बैकुंठपुर@कर्मचारियों को वायरल चैट की जांच से क्यों बचना चाह रहे अधिकारी?

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  • क्या इस लिए चैट को फर्जी मान बैठे है?
  • कहीं चैट सही तो नहीं इसलिए चैट में शामिल कर्मचारी अपने अधिकारी को बरगला रहे?
  • प्रधान आरक्षक व थाना प्रभारी कि कई शिकायते पर नहीं होती कोई कार्यवाही, पर पत्रकार पे बिना शिकायत तुरंत मामला होता पंजीबद्ध?
  • विरोधी किस्म के कर्मचारियों पर अधिकारी क्यों मेहरबान सालों से कर रहे हैं जांच?
  • क्या कोई अधिकारी प्रधान आरक्षक व थाना प्रभारी के है खास? या प्रधान आरक्षक है रिश्तेदार?
  • अभी तक जितनी भी शिकायतें प्रधान आरक्षक के खिलाफ हुई हैं उसमें एडिशनल एसपी बचाते आ रही- सूत्र।

-रवि सिंह-
बैकुंठपुर,01 मार्च 2022 (घटती-घटना)। कोरिया जिले के व्हाट्सएप चैट कांड में पत्रकार के ऊपर मामला पंजीबद्ध कर जांच को दूसरे दिशा में पुलिस ले गई ताकि शामिल कर्मचारियों को बचाया जा सके? पत्रकार को फसाने व पुलिसकर्मियों को बचाने की और अधिकार ने किया काम, जिनके बातें चैट के माध्यम से बाहर आई है उस चैट को पुलिस फर्जी मानकर बैठी हुई है पर सवाल यह उठता है यदि चैट फर्जी है तो फिर मामला कैसे पत्रकार पर पंजीबद्ध कर दिया गया? जब चैट फर्जी है तो फिर एट्रोसिटी एक्ट जैसे गंभीर धारे क्यों लगाया गया? ऐसे कई सवाल पत्रकार पर एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस के लिए आन खड़े हुए हैं, चैट की जांच कराने से क्यों बच रही यह बहुत बड़ा सवाल है? यहां तक कि जिस नंबर से व्हाट्सएप ग्रुप में डाला था उस नंबर को भी अभी तक पुलिस पता नहीं कर पाई और पत्रकार को एडमिन बता रही थी वह भी दबा इनका फैल हो गया। पुलिस के इरादे के अनुसार पुलिस पत्रकार को ही दोषी मानकर मुकदमा दर्ज करती है जिसका विरोध पूरे प्रदेश भर में हो रहा है और खबर को लेकर चौथे स्तंभ को जिस प्रकार परेशान किया जा रहा है, इसे लेकर भी सरकार की किरकिरी हो रही है, पर सबसे आश्चर्य की बात है कि कोरिया में जिस प्रधान आरक्षक कि कई शिकायत लबित है पर जाच काछुए की चाल से हो रही है यहां तक कि उनके चहेते थाना प्रभारी भी शिकायतों में शामिल हैं इसके बावजूद आखिर ऐसा कौन सा अधिकारी इनका चाहेता बना हुआ है जो इन्हें जांच में बचा रहा है, दवी जुबान पर एडिशनल एसपी का नाम लिया जा रहा है, सूत्रों के अनुसार बताया जा रहा है कि प्रधान आरक्षक कि रिश्तेदार है इसी वजह से अभी तक प्रधान आरक्षक कार्यवाही से बचते नजर आ रहे हैं, इन्हीं के विभाग में प्रधान आरक्षक का कई लोगों से नहीं जमता है और ना ही इन्हें कोई पसंद करता है पर यह अधिकारियों की जी हुजूरी कर के अपना काम निकालने में माहिर है।
लाइन में रहते हुए भी प्रधान आरक्षक मनचाहे स्थान पर करते हैं ड्यूटी
पूर्व के अधिकारियों का कहना था कि उनकी शिकायत है इस वजह से इन्हें रक्षित केंद्र में रखा गया है पर यह रक्षित केंद्र में है तो जरूर पर यह काम वहां ना करके अपने अधिकारियों के मौखिक आदेश पर कभी साइबर में तो कभी किसी थाने में जुगाड़ से हो जाते हैं ऐसा सूत्रों का मानना है। यदि ऐसा है तो फिर यह कौन सी कार्यवाही हुई कहीं कारवाही के आड़ में इनकी मदद तो नहीं हो रही?

शक्तिशाली व्यक्तियों या सत्ताधारी के व्यवहार पर आलोचनात्मक टिप्पणियां करना पड़ा भारी
इन दिनों पत्रकार भी आधारहीन मुकदमों का लगातार सामना कर रहे हैं। यह मुकदमे पत्रकारों और अन्य ऐसे लोगों पर नकेल कसने लादे गये हैं जो शक्तिशाली व्यक्तियों या ताकतवर या सत्ताधारी के व्यवहार पर आलोचनात्मक टिप्पणियां करते हैं। एक पत्रकार या मानवाधिकार रक्षक पर मुकदमे दबाव डालने के लिए लादे जाते हैं, न कि अधिकार को साबित करने के लिए और यह प्राय: बेकार, तुच्छ या अतिरंजित दावों पर आधारित होते हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक और चुनौती सरकारों द्वारा ऑनलाइन सूचना पर पाबंदी लगाने की कोशिशें हैं। कठोर और दमनकारी माहौल को लागू करने के लिए इंटरनेट को नियंत्रित या समय समय पर बंद किया जाता है।


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