- घर से जब कोई पत्रकार निकलता होगा तो उसका पूरा परिवार उसके आने के राह देखता होगा…
- क्या श्रद्धांजलि तक ही सीमित रह जाएगी किसी पत्रकार की मौत?
- देश के सरहद पर किसी घर का बेटा खड़ा रहता था तो परिवार को चिंता होती थी, कुछ ऐसे ही स्थिति पत्रकारिता में हो गई है, पत्रकार का खबर के लिए निकलना और घर सकुशल पहुंचने का इंतजार परिवार को रहता है
-आजाद कलम-
बस्तर,04 जनवरी 2025 (घटती-घटना)। अभी तक सबसे खतरनाक जीवन के लिए कुछ होता था तो वह थी फौजी की नौकरी, फौज की नौकरी में जवान का देश की सुरक्षा के लिए खड़ा रहना सबसे खतरनाक माना जाता था, फिर भी जवान अपने देश की रक्षा के लिए सरहद पर तैनात रहता था और अपने देश की सुरक्षा करता था,अब देश में पत्रकारिता भी उतने ही खतरनाक होती जा रही है जहां देश के जवान को देश के दुश्मनों से खतरा होता था वैसे ही पत्रकारिता जगत में पत्रकार को भ्रष्टाचार्यों से खतरा सताने लगा है,स्थिति प्रदेश में यह हो गई है कि जब कोई पत्रकार खबर के लिए घर से बाहर निकलता है तो व सकुशल घर पहुंचेगा भी या नहीं? इसकी चिंता उसके घर वालों को रहती है क्योंकि आज की पत्रकारिता में पत्रकार की सुरक्षा पत्रकार की खुद की जिम्मेदारी है। पत्रकार को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ सिर्फ कहा जाता है पर इसके लिए कोई विशेष सुरक्षा नहीं दी गई है, यह आजादी के पहले से ही ऐसा ही चला आ रहा है पत्रकार अपनी जान हथेली पर रखकर अब पत्रकारता कर रहा है, वह भी सिर्फ इसलिए कि उसका देश उसका राज्य भ्रष्टाचार की दीमक से बचा रहे, देश का माहौल शांत रहे व्यवस्था लोकहित में हो,सरकार जनता हित में काम करें, जनप्रतिनिधि अपना दायित्व ईमानदारी से निभाएं, सिर्फ इन सब के लिए वह पत्रकारिता करता है पर ऐसे माहौल में पत्रकरिता करना अपना जीवन दाव पर लगाने जैसा ही है, क्योंकि ऐसे लोगों के लिए पत्रकारिता करके पत्रकार अपने जीवन को खतरे में ही डाल रहा है। एक पत्रकार अपने कर्तव्यों के दौरान यदि अपनी जान गवा भी देता है, तो उसे शाहिद का दर्जा नहीं मिलता जबकि वह काम देश व राज्य हित में करता है, उसे वह सम्मान भी नहीं मिलता जो उसे मिलना चाहिए। सुरक्षा तो दूर की चीज हो गई हैं ना अच्छी तनख्वाह है ना सुरक्षा है ना उसके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसी के पास है, फिर भी पत्रकार अपने मौलिक अधिकारों व देश हित की भावना रख के पत्रकारिता करता है और कई तरह की समस्याओं से जूझता है और जूझता आ रहा है, पर इनका दर्द व उनकी जीवन की सुरक्षा या उनके परिवार की सुरक्षा को लेकर कोई भी बिल नहीं बन पाता, कोई भी विधेयक सदन लाया जाता है, कोई भी नियम नहीं आते अब यह पत्रकारिता जगत की विडंबना है या फिर पत्रकारिता जगत में व्यवसायीकरण इसकी वजह है? एक बार फिर बस्तर में इस बार जाबांज पत्रकार की हत्या ने सभी को जिंजुर कर रख दिया है इस बार पत्रकार की मौत ना तो पुलिस की गोली से हुई है और ना ही माओवादियों ने गला रेता है। इस बार बस्तर में भ्रष्टाचार से सराबोर ठेकेदार ने पत्रकार मुकेश चंद्राकर हत्यारे बताए जा रहे है । माओवादियों के ठिकाने से सीआरपीएफ के जवान को बचाकर लाने वाले पत्रकार साथी की हत्या सड़क निर्माण में भारी भ्रष्टाचार की पोल खुलने के कारण कर दी गई है। बस्तर संभाग के कोंटा थाने में बीते बरस चार पत्रकारों को फर्जी गांजा तस्करी केस में फसा दिया गया था। फिलहाल पत्रकार ज़मानत में हैं और हर सप्ताह थाने में उपस्थिति दर्ज कराने जाते हैं। अब बस नए साल की शुरुआत हुई और पहली ही तारीख़ को बीजापुर जिले के एनडीटीवी के पत्रकार को ठेकेदार ने मारकर अपने सैप्टिक टैंक में डाल दिया। पुलिस ने शव निकाला है। पुलिस द्वारा किए गए पंचनामे में पत्रकार मुकेश चंद्राकर के शव पर कई जगहों पर गंभीर चोट के निशान मिले हैं। उनके सिर पर सात जगह नुकीले हथियार से वार के निशान पाए गए, जबकि माथे पर कुल्हाड़ी से वार के निशान मिले हैं। जांच में यह बात सामने आई है कि उनकी हत्या गला घोंटकर की गई है। ठेकेदार के भाई को पुलिस ने इस मामले में गिरफ्तार किया है, वहीं अन्य आरोपी फरार बताए जा रहे है।
पत्रकार के परिवार के लिए सरकार की संवेदना क्या होगी?
वर्तमान में भाजपा की सरकार है और पत्रकार के यदि हमले की बात की जाए तो कई मामले 1 साल में आ चुके हैं झूठे मामले तो होते ही है, जान पर भी अब आन पड़ी है पत्रकारों के, बस्तर में पत्रकार की जिस तरह से हत्या की खबर आ रही है अब इससे आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि पत्रकार के परिवार पर क्या गुजर रही होगी? पर क्या सरकार पत्रकार के परिवार की संवेदना को समझेगा? क्या उसकी सहायता के लिए सारी बंदिशे तोड़कर खड़ा होगा? पत्रकार के परिवार वाले को मुआवजा व नौकरी सरकार देगी?
पत्रकार को शहीद का दर्जा कैसे मिलेगा?
सरकारी आती है जाती हैं पर पत्रकारों की समस्या व उनकी सुरक्षा की समस्या जस की तस बनी रहती है सुरक्षा तो दूर उन्हें सम्मान भी अपने काम के दौरान मौत आने पर नहीं मिलती है,अपने काम की वजह से हुए भ्रष्टाचार्यों के दुश्मन बन जाते हैं और वही दुश्मनी उनके जीवन के लिए खतरा होती है, इस समय पत्रकारिता करना और सच्ची खबर लिखना कितना खतरनाक है यह अब किसी से छुपा नहीं है, सच्ची पत्रकारिता आपकी जान ले सकती है और जान लेने वाले कोई और नहीं आपकी खबरों से क्षुद रहने वाले ही होते हैं, बस्तर में पत्रकार की हत्या पर अभी राजनीति से लेकर तमाम तरीके की बात होगी पर उसकी शहादत की बात कोई नहीं करेगा, एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाए जाएंगे,पर पत्रकार को भी सम्मान मिले इस पर कोई बात नहीं करेगा,उसके हत्यारे को कड़ी सजा मिले यह भी प्रयास क्या जल्द होगा?
सेप्टिक टैंक में मिली पत्रकार की लाश
पत्रकार चुनौतियों का सामना करते हैं यह साबित करने की ज़रूरत नहीं है। तीन दिनों से लापता पत्रकार मुकेश चंद्राकर की लाश घर से 2 किमी और बीजापुर थाने से पांच किमी की दूरी पर चट्टानपारा इलाके में सेप्टिक टैंक में मिली है,लाश मिलने की सूचना पर पुलिस ने मौके की घेराबंदी कर जांच में जुटी है। मुकेश चंद्राकर 1 जनवरी की शाम टी-शर्ट और शॉर्ट्स में घर से बाहर निकले थे, कुछ देर के बाद उनका फोन स्विच ऑफ हो गया, रात तक घर नहीं लौटने पर उनके भाई और पत्रकार युकेश चंद्रकार ने करीबियों के घर शहर में अलग-अलग जगह पता लगाया, कोई खबर नहीं मिलने पर युकेश चंद्रकार ने पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। मुकेश के गुमशुदगी रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए सुंददराज पी ने शाम तक स्थिति स्पष्ट होने की बात कही थी, उन्होंने मीडिया से चर्चा में बताया था कि टीम को पड़ताल के लिए एक्टिव किया गया है, जानकारी पर एक व्यक्ति को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही थी इसके अलावा पुलिस की एक टीम को दिल्ली रवाना किया गया था।