फ्रांस के चुनावी नतीजों से यूरोप में बढ़ीं मध्यमार्गी राजनीति की मुश्किलें?

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वर्ल्ड डेस्क, पेरिस 22 जून 2022  विश्लेषकों के मुताबिक रविवार को आए संसदीय चुनाव के नतीजों को मैक्रों की निजी असफलता के रूप में देखा जा रहा है। 2017 में जब वे राष्ट्रपति चुने गए, तो वे अपेक्षाकृत एक अनजान नेता थे। तब उन्होंने खुद वामपंथ की तरफ झुकाव वाले मध्यमार्गी नेता के रूप में पेश किया था। लेकिन असल में वे दक्षिणपंथी झुकाव वाले नेता के रूप में सामने आए…संसदीय चुनाव में लगे झटके से फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का रुतबा प्रभावित होगा। फ्रांस की राजनीति के जानकारों में इस पर आम राय है। संसदीय चुनाव में मैक्रों की पार्टी एसेंबल 245 सीटें ही जीत सकी, जबकि 577 सदस्यीय सदन में बहुमत पाने के लिए 289 सीटों की जरूरत थी। पांच साल पहले की तुलना में मैक्रों की पार्टी की सीटों की संख्या एक सौ भी ज्यादा घट गई है। इस झटके के बाद मैक्रों अब विपक्षी दलों से गठबंधन बनाने की कोशिश में जुट गए हैं। लेकिन समझा जाता है कि अब मैक्रों के लिए आर्थिक सुधार के अपने प्रस्तावों को पारित कराना बेहद मुश्किल हो गया है।

लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में फ्रांस और यूरोपीय राजनीति के प्रोफेसर फिलिप मार्ली ने अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन से बातचीत में कहा- ‘मैक्रों मुद्दों के आधार पर विपक्षी दलों का सहयोग लेकर शासन चलाने की कोशिश करेंगे। लेकिन विपक्ष की निगाह इस पर भी टिकी रहेगी कि क्या मैक्रों साल भर बाद संसद भंग कर नया चुनाव करवाने का दांव खेलते हैं।’

चुनावी नतीजे मैक्रों की निजी असफलता

विश्लेषकों के मुताबिक रविवार को आए संसदीय चुनाव के नतीजों को मैक्रों की निजी असफलता के रूप में देखा जा रहा है। 2017 में जब वे राष्ट्रपति चुने गए, तो वे अपेक्षाकृत एक अनजान नेता थे। तब उन्होंने खुद वामपंथ की तरफ झुकाव वाले मध्यमार्गी नेता के रूप में पेश किया था। लेकिन असल में वे दक्षिणपंथी झुकाव वाले नेता के रूप में सामने आए। अमेरिका में फ्रांस के पूर्व राजदूत गेरार्ड औरो ने कहा है- ‘मैक्रों का लक्ष्य एक तरह से फ्रांस की राजनीति का अराजनीतिकरण करना था। वे ऐसी राजनीति करना चाहते थे, जिसमें वामपंथी और दक्षिणपंथी सभी मिल कर देश की समस्याओं को हल करने के लिए काम करें। लेकिन इससे ये धारणा बन गई कि मैक्रों का विकल्प सिर्फ धुर दक्षिणपंथी या धुर वामपंथी ही हैं।’
चुनाव नतीजों पर गौर करने औरो का विश्लेषण ठोस मालूम पड़ता है। मेरी ली पेन के नेतृत्व वाली धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी ने सबको चौंकाते हुए 89 सीटें जीत लीं, जबकि ज्यां लुक मेलेंशा के नेतृत्व वाला धुर वामपंथी गठबंधन प्रमुख विपक्षी दल बन कर उभरा। यूरोप की धुर दक्षिणपंथी राजनीति के विशेषज्ञ ओरेलिन मोंडोन के मुताबिक मैक्रों की सबसे बड़ी नाकामी यह मानी जाएगी कि उन्होंने मेरी ली पेन की राजनीति को आम राजनीति का हिस्सा बना दिया। ताजा सफलता के बाद अब ली पेन यह दावा करने की स्थिति में है कि उनकी धुर दक्षिणपंथी पार्टी फ्रांस की सत्ता हासिल करने की तरफ बढ़ रही है। मोंडोन के मुताबिक फ्रांस में धुर दक्षिणपंथ की यह जीत से पूरे यूरोप की ऐसी ताकतों को बल मिलेगा। पांच साल पहले मध्यमार्गी ताकतों ने मैक्रों की जीत से राहत महसूस की थी। जिस समय अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की जीत और ब्रिटेन में ब्रेग्जिट के कारण धुर दक्षिणपंथ की ताकत बढ़ी थी, तब मैक्रों फ्रांस में मध्यमार्गी राजनीति की उम्मीद कर एक सितारे की तरह उभरे थे। विश्लेषकों के मुताबिक उनकी वो जीत अब सुदूर इतिहास की बात लग रही है। अब बड़ा सवाल ये उठ खड़ा हुआ है कि क्या फ्रांस में कोई नया मध्यमार्गी नेता उभरेगा या देश की सत्ता धुर दक्षिणपंथी ताकतों के हाथ में चली जाएगी।


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