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नई दिल्ली@ वर्तमान परिवार व्यवस्था भारत की कानून के लिए चुनौती

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@ परिवार संस्थान में हो रहा है तेजी से बदलाव…
@ बच्चे होते हैं वैवाहिक विवाद के सबसे बड़े पीडि़त…
@ समझ और सम्मान से सुलझ सकते हैं पारिवारिक विवाद…
नई दिल्ली,12 अप्रैल 2025 (ए)।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने शनिवार को कहा कि भारत में परिवार संस्था आज तीव्र रूप से बदल रही है और यह परिवर्तन न केवल परिवारों की संरचना और कार्यप्रणाली को गहराई से प्रभावित कर रहा है,बल्कि कानूनी व्यवस्था पर भी असर डाल रहा है। बेंगलुरु में कर्नाटक हाई कोर्ट और कर्नाटक ज्यूडिशियल अकेडमी व फैमिली कोर्ट्स कमिटी सुप्रीम कोर्ट द्वारा आयोजित साउदर्न जोन रीजनल कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। उन्होंने कहा कि वैवाहिक विवाद के सबड़े बड़े पीडि़त बच्चे होते हैं।
उन्होंने कहा कि यह संक्रमण अनेक कारकों से प्रेरित हो रहा है, जिनमें सामान्य शिक्षा तक बेहतर पहुंच, शहरीकरण में वृद्धि, कार्यबल की गतिशीलता,व्यक्तिवादीआकांक्षाएं, और महिलाओं की शिक्षा के माध्यम से बढ़ती आर्थिक स्वतंत्रता प्रमुख हैं। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि परिवार को हर सभ्यता में समाज की मूल संस्था माना गया है। यह हमारे अतीत से जुड़ाव और भविष्य की ओर सेतु है, जस्टिस नागरत्ना ने परिवार भारतीय समाज की आधारशिला विषय पर दक्षिण क्षेत्रीय सम्मेलन में यह बात कही। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि शिक्षा और रोजगार के माध्यम से महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक मुक्ति को सकारात्मक रूप से देखा जाना चाहिए और समाज द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ऐसी महिलाएं न केवल परिवार की भलाई में योगदान देती हैं,बल्कि राष्ट्र के विकास में भी भागीदारी निभाती हैं।
परिवार विवादों के समाधान के लिए दो प्रमुख उपाय की चर्चा करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अगर पति और पत्नी दो प्रमुख कदम उठाएं तो अदालतों में लंबित अधिकांश पारिवारिक विवाद सुलझाए जा सकते हैं इनमें शामिल है एक-दूसरे के प्रति समझ और सम्मान व आत्मचिंतन और आत्म-जागरूकता। उन्होंने कहा कि समझ और सम्मान का मतलब है कि एक साथी को हर समय दूसरे साथी के हितों को ध्यान में रखना चाहिए। यदि कोई कार्य एक साथी को अनुचित लगता है, तो उसे उस कार्य को करने वाले साथी की स्थिति में स्वयं को रखकर सोचने की आवश्यकता है।
क्या है वर्तमान परिवार व्यवस्था की समस्या?
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट की फैमिली कोर्ट्स समिति की अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने कहा कि यदि सभी विवाह या विवाहेतर संबंधों में यह दृष्टिकोण अपनाया जाए, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि विवादों की जड़ महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि बदले हुए सामाजिक-आर्थिक परिवेश के अनुरूप हमारे दृष्टिकोण और व्यवहारों को अपडेट न करना है। उन्होंने कहा कि पुरुषों को यह समझना चाहिए कि आज के युग में उन्हें अपनी पत्नियों को, जो चौबीसों घंटे गृहिणी के रूप में काम करती हैं, आर्थिक रूप से भी सशक्त करना चाहिए। यह दो कदम बच्चों के पालन-पोषण पर भी सकारात्मक प्रभाव डालेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि समाज की सोच में परिवर्तन की कमी का असर फैमिली कोर्ट्स में लंबित मामलों पर भी पड़ा है। न्यायिक प्रक्रिया में सबसे बड़ी समस्या है मामलों की अत्यधिक संख्या और बढ़ती हुई लंबित फाइलें।
संकट में है देश के विवाह संस्थान
मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि पिछले एक दशक में करीब 40 प्रतिशत विवाह तलाक या अलगाव में समाप्त हुए हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि देश में फैमिली कोर्ट्स की संख्या अपर्याप्त है और इन पर अत्यधिक दबाव है। विवादों की रोकथाम के लिए पूर्व-वाद निपटान और मध्यस्थता अनिवार्य होनी चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि ट्रेंड मध्यस्थ या सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया जाना चाहिए। क्योंकि एक मामूली असहमति जैसे नाश्ता पसंद न आना या कोई साथी किसी कार्यक्रम के लिए समय पर तैयार न होना कई विवादों में बदल सकती है और अंततः विवाह टूट सकता है। बच्चे ऐसे मामलों में सबसे बड़े पीडç¸त होते हैं। इससे न्यायिक प्रक्रिया में देरी और अलग-अलग अदालतों द्वारा परस्पर विरोधी आदेशों की संभावना भी बढ़ जाती है।


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