
नारायणपुर जिले की गोंड-मुरिया जनजाति से ताल्लुक रखने वाले पंडीराम मंडावी को पद्मश्री पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया गया। उन्होंने बस्तर की पारंपरिक काष्ठ शिल्पकला को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाई है।
कला का सफर
पंडीराम मंडावी ने बचपन में अपने पिता स्वर्गीय मंदेर मंडावी से शिल्पकला की बारीकियां सीखीं। बस्तर की बांसुरी ‘सुलुर’ और लकड़ी पर उकेरी गई आकृतियां उनकी विशेषता हैं, जो बस्तर की लोककथाओं और परंपराओं को जीवंत करती हैं।
विश्व मंच पर बस्तर की पहचान
पंडीराम की कला ने जापान, इटली, फ्रांस, और जर्मनी जैसे देशों में बस्तर की माटी की खुशबू पहुंचाई। उनकी कृति मृतक स्तंभ, जो बस्तर की प्राचीन आदिवासी संस्कृति पर आधारित है, 2016 में इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय संग्रहालय में प्रदर्शित की गई।
सम्मान और योगदान
कला के प्रति उनके समर्पण को केरल की ललित कला अकादमी ने जे. स्वामीनाथन पुरस्कार से और छत्तीसगढ़ सरकार ने शिल्प गुरु की उपाधि से सम्मानित किया। उन्होंने 1,000 से अधिक युवाओं को शिल्पकला का प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनने में मदद की है।
गर्व का क्षण
पंडीराम प्रसिद्ध टाइगर ब्वॉय चेंदरू मंडावी के छोटे भाई हैं, जिन्होंने हॉलीवुड फिल्म से बस्तर का नाम रोशन किया था। उनके बेटे बलदेव मंडावी गर्व से कहते हैं, हमारे पिता की मेहनत ने बस्तर को वैश्विक पहचान दिलाई।
पद्मश्री का सम्मान
पंडीराम मंडावी को काष्ठ शिल्प और पारंपरिक वाद्य यंत्र निर्माण में उनके योगदान के लिए पद्मश्री 2025 से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर का गौरव है।
त्रिभुवन लाल साहू
बोड़सरा जाँजगीर छत्तीसगढ़