
@जनपद क्षेत्र क्रमांक 11 के जनपद सदस्य प्रत्याशी के शिक्षक पति का सोशल मीडिया पर यह है दावा
@किसी प्रत्याशी को बाहरी प्रत्याशी बताने वाले प्रत्याशी पति के लिए पूर्व विधयाक उनकी बाहरी प्रत्याशी नहीं थी या @उनके क्षेत्र में जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशी बाहरी नहीं थी?
@जिस दिन प्रत्याशी का नामांकन फॉर्म स्वीकार हो गया और चुनाव चिन्ह आबंटित हो गया उसके बाद प्रत्याशी को @बाहरी कहना गैर संवैधानिक नहीं?
@ बाहरी प्रत्याशी संवैधानिक नहीं सिर्फ चुनावी मुद्दा है?
-रवि सिंह-
कोरिया,02 मार्च 2025 (घटती-घटना)। कोरिया जिले में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कई मामले में सुर्खियों में रहा,कई जिला व जनपद के सीट हाई प्रोफाइल रहे और हार जीत के परिणाम भी आ गए, चुनावी प्रचार के दौरान आलोचनाएं भी सामने आई हर तरह से प्रत्याशियों ने अपने जितने की संभावना तलाशते हुए कई गैर संवैधानिक बातों को भी चुनाव जीतने के लिए उपयोग किया, साथ ही प्रत्याशियों के द्वारा मतदाताओं को खरीदने का भी भरपूर प्रयास किया गया,इस बीच एक महत्वपूर्ण बात यह भी थी कि जहां चुनाव में मीडिया मैनेजमेंट अक्सर देखा गया वहीं पत्रकारों को जहां लिफाफा देने की बात सुनी जाती थी इस बार पैसों से भरा बैग तक पहुंचाने की बात सामने आई है,यह आरोप कोई और नहीं बैकुंठपुर विकासखंड के जनपद पंचायत क्षेत्र क्रमांक 11 के जनपद सदस्य प्रत्याशी के पति एक शिक्षक ने सोशल मीडिया पर लिखकर दावा किया है की एक प्रत्याशी अपने जितने के लिए एक पत्रकार तक रुपयों का बैग पहुंचाया जिसके बाद एक पत्रकार ने उस प्रत्याशी को जिताने का ठेका ले लिया,पत्रकार ने जिस प्रत्याशी को जिताने का ठेका लिया वह प्रत्याशी बाहरी था यह भी उनके द्वारा लिखा गया। इसके बाद लोगों के जेहन में एक सवाल खड़ा हो गया कि आखिर वह प्रत्याशी कितना पैसे वाला था और वह एक बैग पैसा पत्रकार के पास अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए लगा दिया? क्या एक पत्रकार किसी प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित कर सकता है? और कितना बड़ा कौन सा पत्रकार आ गया कि उसे किसी प्रत्याशी के द्वारा एक बैग नोट दिया गया? एक बैग नोट देने की बात पर शायद पूरे संभाग के पत्रकारों को ईर्ष्या भी हो सकती है कि आखिर एक पत्रकार इतना बड़ा हो गया जिसे प्रत्याशी एक बैग नोटों का भरा हुआ दे रहे हैं। जनपद सदस्य व प्रत्याशी के पति ने यह दावा किया है उन्होंने एक बात का और उल्लेख किया है वह एक प्रत्याशी को बाहरी प्रत्याशी होने का जबकि यह वही व्यक्ति हैं जो पूर्व विधायक व अपने क्षेत्र से वर्तमान जिला पंचायत सदस्य के लिए अपनी सहमति दिए हुए थे हैं उस समय यह प्रत्याशी उनके लिए बाहरी नहीं थे क्योंकि यह उनके समर्थित व्यक्ति थे हैं मन अनुसार लोग हैं? जबकि वाकई में कांग्रेस की पूर्व विधायक उस विधानसभा की निवासी नहीं थी चुनाव से पहले ही उन्हें वहां का निवासी बनाया गया था उनके पूर्वज या उनका मायका पक्ष वहां के निवासी जरूर थे पर उनका स्थाई पता यहां का नहीं था पर चुनाव के समय उनका मतदाता परिचय पत्र बना, आधार कार्ड अपडेट हुआ उसके बाद वह यहां की प्रत्याशी होने के लिए पात्रता रख सकीं तब उनका नामांकन फार्म निर्वाचन में स्वीकार किया,जिसके बाद बाहरी होने की बात भी खत्म हो गई,फिर भी उस समय बाहरी होने का प्रचार करके उनके विरोधी चुनाव जीतना चाहते थे पर जीत नहीं पाए थे हार गए थे,जिसे भी बाहरी कहा गया उसकी जीत अक्सर देखी गई,ऐसा ही जिला पंचायत सदस्य चुनाव में भी देखा गया जिला पंचायत क्षेत्र क्रमांक पांच की प्रत्याशी भी उस क्षेत्र से नहीं आती है पर इस जिले की निवासी हैं जिस वजह से उन्हें भी बाहरी प्रत्याशी कह रहे थे पर उन्होंने भी जीत दर्ज कर यह बता दिया कि वह बाहरी नहीं है यदि वह बाहरी होती तो निर्वाचन विभाग उनका नामांकन फार्म स्वीकार नहीं करता संविधानों के तहत नामांकन फार्म स्वीकार होना ही आपके बाहरी होने की बातों को असवैधानिक साबित करता है। वैसे क्षेत्र की सांसद भी मूलतः कोरबा क्षेत्र की निवासी नहीं हैं क्या उन्हें भी यह गुरुजी बाहरी कहेंगे। वैसे जो व्यक्ति गरीब बच्चों को पढ़ाने के नाम पर ही धोखेबाजी करता हो, वेतन लेकर गरीब बच्चों के साथ धोखा करता हो वह कुछ भी ज्ञान देगा लोग उसे मानेंगे नहीं यह सत्य है, क्योंकि ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ ही किसी पर उंगली उठाए तो शोभा देता है वैसे तो ऐसे गैरे उंगली उठाते ही रहते हैं जिनकी फिक्र पत्रकारिता नहीं करती।
गुरुजी पर आखिर है किसकी मेहरबानी?
वैसे जिस गुरुजी का बाहरी प्रत्याशी वाला सोशल मीडिया पोस्ट है वह खुलकर राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं और उनके विषय में जिले के आला अधिकारी मौन हैं शायद उन्हें यह बैग पहुंचाते हैं ऐसा माना जा सकता है क्योंकि इन्हें कोई डर नहीं नौकरी का यह केवल नेतागिरी करते हैं। कांग्रेस शासनकाल में भी यह खुलकर नेतागिरी करते थे वहीं अब भी इनका वही हाल है। वैसे इन्हें किसी बड़े व्यक्ति का संरक्षण प्राप्त है और उसी की मेहरबानियां इनके ऊपर बरस रही हैं।
राजनीति में ही रुचि है तो नौकरी से त्याग क्यों नहीं दे रहे हैं,क्यों हराम का वेतन उठा रहे हैं?
गुरुजी का यदि मन राजनीति में ही लग रहा है तो वह क्यों नहीं नौकरी छोड़ दे रहे हैं। नौकरी का हराम का वेतन क्यों उठा रहे हैं गुरुजी। गुरुजी को नौकरी छोड़कर नेतागिरी करना चाहिए यही उनके लिए सही होगा क्योंकि नौनिहालों के नाम पर हराम का वेतन बिना पढ़ाएं देना उन्हें कतई जायज नहीं संविधान का उल्लंघन है हराम का बिना काम का वेतन देना।
बाहरी प्रत्याशी के समर्थक गुरुजी हो सकते हैं,और उनके सामने यदि कोई प्रतिद्वंदी आ गया तो वह बाहरी प्रत्याशी हो जाता है?
गुरुजी की लीला और उनका संविधान अलग ही है। गुरुजी का गुरुजी खुद बाहरी है उनके अनुसार यदि सोचा जाए तो वहीं उन्हें कोई अच्छी टक्कर देने वाला सामने आ जाए मैदान में वह बाहरी होगा। वैसे गुरुजी को बैकुंठपुर में जाकर बैठना भी नहीं चाहिए क्योंकि बैकुंठपुर में ही जनपद कार्यालय है जहां का व्यक्ति उनके लिए बाहरी है। यदि उन्हें बाहरी शद से घृणा है जनपद पंचायत बैकुंठपुर में उन्हें प्रवेश नहीं करना चाहिए और अपने लिए अपने गांव में ही कार्यालय खुलवा लेना चाहिए।