बैकुण्ठपुर@काका! पुलिस से कब तक लोग होते रहेंगे परेशान,न्याय की प्रथम सीढी में कब तक परेशान होगी आम जनता?

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  • पुलिस के बुलावे पर थाने पहुंचा प्रार्थी, थाने के सामने से उसकी बाइक हो गई चोरी।
  • बाइक चोरी होने के बाद मिल गई,सुपुर्दगी के लिए पुलिस मांग रही रकम प्रार्थी ने प्रेस नोट में लगाया आरोप।
  • बाइक चोरी की रिपोर्ट लिखाने में भी पुलिस ने अपनी बदनामी के डर से चोरी का घटना स्थल बदला।
  • पुलिस की वजह से प्रार्थी के हुई बाइक चोरी,पुलिस को प्रार्थी की बाइक दिलाने में करनी थी मदद,उन्हीं की वजह से घूम रहा प्रार्थी।
  • पटना थाने के सामने से गायब हुई थी प्रार्थी की बाइक,प्रार्थी ने लगाया पटना थाने में पदस्थ पुलिसकर्मियों पर परेशान करने का आरोप।

-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 10 सितम्बर 2022 (घटती-घटना)। कोरिया पुलिस की कितनी भी तारीफ करो वह कम ही पड़ती है और उसकी तारीफ सिर्फ इसलिए होती है क्योंकि पुलिस अपना काम बखूबी नहीं करती, आम लोग पुलिस से परेशान हैं पर आम लोगों के सुनने वाला है कौन? अधिकारी अपने कर्मचारियों के मुरीद हो गए हैं तो उन पर कार्यवाही भी कहां होगी बार-बार शिकायतों के बावजूद कार्यवाही ना होना और आम आदमी की परेशानी की शिकायत बार-बार होना कहीं ना कहीं उच्च अधिकारियों पर भी सवालिया निशान लगाता है, एक बार फिर पटना थाना से जुड़ा मामला सामने आया है जहां लक्ष्मण धारी व्यक्ति ने प्रेस नोट जारी कर काफी गंभीर आरोप लगाए जो आरोप को बिल्कुल भी दरकिनार नहीं किया जा सकता, पर शायद इनके उच्च अधिकारी इस आरोप को भी दरकिनार कर दें क्योंकि आज तक ऐसा ही होता आया है। एक बार फिर से पटना थाने में पदस्थ पुलिस कर्मियों की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा है। वैसे तो पटना थाने में पदस्थ थानेदार और उनके स्टाफ के कारनामे समय-समय पर आते रहते हैं पर जब कोई आम व्यक्ति सरेआम प्रेस विज्ञप्ति कर आरोप लगाए तो विषय सोचनीय हो जाता है।
प्राप्त विज्ञप्ति के अनुसार प्रार्थी लक्षण धारी आत्मज रंजीत सिंह सूरजपुर जिले के ग्राम सांवारावां का निवासी है, जिसे एक मोबाइल मिला था, जिसकी जानकारी देने हेतु पटना थाना द्वारा प्रार्थी को 03/08/2022 को तलब किया गया था। पूछताछ के दरमियान रेलवे ट्रैक में कोई दुर्घटना होने के कारण प्रार्थी समेत अनेक लोगों को रात को सहयोग करने के लिए पटना थाना स्टाफ द्वारा रेलवे ट्रैक में ले जाया गया। इस दौरान प्रार्थी ने अपनी बाइक एचएफ डीलक्स को थाने के सामने खड़ा कर दिया। जब सब लोग रात को वापस आए तो बाइक थाने के सामने से गायब थी। बहुत खोजबीन के बाद बाइक ना मिलने पर जिसकी रिपोर्ट प्रार्थी ने थाने में दर्ज करानी चाही तो रिपोर्ट में उसे थाने के सामने से गायब न बताकर बाजार से गुम होना दर्शाया गया। बड़ा सवाल यह है कि जब थाने के सामने का ही क्षेत्र सुरक्षित नहीं है, जबकि यहां सीसीटीवी कैमरे एवं पुलिस स्टाफ की सदैव उपलब्धता रहती है, तो फिर अन्य क्षेत्र कैसे सुरक्षित रहेंगे। आश्चर्य का विषय है कि बाइक अगले दिन बरामद भी हो गई। परंतु लगभग 5 दिन बीत जाने के बाद भी प्रार्थी को बाइक नहीं सौंपी गई। प्रार्थी के अनुसार उसे रोज थाने बुलाकर परेशान किया जा रहा है, तथा बाइक सौंपने के एवज में धनराशि की मांग की जा रही है। धनराशि न देने पर थाना स्टाफ द्वारा यह कहा जा रहा है कि अब तुम्हें बाइक कोर्ट से छुड़ानी पड़ेगी।
जब थाने का प्रांगण ही सुरक्षित नहीं, तो कैसे होगी आमजन की सुरक्षा
प्रार्थी के अनुसार उसने बाइक थाने के सामने खड़ी की थी, वापस आने पर बाइक गायब मिली। खोजबीन के बाद रिपोर्ट लिखाने के लिए जब प्रार्थी ने मनुहार की तो बाइक के गायब होने का स्थल बाजार दर्शा दिया गया। वैसे यह पहली बार नहीं है, इसके पहले भी कितने पीडç¸तों ने पटना थाने में रिपोर्ट लिखाने की गुहार लगाई और थाना स्टाफ द्वारा उनसे बार-बार टालमटोल किया गया या अपने सुविधानुसार एफआईआर दर्ज की गई है। पर मामले में बड़ा सवाल यह है कि जब पूरा थाने का एरिया सीसीटीवी से लैस है, तो कोई कैसे आसानी से थाने के सामने से चोरी की जुर्रत कर सकता है? जब थाना प्रांगण ही सुरक्षित नहीं, तो क्षेत्र में होने वाले चोरी, डकैती एवं अन्य अपराधों से आमजन कैसे सुरक्षित रहेंगे?
न्याय की प्रथम सीढ़ी है थाना,जब लोग यहीं से होंगे असंतुष्ट तो न्यायालयों पर भार तो बढ़ेगा ही
अपराधों के बहुत सारे मामले ऐसे होते हैं, जिन्हें थाना स्तर पर ही निपटाया जा सकता है, और भारतीय न्यायालयों का बोझ कम किया जा सकता है। क्योंकि बहुत सारे मामलों में समझौते एवं अन्य तौर तरीकों से मामलों का पटाक्षेप किया जा सकता है। यह थाना प्रभारी की कार्यकुशलता और बौद्धिक क्षमता पर निर्भर करता है। लोग अन्याय से पीडि़त होकर न्याय की तलाश में थाने को प्रथम सीढ़ी मानते हैं। पर जब प्राथमिक स्तर पर ही न्याय को बेचने का प्रयास हो, राहत को धन अर्जन का साधन बनाने की मंशा हो तो पीडç¸त के पास न्यायालय जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता। यही कारण है कि बहुत सारे ऐसे मामले जो प्रथम सुनवाई में ही रफा दफा कर दिए जाते हैं, यह केवल न्यायालय पर बोझ बन कर न्यायालय का समय बर्बाद करते हैं।
पुलिस वाले का मोबाइल गुमा जो मिला गया है उसमें लगा सिम जिसका था उसे पुलिस करने लगी परेशान
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कुछ महीनों पहले एक पुलिसकर्मी का मोबाइल गुम हो गया था, वह मोबाइल एक व्यक्ति को मिल गया और वह व्यक्ति उस मोबाइल को पुलिस को दे दिया, उस मोबाइल में लगा सिम जिस व्यक्ति का था उस व्यक्ति को पुलिस ने तलब किया वह व्यक्ति कहा कि मेरे वह सीम गुम हो था पर पुलिस उस प्रार्थी को बुला बुलाकर परेशान करती रही, उसे डरा धमका कर उससे पैसा वसूलते रहे, जिस दिन प्रार्थी आया था उस दिन वह पैसे देने ही आया था क्योंकि पुलिस कब बुलावा इसीलिए था और उसे नहीं पता था कि वह आएगा और उसकी बाइक वहां से चोरी हो जाएगी पर सवाल यह है कि क्या जो चल रहा है यह सही है? इस प्रकार के कई आरोप अभी तक लगते आरहे हैं और वही जब आरोपों को सिद्ध करने की बारी आती है तो प्रार्थी सक्षम नहीं होता है क्यों की सामने पुलिस है और जांच अधिकारी अपने कर्मचारियों को बचा ले जाएंगे जो आज तक होता आया है।


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