौरान अनुपस्थित थे या जिनका विकल्प पत्र काउंसलिंग प्रक्रिया के पूर्व अथवा बाद में भरवाया गया। नियमानुसार होना यह चाहिए था कि काउंसलिंग प्रक्रिया में जो शिक्षक अनुपस्थित पाए गए उन्हें पदोन्नति से वंचित रखा जाना चाहिए था। परंतु उन्हें दूर विद्यालयों या दूसरे विकासखंड और जिलों में पदस्थापना का आदेश प्रसारित करना इस बात को बल देता है कि बड़े पैमाने पर पदोन्नति प्रक्रिया में भ्रष्टाचार किया गया है क्योंकि अनुपस्थिति का सीधा तात्पर्य है कि उन्हें पदोन्नति में कोई रुचि नहीं है, तो नियमानुसार उन्हें पदोन्नति आदेश जारी भी नहीं होना चाहिए था।
क्या भ्रष्टाचार का खुलासा ना होने पाए इसीलिए सभी शिक्षकों को अलग-अलग आदेश प्रसारित किए गए?
सामान्यतः किसी विभाग द्वारा जब असंख्य लोगों के संबंध में किसी प्रकार की कार्यवाही की जाती है, तो एकसाथ आदेश प्रसारित किया जाता है। और एकजाई आदेश का ही परिपालन होता है। यदि कुछ छुपाने की मंशा हो तो एकजाई आदेश प्रसारित करने में मामला गड़बड़ हो सकता है, इसीलिए सभी लोगों को अलग-अलग आदेश दिए जाते हैं। ताकि कोई भी एक दूसरे के बारे में आसानी से जानकारी प्राप्त न कर सके। शायद यही कारण है कि संयुक्त संचालक कार्यालय द्वारा माध्यमिक शाला प्रधान पाठक एवं शिक्षक पदोन्नति में हजारों की संख्या होने के बाद भी पृथक पृथक आदेश प्रदान किया गया है। ताकि आसानी से शिक्षकों को पूरे संभाग की जानकारी ना लग सके और व्याप्त गड़बड़ी तथा भ्रष्टाचार को दबाया जा सके। जब काउंसलिंग प्रक्रिया और पदोन्नति की कार्यवाही पर आरोप लगे और शिकायत दर्ज कराई गई, तब यही मामला सामने आया था कि वरिष्ठ क्रम के शिक्षकों को मनचाहे स्थान का विकल्प पत्र भरने का मौका नहीं मिला, जबकि कनिष्ठ शिक्षकों को लेनदेन के जरिए इच्छा अनुसार स्थान देने की तैयारी की गई थी। यदि समस्त आदेश एक साथ प्रसारित होते तो सभी शिक्षकों को अवलोकन का मौका मिलता। ताकि वे वरिष्ठता क्रम और पद अंकित शाला का मिलान कर सकें। इससे बचने के लिए ही शिक्षकों को पृथक पृथक आदेश प्रसारित किया गया है ताकि वे वरिष्ठता, कनिष्ठता और पद अंकित शालाओं का अध्ययन कर आपत्त ना लगा सके।
काउंसलिंग प्रक्रिया में भ्रष्टाचार की वजह से पदोन्नति से वंचित हुए सैकड़ों शिक्षक, मजबूरी में भरना पड़ा विकल्प पत्र
प्रधान पाठक पदोन्नति प्रक्रिया में काउंसलिंग के दरमियान जिन शिक्षकों ने मोटी धनराशि दी थी, उनके लिए पदों को आरक्षित रख लिया गया एवं काउंसलिंग तिथि को उन्हें काउंसलिंग स्थल से दूर रहने का निर्देश दिया गया। जब काउंसलिंग में उनकी बारी आई तो वे काउंसलिंग स्थल पर अनुपस्थित पाए गए। परंतु उनके लिए भी पदोन्नति आदेश जारी किए गए हैं। इसके विपरीत वरिष्ठ क्रम के शिक्षक जिन्हें अपने ही विकासखंड में स्थान मिल सकता था, उनकी बारी आने पर समीप के विद्यालयों के पदों को विलोपित या भरा हुआ दिखाया गया, जिसके कारण वे या तो पदोन्नति से वंचित हुए या दूरस्थ विद्यालय लेना उनकी मजबूरी हो गई। सेटिंग और पैसों का लेनदेन करने वाले शिक्षकों के लिए आरक्षित पदों को आवंटित किया जाना था, परंतु सोशल मीडिया में बधाई संदेश चलने के बाद संयुक्त संचालक कार्यालय में हुई शिकायत और हंगामे बाजी के चलते ही आरक्षित पदों पर अन्य विकासखंड या जिले के शिक्षकों हेतु पदोन्नति आदेश जारी किया गया है। जिन्हें आपसी सामंजस्य के द्वारा भ्रष्टाचार की कवायद को पूर्ण करने की पूरी आशंका है।
सूत्र अनुसार पदोन्नति आदेश की विसंगतियों को लेकर न्यायालय जाने की तैयारी में शिक्षक समुदाय
सूत्रों की माने तो प्रधानपाठक पदों की प्रक्रिया में पदोन्नति आदेश जारी होने के बाद काउंसलिंग प्रक्रिया में विसंगतियों को लेकर पदोन्नति से वंचित एवं वे शिक्षक जो पद रिक्त ना होने की दशा में दूरस्थ स्थानों का विकल्प पत्र भरना मजबूरी बन गया था, न्यायालय जाने की तैयारी कर रहे हैं। क्योंकि काउंसलिंग प्रक्रिया में जब इन शिक्षकों की बारी आई तो संबंधित विकासखंड या निकट के विद्यालयों को भरा बताया गया। मजबूरीवश या तो इन्हें पदोन्नति ना लेने का या दूरस्थ स्थानों में पदोन्नति लेने का विकल्प पत्र भरना पड़ा। जबकि वरिष्ठता क्रम में इनसे नीचे आने वाले शिक्षकों को उन्हीं विकासखंड के समीप के विद्यालयों में पद रिक्त दिखाया गया। साथ ही जिन विद्यालयों को काउंसलिंग प्रक्रिया के दरमियान विलोपित रखा गया था, उन विद्यालयों के लिए भी पदोन्नति आदेश जारी कर दिया गया है। जिससे वंचित शिक्षकों में रोष व्याप्त है, और अपनी शिकायतों पर कार्यवाही ना होती देख ये न्यायालय जाने की तैयारी कर रहे हैं। यहां ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि वरिष्ठता क्रम में ऊपर के शिक्षक जिन्होंने 11 अप्रैल को ही काउंसलिंग में अपने निकट की विद्यालयों का विकल्प पत्र भरा था, पदोन्नति आदेश जारी होने के बाद इन शिक्षकों को उन विद्यालयों में पदांकन किया गया है, जिन्हें प्रक्रिया में विलोपित रखा गया था। सोचने वाली बात यह है कि जो शिक्षक काउंसलिंग प्रक्रिया के प्रथम दिवस से अपने मनचाहे विद्यालय में पदस्थापना ले लिए थे, उन्हें आदेश में अन्यंत्र क्यों पदांकन किया गया।