बैकुण्ठपुर@कोरिया वन मंडल के चामट पहाड़ पर बनाई जा रही है सड़क,क्या भंवरलाल को मिला जिम्मा?

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  • जहां जरूरत नहीं वहां बनाई जा रही है सड़क,करोड़ों का होगा वारा-न्यारा
  • सड़क भी ऐसी की बारिश आते ही बह जायेगी सड़क,तब तक पैसों का हो चुका होगा बंदरबांट
  • भंवरलाल का वन विभाग कोरिया में लगातार है जलवा बरकरार,किसी भी काम में वाहन उसी की लाई जाती हैं उपयोग में
  • जिन पर है वनों के संरक्षण का दारोमदार,वही बन रहे विनाश के जिम्मेदार
  • औचित्यहीन सड़क निर्माण के लिए हजारों की तादाद में कटा गया वृक्ष
  • निर्माण में रेंजर सहित अधिकारियों को लाभ कमाने की ऐसी चाह की प्राकृतिक को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं आते बाज
  • कोरिया जिले में यदि कहीं सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है तो वह है वन विभाग में

रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर 15 फरवरी 2023 (घटती-घटना)। कोरिया जिले के वन विभाग अंतर्गत बैकुंठपुर क्षेत्र के वन क्षेत्र अंर्तगत आने वाले चामट पहाड़ पर वन विभाग सड़क बना रहा है। वन विभाग के द्वारा बनाई जा रही सड़क में वाहन भंवर लाल नाम के व्यक्ति की उपयोग में लाई जा रही है जो बैकुंठपुर वन विभाग के सभी कामों में ही अपने वाहन वन विभाग को उपलध कराते चले आ रहे हैं। भंवर लाल कोरिया जिले के बैकुंठपुर वन विभाग में इतने चर्चित हैं की इनके अलावा किसी अन्य का वाहन और मशीनें वन विभाग में नहीं उपयोग लाई जाती हैं। भंवरलाल कौन है यह जानता भले ही कोई न हो लेकिन वन विभाग बैकुंठपुर के लिए यह जाना पहचाना नाम है।
चामट पहाड़ पर बनाई जा रही सड़क की यदि बात की जाए तो उक्त सड़क किस उद्देश्य से बनाई जा रही है यह भी स्पष्ट नहीं है और कुल मिलाकर सड़क बनाने का औचित्य समझ से परे है। सड़क बनाने में करोड़ों रुपए की लागत आने का अनुमान है और माना जा रहा है की यह सड़क शासकीय राशि के बंदरबांट के लिए बनाई जा रही है। सड़क जिस तरह से बनाई जा रही है उसको देखकर यह भी कहा जा सकता है की सड़क पहली बारिश में ही बह जायेगी और तब तक करोड़ों रुपयों का खेल हो चुका होगा। बैकुंठपुर वन विभाग अपने कारनामों को लेकर पहले भी सुर्खियों में बना रहा है और यह सुर्खियां अब भी बरकरार हैं। सबसे ज्यादा सुर्खियां भंवरलाल को लेकर वन विभाग ने जुटाई हैं जिसे ऐसे तो शायद ही कोई जानता हो लेकिन जब वाहन और मशीनों के उपयोग की बात आती है भंवरलाल का नाम जाना पहचाना हो जाता है विभाग में और सभी मौन हो जाते हैं।
भंवरलाल वन विभाग बैकुंठपुर के लिए लगातार वाहन और मशीनें उपलब्ध कराते चले आ रहें हैं। पहले बैकुंठपुर के पुराने वन परिक्षेत्राधिकारी के रहते हुए वह वाहन और मशीन उपलब्ध कराते रहे और अब जब दूसरे वन परिक्षेत्राधिकारी बैकुंठपुर के प्रभार में हैं तब भी भंवर लाल की वाहन और मशीन उपयोग में लाई जा रही हैं। बताने वाले बताते हैं भंवरलाल एक नाम है और यह नाम केवल उपयोग किया जाता है वन विभाग में भंवरलाल के नाम से वन विभाग में उपयोग की जाने वाली मशीनें और वाहन बैकुंठपुर वन विभाग के ही एक अधिकारी की हैं जो भंवरलाल के ही नाम से वाहन और मशीनें वन विभाग में चलवाते हैं और जबकि वह उन्हीं की हैं। वन विभाग में पहले भी कई सड़क बनाई गई हैं और जिसमे करोड़ों रुपए खर्च किया गया है और उन सड़को की आज की स्थिति यह है की कई बह चुकी हैं बारिश में।
रक्षक ही भक्षक का कार्य करने लगें तो विनाश होना तय है
आरंभ से यही माना जाता रहा कि वृक्ष और वन सुरक्षित रहे तो ही जनजीवन सुरक्षित रह पाएगा। क्योंकि वायु,जल, मृदा संरक्षण, तापमान नियंत्रण जैसी महती चीजें वनों के अस्तित्व पर ही निर्भर करती हैं। पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण कारक है वृक्ष और वन संपदा। वैसे तो इनके सुरक्षा की जवाबदारी पूरे मानव समुदाय की है। परंतु एहतियात की दृष्टि से सरकारों द्वारा वन विभाग अलग ही गठित किया गया है, जिनका मुख्य कार्य वनों का संरक्षण, वन्य जीवों का संरक्षण एवं वन संपदा में उत्तरोत्तर विधि करने का है। परंतु जब रक्षक ही भक्षक का कार्य करने लगें तो विनाश होना तय है। जब तक मानव जाति की पहुंच वनों के भीतर तक नहीं थी, वन संरक्षित और सुरक्षित थे। तथाकथित आधुनिक विकास की बुनियाद ने अभिन्न के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। वनों के भीतर अवैधानिक निर्माण कार्यों ने निरंतर क्षति पहुंचाई है। तथाकथित विकास क्रम के कारण हजारों लाखों वृक्ष बेवजह काटे जा रहे हैं।
सबसे बड़ा सवाल ऐसे निर्माण कार्यों की स्वीकृति कैसे और क्यों मिल जाती है?
ताजा मामला ग्राम पंचायत बरदिया के आगे गोबरी जलाशय के ऊपर सर्व पूजनीय चामट पहाड़ का है। जहां वन विभाग द्वारा औचित्यहीन सड़क निर्माण कार्य कराया जा रहा है। जिसे पहाड़ के ऊपर ले जाकर छोड़ा जा रहा है। इस निर्माण कार्य की वजह से हजारों पेड़ों की कटाई कर दी गई है। एक ओर जहां पर्यावरण विभाग का स्पष्ट निर्देश है कि विषम परिस्थिति को छोड़ वनों के अतिरिक्त कहीं भी हरे भरे वृक्षों को काटना मना है। वहीं वन विभाग द्वारा सड़क निर्माण के लिए हजारों वृक्षों की बलि देना कहां तक जायज है। जबकि इस अंत हीन सड़क से किसी विशेष सुविधा की प्राप्ति नहीं होने वाली। सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे निर्माण कार्यों की स्वीकृति कैसे और क्यों मिल जाती है? जबकि जिम्मेदार उच्चाधिकारियों को भी यह बात पता होती है कि ऐसे निर्माण कार्यों के फल स्वरुप वनों का विनाश होना तय है। आंकड़ों में चाहे लाख दावे किए जाएं, परंतु हर वर्ष होने वाले इस प्रकार के निर्माण कार्यों से वनों का क्षेत्रफल लगातार कम होता जा रहा। जबकि यह ऐसे संरक्षित क्षेत्र हैं जहां पर वन विभाग के अतिरिक्त अन्य किसी का हस्तक्षेप भी नहीं चलता। अन्य विभाग के किसी भी प्रकार के कार्य के लिए वन विभाग का अनापçा लेना आवश्यक होता है। परंतु जब विभाग स्वयं ऐसे कृत्यों के लिए जिम्मेदार हो तो सवाल उठना लाजमी है।
कटे वृक्षों की गणना ना हो पाए, इसकेलिए ठुंठों को नेस्तनाबूद किया जा रहा
सड़क निर्माण कार्य के लिए हजारों की तादाद में जो वृक्ष काटे गए हैं, उनके गिनती को छुपाने के लिए वन विभाग के अधिकारियों द्वारा विशेष सतर्कता बरती जा रही एवं जेसीबी तथा अन्य बड़ी मशीनों के माध्यम से काटे गए वृक्षों के ठुठों को या तो खोद कर उसके ऊपर मिट्टी डाली जा रही या किसी भी प्रकार से? इनको गायब किया जा रहा। ताकि कटे हुए हरे भरे वृक्षों की गणना न की जा सके। यदि सड़क निर्माण के लिए काटे जाने वाले वृक्षों की स्वीकृति जायज है, तो फिर कटे वृक्षों की गिनती छुपाने के लिए ऐसा प्रयास क्यों किया जा रहा? यह बड़ा सवाल है या फिर सड़क निर्माण की स्वीकृति के लिए गलत आंकड़े पेश कर स्वीकृति हासिल की गई होगी, जिसमें यह दर्शाया गया होगा कि अधिक वृक्षों को काटने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। सवाल यह उठता है कि निर्माण कार्य में संलिप्त अधिकारियों को जमीनी स्तर पर जब वास्तविक जानकारी होगी ही तो वनों को विकसित करने के बजाए विनाश की मंशा क्यों?
वन विभाग के अनाप-शनाप निर्माण कार्यों से वनों का अस्तित्व खतरे में
निर्माण कार्यों से अर्जित लाभ की मंशा ने वनों के भीतर तक विभिन्न प्रकार के तथाकथित विकास यथा सड़क, तालाब, पुल पुलिया, शेल्टर हाउस जैसे निर्माण ने आम इंसान की पहुंच वनों के भीतर तक पहुंचा दी। जिससे न तो वन सुरक्षित रह पाए ना ही वन्यजीव। आलम यह है कि जंगल तो शनै शनै समाप्ति की ओर बढ़ रहे हैं और जंगली जानवर शहर की ओर। जिनकी बानगी यदा-कदा देखने को मिल जाती है। वनों के भीतर अधिकांश होने वाले निर्माण कार्यों में भारी भ्रष्टाचार की शिकायतें भी लगातार मिलती रहती हैं। परंतु विभाग के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। आलम ऐसा ही रहा तो एक दिन ऐसा आएगा कि ना तो वन बचेंगे और ना ही वन विभाग।


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