- महिला उम्मीदवार के लिए दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों में मंथन हुआ जारी
- दोनों ही राजनीतिक दलों के पास महिला उम्मीदवार के लिए नहीं है कोई सर्वमान्य चेहरा
- पूर्व सरपंच गायत्री सिंह के लिए भी मौका,महिला और चुनाव लड़ने का अनुभव उन्हें बनाता है दावेदार
–रवि सिंह –
बैकुंठपुर/पटना,09 जनवरी 2025 (घटती-घटना)। प्रदेश में नगरीय निकायों के लिए अध्यक्ष पद का आरक्षण कर दिया गया और इस दौरान कोरिया जिले के तीसरे और नव गठित नगर पंचायत के लिए भी अध्यक्ष पद का आरक्षण हुआ जो अनारक्षित महिला के लिए आरक्षित किया गया। अनारक्षित महिला अध्यक्ष पद का आरक्षण होते ही कई अध्यक्ष पद के संभावित दावेदारों उम्मीदवारों को झटका लग गया और उन्हें अब यह समझ में नहीं आ रहा है कि वह अब क्या करें? वहीं अब बताया यह जा रहा है कि संभावित उम्मीदवारों ने अपने घर से महिला दावेदारों उम्मीदवारों को तैयार करने की तैयारी कर ली है और वह अब घर की ही महिला के सहारे अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने का प्रयास करेंगे। वैसे दो प्रमुख राजनीतिक दल की तरफ से कई दावेदार सामने आ चुके थे और अब वह अपने अपने घर से महिला दावेदार पार्टी के सामने रखने प्रयासरत हैं यह पता चल रहा है लेकिन जिस तरह अब महिला के लिए अध्यक्ष पद आरक्षित हुआ है कई नाम सामने आने लगे हैं जिनमें से अब दोनों दलों को अपने अपने लिए उम्मीदवार का चयन करना है। वैसे जो भी नाम महिलाओं के सामने आ रहे हैं वह ऐसे नाम है अधिकांशतः जिनका सामाजिक पृष्ठभूमि से कोई लेना देना नहीं रहा है और न ही उनका समाज में कोई उत्कृष्ट योगदान रहा है।
पार्टियां उम्मीदवार चयन के लिए क्या आधार तय करती हैं
बता दें कि महिला दावेदारों के नामों के बीच अब समीक्षा इस बात की होनी है कि किस महिला उम्मीदवार के घर के लोग सामाजिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं और समाज के लिए थोड़ा बहुत ही सही उनके परिवार उनका योगदान है। ज्यादातर जो दावेदारी कर रहे हैं वह व्यावसायिक पृष्ठभूमि के लोग हैं और उनका सामाजिक सरोकार व्यापार व्यवसाय रहा है और वह राजनीति में आकर भी व्यापार व्यवसाय करेंगे यह भी लोगों का मानना है। भाजपा कांग्रेस अमूमन दोनों ही दलों के लिए स्थिति एक जैसी है उम्मीदवार तलाशने के मामले में वहीं यदि तुलनात्मक देखा जाए तो कांग्रेस में एक दो महिला उम्मीदवार जो दावेदार हैं ऐसे हो सकते हैं जिनके पास राजनीतिक अनुभव है। वैसे राजनीतिक अनुभव के मामले में पंच जैसे पदों का अनुभव पात्रता की सीमा से अलग माना जाना चाहिए क्योंकि पंच का चुनाव और अध्यक्ष का नगरीय निकाय का चुनाव बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों का चुनाव है चुनौतियों का चुनाव है इसलिए अब पार्टियां उम्मीदवार चयन के लिए क्या आधार तय करती हैं यह देखने वाली बात होगी।
पूर्व सरपंच पर कोई राजनीतिक दल दांव लगाए?
इस बीच पूर्व सरपंच को भी अवसर मिल गया है दावेदारी और उम्मीदवारी का और उनका भी पलड़ा भारी हो गया है क्योंकि महिला योग्य और सामाजिक पृष्ठभूमि से जुड़ाव का उनका एक पक्ष मजबूत पक्ष सामने है और जिसमे अनुभव राजनीतिक उनका उनकी दावेदारी उम्मीदवारी को प्रबल बनाता है। पूर्व सरपंच पर कोई राजनीतिक दल दांव लगाए न लगाए वहीं वह निर्दल भी यदि चुनाव लड़ जाएं वह मतदाताओं के सामने एक विचारणीय प्रत्याशी जरुर होंगी और अब वह यदि किसी दल के पास अपनी दावेदारी रखती है तो यह भी एक अलग मामला होगा कि दल कोई उन्हें मौका देता है नहीं देता है, वैसे पूर्व सरपंच उम्मीदवारी जरूर दर्ज करेंगी यह तय नजर आ रहा है और यदि उनके आधे भी समर्थक उनके साथ आ गए वह चुनाव में मजबूती से खड़ी नजर आएगी यह भी तय है।
कांग्रेस पार्टी से कौन होगा पार्टी का उम्मीदवार यह कौन करेगा तय,यह देखने वाली होगी बात…
कांग्रेस पार्टी किस महिला दावेदार पर दांव लगाएगी और कौन उम्मीदवार होगा इसका निर्णय कौन लेगा यह देखने वाली बात होगी। कांग्रेस पार्टी के पास विकल्पों की कमी नहीं है। कांग्रेस में कई महिला दावेदारों की बात उम्मीदवारी के लिए सामने आ रही है और जिनमें कुछ काफी वरिष्ठ हैं और अनुभवी भी हैं। कांग्रेस पार्टी से दावेदारों की यदि बात की जाए तो महिला दावेदारों की संख्या यहां अनगिनत है और अब उनमें से एक का चुनाव पार्टी को करना है। वैसे प्रत्याशी का चयन कौन करेगा यह भी देखने वाली बात होगी। पार्टी ने पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष अशोक जायसवाल को पटना नगर पंचायत चुनाव के लिए पर्यवेक्षक बनाया है और उनका पहला ही दौरा बैठक काफी चर्चा का विषय बना नाराजगी पार्टी के लोगों में दिखी जिसके बाद उन्हें फिर आना पड़ा और पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष के साथ बैठक लेना पड़ा। पटना के लिए थोपा हुआ उम्मीदवार कांग्रेस कार्यकर्ता नहीं बर्दाश्त करेंगे यह तय माना जा रहा है वहीं पटना के लिए उम्मीदवार का चयन पटना की ही बैठक में हो पर्यवेक्षक की उपस्थिति में और वरिष्ठ लोगों के बीच यह मांग सामने आ रही है। वैसे पार्टी का क्या निर्णय सामने आयेगा यह तो पता नहीं लेकिन यह तय है कि कांग्रेस में प्रत्याशी का चयन काफी सोच समझकर पार्टी को करना पड़ेगा और इसके लिए सभी की राय से ही निर्णय लेना होगा।
भाजपा के लिए महिला उम्मीदवार की तलाश काफी मुश्किलों वाला मामला
भाजपा के लिए महिला उम्मीदवार का चयन करना काफी मुश्किल वाला मामला है। भाजपा से वही दावेदार सामने हैं जो पहले अपने लिए प्रयासरत थे और महिला आरक्षित होते ही सीट वह अपने घर की महिलाओं के नाम के साथ अब सामने हैं। भाजपा से कई संभावित नामों के बीच यह देखने वाली बात है कि सााधारी दल होते हुए भाजपा किसे मौका देती है। भाजपा के लिए यह चुनाव ज्यादा महत्वपूर्ण है। वैसे अभी तक जिन नामों की सुगबुगाहट है उनमें से कई नामों को लेकर यह बात सामने आ चुकी है कि विशुद्ध रूप से व्यापारिक पृष्ठभूमि वाले किसी को मौका देना वह भी पहली बार सही नहीं है क्योंकि राजनीति के लिए सामाजिक सरोकारों से वास्ता जरूरी है जो किसी वर्तमान में सामने आ रहे नाम का नहीं है। वैसे कुछ को लेकर लोगों का कहना है कि जब इन्हीं में से कुछ लोगों के परिवार के लोगों को राजनीति में मौका मिला पद मिला सेवा का अवसर मिला तब उन्होंने अपना विकास किया और अब वह पटना के विकास की बात कर टिकट मांग रहे है।बता दें कि लोगों का कहना है कि हाल फिलहाल की नहीं पूरी पृष्ठभूमि की जांच जरूरी है तब टिकट दिया जाना चाहिए क्योंकि जब पार्टी के लिए कठिन दौर होता है व्यावसायिक पृष्ठभूमि वाले अपने व्यवसाय में मस्त रहते हैं और तब संघर्ष करने वाला सत्ता में असली हक से वंचित हो जाता है।
इस चुनाव में संबंध होंगे खराब
इस चुनाव में आपसी संबंधों के भी खराब होने की संभावना होगी, कई लोग खुद को अध्यक्ष सहित पार्षद बनना देखना चाहते हैं और ऐसे में वह अलग अलग दावेदारी करेंगे वहीं टिकट नहीं मिलने की स्थिति में पार्टियों से कई निर्दलीय भी चुनाव लड़ेंगे,अब इस बीच उनका आपसी सामंजस्य बिगड़ेगा क्योंकि कई लोग आज मधुर संबंधों के साथ साथ हैं वहीं आगे वह एक दूसरे के सामने प्रतिद्वंदी होंगे।
पूर्व सरपंच का पलड़ा अब नजर आने लगा भारी
पूर्व सरपंच जो नगर पंचायत गठन के बाद से ही चुनाव में कहीं प्रत्याशी नजर नहीं आ रही थीं वहीं जैसे ही अनारक्षित महिला का आरक्षण सामने आया वैसे ही अब उनका पलड़ा भारी हो गया। वैसे मामला पटना की जनता से जुड़ा है निर्णय भी उनका ही होगा लेकिन अब पूर्व सरपंच का पक्ष मजबूत नजर आ रहा है चुनाव में यह कहना गलत नहीं है।