पश्चिम के गले की हड्डी बन गया है यूक्रेन युद्ध, क्या बाइडन को झेलना पड़ेगा अफगानिस्तान जैसा अपमान?

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वर्ल्ड डेस्क, वाशिंगटन 19 जून 2022 रणनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका ना तो रूसी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर पाया और ना ही दुनिया में रूस को अलग-थलग करने में उसे सफलता मिली। फिनलैंड में हुए एक अध्ययन से सामने आया है कि युद्ध के बाद पहले सौ दिन में रूस को ऊर्जा निर्यात से 93 बिलियन डॉलर यूरो की आमदनी हुई। इससे उसकी मुद्रा रुबल अभूतपूर्व रूप से मजबूत हुआ।

यूक्रेन युद्ध और देश पर मंदी के मंडराते खतरे से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। अमेरिका में सामरिक क्षेत्र के विशेषज्ञ अब यह अंदेशा जताने लगे हैं कि यूक्रेन युद्ध एक साल के भीतर बाइडेन प्रशासन के लिए एक बड़े अपमान का कारण बनेगा। पिछले साल अगस्त में अमेरिका को जैसा अपमान अफगानिस्तान में झेलना पड़ा, अब वैसी ही हालत यूक्रेन में बनती दिख रही है। उधर बढ़ती महंगाई और ब्याज दरों में वृद्धि के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मंदी ग्रस्त होने की आशंका भी गहराती जा रही है।

यूक्रेन युद्ध के शुरुआती दिनों में राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन को सत्ता में नहीं रहने दिया जा सकता। साथ ही उन्होंने घोषणा की थी कि पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण रूसी अर्थव्यवस्था का आकार घट कर आधा रह जाएगा। लेकिन अब ये दोनों बातें बेबुनियाद मालूम पड़ रही हैँ। रणनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका ना तो रूसी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर पाया और ना ही दुनिया में रूस को अलग-थलग करने में उसे सफलता मिली।

फिनलैंड में हुए एक अध्ययन से सामने आया है कि युद्ध के बाद पहले सौ दिन में रूस को ऊर्जा निर्यात से 93 बिलियन डॉलर यूरो की आमदनी हुई। इससे उसकी मुद्रा रुबल अभूतपूर्व रूप से मजबूत हुआ। साथ ही दो बड़े देशों- भारत और चीन ने पश्चिमी प्रतिबंधों का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया। खबरों के मुताबिक इन दोनों देशों को रूस अंतरराष्ट्रीय कीमत की तुलना में 30 से 40 डॉलर प्रति बैरल की छूट पर कच्चा तेल दे रहा है।
दूसरी तरफ यूरोप और अमेरिका में तेल और गैस की कीमतें आम मुद्रास्फीति का प्रमुख कारण बन गई हैं। वेबसाइट एशिया टाइम्स के एक विश्लेषण के मुताबिक इन दोनों जगहों पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में जो बढ़ोतरी पिछले साढ़े तीन महीनों में हुई है, उसमें 70 फीसदी योगदान रूसी तेल और गैस की महंगाई का है। अर्थशास्त्री डेविड पी गोल्डमैन के मुताबिक इस साल की पहली तिमाही में अमेरिकी जीडीपी में 1.9 प्रतिशत की सिकुड़न आई। उन्होंने 15 जून को जारी वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के आधार पर बताया है कि देश मंदी के कगार पर है।

विश्लेषकों के मुताबिक यूक्रेन युद्ध का जी-7 के सदस्य तमाम देशों पर बहुत खराब असर हुआ है। ये सभी देश मंदी के कगार पर हैं। जापान की मुद्रा येन की कीमत गिरने के कारण जापान सरकार पर कर्ज की मात्रा जीडीपी के 270 फीसदी तक पहुंच गई है। इटली में कर्ज का संकट गंभीर रूप ले रहा है। 15 जून को यूरोपियन सेंट्रल बैंक की एक बैठक हुई, जिसमें यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों में कर्ज के गहराते संकट का मुकाबला करने का संकल्प जताया गया। लेकिन बैंक ऐसा कैसे करेगा, इस बारे में अभी कोई जानकारी नहीं दी गई है।

विशेषज्ञों के मुताबिक यही हाल वो वजह है, जिससे अमेरिका और यूरोपीय देश अब यूक्रेन युद्ध खत्म कराने के उपाय ढूंढने लगे हैँ। इस सिलसिले में 14 जून को अमेरिका रक्षा उपमंत्री कॉलिन एच काह्ल के दिए इस बयान को अहम माना गया है कि यूक्रेन किन शर्तों पर रूस से बातचीत करे, यह अमेरिका उसे नहीं बताएगा। फ्रांस, जर्मनी और इटली के नेताओं की एक साथ यूक्रेन यात्रा को भी इस सिलसिले में महत्त्वपूर्ण माना गया है। विश्लेषकों के मुताबिक संकेत यह है कि अमेरिका और उसके साथी देश जल्द युद्ध का खात्मा चाहते हैं, ताकि वे अपना ध्यान अपने आर्थिक संकट पर केंद्रित कर सकेँ।


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