एनएसए तब क्यों नहीं लगता जब जनप्रतिनिधियों के बयानों से पूरा देश दंगों में जलता है?
अब मनीष कश्यप के चाहने वालों को 28 अप्रैल का इंतजार।
विधानसभा चुनाव 2020 में तेजस्वी को मिला था भारी जनसमर्थन..क्या 2025 बनेगा मुसीबत?
सीएम व डिप्टी सीएम तेजस्वी यूट्यूबर और पत्रकार से भिड़ कर क्या अपनी ही करा ली फजीहत?
जेल जाने के बाद यूट्यूबर मनीष कश्यप को बिहार सहित पूरे देश में मिल रहा जन समर्थन।
मनीष कश्यप व उनके परिवार को और सिर्फ सुप्रीम कोर्ट पर ही भरोसा।
लेख रवि सिंह:- निर्वाचित जनप्रतिनिधि विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री या फिर प्रधानमंत्री या कहे तो राजनीतिक पार्टियों के बड़े-बड़े पदाधिकारी कई बार विवादित व राष्ट्रीय सुरक्षा के अहित में बयान दे देते हैं। पर उन पर एनएसए जैसी धाराएं क्यों नहीं लगती? कई बार उनके बयानों से दंगे हो जाते है, ला एन आर्डर बिगड़ जाता है, फिर भी उन पर कार्यवाही क्यों नहीं होती? सत्ता से सवाल पूछने पर पत्रकार पर कई गंभीर धाराएं लग जाती हैं जिससे राष्ट्र व राज्य में खतरा हो जाता है। क्या यह खतरा उनकी कुर्सी जाने का होता है या फिर सही में राष्ट्र को खतरा पहुंचता है? आजादी के बाद से लोकतंत्र का चौथा स्तंभ का एक ही काम रहा है वह है आईना दिखाने का, आईना दिखाने पर सत्ताधारी दल के लोगों की आलोचना भी होती हैं और वह आलोचना कहीं ना कहीं जनता भी देखती है। पर आलोचनाओं को पचाने के बजाय जनप्रतिनिधि आग बबूला हो जाते हैं और हर संभव प्रयास करने लगते हैं कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को परेशान करने का। ऐसे कई उदाहरण देश में आज भी है, और आज की स्थिति में तो कुछ हालात पत्रकारिता के लिए ठीक नहीं है। पत्रकारिता करना तो गुनाह जैसा लगने लगा है। कई बार लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का बचाव न्यायपालिका ने किया है, कुछ आजादी देने का प्रयास किया है, पर अब न्यायपालिका पर भी सत्ता पर बैठे लोग प्रभाव डालने का प्रयास करने लगे, परंतु सही कहा गया है कि सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं, कुछ ऐसा ही समय से यूट्यूबर व पत्रकार मनीष कश्यप गुजर रहे है। जहां एक तरफ लोग मनीष कश्यप को यूट्यूबर बता रहे हैं तो वही एक बड़ा समुदाय उसे पत्रकार मानता है। पत्रकार इसलिए मानता है क्योंकि वह बड़ी प्राथमिकता के साथ लोगों की आवाज बनकर सत्ता से सवाल करते हैं, जो अधिकार कहीं न कहीं हमारे संविधान ने दिया है।
यदि इस समय हम यह कहे कि गलत काम का गलत नतीजा हमेशा ही भुगतना पड़ता है, इस समय बिहार में कुछ ऐसा ही देखा जा रहा है। एक यूट्यूबर पत्रकार के द्वारा सवाल पूछने पर एनएसए सहित कई गंभीर धारा लगा दिए गए, राज्य व देशद्रोही बताने का प्रयास किया जा रहा है। दो राज्यों के बीच तनाव पैदा करने का आरोप लगाया जा रहा है, जबकि तमाम तरह से तमिलनाडु में बिहारियों के साथ मारपीट होने की घटना कई बार आ चुकी है। यह कोई नई बात नहीं है। हर साल ऐसी कई घटनाएं देखने या सुनने को मिल जाती हैं, कुछ दब जाती हैं तो कुछ अखबारों व टीवी चैनलों की सुर्खियां बन जाती हैं, कुछ इस बार भी ऐसा ही देखने को मिला जिस पर यूट्यूबर और मनीष कश्यप ने खबर के माध्यम से मौजूदा बिहार सरकार से सवाल किया, सवाल करना ही उसे भारी पड़ गया, उन्हें लोगों के हित के लिए सवाल करना ही उन्हें मुश्किलों में डाल दिया, मनीष कश्यप के जेल जाने से मनीष कश्यप को नुकसान कम उससे ज्यादा नुकसान बिहार के डिप्टी सीएम व सीएम को होने लगा है। जहां मनीष कश्यप के लिए जनसमर्थन व लोकप्रियता बढी है, भले ही यह भावनाओं व भावुकता में बढी है, पर बढ़ रही है। पर वहीं मौजूदा सरकार की इस कार्यप्रणाली पर बिहार का एक बहुत बड़ा वर्ग नाराज हो गया जिसका परिणाम आगामी 2025 विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है? जहां यूट्यूबर और मनीष कश्यप के लिए जन समर्थन के साथ पूरे देश के वकीलों व कई पार्टियों व दलों का समर्थन मिल रहा है तो वहीं मौजूदा सरकार के वोट बैंक पर सेंध भी लग रही है। इस समय पूरे मीडिया में मनीष कश्यप छाए हुए हैं। मनीष कश्यप के साथ जहां लोगों की भावनाएं जुड़ गई है, वहीं मनीष कश्यप के साथ हो रहे कार्यवाहीयों के खिलाफ सरकार की फजीहत भी हो रही है।
जेल के बाहर चल रहा है सियासत का खेल- यूट्यूबर पत्रकार मनीष कश्यप इस समय जेल में है, और जेल के बाहर सियासत भी खूब चल रही है, और सियासत चले तो चले क्यों ना… मनीष कश्यप जेल में रहे इसके लिए सत्ता पूरा प्रयास कर रहा है। ऐसा लग रहा है कि मनीष कश्यप के बाहर निकलने से आगामी चुनाव में उन्हें नुकसान तो हो सकता है? मनीष कश्यप पर दिमाग लगाने के बजाय यदि सत्ता में आना है तो सत्ता के लिए काम करना चाहिए, ना की आलोचना करने वाले के पीछे हाथ पैर धो कर पड़ जाना चाहिए, आलोचना सहने की शक्ति नहीं है, तो फिर सत्ता पाने की भी लालसा नहीं रखनी चाहिए। आप यह सोचते हैं कि सत्ता पाकर आप कुछ भी कर सकते हैं तो यह भूल है। सत्ता लोगों की सेवा के लिए हासिल करें ना कि लोगों को परेशान करने के लिए। जब भी सत्ता मिलती है तो सत्ता के ऊपर विपक्ष से लेकर, मीडिया से लेकर तमाम लोगों की नजरें होती हैं। मीडिया आलोचना करके बता देता है पर आम लोग उसे दबा कर रखते हैं, और उसका प्रतिफल चुनाव के वक्त मिलता है।
मनीष कश्यप के गिरफ्तारी के बाद हैं 64 विधायक व दर्जनों सांसद नाराज- सूत्रों की माने तो मनीष कश्यप की गिरफ्तारी के बाद 64 विधायक व दर्जनों सांसद नाराज हैं। नीतीश की डूब सकती है नैया या मिलेगा किनारा? यूट्यूबर मनीष कश्यप के जेल जाने के बाद से मौजूदा सरकार की नैया डगमगाती दिख रही है, सरकार ने भी ऐसा नहीं सोचा था कि मनीष कश्यप के जेल जाने के बाद ऐसी भी स्थिति निर्मित होगी। यह सोचकर मनीष पर कार्रवाई की गई थी कि मौजूदा सरकार के लिए अच्छा होगा, मौजूदा सरकार को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि मनीष कश्यप की गिरफ्तारी से मौजूदा सरकार की इतनी बड़ी फजीहत हो जाएगी। यदि थोड़ा सा भी इस बात का अंदाज होता तो शायद सरकार यह कदम नहीं उठाती।
क्या सीएम की कुर्सी मिलने से पहले ही तेजस्वी की हो गई फजीहत?- बिहार में भावी सीएम पद के लिए तेजस्वी का नाम सबसे ऊपर चल रहा था पिछले विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने खूब लोकप्रियता बटोरी थी और बहुत कम अंतर से कई सीटों पर उन्हें हार मिली थी, जिस प्रकार से उन्हें जनसमर्थन मिला था वैसे में लोगों को लग रहा था कि तेजस्वी ही सीएम होंगे पर अंततः किस्मत को कुछ और ही मंजूर है। सीएम की जगह डिप्टी सीएम बने, डिप्टी सीएम बनने के बाद वह अगले बार सीएम बन सकते थे, जिसके लिए उन्हें बड़ा करने की जरूरत थी। पर एक पत्रकार के पीछे पड़कर अपनी फजीहत कराते नजर आ रहे हैं।पॉलिटिकल प्लान ए टू जेड हो गया फेल- पॉलिटिक्स प्लान में यदि आप एक आम पत्रकार के पीछे अपना समय बिता देंगे तो फिर आगे की पॉलिटिक्स कैसे करेंगे। ऐसे में तो आप के बनाए हुए ए टू जेड प्लान फेल हो जाएंगे, एक पत्रकार के चक्कर में आप अपने ही राज्य में अपनी लोकप्रियता पर ग्रहण लगा लिए, आलोचनाओं की बाढ़ आ गई है। जहां एक पत्रकार सिर्फ आलोचना कर रहा था, अब राज्य व पूरा देश आप की आलोचना में डूब गया है। अब क्या सत्ता पाने के लिए सब को जेल में डाल देंगे?
क्या मनीष की गिरफ्तारी से तेजस्वी यादव का चुनाव में निकले गया दिवाला?- मनीष कश्यप ने 18 मार्च को सुबह बेतिया में सरेंडर किया। ठीक 48 घंटे बाद ही तेजस्वी की भाषा बदल गई, तेजस्वी मनीष की गिरफ्तारी को अपनी शान समझ रहे थे। 48 घंटे में ही अकड़ सियासी तौर पर ढीली होगी, 48 घंटे बाद ही तेजस्वी यादव मीडिया के सामने आते हैं और कहते हैं ना मुझे सीएम बनना है ना नीतीश को प्रधानमंत्री बनना है।
यूट्यूब मनीष कश्यप को सुप्रीम कोर्ट से भरोसा- यूट्यूब मनीष कश्यप को अब सुप्रीम कोर्ट पर ही भरोसा है वहीं से ही उन्हें राहत मिल सकती है बाकी सरकारें तो उसके खिलाफ है और वह नहीं चाहेंगे कि मनीष कश्यप को राहत मिले, यही वजह है कि देश के माने जाने अधिवक्ता को सरकार अपने दलील कोर्ट में रखने के लिए रखा है मनीष कश्यप के उपर राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट लगया गया है जिस पर सुप्रीम कोर्ट से लेकर पूरा देश पूछ रहा हैं की राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट किस वजह से लगाया गया? सरकार भी अपना सर खुजा रही है अब सरकार को देना होगा सुप्रीम कोर्ट में 28 अप्रैल 2023 को को जबाब की क्यों लगाया एनएसए? इस पर क्या जवाब देती है 2 राज्यों की सरकार है देखने वाली बात होगी। वही मनीष कश्यप व उनके परिवार को पूरा भरोसा है सुप्रीम कोर्ट व भारत के न्याय प्रणाली पर की उन्हें इंसाफ जरूर मिलेगा और राहत भी जरूर मिलेगी, वहीं अब मनीष कश्यप के चाहने वालों को 28 अप्रैल 2023 तक इंतजार करना पड़ेगा, 28 अप्रैल को ही मनीष कश्यप मामले कोई बड़ा अपडेट आ सकता है।