नई दिल्ली, 21 अगस्त 2022। दहेज प्रताड़ना और दहेज हत्या के अपराध पर सख्त रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि समाज मे कड़ा सदेश जाना चाहिए कि जो भी दहेज हत्या का अपराध करेगा उससे सख्ती से निपटा जाएगा। कोर्ट ने कहा कि कानून निर्माताओ ने दहेज जैसी बुराई से कड़ाई से निपटने के लिए कानून मे आइपीसी की धारा 304 बी (दहेज हत्या) जोड़ी थी। दहेज हत्या के मामले मे विधायिका की इस मशा का ध्यान रखा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि धारा 304 बी दहेज हत्या का अपराध समाज के खिलाफ अपराध है और इस अपराध का समाज पर गभीर प्रभाव पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या मे सास ससुर को सजा पर लगाई मुहर
दहेज हत्या के अपराध मे सजा देते वक्त इन बातो का ध्यान रखा जाना चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने दहेज हत्या के दोषी सास ससुर की याचिका खारिज करते हुए उन्हे दी गई 10 साल की कैद पर अपनी मुहर लगा दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने झारखड मे देवघर के दहेज हत्या के एक मामले मे दोषी सास अझोला देवी व ससुर गोविद महतो की याचिका खारिज करते हुए पिछले सप्ताह दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सत्र अदालत व हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि सत्र अदालत और हाई कोर्ट ने सही सजा दी है। उन्हे इसमे दखल देने की जरूरत नही लगती।
बहू की डायरिया से मौत की झूठी कहानी गढ़ी
पीठ ने दोनो की उम्र को देखते हुए सजा कम करने का अनुरोध खारिज करते हुए कहा कि दोनो को दहेज हत्या मे दोषी ठहराया गया है। अभियोजन पक्ष ने दहेज मागे जाने का अपराध साबित किया है। बहू की मौत शादी के एक साल के अदर हुई है। दोषियो ने बहू की डायरिया से मौत की झूठी कहानी गढ़ी जो साबित नही कर पाए। पीठ ने कहा कि दहेज हत्या मे न्यूनतम सात साल और अधिकतम उम्रकैद की सजा है, ट्रायल कोर्ट ने दस साल के कारावास की सही सजा सुनाई है और हाई कोर्ट ने उसे बरकरार रख कर ठीक किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून मे धारा 304बी (दहेज हत्या) को जोड़ने की विधायी मशा दहेज की बुराई से सख्ती से निपटाना था। दहेज हत्या के मामलो मे इस विधायी मशा का ध्यान रखा जाना चाहिए।
दोषी किसी तरह की नरमी के हकदार नही
सास ससुर ने सजा को चुनौती देते हुए कहा था कि निचली अदालत और हाई कोर्ट ने आपराधिक न्यायशास्त्र का सिद्धात ध्यान नही रखा जिसमे आरोप साबित करने की जिम्मेदारी अभियोजन पक्ष की होती है। पेश किये गए साक्ष्य सदेह से परे होने चाहिए और सदेह का लाभ अभियुक्तो को मिलना चाहिए। दूसरी ओर झारखड सरकार के वकील विष्णु शर्मा ने याचिका का जोरदार विरोध किया। कहा दोषी किसी तरह की नरमी के हकदार नही है। ये मामला दहेज हत्या है। दहेज समाज के खिलाफ अपराध है। तीन चार मौको पर दहेज मागने की बात सामने आयी है। शर्मा ने कहा कि अपराध करते वक्त उम्र नही देखी जाती और अदालत से राहत मागने मे दोषी उम्र की दुहाई देते है।
सास-ससुर ने सुप्रीम कोर्ट मे सजा को दी थी चुनौती
देवघर के गाव बसईपुर के इस मामले मे नाशा देवी की शादी के एक साल के अदर 12 अगस्त 1999 को सदिग्ध परिस्थितियो मे मौत हो गई थी। ससुराल वालो ने उसके माता पिता को सूचना दिये बगैर जल्दबाजी मे दाह सस्कार कर दिया। 17 अगस्त को मामा ससुर ने नाशा देवी के पिता को बेटी के मरने की सूचना दी। जिसके बाद 19 अगस्त को पिता ने पति व सास ससुर के खिलाफ दहेज हत्या मे प्राथमिकी दर्ज कराई।
पिता की शिकायत मे कहा गया था कि जब से शादी हुई थी, तभी से ससुराल वाले लगातार दहेज की माग कर रहे थे।
उनकी बेटी बताती थी कि ससुराल वाले मोटर साइकिल और टीवी माग रहे है। अगर उन्हे टीवी और मोटर साइकिल नही दी गई तो वे लोग उसे मार डालेगे। हर बार जब नाशा मायके आती थी तो दहेज के लिए सताए जाने की शिकायत करती थी। पति व सास ससुर पर दहेज हत्या का मुकदमा चला और तीनो को निचली अदालत व हाई कोर्ट से दस साल की कैद हुई। सास ससुर ने सुप्रीम कोर्ट मे सजा को चुनौती दी थी।
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