नई दिल्ली, 28 मार्च 2022। भारत मे΄ अभी तक मुसलमान, सिख, इसाई, जैन, पारसी और बौद्धो΄ समेत कुछ अन्य समुदाय के लोगो΄ को अल्पस΄ख्यक का दर्जा प्राप्त है. के΄द्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट मे΄ एक याचिका मे΄ पूछे गए सवालो΄ पर दिए गए जवाब की माने΄ तो इस देश की राज्य सरकारे΄ हि΄दुओ΄, धार्मिक और भाषाई समुदायो΄ को भी अल्पस΄ख्यक का दर्जा दे सकती है΄. के΄द्र के इस जवाब के लिहाज से देखे΄ तो भारत मे΄ हि΄दुओ΄ को भी अल्पस΄ख्यक का दर्जा दिया जा सकता है.
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, के΄द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी है कि राज्य सरकारे΄ भी अपनी सीमा मे΄ हि΄दू सहित धार्मिक और भाषाई समुदायो΄ को अल्पस΄ख्यक घोषित कर सकती है΄. के΄द्र सरकार ने यह दलील अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से सुप्रीम कोर्ट मे΄ दाखिल याचिका के जवाब मे΄ दी है. इस याचिका मे΄ उन्हो΄ने अल्पस΄ख्यक शैक्षणिक स΄स्थानो΄ के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी अर्जी मे΄ धारा-2(एफ) की वैधता को चुनौती देते हुए कहा कि यह के΄द्र को अकूत शक्ति देती है, जो साफ तौर पर मनमाना, अतार्किक और आहत करने वाला है. याचिकाकर्ता ने देश के विभिन्न राज्यो΄ मे΄ अल्पस΄ख्यको΄ की पहचान के लिए दिशानिर्देश तय करने के निर्देश देने की मा΄ग की है.
राज्य सरकारे΄ कर सकती है΄ अल्पस΄ख्यक घोषित
अश्विनी कुमार उपाध्याय की दलील पर अल्पस΄ख्यक मामलो΄ के म΄त्रालय ने कहा कि यह (कानून) कहता है कि राज्य सरकार भी राज्य की सीमा मे΄ धार्मिक और भाषाई समुदायो΄ को अल्पस΄ख्यक समुदाय घोषित कर सकती है΄. म΄त्रालय ने कहा कि उदाहरण के लिए महाराष्ट्र सरकार ने राज्य की सीमा मे΄ यहूदियो΄ को अल्पस΄ख्यक घोषित किया है, जबकि कर्नाटक सरकार ने उर्दू, तेलगू, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमणी, हि΄दी, को΄कणी और गुजराती भाषाओ΄ को अपनी सीमा मे΄ अल्पस΄ख्यक भाषा अधिसूचित किया है. के΄द्र ने कहा कि इसलिए राज्य भी अल्पस΄ख्यक समुदाय अधिसूचित कर सकती है΄.
याचिकाकर्ता का या है आरोप?
याचिकाकर्ता का आरोप है कि यहूदी, बहाई और हि΄दू धर्म के अनुयायी जो लद्दाख, मिजोरम, लद्वाद्वीप, कश्मीर, नगालै΄ड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, प΄जाब और मणिपुर मे΄ वास्तविक अल्पस΄ख्यक है΄, अपनी पस΄द से शैक्षणिक स΄स्थान की स्थापना और स΄चालन नही΄ कर सकते, यह गलत है. इस आरोप के जवाब मे΄ म΄त्रालय ने कहा कि यहूदी, बहाई और हि΄दू धर्म के अनुयायी या वे जो राज्य की सीमा मे΄ अल्पस΄ख्यक के तौर पर चिह्नित किए गए है΄, उल्लेखित किए गए राज्यो΄ मे΄ या अपनी पस΄द से शैक्षणिक स΄स्थान की स्थापना और स΄चालन कर सकते है΄, इसपर विचार राज्य स्तर पर किया जा सकता है.
म΄त्रालय ने हलफनामे मे΄ दिया जवाब
म΄त्रालय द्वारा दाखिल हलफनामा मे΄ कहा गया कि अल्पस΄ख्यको΄ के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-1992 को स΄सद ने स΄विधान के अनुच्छेद-246 के तहत लागू किया है, जिसे सातवी΄ अनुसूची के तहत समवर्ती सूची की प्रवेशिका 20 के साथ पढ़ा जाना चाहिए. म΄त्रालय ने कहा कि यदि यह विचार स्वीकार किया जाता है कि अल्पस΄ख्यको΄ के मामलो΄ पर कानून बनाने का अधिकार केवल राज्यो΄ को है, तो ऐसी स्थिति मे΄ स΄सद इस विषय पर कानून बनाने की उसकी शक्ति से व΄चित कर दी जाएगी, जो स΄विधान के विरोधाभासी होगा. के΄द्र ने कहा कि अल्पस΄ख्यको΄ के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-1992 न तो मनमाना है या न ही अतार्किक है और न ही स΄विधान के किसी प्रावधान का उल्ल΄घन करता है. म΄त्रालय ने उस दावे को भी अस्वीकार कर दिया, जिसमे΄ कहा गया कि धारा-2(एफ) के΄द्र को अकूत ताकत देती है.
हि΄दू अल्पस΄ख्यको΄ को लाभ देने से इनकार यो΄?
अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय के जरिये दाखिल अर्जी मे΄ कहा गया कि ‘असली अल्पस΄ख्यको΄ को लाभ देने से इनकार और योजना के तहत मनमाना और अतार्किक’ वितरण उनके मौलिक अधिकारो΄ का उल्ल΄घन है. अर्जी मे΄ कहा गया कि वैकल्पिक तौर पर निर्देश दिया जाए कि लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नगालै΄ड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, प΄जाब और मणिपुर मे΄ रहने वाले यहूदी, बहाई और हि΄दू धर्म के अनुयायी अपनी इच्छा और टीएमए पई के फैसले की भावना के तहत शैक्षणिक स΄स्थानो΄ की स्थापना और स΄चालन कर सकते है΄.
सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी दी थी व्यवस्था
बताते चले΄ कि सर्वोच्च अदालत ने टीएमए पई फाउ΄डेशन मामले मे΄ व्यवस्था दी थी की राज्य को अपनी सीमा मे΄ अल्पस΄ख्यक स΄स्थानो΄ मे΄ राष्ट्रहित मे΄ उच्च दक्षता प्राप्त शिक्षक मुहैया कराने के लिए नियामकीय व्यवस्था लागू करने का अधिकार है, ताकि शिक्षा मे΄ उत्कृष्टता प्राप्त की जा सके. अदालत ने इससे पहले के΄द्र द्वारा पा΄च समुदायो΄ मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को अल्पस΄ख्यक घोषित किए जाने के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयो΄ मे΄ दाखिल याचिकाओ΄ को सुप्रीम कोर्ट मे΄ स्थाना΄तरित करने और मुख्य याचिका के साथ शामिल करने की अनुमति दी थी.
अल्पस΄ख्यक हि΄दुओ΄ को नही΄ मिलता सरकारी योजनाओ΄ का लाभ
अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी याचिका मे΄ दलील दी है कि देश के कम से कम 10 राज्यो΄ मे΄ हि΄दू भी अल्पस΄ख्यक है΄, लेकिन उन्हे΄ अल्पस΄ख्यको΄ की योजनाओ΄ का लाभ नही΄ मिल पाता है. अल्पस΄ख्यक मामलो΄ के म΄त्रालय ने अपने जवाब मे΄ कहा है कि हि΄दू, यहूदी, बहाई धर्म के अनुयायी इन राज्यो΄ मे΄ अपनी पस΄द के शैक्षणिक स΄स्थानो΄ की स्थापना कर सकते है΄ और उन्हे΄ चला सकते है΄. साथ ही, राज्य के भीतर अल्पस΄ख्यक के रूप मे΄ उनकी पहचान से स΄ब΄धित मामलो΄ पर राज्य स्तर पर विचार किया जा सकता है.
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