कोरिया/पटना@जब लोकसभा चुनाव के दौरान ही पूर्व सरपंच गायत्री सिंह भाजपा में हो गई थी शामिल तो फिर भाजपा सरकार के आदेश की उन्होंने क्यों की अवहेलना?

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-रवि सिंह-
कोरिया/पटना 18 जनवरी 2025 (घटती-घटना)। राजनीति आज के दौर में ऐसी पहेली हो गई है की इसे समझना अच्छे-अच्छे की बस की बात नहीं है, राजनीति में जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं…और यह सब तब चीज समझ आने लगते हैं जब चुनाव सामने होता है, कुछ ऐसा ही इस बार निकाय चुनाव को लेकर सामने आने लगा है अभी हम बात कर रहे हैं कोरिया जिले में इकलौते होने वाले नवीन नगर पंचायत पटना चुनाव की,जहां दो बार सरपंच रह चुकी गायत्री सिंह इस समय राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बनी हुई है, वह भी इसलिए है क्योंकि गायत्री सिंह पहले किसी भी राजनीतिक दल से ताल्लुक नहीं रखती थी, सभी यह जानते थे कि वह गैर निर्दलीय हैं किसी दल से जुड़ी हुई नहीं है, पर अचानक अभी नगर पंचायत चुनाव के दौरान उनके भाजपा में शामिल होने की खबर तेज हो गई,यह खबर तब तेज हुई जब उन्होंने भाजपा का मंच साझा किया जब पटना में नवीन जिलाध्यक्ष देवेंद्र तिवारी का आगमन हुआ, पर वहां पर पार्टी के द्वारा अधिकृत तरीके से कोई भी घोषणा नहीं हुई, सिर्फ मंच साझा करना ही भाजपा में शामिल होने पर मोहर लगना माना गया, वहीं अचानक खबर प्रकाशन के बाद पूर्व सरपंच गायत्री सिंह ने अपने सोशल मीडिया में भाजपा की सांसद प्रतिनिधि रह चुकी सरोज पाण्डेय के साथ तस्वीर साझा करके यह बताने का प्रयास किया कि वह भाजपा में लोकसभा चुनाव के दौरान ही शामिल हो गई थी, पर यह बात किसी को पता नहीं थी अब वह किस प्रकार से भाजपा में शामिल हुई थी,यह तो भाजपा में शामिल कराने वाले जाने या फिर भाजपा में शामिल होने वाले जाने। पर वहीं तस्वीर डालकर उनके द्वारा पुष्टि करने से यह बात सामने आई की 8 महीना पहले ही उन्होंने भाजपा की लोकसभा प्रत्याशी रह चुकी सरोज पाण्डेय के माध्यम से भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी, वहीं उन्होंने सदस्यता का प्रमाण पत्र भी सोशल मीडिया पर साझा किया जो प्राथमिक और ऑनलाइन सदस्यता का मामला है स्थाई नहीं, पर इसके बाद एक और बहुत बड़ा प्रश्न उत्पन्न हो गया कि जब वह भाजपा की हो ही गई थी तब फिर उन्होंने भाजपा के द्वारा ही प्रकाशित राजपत्र जिसमें उन्हें नगर पंचायत अध्यक्ष मनोनीत किया गया था और जिसके लिए जिला प्रशासन की सहमति से नगर पंचायत कार्यालय द्वारा शपथ ग्रहण आयोजित था में उन्होंने शपथ ग्रहण क्यों नहीं किया, उस समय भी प्रोपेगेंडा बहुत हुए शपथ ग्रहण कार्यक्रम आयोजन तो हुआ पर शपथ ग्रहण नहीं हुआ, भाजपा के होने के नाते पूर्व सरपंच को शपथ ग्रहण में जाना था और शपथ लेना था अब यह बड़ा सवाल है कि यह किस प्रकार का भाजपा में शामिल होना है कि सिर्फ दिखाना कुछ है और करना कुछ है? आखिर पूर्व सरपंच इस समय किस वरिष्ठ भाजपा नेता के हाथों की कठपुतली बनकर अपनी प्रतिष्ठा को दाव पर लगा रही हैं? वैसे माना जा रहा है कि गायत्री सिंह अब अपने स्थानीय समर्थकों से दूर जाने का निर्णय ले चुकी हैं वहीं वह स्थानीय समर्थकों की बजाए अब बाहरी नए समर्थकों और भाजपा के बड़े नेताओं के संपर्क में है और यह तय है कि यदि वह भाजपा प्रत्याशी बनाई गई पटना में बाहरी हस्तक्षेप बढ़ेगा और स्थानीय लोगों की उपेक्षा तय होगी।


नए जिलाध्यक्ष को पटना की राजनीति को समझकर ही निर्णय लेना होगा,पटना की राजनीति अलग विपरीत है अन्य जगहों से…
पटना की राजनीति को समझकर ही नए जिलाध्यक्ष को निर्णय लेना होगा। पटना अन्य जगहों से राजनीति के मामले में बिल्कुल अलग है और पटना में बाहरी हस्तक्षेप पटना वासी मिलकर बर्दास्त नहीं करते उसका विरोध करते हैं। अब ऐसे में भाजपा के नए जिलाध्यक्ष को सोचसमझकर निर्णय लेना होगा।नए जिलाध्यक्ष के लिए यह चुनौती होगी और उनको यह भी तय करना होगा कि पटना में बाहरी हस्तक्षेप वह न होने दें,पटना की बात पटना के लोगों के साथ करें वरना वह अपनी राजनीतिक बड़ी भूल इसे बना ले जायेंगे।
इस समय पूर्व सरपंच को वह भी लेकर घूम रहे हैं जिनका खुद का राजनीतिक ठिकाना नहीं…
पूर्व सरपंच गायत्री सिंह का वर्तमान में उनके साथ ज्यादा उठना बैठना है जिनका खुद का ही राजनीतिक ठिकाना नहीं है। कांग्रेस गोंडवाना के बाद अब उन्हें देवेंद्र तिवारी के कार्यकाल में भाजपा की तरफ लगाव हुआ नजर आ रहा है। गायत्री सिंह अब अपने पूर्व समर्थकों को पीछे छोड़ चुकी हैं क्योंकि पूर्व उनके समर्थकों में से एक ने भी उनके भाजपा प्रवेश की जानकारी होने की बात को स्वीकार नहीं किया। पूर्व समर्थकों को खुद आश्चर्य है कि कैसे एकाएक ऐसा निर्णय सामने आया उनके नेता का जबकि एकबार भी उनके नेता पूर्व सरपंच ने उन्हें बताना उचित नहीं समझा। वैसे पूर्व सरपंच बाहरी लोगों के साथ कैसे अपना राजनीतिक भविष्य बेहतर कर पाएंगी यह बड़ा प्रश्न है। पूर्व सरपंच पटना के समर्थकों को छोड़ ही चुकी नजर आ रही है।
पूर्व सरपंच के भाजपा में जाने का श्रेय किसके सर?
पटना की पूर्व सरपंच का भाजपा प्रवेश एक पहेली बनकर रह गया है। उन्होंने सोशल मीडिया में जो तस्वीर डाली है जो सदस्यता की तस्वीर डाली है वह ऑनलाइन सदस्यता कही जाएगी वहीं स्थाई सदस्यता बिल्कुल नहीं मानी जाएगी, क्योंकि उसकी शायद रसीद काटी जाती है वहीं यदि उन्होंने ऑनलाइन सदस्यता ही ली है तो किसके माध्यम से उन्होंने सदस्यता ली है, क्योंकि उनके खुद के समर्थक न तो सामने नजर आ रहे है न ही सोशल मीडिया पर वह बधाई दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर कुछ ऐसे लोग बधाई जरूर दे रहे हैं जो हैं तो दूसरे दल के लेकिन नए भाजपा जिलाध्यक्ष के मनोनयन के बाद से वह भाजपा की तरफ आकर्षित हैं और वह रायपुर तक नए जिलाध्यक्ष के साथ दौड़ लगा रहे हैं जबकि विधानसभा चुनाव में वह भाजपा प्रत्याशी के ही विरुद्ध थे विरुद्ध प्रचार कर रहे थे।
जिलाध्यक्ष गुट में होंगी शामिल या फिर विधायक समर्थक रहेंगी?
पूर्व सरपंच वर्तमान में जिलाध्यक्ष के गुट में जाती नजर आ रही हैं। नए जिलाध्यक्ष के मनोनयन के बाद ही उनके भाजपा प्रवेश की खबर सामने आई है, पूर्व सरपंच यह जता जरूर रही हैं कि उनका भाजपा प्रवेश पूर्व का है लेकिन उसकी घोषणा नए जिलाध्यक्ष के मनोनयन उपरांत ही हुई वहीं ऐसे नेत्री के माध्यम से प्रवेश बताया जा रहा है जो भी नए जिलाध्यक्ष के लिए आदर्श हैं जिलाध्यक्ष जिनके खास समर्थक हैं, ऐसे में अब क्या यह माना जाए कि पूर्व सरपंच जिलाध्यक्ष के गुट में ही रहने वाली हैं विधायक गुट में वह नहीं जाने वाली हैं। वैसे पटना को लेकर यह तय है कि पटना नए जिलाध्यक्ष के हिसाब से चलने वाला नहीं और वहां वह अपनी गुटबाजी नहीं खड़ा कर पाएंगे पटना में विधायक के बिना जिलाध्यक्ष जीत दर्ज नहीं कर सकते न ही पूर्व सरपंच को ही वह पटना वासियों को स्वीकार कर लेने मना पाने में समर्थ होंगे।
खबरों के गलियारे में सिर्फ पूर्व सरपंच का लंबे समय बाद भाजपा में शामिल होना बना चर्चा का विषय
अभी पटना की राजनीति में और खबरों के गलियारों में केवल पूर्व सरपंच हैं। पूर्व सरपंच का भाजपा प्रवेश जहां लोगों के लिए आश्चर्य बना हुआ है वहीं उनका भाजपा में प्रवेश बिना अपने समर्थकों के जानकारी हुआ है यह अजूबा जैसा माना जा रहा है, कुल मिलाकर भाजपा और पूर्व सरपंच का मामला अब नव गठित नगर पंचायत पटना के गठन से और चुनाव से ऊपर हो गया है। पूर्व सरपंच भाजपा नेताओं से नजदीक थीं कार्यकर्ताओं से नजदीक थीं यह तो माना ही जाता था लेकिन वह चोरी छिपे भाजपा में जाएंगी यह उनके ही समर्थकों के लिए एक अजीब बात है।
अध्यक्ष कौन होगा यह तो चुनाव परिणाम बताएगा…आचनक पार्टी में प्रवेश होने की खबर आना कितना नुकसान पहुंचाएगा
पटना का पहला अध्यक्ष कौन होगा यह तो चुनाव परिणाम बताएगा, नगर पंचायत का लेकिन गायत्री सिंह का भाजपा प्रवेश उन्हें कितना नुकसान पहुंचाएगा यह देखना होगा। वैसे अब माना जा रहा है कि गायत्री सिंह यह चुनाव भाजपा के सहारे जीत नहीं पाएंगी क्योंकि उनके ही पुराने समर्थक उनसे नाराज हैं उनके बाहरी लोगों के साथ संपर्क बढ़ाने से वहीं पटना के लोगों का भी यह कहना है खासकर भाजपाइयों का की अब इसबार बदलाव जरूरी है। बदलने से पटना का विकास होगा और नए चेहरे से राजनीति में नयापन होगा, नई चीजें उदाहरण देखने को मिलेंगे। वैसे गायत्री सिंह निर्दलीय मजबूत होती चुनाव जीत सकने की स्थिति में होती यह भी लोग मान रहे है लेकिन उन्हें भाजपा प्रत्याशी बतौर भाजपाई भी स्वीकार कर पाने की स्थिति में नजर नहीं आ रहे हैं।
गायत्री सिंह ने प्रथम अध्यक्ष कहलाने का मौका खुद छोड़ा,अब उनका निर्वाचन गलत होगा,भाजपा खेमे की आवाज
भाजपा खेमे की आवाज यह है कि गायत्री सिंह ने मनोनयन उपरांत प्रथम अध्यक्ष होने का गौरव खुद ठुकराया और सरकार जो भाजपा की है उसके निर्देश की उन्होंने अवहेलना की भाजपा नेता जहां बैठे रहे शपथ दिलाने वह बहिष्कार करने बैठी रहीं। अब जब उन्होंने खुद प्रथम अध्यक्ष कहलाने का मौका अवसर छोड़ा है उन्हें फिर मौका देना सही नहीं होगा? यह भाजपा का ही खेमा मानता है। बता दें भाजपा नेताओं का या कहें भाजपा के कार्यकर्ताओं का यही कहना है कि अब गायत्री सिंह को भाजपा का प्रत्याशी नहीं बनाया जाना ही सही होगा।


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