-दुलारे अंसारी-
रायपुर,15 मार्च 2023 (घटती घटना)। बचपना एक कच्ची मिट्टी के स्वरूप होता है। इसे मातापिता अपने अनुभवी कला के कुम्भकारी चाक पर चरित्र निर्माण के रूप में कई तरह के आकार का निर्माण कर सकता है। वही उनकी जरा सी ग़लती उसका स्वरूप को बिगाड़ सकता है।बाद में वह किसी काम का नही रह जाता। बच्चों के बचपन के सोपान पर मातापिता अपने बच्चों पर नज़र रखे किन्तु वे ऐसी कोई हरकत न करे जो कि बालमन को प्रभावित करने वाला हो, तथा बच्चे के मन मे मातापिता सहित परिवार के अन्य सदस्यों के प्रति वीरक्ति का भाव उत्तपन्न हो जाये जिसके कारण वह अपने लक्ष्य से भटककर नशे व अपराध की राह का रहगुज़र बन जाये ।बच्चों के बालमन को लेकर वर्षो से शोधकर्ता के रूप में शोध कार्य करने वाले शांतिविजय शास्ति्र के अनुसार नशे व अपराध के दलदल में फसने वाले इन बच्चों के मन मे अपने नशेड़ी दोस्तों के अलावा अपने मातापिता व अन्य परिजनों के लिए ज्यादातर मामलों में वितृष्णा का भाव पाया गया है।
कोविड 19 वैश्विक महामारी के प्रकोप से प्रभावित मानव समाज के परिदृश्य में यह देखने को मिल रहा है। राजधानी में इन दिनों कोरोना संकट काल से अब तक एक तरफ युवा वर्ग अपने नशे को पूरा करने के लिए चोरी ,लूट, व अन्य घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।वहीं दूसरी तरफ किशोर वर्ग के बच्चों में भी अपराध की प्रवृत्ति घर करती जा रही है।नशे की गिरफ्त में गरीब वर्गों के किशोरवय बच्चे ही नही बल्कि मध्यम व आभिजात्य वर्ग के बालक भी शामिल है। ये बच्चे सुलेशन, वाइटनर, कफ सिरप, के अलावा कई तरह के अन्य नशे का उपयोग करते शहर के सुनसान इलाकों में करते नज़र आ जाएंगे, यह ही नही बल्कि नशे में इन बच्चों के बीच आपस में मारपीट व सिरफुटौव्वल का मामला भी प्रकाश में आया है।
किस तरह से किया जाता है नशा…..
सुलेशन व वाइटनर तथा खाँसी के दौरान इस्तेमाल किये जाने वाले कफ सिरप में ग्लॉयकोडिंन, कोरेक्स, टोरेक्स, व विभिन्न प्रकार के ड्रग्स का प्रयोग नशेड़ी नशा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं जिसमे सुलेशन व वाइटनर नामक नशा जो कि सुलेशन सायकल के टियूब में हुए पंचर बनाने के काम लाया जाता है वहीँ वाइटनर लिखने में लेखन त्रुटि सुधारने के लिए काम में लाया जाता जाता है। सुलेशन व वाइटनर को सूती के कपड़ों में लेकर रगड़कर मिला लिया जाता है व नशेड़ी मुँह में उस कपड़े को लेकर सांस को अंदर की ओर खीचते है।ऐसा दस से पन्द्रह बार करने से नशा करने वाले का दिमाग शून्य में विचरण करने लगता है। वही कफ सिरप की 100 एमएल की एक शीशी को पीने के बाद पीने वाले को 180 एमएल शराब का नशा होने के साथ मुँह से बदबू भी नही आती।
पहले बनाते है नशे का आदि फिर बनाते हैं पैडलर…..
बच्चों में बढ़ते नशे की प्रवृत्ति को लेकर पूर्व पुलिस अधिकारी जीएस बॉम्बरा ने संवाददाता को बताया कि एकाकीपन के शिकार बच्चो पर ड्रग पेडलर की नजर होती है ।पहले यह पेडलर उन बच्चों को कम मात्रा में ड्रग्स देकर उसका आदि बना देते हैं। बाद में उसे नशे का सामान बेचने के लिए मजबूर करते हैं । जिससे वह बच्चा अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए उनकी गिरफ्त में आकर ड्रग्स के धंधे में फस जाता है। और वह अपराध की ओर अग्रसर होता जाता है।
बच्चों पर कड़ी नजर रखते हुए भरपूर प्यार देवें
सुप्रसिद्ध चिकित्सक वह सेवानिवृत्त जिला चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर मंगलुरकर ने संवाददाता से चर्चा करते हुए बताया कि- अक्सर घर की परिस्थिति के कारण छोटे बच्चों के मन में माकूल असर पड़ता है। इसलिए पलकों को चाहिए की बच्चों पर कड़ी नजर रखते हुए भरपूर प्यार देवे,और उन्हें अकेला ना छोड़े इससे बच्चों पर एक प्रतिकूल असर पड़ेगा और वह नशे की तरफ अग्रसर नहीं होगा।
संयुक्त टीम बनाकर कार्रवाई करनी होगी…
सेवानिवृत्त सीएसपी जीएस बामरा अपने संवाददाता से चर्चा करते हुए बताया कि नशा ही अपराध का मूल जड़ है और इसे रोकना बहुत जरूरी है वरना समाज पर इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा शासन को चाहिए कि एक्साइज पुलिस व खाद्य एवं औषधि प्रशासन की संयुक्त टीम बनाकर कार्यवाही की जानी चाहिए तब कहीं जाकर इस पर प्रतिबंधद्द लग सकता है ऐसा नहीं होने पर मानव समाज में इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा ही।
महिला बाल विकास द्वारा यथा शीघ्र नशा मुक्ति केंद्र होगा संचालित….
महिला बाल विकास विभाग के कार्यक्रम अधिकारी अशोक पांडे ने जानकारी देते हुए बताया कि कि वाकई छोटे बच्चों के द्वारा नशा किया जाना समाज निर्माण में अवरोध उत्पन्न कर रहा है इसके लिए महिला बाल विकास द्वारा जल्द ही नशा मुक्ति केंद्र का संचालन किया जाएगा और घुमंतू बच्चे व नशे की गिरफ्त में आए किशोर भाई के बच्चों को नशा मुक्ति केंद्र मिलाकर उनका इलाज किया जाएगा पहले विभाग द्वारा नशा मुक्ति केंद्र संचालन किया गया था किंतु जिस संस्थान को उसकी जिम्मेदारी सौंपी थी वह अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा सके इसलिए कुछ दिनों के लिए यह कार्यक्रम बंद हो गया था अब यथा शीघ्र जी इसका शुभारंभ किया जाएगा
आशोक पांडे,जिला कार्यक्रम अधिकारी,महिला बाल विकास विभाग रायपुर
क्या कहते हैं एक्सपर्ट …
नशा छुड़ाने के लिए अब तक नहीं बनी है कोई दवाई
नशा मुक्त समाज की सृजन करने के उद्देश्य को लेकर संकल्प नशा मुक्ति केंद्र का संचालन करने वाली मनीषा शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि -विश्व में आज तक कोई ऐसी दवाई नहीं बनी जिससे नशा छोड़ा जा सके । हमारी संस्थान नशे के गिरफ्त में फंसे युवाओं व बच्चो को मानसिक रूप से सृजन करते हुए उन्हें अपने संस्थान में 30 दिन से लेकर 90 दिनों तक उनका इलाज काउंसलिंग के माध्यम से किया जाता है।इसके करते हुए उन्हें मानसिक रूप से सफलता प्रदान की जाती है इस दौरान उन्हें खेल कूद शारीरिक व्यायाम योगा के साथ सुपाच्य आहार तथा शारीरिक विकार को दूर करने के लिए मुफ्त में चिकित्सा दी जाती है। हमारा मूल उद्देश्य नशा मुक्त समाज का निर्माण करना है।
श्रीमती मनीषा शर्मा,डायरेक्टर संकल्प संस्थान,गीतांजलि नगर कॉलोनी,रायपुर
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