जहां सबेरा है,वही बसेरा है ओर बसनेवाले कई किस्म के है। आजकल यू-ट्यूबर-व्हाट्सअप, इस्ट्राग्राम कुटुंबएप, फ़ेसबूक आदि पर विशेष प्रकार की वाहियात अक़्लमंद ज्ञानी बेशर्मियों की कब्जेवाली मीडिया खरपतवार गाजरघाँस की तरह फ़ेल चुकी है, इससे बचने के सारे उपाय असफल है। जिसने कभी कागज कलम छुआ नहीं वही गूगल गुरु की प्रेरणा से गीतकार, साहित्यकार ओर पत्रकार बन गया है ओर खुद को किसी बड़े उस्ताद से कम नहीं आँककर बिंदास खबरे लिखते समय सामने वाले को गधा समझता है, इन नामुराद लंगड़ी-लूली,अंधी-बहरी कार्टूननुमा
अवसरवादी मीडिया ने पूरे भारत को अपनी चपेट में ले लिया है, अगर आपका शहर, गाँव उसकी चपेट में नहीं आया है तो आप किस्मतवाले है? पर आपकी बात पर कोई विश्वास नहीं करेगा की आप किस्मतवाले है,क्योकि यह बीमारी कोरोना से ज्यादा घातक है, अगर आपने सोसल डिस्टेन्स कायम रखने के लिए मोबाइल ओर एलेक्ट्रानिक उपकरणों से दूरी बनायी है तो बात अटपटी होने से किसी के गले नहीं उतरेगी क्योकि हर गरीब भिखारी से लेकर अमीर आदमी मोबाइल का दीवाना है ओर आज हर घर में 2 साल की उम्र के बच्चे से लेकर मृत्युशैया पर लेटा 100 साल का बूढ़ा व्यकित भी मोबाइल की स्क्रीन में चौबीसों घंटे मुंह गढ़ाए बैठा है। इसी से यह बात प्रमाणित हो चुकी है की करोड़ों मोबाइल में दस प्रतिशत लोग अक्लमंदी के शिकार है ओर उनके दिमाग में भरा कचरा किसी सनसनीखेज समाचार, रपट या ज्ञानवर्धक लेख से कम नहीं इसलिए वह मीडिया बेशर्मी से समाज के सामने अपना कचराज्ञान बाँटकर अपनेआप को बुद्धिमान साबित करने की होड में लगा है। वे सभी जानते है की न तो उनके माता के कुलवंश मे ओर न ही उनके पिता के कुलवंश में किसी ने कभी कोई नाम किया है फिर भी वे अपने को चाणक्य व विधुर सा नीतिज्ञ समझ मेड इन पत्रकारों के लेबल उछालते हुये मस्त है।
एक समय फाउंटेन पेन पत्रकारों की शान था आज सारे पेन गुमनामी के अंधेरे में खो गए है। मीडिया में बहती गंगा में हाथ धोने की प्रतिस्पर्धा लगी है तभी इस दौड़ में हरेक अवसर पाना चाहता है। अधिकांश वे लोग जो शार्ट कट से धन कमाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है वे अपनी सारी कड़वाहट पचाकर मीडिया ज्वाइन आर रहा है , इसलिए यह स्वार्थपरक युग उनका युग हो गया है जो हर अवसर को भुनाना चाहता है । विशेषकर मेरा शहर व तथाकथित पत्रकारों की एक बड़ी जमात तैयार हो चुकी है और इस जमात में इनकी संख्या में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है, जो जनता का शोषण ओर प्रशासनिक अधिकारियों पर निगरानी रख सफेदपोशों के साथ गढ़बंधन कर बड़ी परेशानी का कारण बनते जा रही है। एक ओर मुख्यधारा के रूप में माने जाने वाले ईलेक्ट्रानिक चैनल है तो दूसरी ओर प्रिंट मीडिया संस्थानों में कार्य करने वाले कठपुतली कामगार पत्रकारों की सिंगल बेनरों को कंधे पर उठाए आसानी से मैनेज हो जाने वाले पत्रकार जो एकला चलो की नीति पर अकेले सुनी सड़कों पर चलते ओर भीड़ के सामने बिजली सा कड़कते ,बिस्फोट सा फूटते ओर भैंसा सा गर्राते दिखेंगे ओर सांड को देखकर मिमियाते मिलेंगे। कट केमरा एक्शन का उपयोग करने वाले टीवी चैनलों के नए एंकर दिखने में शर्माने-लजाने वाले होंगे ओर सबको निबाहने वाले होते है जबकि थोड़ा सा पुराने हुये एंकर जानीवाकर के साथ भयंकर दिखाई देते है जो विलायती नस्ल की झबरीली कुतिया को पाकर प्रसन्न उसी में रमे रहते है ओर जब वह टाँगे पसारती है तो उस समय वे फिल्मी पंचम गीतों को बेसुरा गाते-सहलाते अपनी अंगुलिया फेरते खुश होते है ओर कुतिया भी अपने को धन्य समझती निहाल हो उठती है, कुतिया पपी को मिलने वाले इस आदर सत्कार से भले एंकर की घरवाली नाराज हो पर सुबह शाम झबरीली पपी को घुमाते समय के चर्चे आçफ़सों में होते है ओर पपी की तारीफ़ों के पुल बांधते एंकर साहब घर बैठे लिफाफा ओर गिफ्ट पाते है ओर अन्य एंकर-संवाददाताओं के गिफ़्टों का ठेका लेकर उनके लिफाफे ओर गिफ्ट भी हजम कर जाते है। आप सोच रहे होंगे की अब जीवनरस में क्या शेष या विशेष रह गया है जिसे व्यक्त किया जाये। अभी तक की बाते सही मायने में पत्रकार या मीडियाकर्मियों की थी जो आपको दिल को तर-तर करती सुपथ मार्ग की प्रतीत होती होंगी ओर उसमें बेशर्म जैसी कोई बात
नही होगी,यदि हुई है तो उस बेशरम मीडिया की बात आनी चाहिए बात उनकी है जो अपने पैरों पर कभी भी खड़े नही हो सकते, ओर न ही चल सकते है तो फिर बिना चले तरक्की कैसे करेंगे, ऊपर उठने-बड्ने के लिए नसेनी या सीçढ़या तो चढ़नी ही होगी? कितनी भी तिकड़म लगाओं? कितनी भी कोशिश करो? कितनी भी चतुराई दिखाओं? बिना टांग उठाए ये सारी चतुराई व्यर्थ ही है ? टांग नही उठा सकते हो तो हाथ ही उठा ले, हाथ में मुसलचंद मोबाइल को पकड़ ले, मोबाइल उठाते ही मूर्ख से भी मूर्ख मतिमंद भी चार्ज हो उठता है ओर वे ज्ञानचंद बुद्धिप्रकाश बन जाते है। इस प्रकार तमाम मूर्खचंद मीडियाकर्मी विध्यासागर हो जाते है ओर ये सभी गूगलगुरु की कृपा का प्रसाद पाकर खुदकों पत्रकार सम्पूर्णानन्द मान व्हाट्सअप,फ़ेसबूक,यू-ट्यूबर पर अपनी खबरों-सूचनाओं का महाजाल बुनकर एक बात के
छह छह अर्थ बताकर उलझी बातों को सुलझाने ओर सुलझी बालों को उलझाकर अपनी मूर्खता के पट खोलते है ओर समझते है की पाठकों के दिमाग उनकी कलम के इस मूर्खज्ञान ने गिरवी रख लिए है। इन तथाकथित पत्रकारों के इस गूगलगुरु स्वरूपा भानुमती के पिटारा ज्ञान के खोफ से घबराय लोग तत्काल उनके खिलाफ आई सूचनाओं- खबरों के प्रकाशन ओर प्रसारण न किए जाने हेतु संधि कर सुख पाते है। ये सारे लोग अपने को हद दर्जे का ईमानदार बतलाकार संस्पेंश पैदा करते है इनमें सबसे बड़ा भ्रष्ट खाऊ होता है वह कमीशन तय कर मैनेज करने का काम करता है। वह इनके कम बोलने पर इन्हे बेईमानी के तराजू में तोलते समय बोली ज्यादा लगाकर इन्हे कृतकृत कर देता है ओर अपना नंबर आने पर ये ही दो कोडी के लंगू भंगु अपने को कम तोलते है, कम नापते है,कुल मिलाकर ये अपने को ईमानदार बिकाऊ न होना बताकर बाजार में खुलेआम नीलाम कर एक इंसान होने का दर्जा छोड़ मात्र एक बिकाऊ सामग्री में शामिल हो जाते है।
आत्माराम यादव पीव
ग्वालटोली नर्मदापुरम
मध्यप्रदेश
