रायपुर, 07 अप्रैल 2022। छाीसगढ़ से जुड़ी भगवान श्रीराम के वनवास काल की स्मृतियो΄ को सहेजने सरकार ने राम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना शुरू की है। इसके अ΄तर्गत प्रथम चरण मे΄ चयनित 9 पर्यटन तीथोर्΄ का तेजी से कायाकल्प कराया जा रहा है। इस परियोजना के अ΄तर्गत इन सभी पर्यटन तीथोर्΄ की आकर्षक लैण्ड स्कैपि΄ग के साथ-साथ पर्यटको΄ के लिए सुविधाओ΄ का विकास भी किया जा रहा है। 139 करोड़ रूपए की इस परियोजना मे΄ उार छाीसगढ़ के कोरिया जिले से लेकर दक्षिण छाीसगढ़ के सुकमा जिले तक भगवान राम के वनवास काल से जुड़े स्थलो΄ का स΄रक्षण एव΄ विकास किया जा रहा है। च΄दखुरी के बाद अब शिवरीनारायण मे΄ भी विकास कार्य पूरा हो चुका है, जिसका लोकार्पण 10 अप्रैल को मुख्यम΄त्री भूपेश बघेल करे΄गे। इसके लिए तीन दिवसीय भव्य समारोह की शुरुआत 08 अप्रैल से हो जाएगी। मुख्यम΄त्री भूपेश बघेल ने च΄दखुरी स्थित माता कौशल्या म΄दिर मे΄ वर्ष 2019 मे΄ भूमिपूजन कर राम वनगमन पर्यटन परिपथ के निर्माण की शुरूआत की थी। इस परिपथ मे΄ आने वाले स्थानो΄ को रामायणकालीन थीम के अनुरूप सजाया और स΄वारा जा रहा है। छाीसगढ़ शासन की इस महात्वाका΄क्षी योजना से भावी पीढ़ी को अपनी सनातन स΄स्कृति से परिचित होने के अवसर के साथ ही देश-विदेश के पर्यटको΄ को उच्च स्तर की सुविधाए΄ भी प्राप्त होगी। 07 अटूबर 2021 को तीन दिवसीय भव्य राष्ट्रीय आयोजन के साथ माता कौशल्या म΄दिर, च΄दखुरी के सौ΄दर्यीकरण एव΄ जीर्णोद्धार कार्यो का लोकार्पण मुख्यम΄त्री द्वारा किया गया है, जिसके पश्चात् पर्यटको΄ की स΄ख्या मे΄ अत्यधिक वृद्धि हुई है, जो कि राम वनगमन पर्यटन परिपथ निर्माण की सफलता का परिचायक है।
छाीसगढ़ की स΄स्कृति एव΄ परम्परा मे΄ प्रभु राम रचे-बसे है। जय सिया राम के उद्घोष के साथ यहा΄ दिन की शुरूआत होती है। इसका मुख्य कारण है कि छाीसगढ़ वासियो΄ के लिए राम केवल आस्था ही नही΄ है बल्कि वे जीवन की एक अवस्था और आदर्श व्यवस्था भी है΄। छाीसगढ़ मे΄ उनकी पूजा भा΄जे के रूप मे΄ होती है। रायपुर से महज 27 कि.मी. की दूरी पर स्थित च΄दखुरी, आर΄ग को माता कौशल्या की जन्मभूमि और श्रीराम का ननिहाल माना जाता है। छाीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कोसल है।
रघुकुल शिरोमणि श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या है लेकिन छाीसगढ़ उनकी कर्मभूमि है। वनवास काल के दौरान अयोध्या से प्रयागराज, चित्रकूट सतना गमन करते हुए श्रीराम ने दक्षिण कोसल याने छाीसगढ़ के कोरिया जिले के भरतपुर पहु΄चकर मवई नदी को पार कर दण्डकारण्य मे΄ प्रवेश किया। मवई नदी के तट पर बने प्राकृतिक गुफा म΄दिर, सीतामढ़ी-हरचौका मे΄ पहु΄चकर उन्होने΄ विश्राम किया। इस तरह रामच΄द्र जी के वनवास काल का छाीसगढ़ मे΄ पहला पड़ाव भरतपुर के पास सीतामढ़ी-हरचौका को माना जाता है।
छाीसगढ़ की पावन धरा मे΄ रामायण काल की अनेक घटनाए΄ घटित हुई है΄ जिसका प्रमाण यहा΄ की लोक स΄स्कृति, लोक कला, द΄त कथा और लोकोक्तिया΄ है΄। राम वन गमन पर्यटन परिपथ के अ΄तर्गत प्रथम चरण मे΄ सीतामढ़ी-हरचौका (जिला कोरिया), रामगढ़ (जिला सरगुजा), शिवरीनारायण (जिला जा΄जगीर-चा΄पा), तुरतुरिया (जिला बलौदाबाजार), च΄दखुरी (जिला रायपुर), राजिम (जिला गरियाब΄द), सप्तऋषि आश्रम सिहावा (जिला धमतरी), जगदलपुर और रामाराम (जिला सुकमा) को विकसित किया जा रहा है।
कोरिया जिले का सीतामढ़ी रामचन्द्र जी के वनवास काल के पहले पड़ाव के नाम से भी प्रसिद्ध है। पौराणिक और ऐतिहासिक ग्र΄थो΄ मे΄ रामगिरि पर्वत का उल्लेख आता है। सरगुजा जिले का यही रामगिरी-रामगढ़ पर्वत है। यहा΄ स्थित सीताबे΄गरा- जोगीमारा गुफा की र΄गशाला को विश्व की सबसे प्राचीन र΄गशाला माना जाता है। मान्यता है कि वन गमन काल मे΄ रामच΄द्र जी के साथ सीता जी ने यहा΄ कुछ समय व्यतीत किया था, इसीलिए इस गुफा का नाम सीताबे΄गरा पड़ा।
जा΄जगीर-चा΄पा जिले मे΄ प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण शिवनाथ, जो΄क और महानदी का त्रिवेणी स΄गम स्थल शिवरीनारायण है। इस विष्णुका΄क्षी तीर्थ का स΄ब΄ध शबरी और नारायण होने के कारण इसे शबरी नारायण या शिवरीनारायण कहा जाता है।
ये मान्यता है कि इसी स्थान पर माता शबरी ने वात्सल्य वश बेर चखकर मीठे बेर रामच΄द्र जी को खिलाए थे। यहा΄ नर-नारायण और माता शबरी का म΄दिर है जिसके पास एक ऐसा वट वृक्ष है, जिसके पो दोने के आकार के है΄। च΄दखुरी के बाद अब शिवरीनारायण मे΄ भी विकास कार्य पूरा हो जाने से राज्य मे΄ पर्यटन तीथोर्΄ की नयी श्रृ΄खला आकार लेने लगी है। मुख्यम΄त्री भूपेश बघेल 10 अप्रैल को शिवरीनारायण के विकास कायोर्΄ का लोकार्पण करे΄गे। इसके लिए 08 अप्रैल से समारोह की शुरुआत हो जाएगी।
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