इंसान के मन में ही पर्यावरण का दुश्मन है

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  • पेड़ पौधों के लिए किसी को चिंतित नहीं जितना पेट्रोल के दाम बढ़ने से दिखते हैं।
  • जब अपने देश में पर्यावरण दिवस अता है तब हमें महत्व याद अता ऐसा क्यों?
  • पर्यावरण दिवस के दिन से पर्यावरण और ज्यादा विपन्न होता है।

आज पूरे दिन पर्यावरण दिवस पर बधाई का तांता लगा रहा। मोबाइल के मेमोरी छोटे बड़े-पेड़ पौधों से भर गई। मन मस्तिष्क खोया रहा पूरे दिन इसी उधेड़बुन में कि क्या कल से नहीं कटेंगे पेड़ पौधे? कुल्हाड़ी तानकर मानव जब जंगलखोर हो जाए, रेतासुर बन कर सिसकती नदियों का सीना छलनी कर दे, अजर-अमर कूड़ा करकटों का अंबार खड़ा कर दे, सैकड़ों-हजारों जीव जंतु के अस्तित्व के विनाश का बायस बन जाए, अपनी प्रतिभा के बल पर कंक्रीट के जंगल खड़ा कर दे, तो लम्हों की खता से सदियों को सजा तो मिलेगी ही…..प्यासे पनघट, प्यासे खेत, पिघलते हिमखंड, बढ़ता ताप, बांझ पर्यावरण में कलरवहीन बेनूर पंछी, नदी तालों के विलुप्तप्राय पाट-घाट, पर्वतशिखरों का धरातल से होते हुए रसातल तक का सफर…. निश्चित है की सांसे एक दिन बिकेंगी।

“पर्यावरण” ‌ जिसके अस्तित्व से पूरी पृथ्वी पर सांसो का अस्तित्व टिका है, उसे किसी दिवस विशेष में बांधना अपने आप में हास्यास्पद है। जिसने पृथ्वी पर जीवन को साकार बनाया, जिसके बिना जीवन के अस्तित्व की कल्पना करना भी निरर्थक है, उसे एक दिवस विशेष में बांधकर दशकों से उसकी तथाकथित रक्षा को कृत संकल्पित लोगों का आभासी जीवन में कल पर्यावरण दिवस था। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति मिला हो जिसे पर्यावरण बचाने की वास्तव में चिंता हो। इसका कारण भी है…मैंने कहीं पढ़ा था कि जितना पानी भारत में लोगों का उपलब्ध है, उतना दुनियां में किसी अन्य देश को नहीं है। कहना चाहिए कि भारत के लोगों पर भगवान की विशेष कृपा है, और इसलिये ही यहां अपने-अपने भगवान के भक्त अधिक दिखते हैं भले ही दिखावे के हों। यहां प्रकृति की विशेष कृपा रही है और लोगों का लगता है कि यह सब तो मुफ्त का माल है इतना क्या सोचना। अस्थमा और दिल के मरीज भी इसे वैसे ही समझते हैं जैसे स्वस्थ आदमी। बड़े-बड़े भक्त हैं अपने-अपने भगवान के पत्थरों की बनी मूर्तियों, मजारों को पूजते हैं। पेड़ कट रहे हैं। हमें प्राणवायु प्रदान करने वाले पेड़ हमारे सामने ही ध्वस्त हो जाते हैं। अखबार, टीवी और अन्य सभाओं में वक्ता भाषण करते हैं। मगर पेड़ कटने का सिलसिला थम नहीं रहा।‌ एक पेड़ को लगाना आसान नहीं है। पहले पौधा लगाओ और फिर उसकी रक्षा करो। घर के अंदर तो कोई लगाना नहीं चाहता और घर के बाहर अगर सरकारी संस्था लगा जाये तो उसकी देखभाल करने तक कोई तैयार नहीं। अनेक संस्थाओं ने भूखंड बेचे और सभी के मकानों में पेड़ पौधे लगाने के लिऐ नक्शें में जगह छोड़ी पर लोगों ने वहां पत्थर बिछा दिये। कई लोगों ने उस जगह अपने-अपने धर्म के पूजा घर बना दिये। ताकि लोग आयें और देखें कि हम कितने बड़े भक्त है और स्वर्ग/जन्नत में टिकट सुरक्षित हो गया है। उससे भी मन नहीं भरा तो बाहर पेड़ -पौधे लगाने की सरकारी जगह पर भी पत्थर बिछा दिये कि वहां कीचड़ न हो। कहीं दुकान बनवा लिये। कौन हैं सब लोग? जो लोग पर्यावरण बचाने के लिये इतने सारे प्रपंच कर रहे हैं उनके व्यक्तिगत जीवन का अवलोकन किया जाये तो सब पता लग जायेगा। मगर नहीं साहब यहां भी बंदिश है सार्वजनिक जीवन में जो लोग हैं उनके निजी जीवन पर टिप्पणियां करना ठीक नहीं है। अब यह सार्वजनिक जीवन और निजी जीवन का अंतर हमारी समझ से बाहर हैं।
पत्थर से कभी प्राणवायु प्रवाहित नहीं होती। वह जल का प्रवाह अवरुद्ध करने की ताकत रखता है, पर उसके निर्माण की क्षमता उसमें नहीं है। उसी पत्थर की निर्मित कलाकृति विशेष को पूरी दुनियां में पूजा जाता है। अरे, आप देख सकते हैं सभी लोगों ने अपने-अपने इष्ट के नाम पर पत्थरों के घर बनवा रखे हैं और वहीं के चक्कर लगाते रहते हैं। जिन पेड़ों से उनको प्राणवायु मिलती है, और जल का संरक्षण होता है वह उनके लिए कोई मतलब नहीं रखता। विदेशों का तो ठीक है पर इस देश में क्या है? पेड़ों को देवता स्वरूप माना जाता है इस देश में..ऐसे पेड़ों को प्रतिदिन जल देने की भी परंपरा रही है। पर यहां पत्थरों की पूजा करने का भी विधान किया गया। पता नहीं कैसे? भारतीय आध्यात्म में तो निरंकार की उपासना करने का विचार ही देखने को मिलता है। कई जगह पेड़ों के आसपास इष्ट देवों के घर बनाकर वहां पत्थर रख दिये गये। धीरे-धीरे पेड़ गायब होता गया और लोगों की श्रद्धा पत्थर के घरों को बड़ा करती गयी। कहते हैं जो चीज आसानी से मिलती है उसकी कद्र इंसान नहीं करता? मगर अनेक ज्ञानी और ध्यानियों को मानने वाले इस देश में अज्ञानी कहीं अधिक हैं। नहीं तो उनको समझ में आ जाता कि पेड़ पौधों की बहुलता और जल की प्रचुरता हम सृष्टि की देन है। इसलिये सहज सुलभ है। वरना लोग तरस रहे हैं इन सबके लिए। हर कोई अपने इष्ट का बखान करता है, पर जो पेड़ इस दैहिक जीवन का संचालन करते हैं, उसकी बजाय लोग मरने के बाद के स्वर्ग के जीवन के लिए संघर्ष करते नजर आते हैं।
जहां से पैट्रोल आता है वहां पानी नहीं मिलता। वहां लोग ऐसी जलवायु को तरसते हैं। जिन पश्चिमी देशों में कारों का अविष्कार किया गया वही आज सायकिल को स्वास्थ्य के लिये उपयुक्त बताते हैं। एसी और कूलरों के वश में होते जा रहे लोगों का इस पर्यावरण प्रदूषण का पता नहीं चलता। आजकल अस्पताल फाइव स्टार होटलों जैसे हो गये हैं। उनको अगर अपनी बीमारी के इलाज के लिये वहां जाने पर घर जैसी सुविधायें मिल जातीं हैं। मगर गरीब जिसके लिये स्वास्थ्य ही अब एक पूंजी की तरह है उसको भी कहां फिक्र है पर्यावरण की? किसी ने पेड़ काटने के लिये बुलाया है तो उसे अपनी रोटी की खातिर यह भी करना पड़ता है। पर्यावरण के दुश्मन कहीं हमसे अधिक दूर नहीं है और न अधिक शक्तिशाली है। पर अंग्रेजी शिक्षा पद्धति से गुलामी की मानसिकता से लबालब इस देश में केवल बातें ही होती हैं। पेड़ इसलिये काट दो कि सर्दी में धूप नहीं आती या फिर घर में शादी है, शमियाना लगवाना है। किसी भी जंगल में शेर कितने हैं पता ही नहीं चलता। आंकड़े आते हैं पर कोई उनको यकीन नहीं करता। आखिर वहां शिकारी भी विचरते हैं। शेरों के खालों के कितने तस्कर पकड़े गये सभी जानते हैं। आदमी के मन में ही पर्यावरण का दुश्मन है। शेर हो या हरिण उसका शिकार करना ऐसे लोगों के लिए शगल हो गया है जो उसकी खाल से पैसा कमाते हैं या अपनी प्रेमिका को प्रभावित करने के लिए अपना कौशल दिखाते हैं। एक नहीं पांच-पांच खालें बरामद होने के समाचार आते हैं पर जो नहीं आते उनकी गणना किसने की है?
लोग पेड़ पौधों के लिए उतना चिंतित नहीं है, जितना पेट्रोल के दाम बढ़ने से दिखते हैं। वह पैट्रोल जो उपयोग से पहले और बाद दोनों स्थितियों में चिंता का विषय है। हम खुश हैं कि हमने एक दिवस विशेष पर सामूहिक रूप से एक पौधा लगाकर अपने पर्यावरण की रक्षा‌ के कर्तव्य की इतिश्री कर ली। पर 44 डिग्री के तापमान में जहां सभी जीव जंतु बिलख रहे, क्या वह पौधा जीवित रह पाएगा? इसकी चिंता मात्र भी हमें नहीं। हमने पौधा लगाया,फोटो खींचाया, संदेश दिया और इतिश्री कर ली। काश हम इतने ही जागरूक वर्ष के 365 दिन तक होते, जितना आज दिखावे के लिए हो रहे हैं। 10-15 लोग मिलकर एक पौधा रोपड़ कर हम क्या संदेश देना चाहते हैं?

आशीष जयसवाल शिक्षक
ग्राम पंचायत छिंदिया, तहसील बैकुंठपुर कोरिया छत्तीसगढ़


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