कोरबा 09 फ रवरी 2022(घटती-घटना)। धरती पर जन्म लेने के साथ ही संतान की परवरिश की भी व्यवस्था ऊपर वाला कर देता है। कुछ ऐसा ही घटनाक्रम कोरबा जिले के पाली-तानाखार विधानसभा व पाली विकासखंड के ग्राम लाफा में हुआ। यहां के रहने वाले चमरा दास-श्रीमती वेद कुंवर के घर 24 साल पहले जन्म लेने वाली सरस्वती को बचपन से मां का आंचल नहीं मिला। पत्नी की मौत के बाद इस बच्ची का लालन-पालन चमरा दास के लिए मुश्किल था लेकिन गरीब घर में जन्म ली हुई इस बच्ची सरस्वती को डॉ. चरणदास महंत ने वर्ष 1998 में गोद लिया। अविभाजित मध्यप्रदेश सरकार में तत्कालीन गृह, वाणिज्यकर एवं जनसंपर्क मंत्री डॉ. चरणदास महंत बतौर कांग्रेस प्रत्याशी लोकसभा चुनाव के लिए जनसंपर्क करते हुए पाली से लगे ग्राम लाफा पहुंचे, यहां उस वक्त माहौल गमगीन था, क्योंकि चमरा दास की धर्मपत्नी वेद कुंवर की मौत हुई थी। डॉ. महंत के समक्ष चमरा दास ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए बेटी का लालन-पालन करने में असमर्थता जताई।तब डॉ. महंत ने इस बच्ची को गोद लेकर उसका आजीवन पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा की जिम्मेदारी उठाई। सरस्वती को अपने साथ ले जाने की इच्छा डॉ. महंत ने जताई लेकिन पिता चमरा दास ने अपने पास ही रखने का मन बनाया। पिता की इच्छा का डॉ. महंत ने सम्मान किया।तब डॉ. महंत ने अपने प्रतिनिधि प्रशांत मिश्रा को यह जिम्मेदारी स्थानीय अभिभावक के तौर पर सौंपी। गांव में पली-बढ़ी सरस्वती ने स्नातक तक की शिक्षा हासिल कर ली है। इस बीच सरस्वती ने अपने पिता को भी खो दिया।इधर डॉ. महंत एवं प्रशांत मिश्रा की देख-रेख में पली-बढ़ी डॉ. महंत के परिवार में चौथी बेटी की तरह शामिल सरस्वती का अब कन्यादान का वक्त आ गया है। सरस्वती का विवाह नंद दास के साथ तय हुआ है। 10 फरवरी को सरस्वती के घर बारात आएगी। इससे पहले विवाह की सभी तैयारियों से लेकर परंपरागत रस्म-रिवाज निभाने के लिए डॉ. चरणदास महंत, धर्मपत्नी कोरबा सांसद श्रीमती ज्योत्सना महंत व परिजन जुटे हुए हैं। हाल ही में सरस्वती ने रायपुर स्थित स्पीकर निवास जाकर डॉ. महंत से मुलाकात की और काफी समय बिताया। जन्म से लेकर पालन-पोषण, शिक्षा और परवरिश के बाद अब कन्यादान कर सरस्वती को विदा करने की रस्म अदायगी करने की बेला नजदीक आ चुकी है। डॉ. महंत एवं ज्योत्सना महंत इस पल के साक्षी बनने के साथ-साथ पिता और माता की भूमिका में भावुक भी हैं। ग्राम लाफा ही नहीं बल्कि पूरे ब्लॉक और जिले में इस कन्यादान का साक्षी बनने की आतुरता लोगों में है।अमूमन होता यह है कि लोग भावनाओं में बहकर तत्कालिक तौर पर हालातों को देखते हुए दत्तक पिता के रूप में गोद तो ले लेते हैं लेकिन बाद में भूल जाते हैं.लेकिन डॉ. चरणदास महंत के साथ ऐसा नहीं हुआ, उन्होंने 24 साल पहले जिस सरस्वती का हाथ बतौर पिता थामा, उसे पूरी तरह निभाते हुए कभी भी मां-बाप की कमी महसूस नहीं होने दी। उसकी हर जरूरतों और इच्छाओं का यथासंभव ख्याल रखा। अब अपनी बेटी की तरह ही विदा करने का फर्ज निभाने 10 फरवरी को पाली लाफा आ रहे हैं।
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