पुलिस के लिए दो पत्रकार पीआरओ का काम कर रहे हैं और चाटुकारिता में मशगूल है?
मनेंद्रगढ़ के दो पत्रकारों ने पूरे पत्रकारिता की गरिमा ही गिरा दी है, सिर्फ चाटुकारिता में व्यस्त हैं
अनाधिकृत न्यूज़ पोर्टल में चाटुकारिता की खबर चलाकर पत्रकार जगत को ही शर्मसार कर रहे हैं
खबरों की समझ नहीं और अनाप-शनाप शब्दों में लिख रहे खबर,शब्दों की मर्यादा का भी नहीं है इन्हें ख्याल
-रवि सिंह –
मनेंद्रगढ़ 06 फरवरी 2023 (घटती-घटना)। नवीन जिले एमसीबी के कुछ पत्रकार पुलिस विभाग की चाटुकारिता में इस कदर लिप्त हो गए हैं की वह पुलिस की झूठी महिमा मंडन के चक्कर में सारी सीमाएं पार कर दिए हैं शदों की मर्यादा भी भूल गए हैं, मनेंद्रगढ़ के दो पत्रकारों के चक्कर में ही सारे पत्रकारों पर उंगलियां भी उठने लगी हैं, देखा जाए तो तथाकथित पत्रकार पूरी तरह पुलिस के लिए झूठी महिमामंडन करने में फेमस हो चुके हैं, इन्हें पूरा शहर ना पसंद करने लगा है थाना के माध्यम से कई लोगों की यह दलाली भी करते नजर आते हैं, जिसकी एवज में भारी-भरकम पैसा वसूलते हैं और इसके बाद पुलिस की महिमा मंडन में लग जाते हैं क्योंकि इन्हीं से इनकी रोजी रोटी चलती है, 41 पत्रकारों को सटोरिया पैसा देता है यह बात सटोरिया ने कही थी पर लगता है उस 41 पत्रकारों में मनेंद्रगढ़ के दो पत्रकार भी शामिल थे जिन्हें जमकर तकलीफ हुई। बदनाम सटोरिया ने किया और उंगली पत्रकार पर उठाने लगे, क्योंकि यह खुद उस सटोरिया के शागिर्द लग रहे हैं? ख़बर लगी सटोरियों की तकलीफ हुआ तथाकथित पत्रकार को और अनधिकृत पोर्टल में देने लगे दलील ऐसा लगा कि 41 पत्रकारों में इनका नाम भी शामिल था सटोरियों का बचाव करते नजर आए और पुलिस की महिमा मंडल करते दिख ऐसा लगा कि खबर की वजह सटोरियों को नहीं से पत्रकार को पीड़ा हुई हो।
ज्ञात हो की एमसीबी जिले के मनेंद्रगढ़ शहर में साल के 12 महीने सट्टा व जुआ का अवैध कारोबार होता है और इस अवैध कारोबार की वजह से कई घरों की सुख शांति छीन जाती है, घरों में घरेलू हिंसा उत्पन्न हो जाती है पर इससे सट्टा व जुआ खिलाने वाले को क्या फर्क पड़ता है, क्योंकि उनकी कमाई तो घरेलू हिंसा के बीच हो ही रही है विडंबना यह है की जुआ व सट्टा की आड़ में अच्छे-अच्छे घरों की स्थिति बद से बदतर हो चली है परिवार परेशान है कैसे इस लत से अपने बच्चों को बाहर निकाले, कम उम्र में कई घरों के बच्चे रोजगार की तलाश में शॉर्टकट से पैसे कमाने के चक्कर में इस सामाजिक बुराइयों के बीच ऐसे फस गए हैं कि निकल भी नहीं पा रहे हैं जबकि और इस दलदल में फंसते जा रहे हैं जिस वजह से घरों के समान तक बिक जा रहे हैं पर इससे सट्टा व जुआ खिलाने वाले को क्या फर्क पड़ता, फर्क तो उन्हें भी नहीं पड़ता जो इन अवैध कारोबार को बंद कराने के लिए तनख्वाह उठा रहे हैं ऐसे कार्यों के लिए पुलिस विभाग गठित है पर कहीं न कहीं उनकी भी जेब भी इन सटोरियों व जुआरियों के द्वारा भर दी जाती है, वही चुने हुए जनप्रतिनिधि इन्हें संरक्षण दे देते हैं फिर इस दलदल से निजात मिले तो मिले कैसे? जब अवैध कारोबार करने वाले को ही पुलिस और नेता का संरक्षण मिल जाए और ऊपर से पत्रकारों का भी सहयोग हो जाए तो फिर क्या फिर तो बड़ी-बड़ी बातें व धमकियां देना तो सटोरियों व जुआ खिलाने वालों का धर्म व करतब बन जाता है कुछ ऐसा ही मामला मनेन्द्रगढ़ शहर के एक चर्चित सटोरिया व जुआ खिलाने वाले से जुड़ा है जो डंके की चोट पर एक पत्रकार के सवाल पर कहता है की ऐसे ही दो नंबर का काम नहीं कराता हूं पुलिस नेता से लेकर 41 पत्रकारों को भी महीने देता हूं इसके बाद भी यदि कोई पत्रकार खबर छाप कर मेरा काम बंद कर आता है तो फिर मैं उस पत्रकार से मारपीट करने से भी पीछे नहीं हटूंगा, अब सवाल यह है कि आखिर इतनी हिम्मत दो नंबर के काम कराने वाले में कहां से मिलती है? क्या पुलिस व नेता इन्हें यह हिम्मत देते हैं या फिर वह 41 पत्रकार जिन्हें यह हर महीने देता है? इतने लोगों को देखकर इतने लोगों को सेटिंग कर कर आखिर यह आदमी कितने घरों को बर्बाद करता है? इसका आकलन क्या 41 पत्रकार, पुलिस व नेता कर पाएंगे? जैसे ही यह खबर प्रकाशित हुई बाकी पत्रकारों को तकलीफ नहीं हुई सिर्फ एक पत्रकार को काफी तकलीफ हुई और वह सटोरियाए व पुलिस की महिमा मंडल करने लगा ऐसा लगा कि उस खबर से सटोरिया व पुलिस को नहीं तकलीफ उस पत्रकार को ही हो?