अम्बिकापुर@ईसाई समुदाय द्वारा उरांव नृत्य महोत्सव के आयोजन पर आदिवासी समाज आक्रोशित

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अम्बिकापुर 20 अक्टूबर 2022(घटती-घटना)। ईसाई आदिवासी महासभा द्वारा अम्बिकापुर में आयोजित होने वाले उराँव नृत्य महोत्सव के आयोजन पर रोक लगाने के लिए जनजाति गौरव समाज, आदिवासी उरांव समाज एवं मूली पड़हा संगठन ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन सौंपकर आरोप लगाया कि ईसाई आदिवासी महासभा ईसाई धर्म को मानने वालों का संगठन है, जिनके द्वारा 8 नवंबर को राजीव गाँधी शासकीय महाविद्यालय अंबिकापुर के खेल मैदान में उराँव नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों के द्वारा उरांव समाज की संस्कृति, परंपरा एवं रूढç¸ प्रथा के विपरीत समाज की भावना को आहत करते हुए यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। ईसाई आदिवासी महासभा ईसाई धर्म से संबंधित है, जिसका धार्मिक आधार पर किसी भी स्थिति में मूल उराँव समुदाय के पारंपरिक उराँव नृत्य से संबंध नहीं है और न ही अधिकृत है। ईसाई धर्म ग्रहण करने के साथ ही धर्मांतरित किसी भी व्यक्ति को ईसाई धर्म की नीति नियम को पालन करना एवं पूर्व में पालन कर रहे धर्म, संस्कृति, रीति-रिवाज एवं परंपरा को त्याग करना होता है, यह ईसाई धर्म के नियम में निहित है। ईसाई धर्म के मानने वालों के लिए लागू केनन लॉ प्रचलित है, जबकि मूल उराँव समाज में सामाजिक एवं धार्मिक गतिविधियों का संचालन रूढ़ी एवं प्रथा की मान्यताओं के आधार पर होता है। उराँव समाज एक आदिवासी समुदाय है , जिसका अपना स्वयं का एक परंपरागत नृत्य होता है । जिसे विभिन्न उत्सव एवं पर्व जैसे सरहुल, करम परब एवं अन्य जिन्हें एक निश्चित तिथि एवं वार में उसके अपने विशेष महत्व के आधार पर मनाया जाता है। ईसाई धर्म में क्रिसमस , गुड फ़्राइडे , ईस्टर एवं अन्य अवसरों पर ईसाई धर्म द्वारा निर्धारित नृत्य किया जाता है। जो उराँव समाज के नृत्य से पूर्णतया भिन्न होता है तथा उराँव समाज के नृत्य के साथ कहीं पर भी किसी भी तरह से मेल नहीं खाता है। आदिवासी संगठनों ने सवाल खड़ा किया कि ईसाई धर्म ग्रहण करने के साथ ही ईसाई धर्म के अनुसरण व धार्मिक नियम के पालन को दृष्टिगत रखते हुए धर्मांतरित ईसाईयों द्वारा अपनी मूल उराँव समाज के रीति-रिवाज , परंपरा एवं संस्कृति को छोड़ दिये जाने के सालों बाद अचानक नृत्य कराने का जुनून कैसे सवार हो रहा है, यह तथ्य वाक¸ई विचारणीय एवं संदिग्ध है। ज्ञापन सौंपते हुए जनजाति संगठनों ने यह भी आरोप लगाया कि विगत कुछ समय से आदिवासी समाज द्वारा डीलिस्टिंग की मांग की जा रही है, जिसमें जिन आदिवासियों ने अपनी मूल संस्कृति , रीति-रिवाज एवं परंपरा को छोड़कर ईसाई धर्म ग्रहण कर लिए हैं , ऐसे धर्मांतरित ईसाई आदिवासियों को जनजातीय लक्षण खो देने के कारण संविधान प्रदत्त जनजाति सूची से पृथक कर आरक्षण के लाभ से वंचित कर दिया जाए के डर से ईसाई धर्मावलंबियों द्वारा उराँव नृत्य महोत्सव का आयोजन कर आडंबर किया जा रहा है। आदिवासी संगठनों ने ईसाई महासभा के संयोजक डिप्टी कमिश्नर सरगुजा नीलम टोप्पो पर शासकीय अधिकारी होकर धार्मिक उन्माद फैलाने का कार्य कर रहे हैं, इनके ऊपर स्नढ्ढक्र दर्ज करने की मांग की। इस आयोजन से आदिवासी संगठनों में आक्रोश है और आयोजन पर रोक लगाने की मांग सभी संगठनों ने की।
ज्ञापन सौंपने वालों में बंशीधर उरांव, इंदर भगत, बिहारीलाल उरांव, उपेंद्र सिंह, मानकेश्वर भगत, जगना राम प्रधान, अंकित तिर्की, उमेश्वर, बनाफर राम, बालमुनी प्रधान, सरोज भगत, सुगंती भगत, निर्मला उरमिलिया, अल्वीना मिंज, सुनीता लकड़ा, ललिता उरांव, सालिम केरकेट्टा, पावन पूर्णाहुति भगत, महंती भगत, सचिन भगत, राम बिहारी सिंह, विकास भगत, टेकराम भगत, बंदे राम बैरागी, रविकांत उरांव, पवन राम भगत, जयंती भगत, उमेश किस्पोट्टा, रामेश्वर भगत, ननकु केरकेट्टा, दिलेश्वरी मिंज, रश्मि केरकेट्टा, सुखमनिया, सजन किस्पोट्टा, सुभाष लकड़ा, शिव तिर्की, अंजू एक्का, सत्यप्रकाश, शिवशंकर केरकेट्टा, शंकर मिंज सहित समाज के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।


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