रायपुर, 02 अक्टूबर 2022। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने राजस्थान सरकार की महत्वपूर्ण खनन परियोजना के खिलाफ अभियान चलाने वालो की एक सयुक्त याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने याचिका को खारिज करने के कई कारणो का हवाला दिया और मुख्य रूप से कुछ महत्वपूर्ण तथ्यो पर प्रकाश डालते हुए कहा कि केद्रीय पर्यावरण और वन, ट्राइबल अफेयर्स मत्रालयो ने नॉन-फॉरेस्ट्री उपयोग से जुड़े प्रस्ताव के सबध मे 1136 हेक्टेयर वन भूमि के शेष क्षेत्र मे, फेज- ढ्ढढ्ढ का खनन कार्य शुरू करने के लिए स्वीकृति दी है। इसके अलावा उच्च न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक स्पेशल लीव पिटीशन (एसएलपी) विचाराधीन है और इसकी सुनवाई 13 अक्टूबर 2022 के लिए तय की गई है।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी बिलासपुर हाई कोर्ट ने मई मे राजस्थान सरकार द्वारा अपने निगम के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ पाच याचिकाओ को खारिज कर दिया था। जिन्हे विभिन्न सेट्रल और स्टेट अथॉरिटीज से सभी जरुरी अनुमतियाँ प्राप्त थी। इस मामले की क्रोनोलॉजी का हवाला देते हुए, बिलासपुर हाई कोर्ट ने कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने मार्च 2012 मे परसा ईस्ट केते बासन बलॉक के लिए वन भूमि के डायवर्जन को मजूरी दी थी, जिसका कुछ ग्रामीण समूहो द्वारा विरोध किया गया था। लेकिन फरवरी 2022 मे, केद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मत्रालय ने आरआरवीयूएनएल के पक्ष मे नॉन-फॉरेस्ट्री उपयोग से जुड़े प्रस्ताव के सबध मे, शेष 1136 हेक्टेयर वन भूमि मे फेज- का खनन कार्य शुरू करने की मजूरी दी थी।
1 अक्टूबर को जारी आदेश और मई मे पारित आदेश मे, अदालत ने यह भी कहा कि परसा के लिए भी नियमो का विधिवत पालन किया गया था। पेसा एक्ट के लागू होने पर, याचिकाकर्ताओ ने तर्क दिया था कि केद्र और राज्य सरकारे किसी भी उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण की अनुमति नही दे सकती है। इस पर अदालत ने कहा कि व्यापक जनहित और विशेष परिस्थितियो के मामले मे केद्र सरकार ऐसा करने की हकदार है।
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