कोरबा@ऊर्जाधानी में वायु प्रदूषण का स्तर मानक स्तर से 28 गुना अधिक

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कोरबा 22 जनवरी 2022 (घटती-घटना)। कोरबा में वायु प्रदूषण का स्तर राष्ट्रीय मानक स्तर से लगभग 28 गुना अधिक पाया गया है । कोरबा की वायु गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई है। ऊर्जाधानी की हवा बहुत ही खराब और जहरीली हो चुकी है ढ्ढ कोयला और बिजली की नगरी कोरबा में वायु प्रदूषण का यह आलम तब सामने आया, जब कोविड-19 के कारण आसमान साफ थे। राज्य स्वास्थ्य संसाधन केंद्र (एसएचआरसी) ने शोध के लिए कोरबा से मार्च 2021 से जून 2021 के बीच 14 सैम्पल लिए थे,जब कोविड-19 के संक्रमण का दौर था। जांच के लिए संग्रहित सैम्पल में भारी मात्रा में हानिकारक सिलिका, निकल, शीशा और मैंगनीज के कण प्रमुख रूप से बड़ी मात्रा में पाए गए। कोरबा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 के स्तर पर पाया गया है, जो कि राष्ट्रीय मानक स्तर (60 यूजी/एमएक्स) के अनुसार लगभग 28 गुना अधिक है। शोध के मुताबिक हवा के नमूनों के परिणाम चिंताजनक हैं। इसमें पाए गये हानिकारक पदार्थों का स्तर बहुत ज्यादा है, जो स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। कई अध्ययनों से पता चला है कि, पीएम का स्तर अगर 2.5 या उससे ज्यादा है, तो उसका सीधा असर फेफड़े और हृदय पर पड़ता है। अनुसंधान ने यह भी साबित किया है कि, नवजात शिशुओं में जन्म दोष उत्पन्न हो सकता है। यह लोगों में सांस की बीमारी, हृदय रोग, स्ट्रोक और मानसिक असंतुलन भी पैदा कर सकता है। अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता पुनीत कुमार ने बताया कि, कोरबा से वायु के नमूनों के परिणाम बताते हैं कि ,इस क्षेत्र में पिछले दो वर्षों की अवधि में हवा की गुणवत्ता बेहद खराब स्तर पर पहुंच गई है। कोरबा के सभी नमूनों में क्रिस्टलीय सिलिका का स्तर ऊंचा देखा गया है। कोयला, राख और निर्माण कार्य में उपयोग होने वाले रेत दोनों में क्रिस्टलीय सिलिका के उच्च स्तर होते हैं। सिलिका के संपर्क से सिलिकोसिस नामक फेफड़ों की बीमारी होती है। इसी तरह सभी नमूनों में निकल का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के वार्षिक स्वास्थ्य-आधारित दिशा-निर्देश मानक 0.0025 यूजी/एमएक्स से अधिक है। कोरबा में 14 में से 11 सैंपल में मैंगनीज अधिक मिला। लंबे समय तक उच्च-स्तरीय मैंगनीज के संपर्क में आने से न्यूरोलॉजिकल क्षति हो सकती है, जिसे मैंगनिज्म के रूप में जाना जाता है।(मैंगनिज्म पार्किंसंस रोग से एक अलग बीमारी है), इसके उन्नत चरण में चेहरा मुखौटा जैसा हो जाता है, चाल में बदलाव, झटके और अन्य मनोवैज्ञानिक तकलीफें भी हो सकती हैं।


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