रायपुर@अब बस्तर की स्थानीय बोलियो मे भी कर सकेगे डिप्लोमा कोर्सेस

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रायपुर,24 जून 2022। बस्तर प्रकृति और आदिवासी सस्कृति से समृद्ध क्षेत्र है। यहा की सस्कृति, रीति-रिवाजो और लोक परम्परा की चर्चा देश दुनिया तक होती है। समय के साथ लोग अपनी सस्कृति, रीति-रिवाज़ो को भूलते जा रहे है, विलुप्त हो रही इसी सस्कृति और कलाओ को सहेजने और सवर्धन के लिए मुख्यमत्री भूपेश बघेल के निर्देश पर बस्तर एकेडमी ऑफ डास आर्ट एण्ड लिटरेचर (बादल) का निर्माण किया गया।
बादल का मुख्य उद्देश्य बस्तर की समृद्ध, सास्कृतिक विरासत से लोगो को परिचित कराना है जिसके तहत देश मे कला सस्कृति से जुड़े विद्वानो, कला विशेषज्ञो को शामिल कर स्थानीय लोगो से जोड़कर उनके नृत्य, गीत, लोक भाषा आदि को प्रशिक्षण के माध्यम से उत्कृष्ट रूप प्रदान करते हुए राष्ट्रीय, अतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाया जा सके।
मुख्यमत्री की मशा थी कि बादल के माध्यम से बस्तर की विलुप्त हो रही सस्कृति का सरक्षण और सवर्धन हो। इसके लिए बस्तर के समाजो के प्रमुखो के साथ मिलकर उनके परपरा, रीति रिवाज, लोकगीत, लोकनृत्य, लोक भाषा का अभिलेकीकरण किया गया है, ताकि इन्हे आने वाली पीढ़ी तक पहुचाया जा सके। बस्तर की कला को मच देने के लिए बादल मे समय-समय पर रुचिकर कार्यक्रमो का आयोजन हो रहा है। लोक नृत्य कार्यक्रम मे बस्तर के स्थानीय नर्तक दलो को बुलाया जाता है।
लोकगीतो, नृत्यो और
बोलियो का डिजीटलकरण
बादल मे बस्तर के लोकगीतो, नृत्यो और लोक बोलियो का डिजीटलकरण भी किया जा रहा है। इसी प्रयास मे बस्तर के सुदूर अचलो मे जाकर लोक गीतो और लोक नृत्यो की फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी की जा रही है। बादल मे लोक भाषा कार्यशाला का कोर्स बनकर तैयार हो गया है, इस कोर्स मे विशेषज्ञ हल्बी, गोडी की बोलिया की कक्षाए देगे, यहा 40 विभागीय कर्मचारियो को हल्बी की ट्रेनिग भी दी गई है ताकि वे गावो मे जाकर ग्रामीणो से जमीनी स्तर पर सवाद स्थापित कर सके। ग्रामीणो की बाते समझ पाए और उनकी समस्या का समाधान कर सके।
स्थानीय बोलियो का डिप्लोमा कोर्सेस
बादल मे अलग अलग विषयो के डिप्लोमा कोर्सेस शुरू किए जा रहे है। भाषा सकाय के तहत बस्तर की स्थानीय बोलिया जैसे हल्बी, गोडी, धुरवी और भतरी का स्पीकिग कोर्स तैयार कर लोगो को इन बोलियो का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। हल्बी और गोडी स्पीकिग कोर्स प्रशिक्षण प्रारभ भी हो चुका है। बादल मे स्थानीय कलाकारो को आगे बढ़ाने के लिए समय-समय पर तरह -तरह के आयोजन, वर्कशॉप भी किए जाते है।
लोकनृत्य, भाषा एव हस्तशिल्प प्रभाग
बस्तर एकेडमी ऑफ डास आर्ट एण्ड लिटरेचर यानी बादल मे फि़लहाल तीन प्रभाग है, जिनमे लोकगीत एव लोकनृत्य प्रभाग, लोकसाहित्य एव भाषा प्रभाग और हस्तशिल्प कला प्रभाग जिसका नाम करण आदिवासी शहीदो के नाम पर रखा गया है। लोकगीत एव लोकनृत्य प्रभाग मे बस्तर के लोकगीतो, लोक नृत्य गीतो का सकलन, ध्वन्याकन, फिल्माकन आदि का कार्य जारी है, इनमे प्रदर्शन एव नई पीढ़ी को प्रशिक्षित दिया जा रहा है, जिसमे गवर सीग नाचा, डडारी नाचा, धुरवा नाचा, परब नाचा,
लेजागीत मारी रोसोना, जगार गीत आदि की ट्रेनिग देने की तैयारी है। लोक साहित्य प्रभाग मे बस्तर के सभी समाज के धार्मिक रीति-रिवाज, सामाजिक ताना-बाना, त्यौहार, कविता, मुहावरो, कहानियो आदि को सकलित एव लिपिबद्ध कर जन-जन तक पहुचाने का कार्य किया जा रहा है।


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