बैकुण्ठपुर@पक्ष विपक्ष की निगरानी समिति के बावजूद किसान धान खरीदी केंद्र में क्यों हो रहे परेशान?

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  • किसान भाजपा सरकार में 18 सौ पाकर भी थे पीडि़त और कांग्रेस सरकार में 25 सौ पाकर भी पीडि़त है क्यों?
  • पटना समिति में प्रबंधक मुंह देखा देखी कर किसानों की कर रहे धान खरीदी,धान में निकालते हैं नुक्स, मांगा पूरी होने पर सारे नुक्स हो जाते हैं समाप्त
  • किसान समितियों में धान बेचने के लिए किस कदर हो रहा परेशान शायद कुर्सी पर बैठे लोगों को नहीं आ रहा समझ
  • 4 साल किसके लिए बेमिसाल किसान तो आज भी परेशान?
  • मिट्टी का मुर्ग युक्त घटिया किस्म वर्मी कंपोस्ट खरीदने का दबाव किसान पर क्यों?
  • किसान पर 3 हजार का वर्मी कंपोस्ट खरीदने का इतना दबाव कि नहीं लेने पर बाकी खाद से भी हो रहे वंचित
  • सरकार मना रही 4 वर्षों की गौरव दिवस, वहीं किसान सहकारी समितियों की जबरदस्ती से परेशान
  • धान को खराब बता जबरन किसानों से क्यों हो रही उगाही, चढ़ावे के बाद वही धान कैसे हो जाता है सही?
  • अधिकारियों के दौरे भी केवल संधारित पंजी निरीक्षण तक सीमित,किसानों से कोई सरोकार नहीं
  • किसी तरह काम हो जाए इस मबुरी में किसान भी नहीं हो पाते लामबंद
  • सहकारी समितियों में गठित निगरानी समिति केवल कागजों तक सीमित
  • प्रति कुंटल 25 सौ रूपए धान के एवज में सैकड़ों समस्याओं का जवाबदेह कौन?

रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 18 दिसम्बर 2022 (घटती-घटना)। कहने को तो छत्तीसगढ़ किसानों का प्रदेश है और प्रदेश में तथाकथित किसान हितैषी सरकार भी विगत 4 वर्षों से विराजमान है। जो अपनी उपलब्धियों और 4 वर्षों के सफर को लेकर पूरे छसगढ़ में गौरव यात्रा का आयोजन कर रही है। वहीं दूसरी ओर विपक्ष भी सरकार के विगत 4 वर्षों के कार्यकाल को लेकर आईना दिखाने के लिए प्रत्येक जिले में प्रेस वार्ता कर सरकार की असफलताओं को गिना रही है। परंतु वास्तविकता के धरातल पर आम जनता की उम्मीदों पर ना तो सरकार की संवेदनाएं हैं और ना ही विपक्ष की सहानुभूति। दोनों अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने को तत्पर हैं। वही किसानों की दुर्गति सर्वव्याप्त है। प्रदेश में धान खरीदी का सीजन चल रहा है। सरकार और प्रशासन के किसान हित में सैकड़ों दावे हैं। नेता से लेकर अधिकारी तक सतत मॉनिटरिंग में जुटे हुए हैं। वहीं विपक्ष भी पीछे नहीं है। लगभग सभी नेताओं के कदम आए दिन किसी न किसी सहकारी समिति में पड़ रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों द्वारा कागजी निगरानी समितियों का गठन किया गया है। सबके अपने-अपने प्रारब्ध हैं, जो उन्हें सर्वोच्च किसान हितैषी बनने का मुखौटा प्रदान कर रहे हैं। परंतु समस्याओं की जड़ें इतनी गहरी हैँ कि सारे दावे धरातल पर खोखले नजर आ रहे हैं।


पक्ष-विपक्ष के नेता समितियों में किसान हितैषी बनकर घूम रहे,समस्याओं के समाधान में असफल
जहां एक और समितियों में किसानों के समक्ष सैकड़ों समस्याएं विद्यमान हैं। वहीं स्वयं को सर्वोच्च किसान हितैषी बताने के लिए पक्ष और विपक्ष के छोटे से लेकर बड़े नेता प्रतिदिन समितियों का निरीक्षण और दौरा कर रहे हैं। सोशल मीडिया और अखबार की सुर्खियां बनने के लिए किसानों के साथ फोटो खिंचवाने से लेकर तमाम तरह की गतिविधियों को क्रियान्वित करने वाले तथाकथित किसान हितैषी नेताओं की पोल उस समय खुल जाती है जब किसान समितियों की मनमानी, वहां व्याप्त अव्यवस्था और जबरन उगाही का शिकार होकर घर लौटता है। समितियों में बारदाने प्राप्ति से लेकर धान की भराई, तौलाई और समिति के सुपुर्दनामे तक कदम कदम पर किसानों की जेबें ढीली हो रही है। चाहे वह मनमानी हमाली राशि के रूप में हो, या धान को खराब बता उसके एवज में रुपयों की वसूली हो, वास्तविक किसान हर कदम पर ठगा जा रहा है। जबकि रसूख वाले लोग और राजनीतिक पार्टियों से संबंधित लोगों के कार्य समितियों में बड़ी आसानी से निपटते हैं।
किसानों को धान बेचने और खाद बीज लेने के एवज में कथित वर्मी कंपोस्ट लेने को जबरन किया जा रहा मजबूर
शासन की अति महत्वाकांक्षी योजना ग्रामीणों से गोबर खरीद कर उनके आय में वृद्धि करने की मंशा बहुत अच्छी थी। परंतु अब उसी गोबर को गौठानों के जरिए वर्मी कंपोस्ट में तब्दील कर जबरन किसानों को बेचा जाना अत्याचार नजर आ रहा है। अत्याचार इसलिए क्योंकि गोबर को वर्मी कंपोस्ट में परिवर्तित होने के लिए लगभग 5 छह माह का समय लगता है। परंतु गौठान समूहों पर इतना दबाव है की उन्हें उक्त गोबर को एक डेढ़ माह में ही वर्मी कंपोस्ट के रूप में तब्दील कर समितियों में पहुंचाना है। क्योंकि प्राकृतिक रूप से इतने कम समय में वर्मी कंपोस्ट का निर्माण संभव नहीं है। अतः अधिकतम गौठान समूह उक्त गोबर को तथाकथित वर्मी कंपोस्ट दिखाने के लिए उसमें अत्यधिक मात्रा में मुरूम या रेत का मिलावट कर रहे हैं। जो किसानों के लिए किसी भी प्रकार से लाभदायक नहीं है। तात्पर्य है कि जो गोबर सरकार समूहों के माध्यम से 2 रूपए प्रति किलो खरीद रही है, उसी गोबर में रेत और मुरूम मिलाकर समितियों के माध्यम से किसानों को 10 रूपए प्रति किलो की दर से खरीदने पर मजबूर किया जा रहा है। यदि किसान इस वर्मी कंपोस्ट को खरीदने से इंकार करता है, तो उसे धान खरीदी का टोकन नहीं जारी किया जाता और समिति से अन्य रासायनिक उर्वरक खाद और बीज भी प्रदाय नहीं किया जा रहा है। और ऐसा भी उन्हीं किसानों के साथ किया जा रहा है जो वास्तव में किसान हैं। धान के व्यापारी, बिचौलिए, समाज के रसूखदार और राजनीतिक पार्टी से संबंधित लोगों को यह वर्मी कंपोस्ट नहीं दिया जाता। यह दोहरी नीति किसान हितैषी यों को दिखाई नहीं देती।
वर्मी कंपोस्ट लेने से मना करने पर किसान को बैरंग वापस लौटाया, खुले बाजार से खाद खरीदने की दी नसीहत
ताजा मामला पटना सहकारी समिति का है, जहां चंपाझार के एक किसान ने गेहूं और सरसों की फसल बुवाई के लिए समिति में खाद लेने की गुजारिश की तो पहले तो समिति प्रबंधक अनुप कुशवाहा ने उसे वर्मी कंपोस्ट क्रय करने के बाद ही खाद देने की बात की। जब किसान ने अत्यधिक मात्रा में वर्मी कंपोस्ट लेने से मना किया और कहा कि मुझे इतने वर्मी कंपोस्ट की आवश्यकता नहीं है, तो समिति प्रबंधक ने किसान से दुर्व्यवहार करते हुए उसे झिड़क दिया और खाद देने से इनकार कर दिया। यहां तक की समिति प्रबंधक ने उसे खुले बाजार से खाद देने की नसीहत दे डाली। उक्त समिति प्रबंधक के किसानों से दुर्व्यवहार के कई मामले सामने आ चुके हैं। सत्तापक्ष से जुड़े होने का धौंस और तमाम शिकायतों के बाद भी कोई कार्यवाही ना होने के कारण प्रबंधक का हौसला बुलंद है। जबकि प्रबंधक की मनमानी के कारण आम किसान आए दिन परेशान हो रहे हैं।
लगभग प्रतिदिन समितियों में पहुंच रहे नेता, परंतु हमाली राशि किसानों को ही देनी पड़ रही
सरकार, सत्तापक्ष, प्रशासन चाहे जितने दावे कर ले परंतु आज तक किसी ने भी धान खरीदी के समय शासन द्वारा दी जाने वाली हमाली राशि का भुगतान समिति प्रबंधकों से कराने का हौसला नहीं किया। यह राशि सदा किसानों की जेब से ही वसूली जाती रही है, और आज भी वसूली जाती है। जबकि धान खरीदी के पूर्व तमाम तरह के दावे किए जाते हैं। समितियों का दौरा किया जाता है, सतत निगरानी, निरीक्षण की जाती है। परंतु सैकड़ों शिकायतों के बाद भी प्रशासन, अधिकारी, पक्ष और विपक्ष के नेताओं को किसानों की यह समस्या दिखाई नहीं देती। जबकि यदि सुक्ष्मता से जांच की जाए तो प्रत्येक समितियों में मिलने वाली लाखों की इस राशि का हर वर्ष समिति प्रबंधकों द्वारा गबन कर लिया जाता है। समितियों में तैनात हमाल किसानों से अनाप-शनाप पैसा वसूलते हैं, जिसमें समिति में कार्यरत कर्मचारियों का भी अहम योगदान होता है। लाचार और मजबूर किसान अपने मेहनत से उपार्जित धान को बेचने के लिए 100 तरह के जतन करता है और अंततः अपनी जेब भी ढीली करता है।
धान को खराब बता जबरन किसानों से उगाही, चढ़ावे के बाद धान हो जाता है सही
धान खरीदी को लेकर किसान यदि सबसे अधिक परेशान हैं तो वह पटना समिति में यहां पर समिति प्रबंधक का व्यवहार किसानों के लिए कुछ अच्छा नहीं है, जब से इन्होंने कांग्रेस का पट्टा पहना है तब से उनके व्यवहार में परिवर्तन आ गया है, किसानों से तो ऐसा बात करते हैं जैसा लगता है कि इस क्षेत्र के किसान इनके पास धान बेचकर कोई गुनाह कर रहे हो, इनके धान को इस कदर खराब निम्न स्तर का बताकर परेशान किया जाता है पर यही धान तब सही हो जाता है जब किसान समिति से धान वापस ना ले जाकर परेशान होने में होने वाले खर्च को को इनके ऊपर चढ़ा देता है, ऐसे ही कई किसानों ने समिति प्रबंधक पर आरोप लगाते हुए बताई है। यहां तक की समिति प्रबंधक किसान यदि वर्मी कंपोस्ट खाद नहीं लेता है तो उसे अन्य खाद्य भी नहीं देते हैं बोलते हैं यह ऊपर का आदेश है बाकी खाद चाहिए तो वर्किंग कंपोस्ट घटिया ही क्यों ना हो आपको लेना पड़ेगा, अब यह तो गजब जबरदस्ती है किसानों का अच्छा धान खराब पर प्रशासन द्वारा दिए जा रहे वर्मी कंपोस्ट खराब होने के बाद भी अच्छा कैसे?
अधिकारियों के दौरे भी केवल संधारित पंजी निरीक्षण तक सीमित, किसानों से कोई सरोकार नहीं
अधिकारियों का दौरा इसलिए समितियों में किया जाता है ताकि किसानों की परेशानी को अधिकारी समझें और उनकी परेशानी को दूर करें पर उनका दौरा तो सिर्फ पंजी में रह जाता है, किसान की समस्या तो वही की वही रहती है इनके दौरे सिर्फ रजिस्टर में खानापूर्ति के लिए सिर्फ दर्द होता है, बाकी किसान की समस्या कोई नहीं सुनता सब अपनी हाजिरी पका कर चलते बनते हैं।
किसी तरह काम हो जाए, इस वजह से किसान भी नहीं हो पाते लामबंद
पटना समिति में किसान बड़ी मेहनत से फसल को उगा कर उसकी साफ-सफाई कर धान को बोरे में भरकर गाड़ी किराए कर धान बेचने समिति पहुंचता है पर जब समिति पहुंचने पर समिति द्वारा उनके धान को खराब बता दिया जाता है और कई घंटों तक उनके सात वाद विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है, उसके बाद किसान यह सोचता है कि मैं यदि धान को फिर लेकर जाऊंगा तो फिर मेरे को लाने ले जाने में अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा तो क्यों ना उस खर्च का पैसा समिति के लोगों को ही दे दिया जाए और जैसे ही यह पैसा समिति को प्राप्त होता है उनका धान सही हो जाता है, गजब का खेल समितियों में चल रहा है पर किसान करे तो करे क्या? यह तो वही वाली कहावत हो गई सैंया भए कोतवाल तो डर किस बात का।
सहकारी समितियों में गठित निगरानी समिति केवल कागजों तक सीमित
निगरानी समिति भी गजब की है सिर्फ वह किसानों के साथ अपना जनसंपर्क साध रही है क्योंकि 2023 आने वाला है उसका हितेषी बनना है बताना है ताकि 2023 में उनकी सहानभूति बहुत मिले और हम जीत जाए पर क्या सहानभूति से ही किसान खुश होगा या फिर वाकई में उसकी परेशानी कोई दूर करने आएगा, किसान के नाम पर खूब होती है राजनीति पर किसान की समस्या तो चढ़ जाती है राजनीति की भेंट।
प्रति कुंटल 25 रूपए धान के एवज में सैकड़ों समस्याओं का जवाबदेह कौन ?
बीजेपी के समय में किसान को 1850 मिल रहे थे पर धान बेचने में कोई पाबंदी नहीं थी तब किसान रकम कम होने की वजह से वह बोनस ना मिलने की वजह से उस सरकार से नाराज था जब वर्तमान सरकार ने अपने दिए हुए वादे के साथ 25 सौ रुपए देना शुरू किया तो किसानों को उचित मूल्य मिलने लगा पर उचित मूल्य के साथ समस्याएं भी कई मिलने लगी, अब यह समस्या सरकार के 5 साल खत्म होने को है फिर भी यह समस्या जारी है और यह समस्या है तो सिर्फ किसानों पर अतिरिक्त दबाव का, कभी खाद खरीदने का दबाव तो कभी बोरे को लेकर समस्या तो कभी धान खराब है तो कभी धान मोटा है तो कभी धान पतला है ऐसे ऐसे समस्याओं के बीच किसान जैसे तैसे धान बेच पाता है कभी टोकन में दिक्कत आती है तो कभी खाद लेने में दिक्कत आती है।


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