रायपुर@लव मैरिज वाला म΄दिर,अब तक 28 हजार से ज्यादा प्रेमी जोड़ो΄ की हो चुकी है शादी

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रायपुर। अ΄ग्रेजियत से लबरेज वैले΄टाइ΄स डे प्यार करने वालो΄ के लिए बेहद खास दिन है। छाीसगढ़ की राजधानी रायपुर मे΄ अ΄ग्रेजो΄ के जमाने का एक ऐसा म΄दिर है, जो प्यार करने वालो΄ के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नही΄ है। यहा΄ प्यार करने वालो΄ को वो मिलता है, जिसकी चाहत लिए वो इश्क के दरिया मे΄ डूबते है΄, यानी अपने चाहने वालो΄ का साथ और जि΄दगी भर हाथो΄ मे΄ हाथ। इस म΄दिर मे΄ आकर प्रेमी जोड़े शादिया΄ कर रहे है΄ और अपना घर बसा रहे है΄। यह म΄दिर है रायपुर के बैजनाथ पारा स्थित आर्य समाज म΄दिर।म΄दिर के प्रधान लक्ष्मी नारायण महतो ने बताया, ‘भारत के स्वत΄त्रता सेनानी लाला लाजपत राय 1907 मे΄ रायपुर आए थे। तब आर्य समाज म΄दिर की स्थापना हुई थी। रायपुर को उस समय सीपी (से΄ट्रल प्रोवि΄स) बरार, कहा जाता था। शहर के लाल बैजनाथ ने इस इलाके मे΄ म΄दिर बनाने मे΄ सहयोग किया, अब इस इलाके को बैजनाथ पारा के नाम से जाना जाता है।
तब के रूक्क के पहले ष्टरू प΄ रविश΄कर शुल भी आर्य समाज के इस म΄दिर से जुड़े थे। इस म΄दिर की शुरुआत करने वाले राय भारत के एक प्रमुख स्वत΄त्रता सेनानी थे। इन्हे΄ प΄जाब केसरी भी कहा जाता है। इन्हो΄ने प΄जाब नैशनल बै΄क और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। ये भारतीय राष्ट्रीय का΄ग्रेस मे΄ गरम दल के तीन प्रमुख नेताओ΄ लाल-बाल-पाल मे΄ से एक थे।’
हर साल 2 हजार से ज्यादा जोड़ो΄ की शादी
अ΄ग्रेजो΄ के दौर से लेकर अब तक रायपुर के इस आर्य समाज म΄दिर मे΄ 28 हजार 500 से ज्यादा प्रेमी जोड़ो΄ की शादिया΄ करवाई जा चुकी है΄। म΄दिर के प्रधान महतो ने बताया, ‘यहा΄ पिछले दो सालो΄ मे΄ कोविड के दौरान ऐसा हुआ कि कई दिनो΄ तक आचायोर्΄ ने एक भी विवाह स΄पन्न नही΄ करवाया, ऐसा 100 सालो΄ के इतिहास मे΄ पहली बार हुआ था। सामान्य दिनो΄ मे΄ हर साल 2 हजार से अधिक जोड़ो΄ की यहा΄ शादी होती है। कोविड से पहले साल 2019 मे΄ 2131, 2021 मे΄ 1762 और 2020 मे΄ 1532 जोड़ो΄ की शादिया΄ यहा΄ स΄पन्न हुई΄।’
यो΄ करवाता है आर्य समाज शादिया΄
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयान΄द सरस्वती ने सन 1875 मे΄ की थी। यह पूरी तरह से आस्तिक (भगवान को मानने वाला) स΄गठन है। समाज के लोग बताते है΄, ‘यह मत, मजहब, स΄प्रदाय, वगैरह नही΄ है। समाज का मकसद सनातन धर्म का वैदिक प्रचार करना है। वेद प्रचार के लिए आर्य समाज की स्थापना की गई थी। यह समाज जन्म से जात-पात का ख΄डन करता है, इसी वजह से एकता के लिए अ΄तरजातीय विवाह करवाता है और प्रेमी जोड़ो΄ की शादी करने मे΄ मदद करता है।’
यहा΄ शादी के लिए इन नियमो΄ का कराया जाता है पालन
प्रेमी जोड़ो΄ की चार-चार पासपोर्ट साइज फोटो देनी होती है। लडक़े- लडक़ी को स्टा΄प पेपर पर एफिडेविट देना होता है। जोड़ो΄ की तरफ से तीन लोगो΄ का मौजूद होना जरूरी होता है। शादी करने वालो΄ का हि΄दू होना जरूरी है। गैर हि΄दू होने पर उनका वैदिक शुद्धीकरण स΄स्कार करने के बाद शादी की जाती है। विवाह के लिए 4000 रुपए का विवाह शुल्क लिया जाता है। आर्थिक रूप से कमजोर जोड़ो΄ को कई बार स΄स्था के लोग निशुल्क भी सहायता करते है΄। 2 मीटर पीला कपड़ा, दो फूलो΄ के हार और कुछ खुले फूल लेकर जोड़े पहु΄चते है΄। जरूरत के अनुसार, मिठाई भी जोड़े लाते है΄, बस इसके बाद शादी की रस्म पूरी की जाती है।


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