बैकुण्ठपुर@पति नायब तहसीलदार तो पत्नी एसडीएम,कैसे मिलेगा लोगो को न्याय?

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  • राजस्व विभाग से जनता हो रही परेशान, क्लेक्टर साहब आप कब लेंगे संज्ञान?
  • तहसीलदार के आईडी से घटता व बढ़ता रहा रकबा फिर भी तहसीलदार पर कार्यवाही क्यों नहीं?
  • किसान से धोखाधड़ी करने वाले तीन पर केस दर्ज,जिस आईडी से हुआ हेरफेर उस पर कार्यवाही क्यों नहीं?
  • क्या अपनी आईडी किसी अनाधिकृत व्यक्ति को देना उचित,क्या तहसीलदार भी इसमें शामिल?
  • तहसील व एसडीएम कार्यालय में लोगो का काम करवाने में करनी पड़ती है मशक्कत
  • तहसीलदार नियम से हटकर बना रहे जमीन की चौहदी
  • पूरा विभाग दलालों के चंगुल में,हर कार्य के लिए समय नही बल्कि दर निर्धारित

-रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर 21 जनवरी 2023 (घटती-घटना)। कोरिया जिले में राजस्व विभाग के कारनामे से जनता बुरी तरह त्रस्त है, अपना काम कराने जनता को महीनो चक्कर लगाना पड़ता है, तहसीलदार एसडीएम कार्यालयो में पदस्थ अधिकारी कर्मचारियों की मनमानी रूकने का नाम नही ले रही है, जनता परेशान होती है तो होती रहे की तर्ज पर विभाग का काम चल रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण कि जिले के प्रषासनिक प्रमुख कलेक्टर द्वारा इस बारे में संज्ञान नही लिया जा रहा है, विभाग में सैकड़ो समस्याएं लंबित हैं समय पर किसी का काम नही हो रहा है,ऐसे प्रकरण जिसके समाधान के लिए समय भी निर्धारित किया गया है लेकिन यह सब मजाक बनकर रह गया है। जिले का हाल ऐसा है कि पति उसी अनुभाग में नायब तहसीलदार हैं तो पत्नी एसडीएम ऐसे में पक्षकार को न्याय कैसे मिलेगा यह भी सोचनीय है। तो वहीं अब तहसीलदार भी नियम से दूर हटकर स्वयं जमीन की चैहद्वी बना रहे हैं, राजस्व विभाग को अधिकारी कर्मचारी कम दलाल ज्यादा चला रहे हैं,प्रत्येक काम के लिए विभाग में हर स्तर पर दर तय कर दिया गया है। ऐसा बुरा हाल इस विभाग का पहले कभी नही रहा।
विभाग में समस्याओं का अंबार
कोरिया जिले का राजस्व विभाग समस्याओं का विभाग बनकर रह गया है, विभागीय कामकाज से लेकर आमजन का काम कराना इस विभाग में चुनौतीपूर्ण काम हो गया है। भू स्वामी अपनी भूमि संबंधी समस्या के लिए इस विभाग का चक्कर लगाते फिरते हैं, तहसीलदार और एसडीएम कार्यालय की व्यवस्था एकदम चरमराई हुई है। यहां पदस्थ कर्मचारी और अधिकारी एकदम बेलगाम हो चुके हैं। बिना चढोत्तारी के काम कराना नामुंकिन सा हो गया हैं। अधिकारी मनमर्जी पर ऊतारू हैं तो कर्मचारी कोई न कोई बहाना बनाकर हर काम टालने और जनता को परेशान करने में कोई कसर नही छोड़ रहे हैं। शिकायतें कार्यालयों में धूल खा रही हैं, पक्षकार घूम घूम कर परेशान हैं पेशी के लिए तारीख पर तारीख दिया जा रहा है। इस विभाग का हाल बेहाल है।
पटवारियों से काम कराना सबसे कठिन
राजस्व विभाग का प्रमुख अंग पटवारियों को माना जाता है, जमीन संबधी किसी भी काम की शुरूआत पटवारी से ही होती है। आमजन को सुविधा हो इसके लिए अलग-अलग हल्को में अलग-अलग पटवारी पदस्थ किये गये हैं वैसे तो पटवारी जनता की सुविधा के लिए हैं लेकिन धरातल पर इनकी स्थिति किसी से छिपी नही है। शायद ही कोई पटवारी ऐसा हो जो बिना सुविधा शुल्क के जमीन का काम करता हो। कई पटवारियों के बारे में बतलाया जाता है कि वे पटवारी गिरी के साथ साथ दलाली का काम भी करते हैं। अक्सर देखने में मिल रहा है कि भू-स्वामी पटवारियों के चक्कर काटते फिरते हैं। भू स्वामी किस कदर परेषान हैं उनका समय के साथ साथ सब कुछ व्यर्थ जा रहा है इससे पटवारियों को कोई मतलब नही होता। कई बार देखने में मिल रहा है कि वाजिब काम के लिए सभी कागजी कार्यवाही पूर्ण होने पर भी पटवारी भू स्वामियों को घुमाते रहते हैं।
तहसीलदार खुद बना रहे जमीन की चौहदी
विभाग में इन दिनो काले कारनामो की चर्चा आम हो चुकी है ऐसे ऐसे काम किये जा रहे है जो कि नियम से हटकर हैं अधिकारी बेपरवाह हैं और बगैर किसी भय के कोई भी काम धड़ल्ले से अंजाम दे रहे है। विष्वस्त सूत्रों के अनुसार बैकुंठपुर तहसीलदार द्वारा नियमो को धता बताते हुए जमीनो की चैहद्वी तक बनाई जा रही है। बतलाया जाता है कि कई ऐसे जमीन हैं जो कि विक्रय नही की जा सकती है,उन जमीनो की चैहद्वी बनाने से जब पटवारियों द्वारा मना कर दिया जाता है तो अपने अधिकारो से हटकर तहसीलदार द्वारा खुद ही चैहद्वी बना दी जा रही है जिसके बाद जमीन की रजिस्ट्री रजिस्टार द्वारा की जा रही है। वर्तमान तहसीलदार के कार्यकाल में अनेको ऐसे मामले हैं, यह अत्यंत ही जांच का विषय है।
एक अनुविभाग में पदस्थ है एसडीएम पति
जिला मुख्यालय में बैकुंठपुर एसडीएम के रूप में संयुक्त कलेक्टर अंकिता सोम पदस्थ हैं,दोहरा प्रभार के कारण कामकाज ठीक ढंग से नही हो पा रहा है। वहीं उनके पति समीर शर्मा इसी अनुविभाग के पटना उप तहसील में नायब तहसीलदार के रूप में कार्यरत हैं,एक दूसरे के कार्यो में दोनो का गजब हस्तक्षेप भी देखने को मिल रहा है। सूत्रो ने बतलाया कि एसडीएम अंकिता सोम के हस्तक्षेप से पूर्व में पटना में पदस्थ नायब तहसीलदार को सोनहत भेज दिया गया है।
पति के आदेश को कैसे बदलेंगी पत्नी
बतलाया जाता है कि यदि किसी पक्षकार द्वारा पटना उप तहसील में जमीन संबंधी कोई प्रकरण दर्ज कराया जाता है उसकी सुनवाई और उस पर निर्णय नायब तहसीलदार द्वारा ही लिया जाएगा। निर्णय से यदि पक्षकार असंतुष्ट है तो वह अपील अनुविभागीय अधिकारी के समक्ष करेगा, यहां पति नायब तहसीलदार और पत्नी अनुविभागीय अधिकारी हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि नायब तहसीलदार पति के आदेष को अनुविभागीय अधिकारी आखिर बदलेंगी। इस मामले में पक्षकार का हित प्रभावित होगा और उसे न्याय नही मिलेगा।
मुख्यालय तहसील की स्थिति और ज्यादा बदतर
विभाजन के बाद कोरिया जिले में बैकुंठपुर और सोनहत दो तहसील शेष हैं। पटना एवं बचरापोड़ी उप तहसील हैं। लेकिन सबसे ज्यादा बुरी स्थिति बैकुंठपुर तहसील की है। जिला मुख्यालय के तहसील में इतनी बुरी स्थिति हे कि पक्षकार परेषान है। यहां कर्मचारियों का बोलबाला है,अधिकारी बेपरवाह हैं। कई कर्मचारी वर्षो से जमे हुये हैं इस वजह से किसी को कुछ नही समझते। पक्षकारों ने बताया कि कुछ कर्मचारी अधिकारी को दिग्भ्रमित करते फिरते हैं। कर्मचारियों द्वारा दलालो को पूरा संरक्षण दिया जाता है,उनके लिए रात में भी कार्यालय का संचालन किया जाता है। जिला मुख्यालय मे ही एसडीएम और कलेक्टर कार्यालय है लेकिन तहसील की स्थिति एकदम चरमराई हुई है। लंबित प्रकरण की संख्या काफी अधिक है लेकिन इस ओर कभी ध्यान नही दिया जाता। विभाग मे पदस्थ कई पटवारी भी तहसील कर्मचारियों के कार्य व्यवहार से काफी परेशान रहते हैं।
विभाग में दलाल सक्रिय
जिले का राजस्व विभाग दलालो के चंगुल में हैं देखकर लगता है इस विभाग का संचालन उनके द्वारा ही किया जा रहा है। पटवारी से लेकर तहसील व एसडीएम कार्यालय के कर्मचारियों का दलालो से जबरजस्त सांठगांठ है,दलाल राजस्व विभाग से कोई भी काम आसानी से कराने का दावा करते फिरते हैं। जिला मुख्यालय में सक्रिय दलालो के गिरोहो द्वारा अधिकारियो को भी सारी सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। तहसील व एसडीएम कार्यालय में दलाल दिन भर सक्रिय दिखलाई देते हैं।
कार्य के लिए समय नहीं दर निर्धारित
राजस्व विभाग में वैसे तो हर काम के लिए शासन द्वारा एक समय सीमा निर्धारित की गई है,समय सीमा में काम करने का सूचना पटल कार्यालयों में लगाया गया है। लेकिन समय सीमा केवल दीवारो की शोभा बढाने तक सीमित है। शायद ही कोई काम हो जो कि समय पर पूरा किया जा रहा हो। सूत्र बतलाते हैं कि पटवारी से लेकिर आरआई,तहसीलदार व एसडीएम कार्यालय स्तर पर प्रत्येक कार्य के लिए दर निर्धारित कर दिया गया है। नामांतरण, बटवारा, जमीन की नपाई, चैहद्वी, परमिशन, डायवर्सन जैसे राजस्व विभाग से संबंधी समस्त कार्यो के लिए दर निर्धारित है। डायवर्सन के लिए जिला मुख्यालय में लगभग 20-25 हजार रूपये खर्च करना पड़ रहा है। जो व्यक्ति सुविधा शुल्क खर्च करने में सक्षम नही है उसे कार्यालय का चक्कर लगाना मजबूरी बन गया है। शुल्क देने पर तत्काल सुविधा भी उपलब्ध है।
कार्यालय से नदारत रहते हैं पति-पत्नी अधिकारी
जिले में प्रशासनिक व्यवस्था हाफ रही है, जनता परेशान है। पक्ष विपक्ष सिर्फ राजनैतिक रोटी सेकने में व्यस्त है। जनता की समस्याओं से किसी को लेना देना नही है। न तो कलेक्टोरेट में अधिकारी वर्ग मिलता है और न ही अन्य जिला कार्यालयों में। आमजन की ओर से मिल रही समस्या पर यदि गौर किया जाए तो आलम यह है कि बैकुंठपुर एसडीएम अंकिता सोम भी अपने कार्यालय में ज्यादा समय तक नही बैठती है तो वहीं उनके पति नायब तहसीलदार समीर शर्मा भी अपने कार्यालय पटना उप तहसील में भी काफी कम बैठते हैं। स्थिति देखकर लगता है कि पति-पत्नी अधिकारी एकदम मनमर्जी पर ऊतारू हैं जिससे कि आमजन परेषान हो रहे हैं। कलेक्टर का इस ओर ध्यान न देना भी परेशानी का सबब बन गया है। यह हम नहीं कार्यालय का चक्कर लगने वाले का कहना है।
कलेक्टर कभी नहीं लेते संज्ञान,चरमराई व्यवस्था
जिले में प्रशासनिक प्रमुख कलेक्टर द्वारा कभी भी इस ओर संज्ञान नही लिया जाता है। जब भी नए कलेक्टर की पदस्थापना होती है, तो उनके द्वारा एकाध बार तहसील, एसडीएम कार्यालयो का औचक निरीक्षण कर औपचारिकता पूरी कर दी जाती है उसके बाद कलेक्टर भी इन कार्यालयो की ओर झांक कर नही देखते। मातहत अधिकारी भी कलेक्टर को झूठी जानकारी देकर वाहवाही लूटते रहते हैं। अक्सर देखने को मिलता है कि जब एसडीएम व तहसील कार्यालय संबंधी कोई भी समस्या या परेषानी कलेक्टर तक पहुंचती है तो संबंधित स्टाफ को बचाने अधिकारी द्वारा कलेक्टर को भी दिग्भ्रमित कर षिकायत करने वाले व्यक्ति को ही फर्जी बता दिया जाता है। षिकायत मिलने पर खानापूर्ति कर दी जाती है जिससे कि विभागीय कर्मचारियो के हौसले बुलंद रहते हैं। कलेक्टर द्वारा यदि समय समय पर तहसील व एसडीएम कार्यालय का निरीक्षण कर आम जन को हो रही परेषानी को देखा जाए तो व्यवस्था और भर्राषाही में सुधार हो सकता है लेकिन कलेक्टर द्वारा इस ओर ध्यान नही दिया जाता जिससे कि व्यवस्था एकदम चरमराई हुई है। जाहिर सी बात है आम जन का सबसे ज्यादा काम राजस्व विभाग से ही पड़ता है, इस विभाग से ही शासन की छवि भी बनती और बिगड़ती है,जिले में राजस्व विभाग का हाल बेहाल है ऐसे में शासन की छवि भी धुमिल हो रही है।
तहसीलदार के आईडी से घटता व बढ़ता रहा रकबा फिर भी तहसीलदार पर कार्यवाही क्यों नहीं?
कोरिया जिले में एक गजब का मामला सामने आया है। यह मामला पटना तहसील व पटना धान खरीदी केंद्र से जुड़ा हुआ है। जहां पर एक किसान धान बेचने के लिए तहसील कार्यालय से जमीन का रकबा बढ़वाता था और फिर धान बेचने के बाद राशि आहरण कर उस रकबा को कम करवा देता था। यह खेल कब से चल रहा है, यह तो जांच का विषय है। परंतु ऐसा करके किसान ने काफी राशि का लाभ अर्जन किया। संदेह होने पर जब मामले की जांच की गई तो जांच में यह पाया गया कि उक्त किसान अन्य व्यक्तियों के रकबे को अपने खाते में शामिल करा कर समिति में धान बेचता था, एवं राशि आहरण पश्चात अपने रकबे को मूल रूप से परिवर्तित करा लेता था। चूंकि समिति में पंजीकृत किसानों के रकबे में परिवर्तन तत्संबंधित तहसीलदार की आईडी से ही संभव होता है, अतः कहीं ना कहीं पूरे मामले में संबंधित तहसीलदार एवं वहां कार्यरत कर्मचारियों की भूमिका भी संदेहास्पद है। बगैर मिलीभगत के रकबा में परिवर्तन का यह खेल संभव नहीं है। इस पूरे मामले में सहकारी समिति के कर्मचारियों की भूमिका भी संदिग्ध है, क्योंकि रकबे के पंजीयन की कार्यवाही वहीं से प्रारंभ होती है।
क्या एफआईआर सिर्फ अशासकीय कर्मचारी पर?
पूरे मामले में तहसील कार्यालय में कार्यरत अवैधानिक तरीके से कार्य कर रहे कंप्यूटर ऑपरेटर की बात हो या फिर सहकारी समिति के कर्मचारियों के संलिप्तता की। उनके ऊपर केवल एफआईआर और जांच प्रकरण ही संभव है, बड़ी कार्यवाही के नाम पर न तो उनकी शासकीय नौकरी जा सकती है और ना उनसे नुकसान की भरपाई कराई जा सकती है। क्योंकि विडंबना ऐसी है कि यै शासकीय कर्मचारी नहीं अपितु शासन के इतने महत्वपूर्ण कार्य को देख रहे व्यवस्था के तहत कार्यरत कर्मचारी हैं। ना तो इनकी नियुक्ति वाजिब तरीके से हुई है, ना ही इनके पास किसी प्रकार के कोई कार्य आदेश हैं। बल्कि समिति में कार्यरत यह लोग राजनीतिक रसूख वाले व्यक्तित्व के द्वारा उपकृत हैं और शायद यही कारण है कि बड़े-बड़े गोलमाल करने का यै दुस्साहस आसानी से जुटा लेते हैं। क्योंकि इन्हें किसी प्रकार की कार्यवाही या नौकरी जाने का भय नहीं रहता। विडंबना तो इस बात की है कि ऐसे जिम्मेदारी पूर्वक कार्य करने के लिए व्यवस्था के तहत कर्मचारी ही क्यों रखे जाते हैं। जबकि इनके स्थान पर शासकीय कर्मचारियों की नियुक्ति की जा सकती है।
असली जिम्मेदारों का नाम एफआईआर से गायब क्यों?
उपरोक्त पूरे मामले में जहां तहसीलदार की आईडी का बारंबार प्रयोग रकबे में हेरफेर के लिए किया गया है। तो कहीं ना कहीं पूरे प्रकरण की जिम्मेदारी भी उन पर आयद होती है। साथ ही इतने बड़े गोलमाल की जानकारी सहकारी समिति में कार्यरत कर्मचारियों की सहमति के बगैर संभाव्य हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता है। अतः पूरे प्रकरण में केवल धान कोचिया और तहसील में निजी रूप से कार्यरत कंप्यूटर ऑपरेटर पर हि अपराध दर्ज कर जिम्मेदार अधिकारियों को प्रकरण से परे रखना आश्चर्य का विषय है।


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