बैकुण्ठपुर@तहसीलदार के आईडी से घटता व बढ़ता रहा रकबा फिर भी तहसीलदार अनजान कैसे?

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  • किसान से धोखाधड़ी करने वाले तीन आरोपियों पर केस दर्ज,जिस आईडी से हुआ हेरफेर वह आईडी थी तहसीलदार की:सूत्र
  • तहसील कार्यालय में तहसीलदार अनाधिकृत व्यक्ति को निजी तनख्वाह पर रख करते हैं इतना भरोसा कि अपनी आईडी तक दे देते
  • क्या अपनी आईडी किसी अनाधिकृत व्यक्ति को देना उचित,कहीं तहसीलदार भी तो इसमें नहीं थे शामिल ?
  • किसान ने तहसील कार्यालय के कर्मचारियों से मिलकर रकबा परिवर्तन कर लाखों का लाभ लिया,तहसीलदार की भी भूमिका संदिग्ध
  • राजस्व विभाग का सारा दारोमदार होता है तहसीलदार पर,व्यक्तिगत आईडी का गैर जिम्मेदार व्यक्ति के पास पाया जाना बनाता है मामले को संदिग्ध

रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 12 जनवरी 2023 (घटती-घटना)। कोरिया जिले में एक गजब का मामला सामने आया है। यह मामला पटना तहसील व पटना धान खरीदी केंद्र से जुड़ा हुआ है। जहां पर एक किसान धान बेचने के लिए तहसील कार्यालय से जमीन का रकबा बढ़वाता था और फिर धान बेचने के बाद राशि आहरण कर उस रकबा को कम करवा देता था। यह खेल कब से चल रहा है, यह तो जांच का विषय है। परंतु ऐसा करके किसान ने काफी राशि का लाभ अर्जन किया।
संदेह होने पर जब मामले की जांच की गई तो जांच में यह पाया गया कि उक्त किसान अन्य व्यक्तियों के रकबे को अपने खाते में शामिल करा कर समिति में धान बेचता था, एवं राशि आहरण पश्चात अपने रकबे को मूल रूप से परिवर्तित करा लेता था। चूंकि समिति में पंजीकृत किसानों के रकबे में परिवर्तन तत्संबंधित तहसीलदार की आईडी से ही संभव होता है, अतः कहीं ना कहीं पूरे मामले में संबंधित तहसीलदार एवं वहां कार्यरत कर्मचारियों की भूमिका भी संदेहास्पद है। बगैर मिलीभगत के रकबा में परिवर्तन का यह खेल संभव नहीं है। इस पूरे मामले में सहकारी समिति के कर्मचारियों की भूमिका भी संदिग्ध है, क्योंकि रकबे के पंजीयन की कार्यवाही वहीं से प्रारंभ होती है।
मामले में जांच उपरांत एफआईआर दर्ज
पुलिस अधीक्षक कोरिया त्रिलोक बंसल, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रोहित झा एवं पुलिस अनुविभागीय अधिकारी बैकुंठपुर कविता ठाकुर के निर्देशन पर तथा नायब तहसीलदार समीर शर्मा उप तहसील पटना के जांच उपरांत एवं लिखित शिकायत पर इस आशय का प्रतिवेदन पेश करने पर की वर्ष 2021-22 में धान कोचिया अजय कुमार कुशवाहा आ0 कैलाश नाथ निवासी अमहर द्वारा अन्य किसानों प्रताप सिंह, शिवनाथ एवं अनुराधा की जानकारी एवं उनकी सहमति के बिना उनके स्वामित्व की भूमि को अपने खाते में विधि विरुद्ध रूप से अधिक धान की फसल की बिक्री कर 319350 रु0 अवैध लाभ कराकर पात्रता अर्जित करते हुए संबंधित कृषकों एवं शासन को क्षति पहुंचाया गया है। इसी प्रकार इस वर्ष भी उक्त व्यक्ति द्वारा उपरोक्त कार्य की पुनरावृति की जा रही थी, जिस संबंध में जाँच प्रारंभ होने पर अजय कुमार कुशवाहा द्वारा अपने भाई व सह खातेदार अरविंद कुशवाहा आ. कैलाश नाथ के सहयोग से उप तहसील कार्यालय पटना की आईडी के माध्यम से बिना संबंधित अधिकारी की जानकारी के तहसील कार्यालय पटना में कार्यरत ऑपरेटर संजीव कुमार की सहायता से तथा अरविन्द कुशवाहा की सक्रियता/संलिप्तता से अन्य किसानों के नाम अपने पंजीकृत खाते से हटवा दिया गया। इस प्रकार प्रकरण में प्रथम दृष्टतयाः अजय कुशवाहा, अरविन्द कुशवाहा एवं कम्प्यूटर ऑपरेटर संजीव कुमार दोषी होना पाये जाते है, उपरोक्त कंडिका 1 में उल्लेखित तथ्यों के आधार पर दोषी व्यक्तियों के द्वारा धारा 409 , 420 , 120 बी , 467 , 468 , 471, भादवि एवं 66 घ आईटी एक्ट का अपराध घटित करना पाए जाने से थाना पटना में अपराध कायम कर विवेचना कार्यवाही में लिया गया।
असली जिम्मेदारों का नाम एफआईआर से गायब क्यों?
उपरोक्त पूरे मामले में जहां तहसीलदार की आईडी का बारंबार प्रयोग रकबे में हेरफेर के लिए किया गया है। तो कहीं ना कहीं पूरे प्रकरण की जिम्मेदारी भी उन पर आयद होती है। साथ ही इतने बड़े गोलमाल की जानकारी सहकारी समिति में कार्यरत कर्मचारियों की सहमति के बगैर संभाव्य हो, ऐसा प्रतीत नहीं होता है। अतः पूरे प्रकरण में केवल धान कोचिया और तहसील में निजी रूप से कार्यरत कंप्यूटर ऑपरेटर पर हि अपराध दर्ज कर जिम्मेदार अधिकारियों को प्रकरण से परे रखना आश्चर्य का विषय है।
एनआईसी की सजगता से पकड़ में आया फर्जीवाड़ा:सूत्र
सूत्रों की माने तो एनआईसी में कार्यरत तकनीकी विशेषज्ञों ने इस फर्जीवाड़े को पकड़ा। जब बार बार रकबा बढ़ाया जाता था, फिर धान बेचने के बाद घटाया जाता था, एक ही खाते में बार-बार होने वाले इस परिवर्तन को एनआईसी में कार्यरत तकनीकी विशेषज्ञ ने संदेहास्पद समझा और जिसकी जानकारी एनआईसी की तरफ से ही कोरिया कलेक्टर के पास दी गई थी। जिसके बाद कोरिया कलेक्टर ने जांच और कार्रवाई करने को निर्देशित किया था। पर संबंधित तहसीलदार द्वारा लेट लतीफ किया जा रहा था। यह मामला पुराना भी है और नया भी, अर्थात यह कोई ताजा मामला नहीं अपितु पूर्व के वर्षों से ही उक्त खातों में धान बेचने और शासन को चुना लगाने की मंशा से हेरफेर की जा रही थी। मामले में ऊपर से कार्यवाही करने के लिए कहा गया है, पर इस कार्यवाही में भी गड़बड़झाला की स्थिति निर्मित की जा रही है। जिम्मेवार को बचाया जा रहा है, और अवैधानिक तरीके से तहसील में कार्यरत डाटा एंट्री ऑपरेटर पर पूरा ठीकरा फोड़ने की तैयारी है।
हाई कोर्ट के जजमेंट के अनुसार किसी भी कार्यालय में अनधिकृत व्यक्ति को रखना गैरकानूनी, फिर कैसे हो रहा था पटना तहसील में काम?
पूरे प्रकरण में सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि छत्तीसगढ़ शासन ने उच्च न्यायालय बिलासपुर के आदेश का पालन करते हुए सभी शासकीय कार्यालयों में अनाधिकृत व्यक्ति को? हटाने का आदेश दिया था। इसके बावजूद तहसील कार्यालय में अनाधिकृत रूप से कई व्यक्ति लंबे समय से काम कर रहे थे, जो कि शासकीय कर्मचारी नहीं है, बल्कि निजी कंप्यूटर ऑपरेटर हैं। अद्भुत बात तो यह भी है कि निजी कंप्यूटर ऑपरेटर को तहसीलदार ने अपनी आईडी भी सौंप दी। जबकि तहसीलदार की आईडी से पूरे तहसील क्षेत्र के राजस्व के सारे दस्तावेज एवं मामले संचालित किए जाते हैं। यह घोर लापरवाही का और अपराधिक मनोवृति का विषय है। जब अचानक यह मामला सामने आया उसके बाद अनाधिकृत रूप से कंप्यूटर ऑपरेटर का कार्य कर रहे व्यक्ति पर पूरा ठीकरा फोड़ते हुए अधिकारी अपने बचाव में जुट गए हैं। सवाल यह है कि आखिर तहसीलदार जैसे लोकसेवक अपना अधिकृत आईडी पासवर्ड एक अनाधिकृत व्यक्ति को कैसे दे दिए, जिसने किसान के साथ मिलकर बारबार पंजीयन में हेरफेर किया और किसान को लाभ पहुंचा दिया। यह एक सोचनीय व जांच का विषय है, पर शायद इस पहलू पर पुलिस भी ध्यान नहीं दे रही होगी क्योंकि तहसीलदार भी इस लपेटे में आ सकते हैं। पूरे प्रकरण में जांच का विषय तो यह भी है कि यह इकलौता मामला है या इसके जैसे और भी कई मामले तहसीलदार की आईडी द्वारा हेरफेर कर किए गए हैं। क्योंकि अभी कुछ दिन पूर्व सहकारी समिति तरगंवा में जब एक किसान के 110 बोरी धान के जब्ती की बात आई थी, तब भी यह मामला प्रकाश में आया था, कि उक्त किसान के पंजीयन में विगत वर्ष से ही अन्य लोगों के जमीन के रकबे जुड़े हुए हैं। जबकि किसान ने ऐसा कोई प्रयास भी व्यक्तिगत रूप से नहीं किया है। साथ ही एक मामला और प्रकाश में आया है, जहां सहकारी समिति तरगंवा में एक किसान ऐसा भी है जिसके पास वास्तव में कोई भूमि नहीं है। परंतु सैकड़ों मि्ंटल धान बेचने के लिए उसका पंजीयन समिति में पंजीकृत है। जिसकी शिकायत उच्च अधिकारियों के पास लंबित है। यदि पूरे प्रकरण की गहराई से जांच की जाए तो ऐसे मामलों में सहकारी समिति में कार्यरत कर्मचारियों की संदिग्ध भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
क्या केवल एफआईआर… या कार्यवाही होगी,क्योंकि कर्मचारी शासकीय नहीं?
पूरे मामले में तहसील कार्यालय में कार्यरत अवैधानिक तरीके से कार्य कर रहे कंप्यूटर ऑपरेटर की बात हो या फिर सहकारी समिति के कर्मचारियों के संलिप्तता की। उनके ऊपर केवल एफआईआर और जांच प्रकरण ही संभव है, बड़ी कार्यवाही के नाम पर न तो उनकी शासकीय नौकरी जा सकती है और ना उनसे नुकसान की भरपाई कराई जा सकती है। क्योंकि विडंबना ऐसी है कि यै शासकीय कर्मचारी नहीं अपितु शासन के इतने महत्वपूर्ण कार्य को देख रहे व्यवस्था के तहत कार्यरत कर्मचारी हैं। ना तो इनकी नियुक्ति वाजिब तरीके से हुई है, ना ही इनके पास किसी प्रकार के कोई कार्य आदेश हैं। बल्कि समिति में कार्यरत यह लोग राजनीतिक रसूख वाले व्यक्तित्व के द्वारा उपकृत हैं और शायद यही कारण है कि बड़े-बड़े गोलमाल करने का यै दुस्साहस आसानी से जुटा लेते हैं। क्योंकि इन्हें किसी प्रकार की कार्यवाही या नौकरी जाने का भय नहीं रहता। विडंबना तो इस बात की है कि ऐसे जिम्मेदारी पूर्वक कार्य करने के लिए व्यवस्था के तहत कर्मचारी ही क्यों रखे जाते हैं। जबकि इनके स्थान पर शासकीय कर्मचारियों की नियुक्ति की जा सकती है।
जिन पर है एफआईआर दर्ज, उसमे से एक हैं अधिवक्ता तो दूसरे हैं सहकारी समिति में कांग्रेस की ओर से निगरानी सदस्य
जिन पर है एफआईआर दर्ज, उसमे से एक हैं अधिवक्ता तो दूसरे हैं सहकारी समिति में कांग्रेस की ओर से निगरानी सदस्य
उक्त पूरे प्रकरण में जिन धान कोचियों? पर विभिन्न धाराओं में प्रकरण दर्ज किया गया है, दोनों सगे भाई हैं, और उच्च शिक्षित भी। दोनों आरोपीगणों में एक जिला एवं सत्र न्यायालय बैकुंठपुर में अधिवक्ता हैं, और दूसरे कांग्रेस पार्टी द्वारा सहकारी समितियों में बनाई गई निगरानी दल के सदस्य। कहने का तात्पर्य यह है कि कांग्रेस पार्टी द्वारा जिसे किसानों की सुविधाओं के लिए सहकारी समिति तरगंवा में निगरानी समिति का सदस्य बनाया गया है, उसी के द्वारा किसानों को फायदा पहुंचाना तो दूर, फर्जीवाड़ा कर शासन को चूना लगाने की मंशा से बिना किसी अनुमति के अन्य किसानों का रकबा अपने खाते में जुड़वा कर धान बिक्री का विगत वर्षों से किया जा रहा है। जब सत्ताधारी पार्टी द्वारा ऐसे लोगों की नियुक्ति की जाएगी जो किसानों के हित के बजाय उनके शोषण का कार्य करें, तो किसानों को समृद्ध बनाने की शासन की महत्वकांक्षा धरी की धरी रह जाएगी। अब देखने वाली बात यह होगी कि जिला कांग्रेस कमेटी इस मामले पर उक्त आरोपी के विरुद्ध क्या रुख अख्तियार करती है?


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