वर्ल्ड डेस्क पेरिस 20 जून 2022। मैक्रों की मध्यमार्गी पार्टी 577 सदस्यों वाली संसद में 245 सीटों पर सिमट गई। उधर धुर वामपंथी नेता ज्यां ल्युक मेलेन्शॉं के नेतृत्व में बने वामपंथी गठबंधन- न्यू पॉपुलर यूनियन ने 131 सीटों हासिल कीं। इसके अलावा अन्य वामपंथी दलों को 22 सीटें मिली हैं। यानी सभी वामपंथी दल मिल कर 153 सीटें जीतने में सफल रहे…फ्रांस में संसदीय चुनाव के नतीजों से देश में सियासी भूचाल आ गया है। धुर वाम और धुर दक्षिणपंथी पार्टियों को मिली भारी सफलता से देश में दशकों से बने राजनीतिक संतुलन के भंग होने की स्थिति पैदा हो गई है। बीते ढाई दशक में ऐसा कभी नहीं हुआ, जब राष्ट्रपति की पार्टी का संसद में बहुमत न रहा हो। रविवार को संसदीय चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के बाद जो सूरत उभरी, उसमें राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी- एसेंबल स्पष्ट बहुत के आंकड़े से 44 सीटें दूर रह गई। सबसे चौंकाने वाला प्रदर्शन धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी का रहा। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों और पहले चरण के मतदान के बाद लगाए गए अनुमानों में मेरी लेन पेन के नेतृत्व वाली इस पार्टी को 30 से 35 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की गई थी। लेकिन रविवार को हुई मतगणना में उसे 89 तक सीटें मिलीं।
मैक्रों की पार्टी को 245 सीटें
मैक्रों की मध्यमार्गी पार्टी 577 सदस्यों वाली संसद में 245 सीटों पर सिमट गई। उधर धुर वामपंथी नेता ज्यां ल्युक मेलेन्शॉं के नेतृत्व में बने वामपंथी गठबंधन- न्यू पॉपुलर यूनियन ने 131 सीटों हासिल कीं। इसके अलावा अन्य वामपंथी दलों को 22 सीटें मिली हैं। यानी सभी वामपंथी दल मिल कर 153 सीटें जीतने में सफल रहे।
पहले चरण के मतदान के बाद न्यू पॉपुलर यूनियन को 150 से 195 तक सीटें मिलने का अंदाजा लगाया गया था। लेकिन विश्लेषकों के मुताबिक संभवतः बहुत से उन मध्यमार्गी मतदाताओं ने वामपंथी गठबंधन को रोकने के लिए नेशनल रैली के पक्ष में मतदान किया, जो अपनी नाराजगी के कारण मैक्रों की पार्टी को वोट नहीं देना चाहते थे। मैक्रों अप्रैल में दोबारा राष्ट्रपति चुने गए थे। विश्लेषकों के मुताबिक उसके बाद फ्रांस में बढ़ी महंगाई और दूसरी आर्थिक मुसीबतों के कारण उनकी लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है। अब ऐसी सूरत बन गई है कि उनके लिए अगले पांच साल तक राज करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। हालांकि न्यू पॉपुलर यूनियन अपेक्षा के मुताबिक सीटें नहीं पा सकी, इसके बावजूद उसे इतनी सीटें मिल गई हैं, जिससे वह विधायी प्रक्रिया के हर मुकाम पर रुकावट डाल सकती है। मेलेन्शॉं ने ऐसा करने का स्पष्ट इरादा जताया है।
लेस रिपब्लिकंस पर टिकीं मैक्रों की उम्मीदें
टीवी चैनल फ्रांस-24 की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब मैक्रों की सारी उम्मीदें परंपरागत कंजरवेटिव पार्टी लेस रिपब्लिकंस पर टिकी हुई हैं। इस पार्टी को भी अपेक्षा से अधिक सफलता मिली। वह 61 सीटें जीतने में सफल रही। इसे मैक्रों के विचारों के करीब समझा जाता है। लेकिन विश्लेषकों ने कहा है कि मैक्रों को समर्थन देने के बदले ये पार्टी कड़ी सौदेबाजी करेगी। इसका समर्थन हासिल करने के लिए राष्ट्रपति को हर मौके पर उसे मनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। राजनीतिक विश्लेषक पॉल स्मिथ के मुताबिक इन चुनाव नतीजों का संकेत यह है कि जनता के स्तर पर एक प्रभावशाली मैक्रों विरोधी मोर्चा बन गया है। फ्रांस-24 से बातचीत में स्मिथ ने कहा कि ऐसा लगता है कि मैक्रों की पार्टी को हराने के लिए धुर वामपंथी और धुर दक्षिणपंथी मतदाताओं ने भी आपस में सहयोग किया। अन्य विश्लेषकों ने इस चुनाव नतीजे को फ्रांस में मध्यमार्गी आम सहमति भंग होने का प्रमाण बताया है। उनके मुताबिक यह एक भूचाल की तरह है, जिससे दशकों से चली आ रही सियासी सहमति टूट गई है। इसके बाद शासन करना राष्ट्रपति मैक्रों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है।