नई दिल्ली@उपासना स्थल अधिनियम के तहत सुप्रीम कोर्ट ने केद्र सरकार को जारी किया नोटिस

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जस्टिस धनजय यशवत चद्रचूड़ होगे देश के 50 वे प्रधान न्यायाधीश
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर 2022।
उपासना स्थल अधिनियम के खिलाफ दायर की गई याचिकाओ पर सुप्रीम कोर्ट मे आज सुनवाई हुई । प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओ पर सुप्रीम कोर्ट ने केद्र सरकार को नोटिस जारी किया और दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया । बता दे कि इससे पहले की सुनवाई मे सीजेआई ने केद्र सरकार से सवाल किया था कि आपको नोटिस बहुत पहले जारी किया जा चुका है, आप जवाब दाखिल करना चाहते है या नही? अब सुप्रीम कोर्ट 14 नवबर को इस मामले की सुनवाई करेगा ।
18 सितबर,1991 को पारित किया गया था अधिनियम
दरअसल, मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यूयू ललित ने कहा कि हम जानना चाहते है कि केद्र सरकार का पक्ष क्या है । पीठ ने एसजी तुषार मेहता से पूछा आप कब तक जवाब दाखिल करेगे । इस पर एसजी मेहता ने कहा कि दो सप्ताह मे जवाब दाखिल कर देगे । बता दे कि पूजा स्थल अधिनियम को ससद से 18 सितबर, 1991 को पारित किया गया था । इस एक्ट के तहत सिर्फ राम मदिर विवाद मामले को अलग रखा गया था । काशी, मथुरा विवाद मामले मे मुस्लिम पक्ष इसी एक्ट की दलील देकर विरोध जता रहा है । इस एक्ट को रद्द करने की माग को लेकर दाखिल याचिकाओ पर सुप्रीम कोर्ट इस एक्ट की वैधानिकता का परीक्षण कर रहा है ।
पिछले साल जारी हुआ था नोटिस
बता दे कि मार्च 2021 मे कोर्ट ने वकील अश्वनी कुमार और विष्णु जैन की दो याचिकाओ पर नोटिस जारी किया था. हालाकि केद्र सरकार की तरफ से अभी तक कोई जवाब दायर नही किया गया है । मथुरा निवासी देवकीनदन ठाकुर द्वारा दायर याचिका मे 1991 के अधिनियम की धारा 2, 3, 4 की वैधता को चुनौती दी गई है । याचिका मे दावा किया गया है कि यह हिदुओ, जैनो, बौद्धो और सिखो के उनके उपासना स्थलो और तीर्थयात्रा एव उस संपत्ति को वापस लेने के न्यायिक उपचार का अधिकार छीनती है जो देवता की है ।
क्या है यह कानून
दरअसल, प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट यानी उपासना स्थल कानून ऐसा कानून है, जो 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी भी उपासना स्थल के स्वरूप को बदलने पर पाबदी लगाता है । बता दे कि वाराणसी मे ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा मे श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद के ऐतिहासिक स्थलो पर हिदू पक्षो द्वारा स्वामित्व और पूजा करने के अधिकार के लिए नए मुकदमो ने 1991 के एक कानून को सुर्खियो मे ला दिया था ।


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