- आरोपी तहसीलदारकी आईडी से रकबा घटाता बढ़ाता रहा और अनाधिकृत रूप से एक व्यक्ति को लाभ पहुंचाता रहा…
- एफआईआर के बाद जिसे होना था गिरफ्तार व दिनदहाड़े नायब तहसीलदार कार्यालय में कर रहा काम,क्या प्रशासन दे रहा अपराधी को संरक्षण?
- क्या रकबा बढ़ाने के मामले में प्रशासन के अधिकारी भी हैं शामिल?
- क्या तहसीलदार अधीनस्थ अनाधिकृत कर्मचारी को बचा रहे क्योंकि यदि उसने मुंह खोला तो वो खुद फस जाएंगे?
- जिस तहसीलदार के कहने पर हुआ था मामला पंजीबद्ध वह खुद अनाधिकृत कर्मचारियों को कार्यालय बुला कैसे करवा सकते हैं काम?
- तहसीलदार के आईडी से घटता व बढ़ता रहा रकबा फिर भी तहसीलदार अनजान थे कैसे?
- किसान से धोखाधड़ी करने वाले तीन आरोपियों पर हुआ था केस दर्ज, जमानत भी खारिज होने की बात आ रही सामने:सूत्र
- क्या तहसील कार्यालय में तहसीलदार अनाधिकृत व्यक्ति को निजी तनख्वाह पर रख करते हैं इतना भरोसा कि अपनी आईडी कर देते है उनके हवाले?
- क्या अपनी आईडी किसी अनाधिकृत व्यक्ति को देना उचित? कहीं तहसीलदार भी तो इसमें नहीं थे शामिल?
- किसान ने तहसील कार्यालय के कर्मचारियों से मिलकर रकबा परिवर्तन कर लाखों का लाभ लिया,तहसीलदार की भी भूमिका संदिग्ध
- राजस्व विभाग का सारा दारोमदार होता है तहसीलदार पर, व्यक्तिगत आईडी का गैर जिम्मेदार व्यक्ति के पास पाया जाना बनाता है मामले को संदिग्ध
–रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर,23 जनवरी 2023 (घटती-घटना)। कोरिया जिले में ऐसे ऐसे मामले आते हैं जो लोगों को आश्चर्य में डाल देते हैं जब लोगों के सुविधा के लिए काम कर रहा प्रशासन ही लोगों के लिए दिक्कत खड़ी करे तो सवाल तो उठना लाजमी है, कोरिया जिले का एक बहुत चर्चित व दिलचस्प मामला है वह है पटना तहसील कार्यालय का जहां पर कुछ दिन पहले तहसीलदार की आईडी से रकबा को घटा बढ़ाकर भारी मात्रा में धान बेचकर लाभ कमाया गया था, जब मामला उजागर हुआ तो तहसीलदार ने अपना पल्ला झाड़ते हुए अनाधिकृत कर्मचारी पर पूरा दोष मढ़ा दिया और उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई जब तहसीलदार ने जांच कर एफआईआर करने का आदेश दे दिया उसके बाद जिस व्यक्ति को गिरफ्तार कर जेल भेजना था उसे तहसीलदार प्रतिदिन अपने कार्यालय बुलाकर काम करा रहे हैं फिर समझ में यह नहीं आ रहा कि आखिर अनाधिकृत व्यक्ति दोषी था भी या फिर तहसीलदार साहब अपने आप को बचाने के लिए बहुत बड़ी योजना बनाकर काम कर रहे थे? जहां बाकी आरोपी फरार बताए जा रहे हैं वही तहसील का अनाधिकृत कर्मचारी दिनदहाड़े तहसीलदार के साथ ही काम कर रहा है, क्या तहसीलदार ही उसे फसाए हैं और तहसीलदार ही उसे बचाएंगे ऐसा अब लोगों के जेहन में सवाल उठने लगा है? कितना प्रभावशील हैं तहसीलदार इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है जबकि इनकी पत्नी भी इनसे ऊपर एसडीएम पद पर बैठी हैं?
क्या उन्हीं के इशारे पर सब हो रहा?
ज्ञात हो की कोरिया जिले में एक गजब का मामला सामने आया है यह मामला पटना तहसील व पटना धान खरीदी केंद्र से जुड़ा हुआ है। जहां पर एक किसान धान बेचने के लिए तहसील कार्यालय से जमीन का रकबा बढ़वाता था और फिर धान बेचने के बाद राशि आहरण कर उस रकबा को कम करवा देता था। यह खेल कब से चल रहा है, यह तो जांच का विषय है। परंतु ऐसा करके किसान ने काफी राशि का लाभ अर्जन किया। संदेह होने पर जब मामले की जांच की गई तो जांच में यह पाया गया कि उक्त किसान अन्य व्यक्तियों के रकबे को अपने खाते में शामिल करा कर समिति में धान बेचता था एवं राशि आहरण पश्चात अपने रकबे को मूल रूप से परिवर्तित करा लेता था। चूंकि समिति में पंजीकृत किसानों के रकबे में परिवर्तन तत्संबंधित तहसीलदार की आईडी से ही संभव होता है, अतः कहीं ना कहीं पूरे मामले में संबंधित तहसीलदार एवं वहां कार्यरत कर्मचारियों की भूमिका भी संदेहास्पद है। बगैर मिलीभगत के रकबा में परिवर्तन का यह खेल संभव नहीं है। इस पूरे मामले में सहकारी समिति के कर्मचारियों की भूमिका भी संदिग्ध है, क्योंकि रकबे के पंजीयन की कार्यवाही वहीं से प्रारंभ होती है।
मामले में जांच उपरांत एफआईआर हुआ था दर्ज
नायब तहसीलदार समीर शर्मा उप तहसील पटना के जांच उपरांत एवं लिखित शिकायत पर इस आशय का प्रतिवेदन पेश करने पर की वर्ष 2021-22 में धान कोचिया अजय कुमार कुशवाहा आ0 कैलाश नाथ निवासी अमहर द्वारा अन्य किसानों प्रताप सिंह, शिवनाथ एवं अनुराधा की जानकारी एवं उनकी सहमति के बिना उनके स्वामित्व की भूमि को अपने खाते में विधि विरुद्ध रूप से अधिक धान की फसल की बिक्री कर 319350 रु अवैध लाभ कराकर पात्रता अर्जित करते हुए संबंधित कृषकों एवं शासन को क्षति पहुंचाया गया है। इसी प्रकार इस वर्ष भी उक्त व्यक्ति द्वारा उपरोक्त कार्य की पुनरावृति की जा रही थी, जिस संबंध में जाँच प्रारंभ होने पर अजय कुमार कुशवाहा द्वारा अपने भाई व सह खातेदार अरविंद कुशवाहा आ. कैलाश नाथ के सहयोग से उप तहसील कार्यालय पटना की आईडी के माध्यम से बिना संबंधित अधिकारी की जानकारी के तहसील कार्यालय पटना में कार्यरत ऑपरेटर संजीव कुमार की सहायता से तथा अरविन्द कुशवाहा की सक्रियता/संलिप्तता से अन्य किसानों के नाम अपने पंजीकृत खाते से हटवा दिया गया। इस प्रकार प्रकरण में प्रथम दृष्टतयाः अजय कुशवाहा, अरविन्द कुशवाहा एवं कम्प्यूटर ऑपरेटर संजीव कुमार दोषी होना पाये जाते है, उपरोक्त कंडिका (1) में उल्लेखित तथ्यों के आधार पर दोषी व्यक्तियों के द्वारा धारा 409, 420, 120 बी, 467, 468, 471, भादवि एवं 66 घ आई.टी.एक्ट का अपराध घटित करना पाए जाने से थाना पटना में अपराध कायम कर विवेचना कार्यवाही में लिया गया।
हाई कोर्ट के जजमेंट के अनुसार किसी भी कार्यालय में अनाधिकृत व्यक्ति को रखना गैरकानूनी, फिर कैसे हो रहा था पटना तहसील में काम?
पूरे प्रकरण में सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि छत्तीसगढ़ शासन ने उच्च न्यायालय बिलासपुर के आदेश का पालन करते हुए सभी शासकीय कार्यालयों में अनाधिकृत व्यक्ति को? हटाने का आदेश दिया था। इसके बावजूद तहसील कार्यालय में अनाधिकृत रूप से कई व्यक्ति लंबे समय से काम कर रहे थे, जो कि शासकीय कर्मचारी नहीं है, बल्कि निजी कंप्यूटर ऑपरेटर हैं। अद्भुत बात तो यह भी है कि निजी कंप्यूटर ऑपरेटर को तहसीलदार ने अपनी आईडी भी सौंप दी। जबकि तहसीलदार की आईडी से पूरे तहसील क्षेत्र के राजस्व के सारे दस्तावेज एवं मामले संचालित किए जाते हैं। यह घोर लापरवाही का और अपराधिक मनोवृति का विषय है। जब अचानक यह मामला सामने आया उसके बाद अनाधिकृत रूप से कंप्यूटर ऑपरेटर का कार्य कर रहे व्यक्ति पर पूरा ठीकरा फोड़ते हुए अधिकारी अपने बचाव में जुट गए हैं। सवाल यह है कि आखिर तहसीलदार जैसे लोकसेवक अपना अधिकृत आईडी पासवर्ड एक अनाधिकृत व्यक्ति को कैसे दे दिए, जिसने किसान के साथ मिलकर बारबार पंजीयन में हेरफेर किया और किसान को लाभ पहुंचा दिया। यह एक सोचनीय व जांच का विषय है, पर शायद इस पहलू पर पुलिस भी ध्यान नहीं दे रही होगी क्योंकि तहसीलदार भी इस लपेटे में आ सकते हैं। पूरे प्रकरण में जांच का विषय तो यह भी है कि यह इकलौता मामला है या इसके जैसे और भी कई मामले तहसीलदार की आईडी द्वारा हेरफेर कर किए गए हैं। क्योंकि अभी कुछ दिन पूर्व सहकारी समिति तरगंवा में जब एक किसान के 110 बोरी धान के जब्ती की बात आई थी, तब भी यह मामला प्रकाश में आया था, कि उक्त किसान के पंजीयन में विगत वर्ष से ही अन्य लोगों के जमीन के रकबे जुड़े हुए हैं। जबकि किसान ने ऐसा कोई प्रयास भी व्यक्तिगत रूप से नहीं किया है। साथ ही एक मामला और प्रकाश में आया है, जहां सहकारी समिति तरगंवा में एक किसान ऐसा भी है जिसके पास वास्तव में कोई भूमि नहीं है। परंतु सैकड़ों मि्ंटल धान बेचने के लिए उसका पंजीयन समिति में पंजीकृत है। जिसकी शिकायत उच्च अधिकारियों के पास लंबित है। यदि पूरे प्रकरण की गहराई से जांच की जाए तो ऐसे मामलों में सहकारी समिति में कार्यरत कर्मचारियों की संदिग्ध भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
अनाधिकृत व्यक्ति आज भी आ रहा है तहसील कार्यालय, कर रहा है काम
अनाधिकृत व्यक्ति जिसकी शिकायत स्वयं तहसीलदार ने की है आज भी वह तहसील आ जा रहा है और बकायदा काम कर रहा है जबकि उसके ऊपर प्राथमिकी दर्ज है और उसकी गिरफ्तारी होनी चाहिए। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा की पूरे मामले में तहसीलदार स्वय उक्त अनाधिकृत व्यक्ति को संरक्षण दे रहें हैं और उसे बचाने की कोशिश कर रहें हैं जबकि होना यह था की तहसील कार्यालय में आने पर उक्त व्यक्ति की गिरफ्तारी तहसीलदार स्वयं कराते और मामले में न्याय का साथ देते।
किसान का रकबा घटने बढ़ने मामले में पटना तहसीलदार की भूमिका भी है संदिग्ध
तरगवां धान खरीदी केंद्र में एक किसान का रकबा बढ़ना और घटना और किसान का लगातार धान बेचते रहना मामले में पटना तहसीलदार की भूमिका भी संदिग्ध है। अनाधिकृत व्यक्ति को अपना शासकीय आईडी पासवर्ड देकर जहां तहसीलदार ने शासकीय गोपनीयता भंग की है वहीं तहसीलदार ने मामला सुर्खियों में आने के बाद अनाधिकृत व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई वहीं प्राथमिकी दर्ज कराकर जहां तहसीलदार को अनाधिकृत व्यक्ति की गिरफ्तारी में पुलिस की मदद करनी थी तहसीलदार पुनः अनाधिकृत व्यक्ति से तहसील में काम ले रहें हैं और वह खुलेआम घूम रहा है,ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा की अनाधिकृत व्यक्ति को तहसीलादार का संरक्षण प्राप्त है और उन्हीं की मर्जी से फर्जीवाड़ा हुआ है।
क्या कलेक्टर लेंगे मामले में संज्ञान,क्या होगी दोषियों पर कार्यवाही?
पूरे मामले में अब देखने वाली बात यह है की क्या कलेक्टर कोरिया मामले में संज्ञान लेंगे…क्या वह पूरे मामले में कार्यवाही करेंगे वहीं कहीं तहसीलदार को राजस्व का अधिकारी होने के नाते अभयदान तो नहीं मिलेगा।