नई दिल्ली@ आरक्षण से बाहर करना सरकार का काम

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क्रीमीलेयर पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा-प्रतिस्पर्धा करने में समक्ष लोगों को आरक्षण से बाहर किया जाए
याचिका में की गई थी क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए नीति की मांग
नई दिल्ली,09 जनवरी 2025(ए)।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि पिछले 75 सालों को ध्यान में रखते हुए आरक्षण का लाभ ले चुके ऐसे व्यक्तियों को आरक्षण से बाहर रखा जाना चाहिए जो दूसरों से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हैं, लेकिन इस पर फैसला कार्यपालिका और विधायिका को लेना होगा।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस अगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा दिए गए एक फैसले का जिक्र करते हुए एक याचिका पर यह टिप्पणी की।
क्रीमीलेयर पर पीठ ने फैसले में क्या कहा था?
संविधान पीठ ने बहुमत के फैसले में कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों (एससी) के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, जो सामाजिक रूप से विषम वर्ग है, ताकि उन जातियों के उत्थान के लिए आरक्षण प्रदान किया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं।
जस्टिस गवई भी संविधान पीठ का हिस्सा थे और उन्होंने एक अलग निर्णय लिखा था। उन्होंने कहा था कि राज्यों को एससी और अनुसूचित जनजातियों ( एससी/एसटी) के भीतर भी क्रीमीलेयर की पहचान करने की नीति बनाई जानी चाहिए। उनमें जो लोग सक्षम हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं देना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने कहा…छह माह बीत गए,पर नहीं बना कानून
याचिकाकर्ता के वकील ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के उसी निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें ऐसी क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिए नीति बनाने की बात कही गई थी। जस्टिस गवई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण था कि उप-वर्गीकरण की अनुमति है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि संविधान पीठ ने राज्यों को नीति बनाने का निर्देश दिया था और तब से लगभग छह महीने बीत चुके हैं। पीठ ने जब याचिका पर सुनवाई के प्रति अनिच्छा जाहिर की तो वकील ने याचिका वापस लेने और संबंधित प्राधिकारी के समक्ष पक्ष रखने की अनुमति मांगी, जो इस मुद्दे पर निर्णय ले सके। पीठ ने इसकी अनुमति दे दी। जब वकील ने तर्क दिया कि राज्य नीति नहीं बनाएंगे और अंतत: सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ेगा तो अदालत ने कहा, विधायिका कानून बना सकती है।
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने जताई थी असहमति
छह न्यायाधीशों ने एक दूसरे से सहमति जताने वाला फैसला दिया था, जबकि जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई थी। जस्टिस त्रिवेदी ने कहा था कि एससी-एसटी का उपवर्गीकरण संवैधानिक प्रविधानों के विरुद्ध है। अनुच्छेद-341 और अनुच्छेद-342 में जारी राष्ट्रपति की सूची में कोई भी बदलाव सिर्फ संसद कर सकती है और राज्यों को यह अधिकार नहीं है। सात जजों की बेंच ने 6ः1 के बहुमत से ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच के 2004 के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जातियों का कोई उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता क्योंकि वे अपने आप में एक समरूप वर्ग हैं।
20 साल पुराने मामले में बनाई व्यवस्था गलत
सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय पीठ ने एक अगस्त को 6-1 के बहुमत से दिए फैसले में कहा था कि एससी-एसटी वर्ग के ज्यादा जरूरतमंदों को आरक्षण का लाभ देने के लिए राज्य एससी-एसटी वर्ग में उपवर्गीकरण कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल पुराने पांच न्यायाधीशों के ईवी चिनैया (2004) मामले में दी गई व्यवस्था को गलत ठहरा दिया था। ईवी चिनैया फैसले में पांच न्यायाधीशों ने कहा था कि एससी-एसटी एक समान समूह वर्ग हैं और इनका उपवर्गीकरण नहीं हो सकता। एक अगस्त के फैसले में कोर्ट ने आरक्षण के भीतर आरक्षण पर तो मुहर लगाई ही थी। साथ ही एससी-एसटी वर्ग के आरक्षण में से क्रीमीलेयर को चिन्हित कर बाहर किए जाने की जरूरत पर भी बल दिया था।


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