- प्रतिदिन तय सीमा पर कट रहे टोकन,परंतु धान का आवक लगभग नहीं के बराबर:सूत्र
- डीओ कटने का इंतजार करते हैं राइस मिलर्स और समिति में पदस्थ कर्मचारी
- किसानों का संग्रहित और उपार्जित धान बिक्री उपरांत समाप्त होने की कगार पर
- बिचौलिए और समिति में पदस्थ कर्मचारी किसानों के बकाया रकबे में नगद राशि से कर रहे फर्जी धान खरीदी:सूत्र
- समितियां में लगा सीसीटीवी कैमरा किसी काम का नहीं, रिकॉर्डिंग की भी नहीं है सुविधा
- राइस मिलर्स, बिचौलियों को समिति में खपाने के लिए उपलध करा रहे धान
- सिंडिकेट की तरह हो रही पूरी धांधली, बगैर मिलीभगत के संभव नहीं
रवि सिंह –
कोरिया,07 जनवरी 2025 (घटती-घटना)। किसानों को समृद्ध बनाने, उनके द्वारा उपार्जित फसल के उचित भुगतान की व्यवस्था करने के लिए केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक विभिन्न योजनाएं लागू करते हैं। साथ ही विभिन्न समितियां के माध्यम से किसानों द्वारा उपार्जित अन्न की तयशुदा कीमत पर खरीदी करने की व्यवस्था भी सरकारें करती है। पूरी प्रक्रिया में किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए सशक्त व्यवस्था बनाने का प्रयास होने के बावजूद भ्रष्टाचारियों को तरह-तरह के उपाय मिल ही जाते हैं, जिससे वह शासन को चूना लगाने से बाज नहीं आते। प्रदेश सहित पूरे देश में किसानों द्वारा उपार्जित धान की खरीदी एक महती व्यवस्था है, जिसमें साल दर साल शासन अपने खरीदी के लक्ष्य को बढ़ाती जाती है। परंतु क्या जमीनी स्तर पर वास्तव में सही खरीदी होती है? या कागजों में खरीदी को प्रदर्शित कर शासन द्वारा की जाने वाली भुगतान की राशि का घाल-मेल किया जाता है? कुछ ऐसा ही मामला इन दिनों कोरिया जिले के विभिन्न समितियां में देखा जा रहा है, जहां विगत एक माह से धान खरीदी अपने जोरों पर है। परंतु घटती घटना के पड़ताल में यह पाया गया कि क्षेत्र के अधिकांश किसान अपने द्वारा उपार्जित फसल को समितियां में बेच चुके हैं। बहुत ही विरले किसान बाकी हैं, जिनकी फसल की बिक्री अभी तक नहीं हो पाई है। बावजूद इसके धान खरीदी प्रारंभ होने से लेकर अब तक कोई भी दिन ऐसा ना गया है, जब लिमिट अनुसार टोकन ना कटा हो और प्रतिदिन खपत ना दर्शाई गई हो यह एक बड़ा भ्रष्टचार है जिसे प्रशानिक अधिकारी समझ नहीं पा रहे है ।
समितियों में लगे सीसीटीवी कैमरे किसी काम के नहीं, रिकॉर्डिंग की नहीं है सुविधा
धान खरीदी में पारदर्शिता लाने के लिए प्रत्येक धान खरीदी केंद्र में सीसीटीवी कैमरे की व्यवस्था की गई है। परंतु यह कैमरे किसी काम के नहीं है, क्योंकि इनमें केवल लाइव देखा जा सकता है, रिकॉर्डिंग की कोई व्यवस्था नहीं है। ताकि किसी प्रकार के गड़बड़ की जांच होने की सूरत में यह सीसीटीवी काम ना आ सके। इसके अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरा के फुटेज का फोकस इस प्रकार रखा गया है कि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी करने पर सीसीटीवी के माध्यम से पकड़ा ना जा सके। और तो और प्रत्येक धान खरीदी केंद्र में निगरानी समिति और नोडल अधिकारी की नियुक्ति भी की गई है। परंतु इन सब के बावजूद फर्जी धान खरीदी पर लगाम लगाना किसी भी सूरत में नजर नहीं आ रहा।
सिंडिकेट की तरह हो रही पूरी धांधली, बगैर ऊपर के मिली भगत के संभव नहीं
धान खरीदी केंद्र में फर्जी धान खरीदी के भ्रष्टाचार का अंदाजा केवल निगरानी और जांच से ही पता लगाया जा सकता है। यदि भौतिक सत्यापन प्रतिदिन का कराया जाए तो सारे भ्रष्टाचार उजागर हो जाएंगे। परंतु जब ऊपर से लेकर नीचे तक सभी जिम्मेदार भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबे हों तो भ्रष्टाचार से मुक्ति मिलेगी कैसे। घटती घटना ने एक धान खरीदी केंद्र में अपने पड़ताल में एक किसान से जब बात की तो नाम ना बताने की शर्त पर किसान ने बताया कि आज उसका धान बेचने का टोकन था। परंतु जितनी मात्रा का टोकन था, उतना मात्रा का धान उसके पास उपलध नहीं था। शाम होते-होते समिति कर्मचारियों ने उससे सौदेबाजी कर 26 रूपए प्रति किलो की दर से नगद राशि लेकर काटे गए टोकन की पूरी मात्रा को धान खरीदी में दर्शा दिया। अब बड़ा सवाल यह है कि जब धान खरीदी हुई नहीं तो भौतिक रूप से धान का सत्यापन होगा कैसे। इसलिए घटती-घटना का कहना यह है कि ऊपर से नीचे तक फर्जी धान खरीदी के लिए सब एक सिंडिकेट की तरह कार्य कर रहे हैं। जिसमें राइस मिलर्स का बहुत बड़ा योगदान है, जो समिति को धान उठाव का प्रमाण पत्र मात्र 23 से 24 रूपए प्रति किलो में दे देते हैं। इस प्रकार समिति कर्मचारियों को बैठे बिठाये दो से तीन रुपए प्रति किलो की राशि मिल जाती है। यह स्थिति तब है जब किसान से सौदेबाजी की जाती है। जब किसान के बकाया रकबे में समिति कर्मचारी स्वयं फर्जी धान खपाते हैं,तो निर्बाध राशि आहरण के लिए किसान का एटीएम कार्ड बनवाकर स्वयं के पास रख लेते हैं या किसानों से अग्रिम चेक बनाकर रख लिया जाता है। ताकि बाद में खाते में पैसा आने पर बगैर किसान के बैंक जाए राशि को आहरित किया जा सके।
प्रतिदिन तय सीमा पर कट रहे टोकन, परंतु धान का आवक लगभग नहीं के बराबर
कोरिया जिले के प्रत्येक सहकारी समिति और धान खरीदी केंद्र में प्रतिदिन जारी तयशुदा लिमिट के अनुसार टोकन तो कट रहे हैं, पर वास्तव में धान का आवक एक चौथाई भी नहीं है। बावजूद इसके प्रतिदिन शाम तक पूरी खरीदी संपन्न कर कागजों में दर्ज कर लिया जाता है। प्रत्येक समिति और धान खरीदी केंद्र में निगरानी समिति का गठन किया गया है, साथ ही शासन द्वारा नोडल अधिकारी भी नियुक्त किए गए हैं। निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। बावजूद इसके इतने बड़े फर्जीवाड़े को प्रत्येक समिति द्वारा अंजाम देना कहीं ना कहीं बड़े अधिकारियों के मिली भगत को भी इंगित करता है।
यह है खेल
इस पूरे खेल को समझने के लिए सबसे पहले शासन द्वारा धान खरीदी प्रक्रिया को समझना आवश्यक है। वर्तमान सत्र में छत्तीसगढ़ शासन प्रत्येक पंजीकृत किसान से प्रति एकड़ 21 कुंतल के दर से धान खरीदी की सीमा निर्धारित की है। जिसका वर्तमान में भुगतान केंद्र सरकार द्वारा लागू एमएसपी के अधीन 2300 रुपए प्रति मि्ंटल किया जा रहा है। और राज्य सरकार प्रति मि्ंटल 800 रूपए के दर से बोनस के रूप में कुल मिलाकर 3100 रूपए प्रति क्विंटल भुगतान का लक्ष्य रखी है। यह जाहिर सी बात है कि जिले में धान का औसत उत्पादन प्रति एकड़ लगभग 15 से 20 मि्ंटल के बीच है, वह भी तब जब अनुकूल फसल हो जाए। इस बार अत्यधिक वर्षा के कारण यह भी संभव नहीं हो पाया है। इस दशा में किसानों द्वारा उपार्जित धान की मात्रा वास्तव में कम है, और किसान अपने पूरे पंजीकृत रकबे में धान विक्रय करने में सक्षम नहीं है। अर्थात अधिकांश किसानों का पंजीकृत रकबा खाली जा रहा है। यह भी गौरतलब है कि जो वास्तव में किसान हैं, उनमें से अधिकांश किसानों ने धान खरीदी के प्रथम माह में ही अपना धान समितियों में विक्रय कर लिया है। कुछ प्रतिशत ही किसान बाकी हैं, जिनका उपार्जित धान अभी तक बिक्री नहीं हो पाया है। जब तक समितियों में धान उठाव के लिए डीओ जारी नहीं हुआ था, तब तक वास्तव में किसानों से उपार्जित धान की खरीदी की जा रही थी। असली खेल अब प्रारंभ हुआ है, जब समितियां से धान उठाव के लिए राइस मिलर्स को डीओ जारी किया गया है। फर्जी धान खरीदी के इस खेल में समिति में पदस्थ कर्मचारियों के अलावा बिचौलिए और राइस मिलर्स भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। जिन किसानों के पास धान नहीं है, या जिनका रकबा खाली जा रहा है, या तो राइस मिलर्स समितियां से उठाव किए गए धान को पुनः उन्हें समिति में बेचने के लिए उपलब्धकरा रहे हैं, या बिचौलिए और समिति में पदस्थ कर्मचारी ऐसे किसानों से सौदेबाजी कर उनके नाम का टोकन काटते हैं, और समिति में बगैर धान लाये राइस मिलर्स को 2200 से 2300 रूपए प्रति कुंतल के दर से नगद भुगतान कर रहे हैं। इसके बदले राइस मिलर्स भी धान उठाव की प्रक्रिया में समिति प्रबंधकों को क्लीन चिट दे देते हैं, की खरीदे गए धान का उठाव कर लिया गया है। इससे राइस मिलर्स को भी उठाव के लिए वाहन का भाड़ा तथा पल्लेदारी की पूरी राशि वहन नहीं करनी पड़ती, जो कि उन्हें अतिरिक्त फायदा दिलाता है।
धान उठाव के लिए यदि संग्रहण केंद्र में धान का संग्रहण किया जाए तो बंद हो सकता है फर्जी धान खरीदी का भ्रष्टाचार
समितियां द्वारा फर्जी धान खरीदी कर किए जाने वाले भ्रष्टाचार और शासन को चूना लगाने के क्रियाकलाप पर यदि रोक लगाना है, तो समितियों के धान खरीदी उपरांत खरीदे गये धान को संग्रहण केंद्रों भौतिक सत्यापन के साथ रखवाने के उपरांत ही यदि राइस मिलर्स को धान सौंपा जाए तो फर्जी धान खरीदी पर अंकुश लगाया जा सकता है। सीधे डीओ काटने पर राइस मिलर्स और समिति कर्मचारियों के आपसी सामंजस्य से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। जबकि समिति से संग्रहण केंद्र और संग्रहण केंद्र से राइस मिलर्स तक धान पहुंचाने में फर्जी धान खरीदी पर अंकुश लगाया जा सकता है।