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@डॉ. भीमराव अम्बेडकर जयन्ती पर विशेष@राष्ट्र के सजग पथ प्रदर्शक थे डा.अम्बेडकर

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बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर हमारे देश के संविधान के निर्माता ही नहीं अपितु दुनिया के सबसे बड़े राजनेताओं में से एक थे। उनकी दूर दृष्टि, उनके ज्ञान, लोगों को समझने का उनका नजरिया, जाति प्रथा के विरुद्ध उनके तेवर को देखते हुए ही उन्हें भारतीय संविधान सभा का अध्यक्ष चुना गया था। ताकि भारत का संविधान दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संविधान में से एक हो। आज हम देखते हैं कि बाबा साहेब आम्बेडकर के नेतृत्व में रचित भारत का संविधान हमारे लोकतंत्र का एक सजग प्रहरी बनकर खड़ा हुआ है। जहां कहीं भी सरकार द्वारा नियम विरुद्ध कुछ किया जाता है तो संविधान उन्हें उनके कर्तव्य पथ की याद दिलाकर सही राह पर चलने की प्रेरणा देता है। भारत का संविधान आज दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संविधान में से एक माना जाता है जिसका श्रेय बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर को जाता है।
डॉ. भीमराव आम्बेडकर का जीवन दर्शन आज भी प्रासंगिक है क्योंकि इसने भारत की सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था को आकार देने में मदद की। पुरानी और पुरातन मान्यताओं से प्रगति लाकर भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र बनाया। बाबासाहेब भीमराव आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के मऊ में एक गरीब परिवार मे हुआ था। वो भीमराव रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14 वीं सन्तान थे। उनका परिवार मराठी था जो महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले मे स्थित अम्बावडे नगर से सम्बंधित था। उनके बचपन का नाम रामजी सकपाल था। वे हिंदू महार जाति के थे जो अछूत कहे जाते थे। उनकी जाति के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था। एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण उनको बचपन कष्टों में बिताना पड़ा था।
देश में हर वर्ष 14 अप्रैल को बाबासाहेब डा.भीमराव आम्बेडकर की जयन्ती मनायी जाती है। बाबासाहेब की जयन्ती पर लोगों को संकल्प लेना चाहिये कि हम सब सच्चे मन से उनके बताये मार्ग का अनुशरण करेगें। उनके बनाये संविधान का पालन करेगें। ऐसा कोई काम नहीं करेगें जिससे देश के किसी कानून का उल्लघंन होता हो। चूंकि बाबासाहेब हमेशा जाति प्रथा, ऊंच नीच की बातों के विरोधी थे। इसलिये उनकी जयन्ती पर उनको श्रधांजली देने का सबसे अच्छा तरीका है उनके सिद्धांतो को अपने जीवन में अपनाये। बाबा साहेब आम्बेडकर कुल 64 विषयों में मास्टर थे। वे हिन्दी,पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच,जर्मन,मराठी,पर्शियन और गुजराती जैसे 9 भाषाओं के जानकार थे। इसके अलावा उन्होंने लगभग 21 साल तक विश्व के सभी धर्मों की तुलनात्मक रूप से पढाई की थी। डॉक्टर आम्बेडकर अकेले ऐसे भारतीय है जिनकी प्रतिमा लंदन संग्राहलय में कार्ल मार्क्स के साथ लगाई गई है। इतना ही नहीं उन्हें देश विदेश में कई प्रतिष्ठित सम्मान भी मिले है। भीमराव आंबेडकर के पास कुल 32 डिग्री थी। डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर के निजी पुस्तकालय राजगृह में 50 हजार से भी अधिक किताबें थी। यह विश्व का सबसे बडा निजी पुस्तकालय था।
बाबा साहब का मानना था कि वर्गहीन समाज गढने से पहले समाज को जाति विहीन करना होगा। आज महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए हमारे पास जो भी संवैधानिक सुरक्षाकवच, कानूनी प्रावधान और संस्थागत उपाय मौजूद हैं। इसका श्रेय किसी एक मनुष्य को जाता है वे हैं डॉ. भीमराव आम्बेडकर। भारतीय संदर्भ में जब भी समाज में व्याप्त जाति, वर्ग और लिंग के स्तर पर व्याप्त असमानताओं और उनमें सुधार के मुद्दों पर चिंतन हो तो डॉ. आंबेडकर के विचारों और दृष्टिकोण को शामिल किए बिना बात पूरी नहीं हो सकती। भारतीय संविधान के रचयिता डॉ. भीमराव आम्बेडकर का सपना था कि भारत जाति-मुक्त हो, औद्योगिक राष्ट्र बने, सदैव लोकतांत्रिक बना रहे। लोग आम्बेडकर को एक दलित नेता के रूप में जानते है। जबकि उन्होने बचपन से ही जाति प्रथा का खुलकर विरोध किया था। उन्होने जातिवाद से मुक्त आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ भारत का सपना देखा था। मगर देश की गन्दी राजनीति ने उन्हे सर्वसमाज के नेता के बजाय दलित समाज का नेता के रूप में स्थापित कर दिया। डा.आम्बेडकर का एक और सपना भी था कि दलित धनवान बनें। वे हमेशा नौकरी मांगने वाले ही न बने रहें अपितु नौकरी देने वाले बनें।
भारतीय संदर्भ में देखा जाए तो आम्बेडकर संभवतः पहले अध्येता रहे हैं। जिन्होंने जातीय संरचना में महिलाओं की स्थिति को समझने की कोशिश की थी। उनके संपूर्ण विचार मंथन के दृष्टिकोण में सबसे महत्वपूर्ण मंथन का हिस्सा महिला सशक्तिकरण था। आम्बेडकर यह बात समझते थे कि स्ति्रयों की स्थिति सिर्फ ऊपर से उपदेश देकर नहीं सुधरने वाली,उसके लिए कानूनी व्यवस्था करनी होगी। हिंदू कोड बिल महिला सशक्तिकरण का असली आविष्कार है। इसी कारण आंबेडकर हिंदू कोड बिल लेकर आये थे। हिंदू कोड बिल भारतीय महिलाओं के लिए सभी मर्ज की दवा थी। पर अफसोस यह बिल संसद में पारित नहीं हो पाया और इसी कारण आम्बेडकर ने कानून मंत्री पद का इस्तीफा दे दिया था।
डा.भीमराव आम्बेडकर का मानना था कि भारतीय महिलाओ के पिछड़ेपन की मूल वजह भेदभावपूर्ण समाज व्यवस्था और शिक्षा का अभाव है। शिक्षा में समानता के संदर्भ में आंबेडकर के विचार स्पष्ट थे। उनका मानना था कि यदि हम लडकों के साथ-साथ लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान देने लग जाए तो प्रगति कर सकते है। शिक्षा पर किसी एक ही वर्ग का अधिकार नहीं है। समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा का समान अधिकार है। नारी शिक्षा पुरुष शिक्षा से भी अधिक महत्वपूर्ण है। चूंकि पूरी पारिवारिक व्यवस्था की धुरी नारी है उसे नकारा नहीं जा सकता है।
जब 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार बनी तो उसमें डा.आम्बेडकर को देश का पहले कानून मंत्री नियुक्त किया गया। 29 अगस्त 1947 को डा.आम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना कि लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने उनके नेतृत्व में बने संविधान को अपना लिया। अपने काम को पूरा करने के बाद बोलते हुए डा.आम्बेडकर ने कहा मैं महसूस करता हूं कि भारत का संविधान साध्य है, लचीला है पर साथ ही यह इतना मजबूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों समय जोड़ कर रखने में सक्षम होगा। मैं कह सकता हूं कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य ही गलत था। आम्बेडकर ने 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे लोक सभा का चुनाव लड़ा पर हार गये। मार्च 1952 मे उन्हें राज्य सभा के लिए मनोनित किया गया। अपनी मृत्यु तक वो उच्च सदन के सदस्य रहे।
डा.आम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में अपने लाखों समर्थकों के साथ एक सार्वजनिक समारोह में एक बौद्ध भिक्षु से बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। राजनीतिक मुद्दों से परेशान आम्बेडकर का स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया। 6 दिसम्बर 1956 को आम्बेडकर की नींद में ही दिल्ली स्थित उनके घर मे मृत्यु हो गई। 7 दिसम्बर को बम्बई में चौपाटी समुद्र तट पर बौद्ध शैली मे उनका अंतिम संस्कार किया गया जिसमें उनके हजारों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया। 1990 में बाबासाहेब डा.आम्बेडकर को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। सरकारों की उपेक्षा के चलते बाबा साहेब को भारत रत्न सम्मान बहुत देर से प्रदान किया गया। जिसके वे सबसें पहले हकदार थे। आम्बेडकर के दिल्ली स्थित 26 अलीपुर रोड के उस घर में एक स्मारक स्थापित किया गया है जहां वो सांसद के रूप में रहते थे। देश भर में आम्बेडकर जयन्ती पर सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है। अनेको सार्वजनिक संस्थानो का नाम उनके सम्मान में उनके नाम पर रखा गया है। आम्बेडकर का एक बड़ा चित्र भारतीय संसद भवन में लगाया गया है। बाबा साहब ने शिक्षित बनों, संगठित रहो तथा संघर्ष करो का नारा दिया था। शिक्षित बनने का अर्थ है कि हमारे ज्ञान के द्वार खुलते हैं और संगठित रहो का मतलब शक्ति प्राप्त करना हैं।
रमेश सर्राफ धमोरा
झुंझुनू,राजस्थान


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